ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Doha / दोहा
दो. सिव अपमानु न जाइ सहि हृदयँ न होइ प्रबोध । सकल सभहि हठि हटकि तब बोलीं बचन सक्रोध ॥ ६३ ॥
Chaupai / चोपाई
सुनहु सभासद सकल मुनिंदा । कही सुनी जिन्ह संकर निंदा ॥ सो फलु तुरत लहब सब काहूँ । भली भाँति पछिताब पिताहूँ ॥
संत संभु श्रीपति अपबादा । सुनिअ जहाँ तहँ असि मरजादा ॥ काटिअ तासु जीभ जो बसाई । श्रवन मूदि न त चलिअ पराई ॥
जगदातमा महेसु पुरारी । जगत जनक सब के हितकारी ॥ पिता मंदमति निंदत तेही । दच्छ सुक्र संभव यह देही ॥
तजिहउँ तुरत देह तेहि हेतू । उर धरि चंद्रमौलि बृषकेतू ॥ अस कहि जोग अगिनि तनु जारा । भयउ सकल मख हाहाकारा ॥
Doha / दोहा
दो. सती मरनु सुनि संभु गन लगे करन मख खीस । जग्य बिधंस बिलोकि भृगु रच्छा कीन्हि मुनीस ॥ ६४ ॥
Chaupai / चोपाई
समाचार सब संकर पाए । बीरभद्रु करि कोप पठाए ॥ जग्य बिधंस जाइ तिन्ह कीन्हा । सकल सुरन्ह बिधिवत फलु दीन्हा ॥
भे जगबिदित दच्छ गति सोई । जसि कछु संभु बिमुख कै होई ॥ यह इतिहास सकल जग जानी । ताते मैं संछेप बखानी ॥
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