ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Doha / दोहा
दो. मुनि अनुसासन गनपतिहि पूजेउ संभु भवानि । कोउ सुनि संसय करै जनि सुर अनादि जियँ जानि ॥ १०० ॥
Chaupai / चोपाई
जसि बिबाह कै बिधि श्रुति गाई । महामुनिन्ह सो सब करवाई ॥ गहि गिरीस कुस कन्या पानी । भवहि समरपीं जानि भवानी ॥
पानिग्रहन जब कीन्ह महेसा । हिंयँ हरषे तब सकल सुरेसा ॥ बेद मंत्र मुनिबर उच्चरहीं । जय जय जय संकर सुर करहीं ॥
बाजहिं बाजन बिबिध बिधाना । सुमनबृष्टि नभ भै बिधि नाना ॥ हर गिरिजा कर भयउ बिबाहू । सकल भुवन भरि रहा उछाहू ॥
दासीं दास तुरग रथ नागा । धेनु बसन मनि बस्तु बिभागा ॥ अन्न कनकभाजन भरि जाना । दाइज दीन्ह न जाइ बखाना ॥
Chanda / छन्द
छं. दाइज दियो बहु भाँति पुनि कर जोरि हिमभूधर कह्यो । का देउँ पूरनकाम संकर चरन पंकज गहि रह्यो ॥ सिवँ कृपासागर ससुर कर संतोषु सब भाँतिहिं कियो । पुनि गहे पद पाथोज मयनाँ प्रेम परिपूरन हियो ॥
Doha / दोहा
दो. नाथ उमा मन प्रान सम गृहकिंकरी करेहु । छमेहु सकल अपराध अब होइ प्रसन्न बरु देहु ॥ १०१ ॥
Chaupai / चोपाई
बहु बिधि संभु सास समुझाई । गवनी भवन चरन सिरु नाई ॥ जननीं उमा बोलि तब लीन्ही । लै उछंग सुंदर सिख दीन्ही ॥
करेहु सदा संकर पद पूजा । नारिधरमु पति देउ न दूजा ॥ बचन कहत भरे लोचन बारी । बहुरि लाइ उर लीन्हि कुमारी ॥
कत बिधि सृजीं नारि जग माहीं । पराधीन सपनेहुँ सुखु नाहीं ॥ भै अति प्रेम बिकल महतारी । धीरजु कीन्ह कुसमय बिचारी ॥
पुनि पुनि मिलति परति गहि चरना । परम प्रेम कछु जाइ न बरना ॥ सब नारिन्ह मिलि भेटि भवानी । जाइ जननि उर पुनि लपटानी ॥
Chanda / छन्द
छं. जननिहि बहुरि मिलि चली उचित असीस सब काहूँ दईं । फिरि फिरि बिलोकति मातु तन तब सखीं लै सिव पहिं गई ॥ जाचक सकल संतोषि संकरु उमा सहित भवन चले । सब अमर हरषे सुमन बरषि निसान नभ बाजे भले ॥
Doha / दोहा
दो. चले संग हिमवंतु तब पहुँचावन अति हेतु । बिबिध भाँति परितोषु करि बिदा कीन्ह बृषकेतु ॥ १०२ ॥
Chaupai / चोपाई
तुरत भवन आए गिरिराई । सकल सैल सर लिए बोलाई ॥ आदर दान बिनय बहुमाना । सब कर बिदा कीन्ह हिमवाना ॥
जबहिं संभु कैलासहिं आए । सुर सब निज निज लोक सिधाए ॥ जगत मातु पितु संभु भवानी । तेही सिंगारु न कहउँ बखानी ॥
करहिं बिबिध बिधि भोग बिलासा । गनन्ह समेत बसहिं कैलासा ॥ हर गिरिजा बिहार नित नयऊ । एहि बिधि बिपुल काल चलि गयऊ ॥
तब जनमेउ षटबदन कुमारा । तारकु असुर समर जेहिं मारा ॥ आगम निगम प्रसिद्ध पुराना । षन्मुख जन्मु सकल जग जाना ॥
Chanda / छन्द
छं. जगु जान षन्मुख जन्मु कर्मु प्रतापु पुरुषारथु महा । तेहि हेतु मैं बृषकेतु सुत कर चरित संछेपहिं कहा ॥ यह उमा संगु बिबाहु जे नर नारि कहहिं जे गावहीं । कल्यान काज बिबाह मंगल सर्बदा सुखु पावहीं ॥
Doha / दोहा
दो. चरित सिंधु गिरिजा रमन बेद न पावहिं पारु । बरनै तुलसीदासु किमि अति मतिमंद गवाँरु ॥ १०३ ॥
Chaupai / चोपाई
संभु चरित सुनि सरस सुहावा । भरद्वाज मुनि अति सुख पावा ॥ बहु लालसा कथा पर बाढ़ी । नयनन्हि नीरु रोमावलि ठाढ़ी ॥
प्रेम बिबस मुख आव न बानी । दसा देखि हरषे मुनि ग्यानी ॥ अहो धन्य तव जन्मु मुनीसा । तुम्हहि प्रान सम प्रिय गौरीसा ॥
सिव पद कमल जिन्हहि रति नाहीं । रामहि ते सपनेहुँ न सोहाहीं ॥ बिनु छल बिस्वनाथ पद नेहू । राम भगत कर लच्छन एहू ॥
सिव सम को रघुपति ब्रतधारी । बिनु अघ तजी सती असि नारी ॥ पनु करि रघुपति भगति देखाई । को सिव सम रामहि प्रिय भाई ॥
Doha / दोहा
दो. प्रथमहिं मै कहि सिव चरित बूझा मरमु तुम्हार । सुचि सेवक तुम्ह राम के रहित समस्त बिकार ॥ १०४ ॥
Chaupai / चोपाई
मैं जाना तुम्हार गुन सीला । कहउँ सुनहु अब रघुपति लीला ॥ सुनु मुनि आजु समागम तोरें । कहि न जाइ जस सुखु मन मोरें ॥
राम चरित अति अमित मुनिसा । कहि न सकहिं सत कोटि अहीसा ॥ तदपि जथाश्रुत कहउँ बखानी । सुमिरि गिरापति प्रभु धनुपानी ॥
सारद दारुनारि सम स्वामी । रामु सूत्रधर अंतरजामी ॥ जेहि पर कृपा करहिं जनु जानी । कबि उर अजिर नचावहिं बानी ॥
प्रनवउँ सोइ कृपाल रघुनाथा । बरनउँ बिसद तासु गुन गाथा ॥ परम रम्य गिरिबरु कैलासू । सदा जहाँ सिव उमा निवासू ॥
Doha / दोहा
दो. सिद्ध तपोधन जोगिजन सूर किंनर मुनिबृंद । बसहिं तहाँ सुकृती सकल सेवहिं सिब सुखकंद ॥ १०५ ॥
Chaupai / चोपाई
हरि हर बिमुख धर्म रति नाहीं । ते नर तहँ सपनेहुँ नहिं जाहीं ॥ तेहि गिरि पर बट बिटप बिसाला । नित नूतन सुंदर सब काला ॥
त्रिबिध समीर सुसीतलि छाया । सिव बिश्राम बिटप श्रुति गाया ॥ एक बार तेहि तर प्रभु गयऊ । तरु बिलोकि उर अति सुखु भयऊ ॥
निज कर डासि नागरिपु छाला । बैठै सहजहिं संभु कृपाला ॥ कुंद इंदु दर गौर सरीरा । भुज प्रलंब परिधन मुनिचीरा ॥
तरुन अरुन अंबुज सम चरना । नख दुति भगत हृदय तम हरना ॥ भुजग भूति भूषन त्रिपुरारी । आननु सरद चंद छबि हारी ॥
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