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ॐ श्री गणेशाय नमः

दो. अब बिनती मम सुनेहु सिव जौं मो पर निज नेहु । जाइ बिबाहहु सैलजहि यह मोहि मागें देहु ॥ ७६ ॥
कह सिव जदपि उचित अस नाहीं । नाथ बचन पुनि मेटि न जाहीं ॥ सिर धरि आयसु करिअ तुम्हारा । परम धरमु यह नाथ हमारा ॥
मातु पिता गुर प्रभु कै बानी । बिनहिं बिचार करिअ सुभ जानी ॥ तुम्ह सब भाँति परम हितकारी । अग्या सिर पर नाथ तुम्हारी ॥
प्रभु तोषेउ सुनि संकर बचना । भक्ति बिबेक धर्म जुत रचना ॥ कह प्रभु हर तुम्हार पन रहेऊ । अब उर राखेहु जो हम कहेऊ ॥
अंतरधान भए अस भाषी । संकर सोइ मूरति उर राखी ॥ तबहिं सप्तरिषि सिव पहिं आए । बोले प्रभु अति बचन सुहाए ॥
दो. पारबती पहिं जाइ तुम्ह प्रेम परिच्छा लेहु । गिरिहि प्रेरि पठएहु भवन दूरि करेहु संदेहु ॥ ७७ ॥

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