Ram Charita Manas

Bala-Kanda

Renunciatation of Sati by Shivji, Shivji's Samadhi.

ॐ श्री परमात्मने नमः


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ॐ श्री गणेशाय नमः

Doha / दोहा

दो. परम पुनीत न जाइ तजि किएँ प्रेम बड़ पापु । प्रगटि न कहत महेसु कछु हृदयँ अधिक संतापु ॥ ५६ ॥

Chapter : 17 Number : 60

Chaupai / चोपाई

तब संकर प्रभु पद सिरु नावा । सुमिरत रामु हृदयँ अस आवा ॥ एहिं तन सतिहि भेट मोहि नाहीं । सिव संकल्पु कीन्ह मन माहीं ॥

Chapter : 17 Number : 60

अस बिचारि संकरु मतिधीरा । चले भवन सुमिरत रघुबीरा ॥ चलत गगन भै गिरा सुहाई । जय महेस भलि भगति दृढ़ाई ॥

Chapter : 17 Number : 60

अस पन तुम्ह बिनु करइ को आना । रामभगत समरथ भगवाना ॥ सुनि नभगिरा सती उर सोचा । पूछा सिवहि समेत सकोचा ॥

Chapter : 17 Number : 60

कीन्ह कवन पन कहहु कृपाला । सत्यधाम प्रभु दीनदयाला ॥ जदपि सतीं पूछा बहु भाँती । तदपि न कहेउ त्रिपुर आराती ॥

Chapter : 17 Number : 60

Doha / दोहा

दो. सतीं हृदय अनुमान किय सबु जानेउ सर्बग्य । कीन्ह कपटु मैं संभु सन नारि सहज जड़ अग्य ॥ ५७क ॥

Chapter : 17 Number : 61

Chaupai / चोपाई

हृदयँ सोचु समुझत निज करनी । चिंता अमित जाइ नहि बरनी ॥ कृपासिंधु सिव परम अगाधा । प्रगट न कहेउ मोर अपराधा ॥

Chapter : 17 Number : 61

संकर रुख अवलोकि भवानी । प्रभु मोहि तजेउ हृदयँ अकुलानी ॥ निज अघ समुझि न कछु कहि जाई । तपइ अवाँ इव उर अधिकाई ॥

Chapter : 17 Number : 61

सतिहि ससोच जानि बृषकेतू । कहीं कथा सुंदर सुख हेतू ॥ बरनत पंथ बिबिध इतिहासा । बिस्वनाथ पहुँचे कैलासा ॥

Chapter : 17 Number : 61

तहँ पुनि संभु समुझि पन आपन । बैठे बट तर करि कमलासन ॥ संकर सहज सरुप संहारा । लागि समाधि अखंड अपारा ॥

Chapter : 17 Number : 61

Doha / दोहा

दो. सती बसहि कैलास तब अधिक सोचु मन माहिं । मरमु न कोऊ जान कछु जुग सम दिवस सिराहिं ॥ ५८ ॥

Chapter : 17 Number : 62

Chaupai / चोपाई

नित नव सोचु सतीं उर भारा । कब जैहउँ दुख सागर पारा ॥ मैं जो कीन्ह रघुपति अपमाना । पुनिपति बचनु मृषा करि जाना ॥

Chapter : 17 Number : 62

सो फलु मोहि बिधाताँ दीन्हा । जो कछु उचित रहा सोइ कीन्हा ॥ अब बिधि अस बूझिअ नहि तोही । संकर बिमुख जिआवसि मोही ॥

Chapter : 17 Number : 62

कहि न जाई कछु हृदय गलानी । मन महुँ रामाहि सुमिर सयानी ॥ जौ प्रभु दीनदयालु कहावा । आरती हरन बेद जसु गावा ॥

Chapter : 17 Number : 62

तौ मैं बिनय करउँ कर जोरी । छूटउ बेगि देह यह मोरी ॥ जौं मोरे सिव चरन सनेहू । मन क्रम बचन सत्य ब्रतु एहू ॥

Chapter : 17 Number : 62

Doha / दोहा

दो. तौ सबदरसी सुनिअ प्रभु करउ सो बेगि उपाइ । होइ मरनु जेही बिनहिं श्रम दुसह बिपत्ति बिहाइ ॥ ५९ ॥

Chapter : 17 Number : 63

Sortha/ सोरठा

सो. जलु पय सरिस बिकाइ देखहु प्रीति कि रीति भलि । बिलग होइ रसु जाइ कपट खटाई परत पुनि ॥ ५७ख ॥

Chapter : 17 Number : 63

Chaupai / चोपाई

एहि बिधि दुखित प्रजेसकुमारी । अकथनीय दारुन दुखु भारी ॥ बीतें संबत सहस सतासी । तजी समाधि संभु अबिनासी ॥

Chapter : 17 Number : 63

राम नाम सिव सुमिरन लागे । जानेउ सतीं जगतपति जागे ॥ जाइ संभु पद बंदनु कीन्ही । सनमुख संकर आसनु दीन्हा ॥

Chapter : 17 Number : 63

लगे कहन हरिकथा रसाला । दच्छ प्रजेस भए तेहि काला ॥ देखा बिधि बिचारि सब लायक । दच्छहि कीन्ह प्रजापति नायक ॥

Chapter : 17 Number : 63

बड़ अधिकार दच्छ जब पावा । अति अभिमानु हृदयँ तब आवा ॥ नहिं कोउ अस जनमा जग माहीं । प्रभुता पाइ जाहि मद नाहीं ॥

Chapter : 17 Number : 63

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