ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Chaupai / चोपाई
कहउँ कथा सोइ सुखद सुहाई । सादर सुनहु सुजन मन लाई ॥
Doha / दोहा
दो. जस मानस जेहि बिधि भयउ जग प्रचार जेहि हेतु । अब सोइ कहउँ प्रसंग सब सुमिरि उमा बृषकेतु ॥ ३५ ॥
Chaupai / चोपाई
संभु प्रसाद सुमति हियँ हुलसी । रामचरितमानस कबि तुलसी ॥ करइ मनोहर मति अनुहारी । सुजन सुचित सुनि लेहु सुधारी ॥
सुमति भूमि थल हृदय अगाधू । बेद पुरान उदधि घन साधू ॥ बरषहिं राम सुजस बर बारी । मधुर मनोहर मंगलकारी ॥
लीला सगुन जो कहहिं बखानी । सोइ स्वच्छता करइ मल हानी ॥ प्रेम भगति जो बरनि न जाई । सोइ मधुरता सुसीतलताई ॥
सो जल सुकृत सालि हित होई । राम भगत जन जीवन सोई ॥ मेधा महि गत सो जल पावन । सकिलि श्रवन मग चलेउ सुहावन ॥
भरेउ सुमानस सुथल थिराना । सुखद सीत रुचि चारु चिराना ॥
Doha / दोहा
दो. सुठि सुंदर संबाद बर बिरचे बुद्धि बिचारि । तेइ एहि पावन सुभग सर घाट मनोहर चारि ॥ ३६ ॥
Chaupai / चोपाई
सप्त प्रबन्ध सुभग सोपाना । ग्यान नयन निरखत मन माना ॥ रघुपति महिमा अगुन अबाधा । बरनब सोइ बर बारि अगाधा ॥
राम सीय जस सलिल सुधासम । उपमा बीचि बिलास मनोरम ॥ पुरइनि सघन चारु चौपाई । जुगुति मंजु मनि सीप सुहाई ॥
छंद सोरठा सुंदर दोहा । सोइ बहुरंग कमल कुल सोहा ॥ अरथ अनूप सुमाव सुभासा । सोइ पराग मकरंद सुबासा ॥
सुकृत पुंज मंजुल अलि माला । ग्यान बिराग बिचार मराला ॥ धुनि अवरेब कबित गुन जाती । मीन मनोहर ते बहुभाँती ॥
अरथ धरम कामादिक चारी । कहब ग्यान बिग्यान बिचारी ॥ नव रस जप तप जोग बिरागा । ते सब जलचर चारु तड़ागा ॥
सुकृती साधु नाम गुन गाना । ते बिचित्र जल बिहग समाना ॥ संतसभा चहुँ दिसि अवँराई । श्रद्धा रितु बसंत सम गाई ॥
भगति निरुपन बिबिध बिधाना । छमा दया दम लता बिताना ॥ सम जम नियम फूल फल ग्याना । हरि पत रति रस बेद बखाना ॥
औरउ कथा अनेक प्रसंगा । तेइ सुक पिक बहुबरन बिहंगा ॥
Doha / दोहा
दो. पुलक बाटिका बाग बन सुख सुबिहंग बिहारु । माली सुमन सनेह जल सींचत लोचन चारु ॥ ३७ ॥
Chaupai / चोपाई
जे गावहिं यह चरित सँभारे । तेइ एहि ताल चतुर रखवारे ॥ सदा सुनहिं सादर नर नारी । तेइ सुरबर मानस अधिकारी ॥
अति खल जे बिषई बग कागा । एहिं सर निकट न जाहिं अभागा ॥ संबुक भेक सेवार समाना । इहाँ न बिषय कथा रस नाना ॥
तेहि कारन आवत हियँ हारे । कामी काक बलाक बिचारे ॥ आवत एहिं सर अति कठिनाई । राम कृपा बिनु आइ न जाई ॥
कठिन कुसंग कुपंथ कराला । तिन्ह के बचन बाघ हरि ब्याला ॥ गृह कारज नाना जंजाला । ते अति दुर्गम सैल बिसाला ॥
बन बहु बिषम मोह मद माना । नदीं कुतर्क भयंकर नाना ॥
Doha / दोहा
दो. जे श्रद्धा संबल रहित नहि संतन्ह कर साथ । तिन्ह कहुँ मानस अगम अति जिन्हहि न प्रिय रघुनाथ ॥ ३८ ॥
Chaupai / चोपाई
जौं करि कष्ट जाइ पुनि कोई । जातहिं नींद जुड़ाई होई ॥ जड़ता जाड़ बिषम उर लागा । गएहुँ न मज्जन पाव अभागा ॥
करि न जाइ सर मज्जन पाना । फिरि आवइ समेत अभिमाना ॥ जौं बहोरि कोउ पूछन आवा । सर निंदा करि ताहि बुझावा ॥
सकल बिघ्न ब्यापहि नहिं तेही । राम सुकृपाँ बिलोकहिं जेही ॥ सोइ सादर सर मज्जनु करई । महा घोर त्रयताप न जरई ॥
ते नर यह सर तजहिं न काऊ । जिन्ह के राम चरन भल भाऊ ॥ जो नहाइ चह एहिं सर भाई । सो सतसंग करउ मन लाई ॥
अस मानस मानस चख चाही । भइ कबि बुद्धि बिमल अवगाही ॥ भयउ हृदयँ आनंद उछाहू । उमगेउ प्रेम प्रमोद प्रबाहू ॥
चली सुभग कबिता सरिता सो । राम बिमल जस जल भरिता सो ॥ सरजू नाम सुमंगल मूला । लोक बेद मत मंजुल कूला ॥
नदी पुनीत सुमानस नंदिनि । कलिमल तृन तरु मूल निकंदिनि ॥
Doha / दोहा
दो. श्रोता त्रिबिध समाज पुर ग्राम नगर दुहुँ कूल । संतसभा अनुपम अवध सकल सुमंगल मूल ॥ ३९ ॥
Chaupai / चोपाई
रामभगति सुरसरितहि जाई । मिली सुकीरति सरजु सुहाई ॥ सानुज राम समर जसु पावन । मिलेउ महानदु सोन सुहावन ॥
जुग बिच भगति देवधुनि धारा । सोहति सहित सुबिरति बिचारा ॥ त्रिबिध ताप त्रासक तिमुहानी । राम सरुप सिंधु समुहानी ॥
मानस मूल मिली सुरसरिही । सुनत सुजन मन पावन करिही ॥ बिच बिच कथा बिचित्र बिभागा । जनु सरि तीर तीर बन बागा ॥
उमा महेस बिबाह बराती । ते जलचर अगनित बहुभाँती ॥ रघुबर जनम अनंद बधाई । भवँर तरंग मनोहरताई ॥
Doha / दोहा
दो. बालचरित चहु बंधु के बनज बिपुल बहुरंग । नृप रानी परिजन सुकृत मधुकर बारिबिहंग ॥ ४० ॥
Chaupai / चोपाई
सीय स्वयंबर कथा सुहाई । सरित सुहावनि सो छबि छाई ॥ नदी नाव पटु प्रस्न अनेका । केवट कुसल उतर सबिबेका ॥
सुनि अनुकथन परस्पर होई । पथिक समाज सोह सरि सोई ॥ घोर धार भृगुनाथ रिसानी । घाट सुबद्ध राम बर बानी ॥
सानुज राम बिबाह उछाहू । सो सुभ उमग सुखद सब काहू ॥ कहत सुनत हरषहिं पुलकाहीं । ते सुकृती मन मुदित नहाहीं ॥
राम तिलक हित मंगल साजा । परब जोग जनु जुरे समाजा ॥ काई कुमति केकई केरी । परी जासु फल बिपति घनेरी ॥
Doha / दोहा
दो. समन अमित उतपात सब भरतचरित जपजाग । कलि अघ खल अवगुन कथन ते जलमल बग काग ॥ ४१ ॥
Chaupai / चोपाई
कीरति सरित छहूँ रितु रूरी । समय सुहावनि पावनि भूरी ॥ हिम हिमसैलसुता सिव ब्याहू । सिसिर सुखद प्रभु जनम उछाहू ॥
बरनब राम बिबाह समाजू । सो मुद मंगलमय रितुराजू ॥ ग्रीषम दुसह राम बनगवनू । पंथकथा खर आतप पवनू ॥
बरषा घोर निसाचर रारी । सुरकुल सालि सुमंगलकारी ॥ राम राज सुख बिनय बड़ाई । बिसद सुखद सोइ सरद सुहाई ॥
सती सिरोमनि सिय गुनगाथा । सोइ गुन अमल अनूपम पाथा ॥ भरत सुभाउ सुसीतलताई । सदा एकरस बरनि न जाई ॥
Doha / दोहा
दो. अवलोकनि बोलनि मिलनि प्रीति परसपर हास । भायप भलि चहु बंधु की जल माधुरी सुबास ॥ ४२ ॥
Chaupai / चोपाई
आरति बिनय दीनता मोरी । लघुता ललित सुबारि न थोरी ॥ अदभुत सलिल सुनत गुनकारी । आस पिआस मनोमल हारी ॥
राम सुप्रेमहि पोषत पानी । हरत सकल कलि कलुष गलानौ ॥ भव श्रम सोषक तोषक तोषा । समन दुरित दुख दारिद दोषा ॥
काम कोह मद मोह नसावन । बिमल बिबेक बिराग बढ़ावन ॥ सादर मज्जन पान किए तें । मिटहिं पाप परिताप हिए तें ॥
जिन्ह एहि बारि न मानस धोए । ते कायर कलिकाल बिगोए ॥ तृषित निरखि रबि कर भव बारी । फिरिहहि मृग जिमि जीव दुखारी ॥
Doha / दोहा
दो. मति अनुहारि सुबारि गुन गनि मन अन्हवाइ । सुमिरि भवानी संकरहि कह कबि कथा सुहाइ ॥ ४३(क) ॥
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