ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Chaupai / चोपाई
सतीं मरत हरि सन बरु मागा । जनम जनम सिव पद अनुरागा ॥ तेहि कारन हिमगिरि गृह जाई । जनमीं पारबती तनु पाई ॥
जब तें उमा सैल गृह जाईं । सकल सिद्धि संपति तहँ छाई ॥ जहँ तहँ मुनिन्ह सुआश्रम कीन्हे । उचित बास हिम भूधर दीन्हे ॥
Doha / दोहा
दो. सदा सुमन फल सहित सब द्रुम नव नाना जाति । प्रगटीं सुंदर सैल पर मनि आकर बहु भाँति ॥ ६५ ॥
Chaupai / चोपाई
सरिता सब पुनित जलु बहहीं । खग मृग मधुप सुखी सब रहहीं ॥ सहज बयरु सब जीवन्ह त्यागा । गिरि पर सकल करहिं अनुरागा ॥
सोह सैल गिरिजा गृह आएँ । जिमि जनु रामभगति के पाएँ ॥ नित नूतन मंगल गृह तासू । ब्रह्मादिक गावहिं जसु जासू ॥
नारद समाचार सब पाए । कौतुकहीं गिरि गेह सिधाए ॥ सैलराज बड़ आदर कीन्हा । पद पखारि बर आसनु दीन्हा ॥
नारि सहित मुनि पद सिरु नावा । चरन सलिल सबु भवनु सिंचावा ॥ निज सौभाग्य बहुत गिरि बरना । सुता बोलि मेली मुनि चरना ॥
Doha / दोहा
दो. त्रिकालग्य सर्बग्य तुम्ह गति सर्बत्र तुम्हारि ॥ कहहु सुता के दोष गुन मुनिबर हृदयँ बिचारि ॥ ६६ ॥
Chaupai / चोपाई
कह मुनि बिहसि गूढ़ मृदु बानी । सुता तुम्हारि सकल गुन खानी ॥ सुंदर सहज सुसील सयानी । नाम उमा अंबिका भवानी ॥
सब लच्छन संपन्न कुमारी । होइहि संतत पियहि पिआरी ॥ सदा अचल एहि कर अहिवाता । एहि तें जसु पैहहिं पितु माता ॥
होइहि पूज्य सकल जग माहीं । एहि सेवत कछु दुर्लभ नाहीं ॥ एहि कर नामु सुमिरि संसारा । त्रिय चढ़हहिँ पतिब्रत असिधारा ॥
सैल सुलच्छन सुता तुम्हारी । सुनहु जे अब अवगुन दुइ चारी ॥ अगुन अमान मातु पितु हीना । उदासीन सब संसय छीना ॥
Doha / दोहा
दो. जोगी जटिल अकाम मन नगन अमंगल बेष ॥ अस स्वामी एहि कहँ मिलिहि परी हस्त असि रेख ॥ ६७ ॥
Chaupai / चोपाई
सुनि मुनि गिरा सत्य जियँ जानी । दुख दंपतिहि उमा हरषानी ॥ नारदहुँ यह भेदु न जाना । दसा एक समुझब बिलगाना ॥
सकल सखीं गिरिजा गिरि मैना । पुलक सरीर भरे जल नैना ॥ होइ न मृषा देवरिषि भाषा । उमा सो बचनु हृदयँ धरि राखा ॥
उपजेउ सिव पद कमल सनेहू । मिलन कठिन मन भा संदेहू ॥ जानि कुअवसरु प्रीति दुराई । सखी उछँग बैठी पुनि जाई ॥
झूठि न होइ देवरिषि बानी । सोचहि दंपति सखीं सयानी ॥ उर धरि धीर कहइ गिरिराऊ । कहहु नाथ का करिअ उपाऊ ॥
Doha / दोहा
दो. कह मुनीस हिमवंत सुनु जो बिधि लिखा लिलार । देव दनुज नर नाग मुनि कोउ न मेटनिहार ॥ ६८ ॥
Chaupai / चोपाई
तदपि एक मैं कहउँ उपाई । होइ करै जौं दैउ सहाई ॥ जस बरु मैं बरनेउँ तुम्ह पाहीं । मिलहि उमहि तस संसय नाहीं ॥
जे जे बर के दोष बखाने । ते सब सिव पहि मैं अनुमाने ॥ जौं बिबाहु संकर सन होई । दोषउ गुन सम कह सबु कोई ॥
जौं अहि सेज सयन हरि करहीं । बुध कछु तिन्ह कर दोषु न धरहीं ॥ भानु कृसानु सर्ब रस खाहीं । तिन्ह कहँ मंद कहत कोउ नाहीं ॥
सुभ अरु असुभ सलिल सब बहई । सुरसरि कोउ अपुनीत न कहई ॥ समरथ कहुँ नहिं दोषु गोसाई । रबि पावक सुरसरि की नाई ॥
Doha / दोहा
दो. जौं अस हिसिषा करहिं नर जड़ि बिबेक अभिमान । परहिं कलप भरि नरक महुँ जीव कि ईस समान ॥ ६९ ॥
Chaupai / चोपाई
सुरसरि जल कृत बारुनि जाना । कबहुँ न संत करहिं तेहि पाना ॥ सुरसरि मिलें सो पावन जैसें । ईस अनीसहि अंतरु तैसें ॥
संभु सहज समरथ भगवाना । एहि बिबाहँ सब बिधि कल्याना ॥ दुराराध्य पै अहहिं महेसू । आसुतोष पुनि किएँ कलेसू ॥
जौं तपु करै कुमारि तुम्हारी । भाविउ मेटि सकहिं त्रिपुरारी ॥ जद्यपि बर अनेक जग माहीं । एहि कहँ सिव तजि दूसर नाहीं ॥
बर दायक प्रनतारति भंजन । कृपासिंधु सेवक मन रंजन ॥ इच्छित फल बिनु सिव अवराधे । लहिअ न कोटि जोग जप साधें ॥
Doha / दोहा
दो. अस कहि नारद सुमिरि हरि गिरिजहि दीन्हि असीस । होइहि यह कल्यान अब संसय तजहु गिरीस ॥ ७० ॥
Chaupai / चोपाई
कहि अस ब्रह्मभवन मुनि गयऊ । आगिल चरित सुनहु जस भयऊ ॥ पतिहि एकांत पाइ कह मैना । नाथ न मैं समुझे मुनि बैना ॥
जौं घरु बरु कुलु होइ अनूपा । करिअ बिबाहु सुता अनुरुपा ॥ न त कन्या बरु रहउ कुआरी । कंत उमा मम प्रानपिआरी ॥
जौं न मिलहि बरु गिरिजहि जोगू । गिरि जड़ सहज कहिहि सबु लोगू ॥ सोइ बिचारि पति करेहु बिबाहू । जेहिं न बहोरि होइ उर दाहू ॥
अस कहि परि चरन धरि सीसा । बोले सहित सनेह गिरीसा ॥ बरु पावक प्रगटै ससि माहीं । नारद बचनु अन्यथा नाहीं ॥
Doha / दोहा
दो. प्रिया सोचु परिहरहु सबु सुमिरहु श्रीभगवान । पारबतिहि निरमयउ जेहिं सोइ करिहि कल्यान ॥ ७१ ॥
Chaupai / चोपाई
अब जौ तुम्हहि सुता पर नेहू । तौ अस जाइ सिखावन देहू ॥ करै सो तपु जेहिं मिलहिं महेसू । आन उपायँ न मिटहि कलेसू ॥
नारद बचन सगर्भ सहेतू । सुंदर सब गुन निधि बृषकेतू ॥ अस बिचारि तुम्ह तजहु असंका । सबहि भाँति संकरु अकलंका ॥
सुनि पति बचन हरषि मन माहीं । गई तुरत उठि गिरिजा पाहीं ॥ उमहि बिलोकि नयन भरे बारी । सहित सनेह गोद बैठारी ॥
बारहिं बार लेति उर लाई । गदगद कंठ न कछु कहि जाई ॥ जगत मातु सर्बग्य भवानी । मातु सुखद बोलीं मृदु बानी ॥
Doha / दोहा
दो. सुनहि मातु मैं दीख अस सपन सुनावउँ तोहि । सुंदर गौर सुबिप्रबर अस उपदेसेउ मोहि ॥ ७२ ॥
Chaupai / चोपाई
करहि जाइ तपु सैलकुमारी । नारद कहा सो सत्य बिचारी ॥ मातु पितहि पुनि यह मत भावा । तपु सुखप्रद दुख दोष नसावा ॥
तपबल रचइ प्रपंच बिधाता । तपबल बिष्नु सकल जग त्राता ॥ तपबल संभु करहिं संघारा । तपबल सेषु धरइ महिभारा ॥
तप अधार सब सृष्टि भवानी । करहि जाइ तपु अस जियँ जानी ॥ सुनत बचन बिसमित महतारी । सपन सुनायउ गिरिहि हँकारी ॥
मातु पितुहि बहुबिधि समुझाई । चलीं उमा तप हित हरषाई ॥ प्रिय परिवार पिता अरु माता । भए बिकल मुख आव न बाता ॥
Doha / दोहा
दो. बेदसिरा मुनि आइ तब सबहि कहा समुझाइ ॥ पारबती महिमा सुनत रहे प्रबोधहि पाइ ॥ ७३ ॥
Chaupai / चोपाई
उर धरि उमा प्रानपति चरना । जाइ बिपिन लागीं तपु करना ॥ अति सुकुमार न तनु तप जोगू । पति पद सुमिरि तजेउ सबु भोगू ॥
नित नव चरन उपज अनुरागा । बिसरी देह तपहिं मनु लागा ॥ संबत सहस मूल फल खाए । सागु खाइ सत बरष गवाँए ॥
कछु दिन भोजनु बारि बतासा । किए कठिन कछु दिन उपबासा ॥ बेल पाती महि परइ सुखाई । तीनि सहस संबत सोई खाई ॥
पुनि परिहरे सुखानेउ परना । उमहि नाम तब भयउ अपरना ॥ देखि उमहि तप खीन सरीरा । ब्रह्मगिरा भै गगन गभीरा ॥
Doha / दोहा
दो. भयउ मनोरथ सुफल तव सुनु गिरिजाकुमारि । परिहरु दुसह कलेस सब अब मिलिहहिं त्रिपुरारि ॥ ७४ ॥
Chaupai / चोपाई
अस तपु काहुँ न कीन्ह भवानी । भउ अनेक धीर मुनि ग्यानी ॥ अब उर धरहु ब्रह्म बर बानी । सत्य सदा संतत सुचि जानी ॥
आवै पिता बोलावन जबहीं । हठ परिहरि घर जाएहु तबहीं ॥ मिलहिं तुम्हहि जब सप्त रिषीसा । जानेहु तब प्रमान बागीसा ॥
सुनत गिरा बिधि गगन बखानी । पुलक गात गिरिजा हरषानी ॥ उमा चरित सुंदर मैं गावा । सुनहु संभु कर चरित सुहावा ॥
जब तें सती जाइ तनु त्यागा । तब सें सिव मन भयउ बिरागा ॥ जपहिं सदा रघुनायक नामा । जहँ तहँ सुनहिं राम गुन ग्रामा ॥
Doha / दोहा
दो. चिदानन्द सुखधाम सिव बिगत मोह मद काम । बिचरहिं महि धरि हृदयँ हरि सकल लोक अभिराम ॥ ७५ ॥
Chaupai / चोपाई
कतहुँ मुनिन्ह उपदेसहिं ग्याना । कतहुँ राम गुन करहिं बखाना ॥ जदपि अकाम तदपि भगवाना । भगत बिरह दुख दुखित सुजाना ॥
एहि बिधि गयउ कालु बहु बीती । नित नै होइ राम पद प्रीती ॥ नैमु प्रेमु संकर कर देखा । अबिचल हृदयँ भगति कै रेखा ॥
प्रगटै रामु कृतग्य कृपाला । रूप सील निधि तेज बिसाला ॥ बहु प्रकार संकरहि सराहा । तुम्ह बिनु अस ब्रतु को निरबाहा ॥
बहुबिधि राम सिवहि समुझावा । पारबती कर जन्मु सुनावा ॥ अति पुनीत गिरिजा कै करनी । बिस्तर सहित कृपानिधि बरनी ॥
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