ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Chaupai / चोपाई
रामकथा ससि किरन समाना । संत चकोर करहिं जेहि पाना ॥ ऐसेइ संसय कीन्ह भवानी । महादेव तब कहा बखानी ॥
Doha / दोहा
दो. कहउँ सो मति अनुहारि अब उमा संभु संबाद । भयउ समय जेहि हेतु जेहि सुनु मुनि मिटिहि बिषाद ॥ ४७ ॥
Chaupai / चोपाई
एक बार त्रेता जुग माहीं । संभु गए कुंभज रिषि पाहीं ॥ संग सती जगजननि भवानी । पूजे रिषि अखिलेस्वर जानी ॥
रामकथा मुनीबर्ज बखानी । सुनी महेस परम सुखु मानी ॥ रिषि पूछी हरिभगति सुहाई । कही संभु अधिकारी पाई ॥
कहत सुनत रघुपति गुन गाथा । कछु दिन तहाँ रहे गिरिनाथा ॥ मुनि सन बिदा मागि त्रिपुरारी । चले भवन सँग दच्छकुमारी ॥
तेहि अवसर भंजन महिभारा । हरि रघुबंस लीन्ह अवतारा ॥ पिता बचन तजि राजु उदासी । दंडक बन बिचरत अबिनासी ॥
Doha / दोहा
दो. ह्दयँ बिचारत जात हर केहि बिधि दरसनु होइ । गुप्त रुप अवतरेउ प्रभु गएँ जान सबु कोइ ॥ ४८(क) ॥
Sortha/ सोरठा
सो. संकर उर अति छोभु सती न जानहिं मरमु सोइ ॥ तुलसी दरसन लोभु मन डरु लोचन लालची ॥ ४८(ख) ॥
Chaupai / चोपाई
रावन मरन मनुज कर जाचा । प्रभु बिधि बचनु कीन्ह चह साचा ॥ जौं नहिं जाउँ रहइ पछितावा । करत बिचारु न बनत बनावा ॥
एहि बिधि भए सोचबस ईसा । तेहि समय जाइ दससीसा ॥ लीन्ह नीच मारीचहि संगा । भयउ तुरत सोइ कपट कुरंगा ॥
करि छलु मूढ़ हरी बैदेही । प्रभु प्रभाउ तस बिदित न तेही ॥ मृग बधि बन्धु सहित हरि आए । आश्रमु देखि नयन जल छाए ॥
बिरह बिकल नर इव रघुराई । खोजत बिपिन फिरत दोउ भाई ॥ कबहूँ जोग बियोग न जाकें । देखा प्रगट बिरह दुख ताकें ॥
Doha / दोहा
दो. अति विचित्र रघुपति चरित जानहिं परम सुजान । जे मतिमंद बिमोह बस हृदयँ धरहिं कछु आन ॥ ४९ ॥
Chaupai / चोपाई
संभु समय तेहि रामहि देखा । उपजा हियँ अति हरपु बिसेषा ॥ भरि लोचन छबिसिंधु निहारी । कुसमय जानिन कीन्हि चिन्हारी ॥
जय सच्चिदानंद जग पावन । अस कहि चलेउ मनोज नसावन ॥ चले जात सिव सती समेता । पुनि पुनि पुलकत कृपानिकेता ॥
सतीं सो दसा संभु कै देखी । उर उपजा संदेहु बिसेषी ॥ संकरु जगतबंद्य जगदीसा । सुर नर मुनि सब नावत सीसा ॥
तिन्ह नृपसुतहि नह परनामा । कहि सच्चिदानंद परधामा ॥ भए मगन छबि तासु बिलोकी । अजहुँ प्रीति उर रहति न रोकी ॥
Doha / दोहा
दो. ब्रह्म जो व्यापक बिरज अज अकल अनीह अभेद । सो कि देह धरि होइ नर जाहि न जानत वेद ॥ ५० ॥
Chaupai / चोपाई
बिष्नु जो सुर हित नरतनु धारी । सोउ सर्बग्य जथा त्रिपुरारी ॥ खोजइ सो कि अग्य इव नारी । ग्यानधाम श्रीपति असुरारी ॥
संभुगिरा पुनि मृषा न होई । सिव सर्बग्य जान सबु कोई ॥ अस संसय मन भयउ अपारा । होई न हृदयँ प्रबोध प्रचारा ॥
जद्यपि प्रगट न कहेउ भवानी । हर अंतरजामी सब जानी ॥ सुनहि सती तव नारि सुभाऊ । संसय अस न धरिअ उर काऊ ॥
जासु कथा कुभंज रिषि गाई । भगति जासु मैं मुनिहि सुनाई ॥ सोउ मम इष्टदेव रघुबीरा । सेवत जाहि सदा मुनि धीरा ॥
Chanda / छन्द
छं. मुनि धीर जोगी सिद्ध संतत बिमल मन जेहि ध्यावहीं । कहि नेति निगम पुरान आगम जासु कीरति गावहीं ॥ सोइ रामु ब्यापक ब्रह्म भुवन निकाय पति माया धनी । अवतरेउ अपने भगत हित निजतंत्र नित रघुकुलमनि ॥
Doha / दोहा
सो. लाग न उर उपदेसु जदपि कहेउ सिवँ बार बहु । बोले बिहसि महेसु हरिमाया बलु जानि जियँ ॥ ५१ ॥
Chaupai / चोपाई
जौं तुम्हरें मन अति संदेहू । तौ किन जाइ परीछा लेहू ॥ तब लगि बैठ अहउँ बटछाहिं । जब लगि तुम्ह ऐहहु मोहि पाही ॥
जैसें जाइ मोह भ्रम भारी । करेहु सो जतनु बिबेक बिचारी ॥ चलीं सती सिव आयसु पाई । करहिं बिचारु करौं का भाई ॥
इहाँ संभु अस मन अनुमाना । दच्छसुता कहुँ नहिं कल्याना ॥ मोरेहु कहें न संसय जाहीं । बिधी बिपरीत भलाई नाहीं ॥
होइहि सोइ जो राम रचि राखा । को करि तर्क बढ़ावै साखा ॥ अस कहि लगे जपन हरिनामा । गई सती जहँ प्रभु सुखधामा ॥
Doha / दोहा
दो. पुनि पुनि हृदयँ विचारु करि धरि सीता कर रुप । आगें होइ चलि पंथ तेहि जेहिं आवत नरभूप ॥ ५२ ॥
Chaupai / चोपाई
लछिमन दीख उमाकृत बेषा चकित भए भ्रम हृदयँ बिसेषा ॥ कहि न सकत कछु अति गंभीरा । प्रभु प्रभाउ जानत मतिधीरा ॥
सती कपटु जानेउ सुरस्वामी । सबदरसी सब अंतरजामी ॥ सुमिरत जाहि मिटइ अग्याना । सोइ सरबग्य रामु भगवाना ॥
सती कीन्ह चह तहँहुँ दुराऊ । देखहु नारि सुभाव प्रभाऊ ॥ निज माया बलु हृदयँ बखानी । बोले बिहसि रामु मृदु बानी ॥
जोरि पानि प्रभु कीन्ह प्रनामू । पिता समेत लीन्ह निज नामू ॥ कहेउ बहोरि कहाँ बृषकेतू । बिपिन अकेलि फिरहु केहि हेतू ॥
Doha / दोहा
दो. राम बचन मृदु गूढ़ सुनि उपजा अति संकोचु । सती सभीत महेस पहिं चलीं हृदयँ बड़ सोचु ॥ ५३ ॥
Chaupai / चोपाई
मैं संकर कर कहा न माना । निज अग्यानु राम पर आना ॥ जाइ उतरु अब देहउँ काहा । उर उपजा अति दारुन दाहा ॥
जाना राम सतीं दुखु पावा । निज प्रभाउ कछु प्रगटि जनावा ॥ सतीं दीख कौतुकु मग जाता । आगें रामु सहित श्री भ्राता ॥
फिरि चितवा पाछें प्रभु देखा । सहित बंधु सिय सुंदर वेषा ॥ जहँ चितवहिं तहँ प्रभु आसीना । सेवहिं सिद्ध मुनीस प्रबीना ॥
देखे सिव बिधि बिष्नु अनेका । अमित प्रभाउ एक तें एका ॥ बंदत चरन करत प्रभु सेवा । बिबिध बेष देखे सब देवा ॥
Doha / दोहा
दो. सती बिधात्री इंदिरा देखीं अमित अनूप । जेहिं जेहिं बेष अजादि सुर तेहि तेहि तन अनुरूप ॥ ५४ ॥
Chaupai / चोपाई
देखे जहँ तहँ रघुपति जेते । सक्तिन्ह सहित सकल सुर तेते ॥ जीव चराचर जो संसारा । देखे सकल अनेक प्रकारा ॥
पूजहिं प्रभुहि देव बहु बेषा । राम रूप दूसर नहिं देखा ॥ अवलोके रघुपति बहुतेरे । सीता सहित न बेष घनेरे ॥
सोइ रघुबर सोइ लछिमनु सीता । देखि सती अति भई सभीता ॥ हृदय कंप तन सुधि कछु नाहीं । नयन मूदि बैठीं मग माहीं ॥
बहुरि बिलोकेउ नयन उघारी । कछु न दीख तहँ दच्छकुमारी ॥ पुनि पुनि नाइ राम पद सीसा । चलीं तहाँ जहँ रहे गिरीसा ॥
Doha / दोहा
दो. गई समीप महेस तब हँसि पूछी कुसलात । लीन्ही परीछा कवन बिधि कहहु सत्य सब बात ॥ ५५ ॥
Chaupai / चोपाई
सतीं समुझि रघुबीर प्रभाऊ । भय बस सिव सन कीन्ह दुराऊ ॥ कछु न परीछा लीन्हि गोसाई । कीन्ह प्रनामु तुम्हारिहि नाई ॥
जो तुम्ह कहा सो मृषा न होई । मोरें मन प्रतीति अति सोई ॥ तब संकर देखेउ धरि ध्याना । सतीं जो कीन्ह चरित सब जाना ॥
बहुरि राममायहि सिरु नावा । प्रेरि सतिहि जेहिं झूँठ कहावा ॥ हरि इच्छा भावी बलवाना । हृदयँ बिचारत संभु सुजाना ॥
सतीं कीन्ह सीता कर बेषा । सिव उर भयउ बिषाद बिसेषा ॥ जौं अब करउँ सती सन प्रीती । मिटइ भगति पथु होइ अनीती ॥
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