ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Doha / दोहा
दो. सुरन्ह कहीं निज बिपति सब सुनि मन कीन्ह बिचार । संभु बिरोध न कुसल मोहि बिहसि कहेउ अस मार ॥ ८३ ॥
Chaupai / चोपाई
तदपि करब मैं काजु तुम्हारा । श्रुति कह परम धरम उपकारा ॥ पर हित लागि तजइ जो देही । संतत संत प्रसंसहिं तेही ॥
अस कहि चलेउ सबहि सिरु नाई । सुमन धनुष कर सहित सहाई ॥ चलत मार अस हृदयँ बिचारा । सिव बिरोध ध्रुव मरनु हमारा ॥
तब आपन प्रभाउ बिस्तारा । निज बस कीन्ह सकल संसारा ॥ कोपेउ जबहि बारिचरकेतू । छन महुँ मिटे सकल श्रुति सेतू ॥
ब्रह्मचर्ज ब्रत संजम नाना । धीरज धरम ग्यान बिग्याना ॥ सदाचार जप जोग बिरागा । सभय बिबेक कटकु सब भागा ॥
Chanda / छन्द
छं. भागेउ बिबेक सहाय सहित सो सुभट संजुग महि मुरे । सदग्रंथ पर्बत कंदरन्हि महुँ जाइ तेहि अवसर दुरे ॥ होनिहार का करतार को रखवार जग खरभरु परा । दुइ माथ केहि रतिनाथ जेहि कहुँ कोऽपि कर धनु सरु धरा ॥
Doha / दोहा
दो. जे सजीव जग अचर चर नारि पुरुष अस नाम । ते निज निज मरजाद तजि भए सकल बस काम ॥ ८४ ॥
Chaupai / चोपाई
सब के हृदयँ मदन अभिलाषा । लता निहारि नवहिं तरु साखा ॥ नदीं उमगि अंबुधि कहुँ धाई । संगम करहिं तलाव तलाई ॥
जहँ असि दसा जड़न्ह कै बरनी । को कहि सकइ सचेतन करनी ॥ पसु पच्छी नभ जल थलचारी । भए कामबस समय बिसारी ॥
मदन अंध ब्याकुल सब लोका । निसि दिनु नहिं अवलोकहिं कोका ॥ देव दनुज नर किंनर ब्याला । प्रेत पिसाच भूत बेताला ॥
इन्ह कै दसा न कहेउँ बखानी । सदा काम के चेरे जानी ॥ सिद्ध बिरक्त महामुनि जोगी । तेपि कामबस भए बियोगी ॥
Chanda / छन्द
छं. भए कामबस जोगीस तापस पावँरन्हि की को कहै । देखहिं चराचर नारिमय जे ब्रह्ममय देखत रहे ॥ अबला बिलोकहिं पुरुषमय जगु पुरुष सब अबलामयं । दुइ दंड भरि ब्रह्मांड भीतर कामकृत कौतुक अयं ॥
Sortha/ सोरठा
सो. धरी न काहूँ धिर सबके मन मनसिज हरे । जे राखे रघुबीर ते उबरे तेहि काल महुँ ॥ ८५ ॥
Chaupai / चोपाई
उभय घरी अस कौतुक भयऊ । जौ लगि कामु संभु पहिं गयऊ ॥ सिवहि बिलोकि ससंकेउ मारू । भयउ जथाथिति सबु संसारू ॥
भए तुरत सब जीव सुखारे । जिमि मद उतरि गएँ मतवारे ॥ रुद्रहि देखि मदन भय माना । दुराधरष दुर्गम भगवाना ॥
फिरत लाज कछु करि नहिं जाई । मरनु ठानि मन रचेसि उपाई ॥ प्रगटेसि तुरत रुचिर रितुराजा । कुसुमित नव तरु राजि बिराजा ॥
बन उपबन बापिका तड़ागा । परम सुभग सब दिसा बिभागा ॥ जहँ तहँ जनु उमगत अनुरागा । देखि मुएहुँ मन मनसिज जागा ॥
Chanda / छन्द
छं. जागइ मनोभव मुएहुँ मन बन सुभगता न परै कही । सीतल सुगंध सुमंद मारुत मदन अनल सखा सही ॥ बिकसे सरन्हि बहु कंज गुंजत पुंज मंजुल मधुकरा । कलहंस पिक सुक सरस रव करि गान नाचहिं अपछरा ॥
Doha / दोहा
दो. सकल कला करि कोटि बिधि हारेउ सेन समेत । चली न अचल समाधि सिव कोपेउ हृदयनिकेत ॥ ८६ ॥
Chaupai / चोपाई
देखि रसाल बिटप बर साखा । तेहि पर चढ़ेउ मदनु मन माखा ॥ सुमन चाप निज सर संधाने । अति रिस ताकि श्रवन लगि ताने ॥
छाड़े बिषम बिसिख उर लागे । छुटि समाधि संभु तब जागे ॥ भयउ ईस मन छोभु बिसेषी । नयन उघारि सकल दिसि देखी ॥
सौरभ पल्लव मदनु बिलोका । भयउ कोपु कंपेउ त्रैलोका ॥ तब सिवँ तीसर नयन उघारा । चितवत कामु भयउ जरि छारा ॥
हाहाकार भयउ जग भारी । डरपे सुर भए असुर सुखारी ॥ समुझि कामसुखु सोचहिं भोगी । भए अकंटक साधक जोगी ॥
Chanda / छन्द
छं. जोगि अकंटक भए पति गति सुनत रति मुरुछित भई । रोदति बदति बहु भाँति करुना करति संकर पहिं गई । अति प्रेम करि बिनती बिबिध बिधि जोरि कर सन्मुख रही । प्रभु आसुतोष कृपाल सिव अबला निरखि बोले सही ॥
Sign In