ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Chaupai / चोपाई
रिषिन्ह गौरि देखी तहँ कैसी । मूरतिमंत तपस्या जैसी ॥ बोले मुनि सुनु सैलकुमारी । करहु कवन कारन तपु भारी ॥
केहि अवराधहु का तुम्ह चहहू । हम सन सत्य मरमु किन कहहू ॥ कहत बचत मनु अति सकुचाई । हँसिहहु सुनि हमारि जड़ताई ॥
मनु हठ परा न सुनइ सिखावा । चहत बारि पर भीति उठावा ॥ नारद कहा सत्य सोइ जाना । बिनु पंखन्ह हम चहहिं उड़ाना ॥
देखहु मुनि अबिबेकु हमारा । चाहिअ सदा सिवहि भरतारा ॥
Doha / दोहा
दो. सुनत बचन बिहसे रिषय गिरिसंभव तब देह । नारद कर उपदेसु सुनि कहहु बसेउ किसु गेह ॥ ७८ ॥
Chaupai / चोपाई
दच्छसुतन्ह उपदेसेन्हि जाई । तिन्ह फिरि भवनु न देखा आई ॥ चित्रकेतु कर घरु उन घाला । कनककसिपु कर पुनि अस हाला ॥
नारद सिख जे सुनहिं नर नारी । अवसि होहिं तजि भवनु भिखारी ॥ मन कपटी तन सज्जन चीन्हा । आपु सरिस सबही चह कीन्हा ॥
तेहि कें बचन मानि बिस्वासा । तुम्ह चाहहु पति सहज उदासा ॥ निर्गुन निलज कुबेष कपाली । अकुल अगेह दिगंबर ब्याली ॥
कहहु कवन सुखु अस बरु पाएँ । भल भूलिहु ठग के बौराएँ ॥ पंच कहें सिवँ सती बिबाही । पुनि अवडेरि मराएन्हि ताही ॥
Doha / दोहा
दो. अब सुख सोवत सोचु नहि भीख मागि भव खाहिं । सहज एकाकिन्ह के भवन कबहुँ कि नारि खटाहिं ॥ ७९ ॥
Chaupai / चोपाई
अजहूँ मानहु कहा हमारा । हम तुम्ह कहुँ बरु नीक बिचारा ॥ अति सुंदर सुचि सुखद सुसीला । गावहिं बेद जासु जस लीला ॥
दूषन रहित सकल गुन रासी । श्रीपति पुर बैकुंठ निवासी ॥ अस बरु तुम्हहि मिलाउब आनी । सुनत बिहसि कह बचन भवानी ॥
सत्य कहेहु गिरिभव तनु एहा । हठ न छूट छूटै बरु देहा ॥ कनकउ पुनि पषान तें होई । जारेहुँ सहजु न परिहर सोई ॥
नारद बचन न मैं परिहरऊँ । बसउ भवनु उजरउ नहिं डरऊँ ॥ गुर कें बचन प्रतीति न जेही । सपनेहुँ सुगम न सुख सिधि तेही ॥
Doha / दोहा
दो. महादेव अवगुन भवन बिष्नु सकल गुन धाम । जेहि कर मनु रम जाहि सन तेहि तेही सन काम ॥ ८० ॥
Chaupai / चोपाई
जौं तुम्ह मिलतेहु प्रथम मुनीसा । सुनतिउँ सिख तुम्हारि धरि सीसा ॥ अब मैं जन्मु संभु हित हारा । को गुन दूषन करै बिचारा ॥
जौं तुम्हरे हठ हृदयँ बिसेषी । रहि न जाइ बिनु किएँ बरेषी ॥ तौ कौतुकिअन्ह आलसु नाहीं । बर कन्या अनेक जग माहीं ॥
जन्म कोटि लगि रगर हमारी । बरउँ संभु न त रहउँ कुआरी ॥ तजउँ न नारद कर उपदेसू । आपु कहहि सत बार महेसू ॥
मैं पा परउँ कहइ जगदंबा । तुम्ह गृह गवनहु भयउ बिलंबा ॥ देखि प्रेमु बोले मुनि ग्यानी । जय जय जगदंबिके भवानी ॥
Doha / दोहा
दो. तुम्ह माया भगवान सिव सकल जगत पितु मातु । नाइ चरन सिर मुनि चले पुनि पुनि हरषत गातु ॥ ८१ ॥
Chaupai / चोपाई
जाइ मुनिन्ह हिमवंतु पठाए । करि बिनती गिरजहिं गृह ल्याए ॥ बहुरि सप्तरिषि सिव पहिं जाई । कथा उमा कै सकल सुनाई ॥
भए मगन सिव सुनत सनेहा । हरषि सप्तरिषि गवने गेहा ॥ मनु थिर करि तब संभु सुजाना । लगे करन रघुनायक ध्याना ॥
तारकु असुर भयउ तेहि काला । भुज प्रताप बल तेज बिसाला ॥ तेंहि सब लोक लोकपति जीते । भए देव सुख संपति रीते ॥
अजर अमर सो जीति न जाई । हारे सुर करि बिबिध लराई ॥ तब बिरंचि सन जाइ पुकारे । देखे बिधि सब देव दुखारे ॥
Doha / दोहा
दो. सब सन कहा बुझाइ बिधि दनुज निधन तब होइ । संभु सुक्र संभूत सुत एहि जीतइ रन सोइ ॥ ८२ ॥
Chaupai / चोपाई
मोर कहा सुनि करहु उपाई । होइहि ईस्वर करिहि सहाई ॥ सतीं जो तजी दच्छ मख देहा । जनमी जाइ हिमाचल गेहा ॥
तेहिं तपु कीन्ह संभु पति लागी । सिव समाधि बैठे सबु त्यागी ॥ जदपि अहइ असमंजस भारी । तदपि बात एक सुनहु हमारी ॥
पठवहु कामु जाइ सिव पाहीं । करै छोभु संकर मन माहीं ॥ तब हम जाइ सिवहि सिर नाई । करवाउब बिबाहु बरिआई ॥
एहि बिधि भलेहि देवहित होई । मर अति नीक कहइ सबु कोई ॥ अस्तुति सुरन्ह कीन्हि अति हेतू । प्रगटेउ बिषमबान झषकेतू ॥
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