ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Doha / दोहा
दो. जटा मुकुट सुरसरित सिर लोचन नलिन बिसाल । नीलकंठ लावन्यनिधि सोह बालबिधु भाल ॥ १०६ ॥
Chaupai / चोपाई
बैठे सोह कामरिपु कैसें । धरें सरीरु सांतरसु जैसें ॥ पारबती भल अवसरु जानी । गई संभु पहिं मातु भवानी ॥
जानि प्रिया आदरु अति कीन्हा । बाम भाग आसनु हर दीन्हा ॥ बैठीं सिव समीप हरषाई । पूरुब जन्म कथा चित आई ॥
पति हियँ हेतु अधिक अनुमानी । बिहसि उमा बोलीं प्रिय बानी ॥ कथा जो सकल लोक हितकारी । सोइ पूछन चह सैलकुमारी ॥
बिस्वनाथ मम नाथ पुरारी । त्रिभुवन महिमा बिदित तुम्हारी ॥ चर अरु अचर नाग नर देवा । सकल करहिं पद पंकज सेवा ॥
Doha / दोहा
दो. प्रभु समरथ सर्बग्य सिव सकल कला गुन धाम ॥ जोग ग्यान बैराग्य निधि प्रनत कलपतरु नाम ॥ १०७ ॥
Chaupai / चोपाई
जौं मो पर प्रसन्न सुखरासी । जानिअ सत्य मोहि निज दासी ॥ तौं प्रभु हरहु मोर अग्याना । कहि रघुनाथ कथा बिधि नाना ॥
जासु भवनु सुरतरु तर होई । सहि कि दरिद्र जनित दुखु सोई ॥ ससिभूषन अस हृदयँ बिचारी । हरहु नाथ मम मति भ्रम भारी ॥
प्रभु जे मुनि परमारथबादी । कहहिं राम कहुँ ब्रह्म अनादी ॥ सेस सारदा बेद पुराना । सकल करहिं रघुपति गुन गाना ॥
तुम्ह पुनि राम राम दिन राती । सादर जपहु अनँग आराती ॥ रामु सो अवध नृपति सुत सोई । की अज अगुन अलखगति कोई ॥
Doha / दोहा
दो. जौं नृप तनय त ब्रह्म किमि नारि बिरहँ मति भोरि । देख चरित महिमा सुनत भ्रमति बुद्धि अति मोरि ॥ १०८ ॥
Chaupai / चोपाई
जौं अनीह ब्यापक बिभु कोऊ । कबहु बुझाइ नाथ मोहि सोऊ ॥ अग्य जानि रिस उर जनि धरहू । जेहि बिधि मोह मिटै सोइ करहू ॥
मै बन दीखि राम प्रभुताई । अति भय बिकल न तुम्हहि सुनाई ॥ तदपि मलिन मन बोधु न आवा । सो फलु भली भाँति हम पावा ॥
अजहूँ कछु संसउ मन मोरे । करहु कृपा बिनवउँ कर जोरें ॥ प्रभु तब मोहि बहु भाँति प्रबोधा । नाथ सो समुझि करहु जनि क्रोधा ॥
तब कर अस बिमोह अब नाहीं । रामकथा पर रुचि मन माहीं ॥ कहहु पुनीत राम गुन गाथा । भुजगराज भूषन सुरनाथा ॥
Doha / दोहा
दो. बंदउ पद धरि धरनि सिरु बिनय करउँ कर जोरि । बरनहु रघुबर बिसद जसु श्रुति सिद्धांत निचोरि ॥ १०९ ॥
Chaupai / चोपाई
जदपि जोषिता नहिं अधिकारी । दासी मन क्रम बचन तुम्हारी ॥ गूढ़उ तत्त्व न साधु दुरावहिं । आरत अधिकारी जहँ पावहिं ॥
अति आरति पूछउँ सुरराया । रघुपति कथा कहहु करि दाया ॥ प्रथम सो कारन कहहु बिचारी । निर्गुन ब्रह्म सगुन बपु धारी ॥
पुनि प्रभु कहहु राम अवतारा । बालचरित पुनि कहहु उदारा ॥ कहहु जथा जानकी बिबाहीं । राज तजा सो दूषन काहीं ॥
बन बसि कीन्हे चरित अपारा । कहहु नाथ जिमि रावन मारा ॥ राज बैठि कीन्हीं बहु लीला । सकल कहहु संकर सुखलीला ॥
Doha / दोहा
दो. बहुरि कहहु करुनायतन कीन्ह जो अचरज राम । प्रजा सहित रघुबंसमनि किमि गवने निज धाम ॥ ११० ॥
Chaupai / चोपाई
पुनि प्रभु कहहु सो तत्त्व बखानी । जेहिं बिग्यान मगन मुनि ग्यानी ॥ भगति ग्यान बिग्यान बिरागा । पुनि सब बरनहु सहित बिभागा ॥
औरउ राम रहस्य अनेका । कहहु नाथ अति बिमल बिबेका ॥ जो प्रभु मैं पूछा नहि होई । सोउ दयाल राखहु जनि गोई ॥
तुम्ह त्रिभुवन गुर बेद बखाना । आन जीव पाँवर का जाना ॥ प्रस्न उमा कै सहज सुहाई । छल बिहीन सुनि सिव मन भाई ॥
हर हियँ रामचरित सब आए । प्रेम पुलक लोचन जल छाए ॥ श्रीरघुनाथ रूप उर आवा । परमानंद अमित सुख पावा ॥
Doha / दोहा
दो. मगन ध्यानरस दंड जुग पुनि मन बाहेर कीन्ह । रघुपति चरित महेस तब हरषित बरनै लीन्ह ॥ १११ ॥
Chaupai / चोपाई
झूठेउ सत्य जाहि बिनु जानें । जिमि भुजंग बिनु रजु पहिचानें ॥ जेहि जानें जग जाइ हेराई । जागें जथा सपन भ्रम जाई ॥
बंदउँ बालरूप सोई रामू । सब सिधि सुलभ जपत जिसु नामू ॥ मंगल भवन अमंगल हारी । द्रवउ सो दसरथ अजिर बिहारी ॥
करि प्रनाम रामहि त्रिपुरारी । हरषि सुधा सम गिरा उचारी ॥ धन्य धन्य गिरिराजकुमारी । तुम्ह समान नहिं कोउ उपकारी ॥
पूँछेहु रघुपति कथा प्रसंगा । सकल लोक जग पावनि गंगा ॥ तुम्ह रघुबीर चरन अनुरागी । कीन्हहु प्रस्न जगत हित लागी ॥
Doha / दोहा
दो. रामकृपा तें पारबति सपनेहुँ तव मन माहिं । सोक मोह संदेह भ्रम मम बिचार कछु नाहिं ॥ ११२ ॥
Chaupai / चोपाई
तदपि असंका कीन्हिहु सोई । कहत सुनत सब कर हित होई ॥ जिन्ह हरि कथा सुनी नहिं काना । श्रवन रंध्र अहिभवन समाना ॥
नयनन्हि संत दरस नहिं देखा । लोचन मोरपंख कर लेखा ॥ ते सिर कटु तुंबरि समतूला । जे न नमत हरि गुर पद मूला ॥
जिन्ह हरिभगति हृदयँ नहिं आनी । जीवत सव समान तेइ प्रानी ॥ जो नहिं करइ राम गुन गाना । जीह सो दादुर जीह समाना ॥
कुलिस कठोर निठुर सोइ छाती । सुनि हरिचरित न जो हरषाती ॥ गिरिजा सुनहु राम कै लीला । सुर हित दनुज बिमोहनसीला ॥
Doha / दोहा
दो. रामकथा सुरधेनु सम सेवत सब सुख दानि । सतसमाज सुरलोक सब को न सुनै अस जानि ॥ ११३ ॥
Chaupai / चोपाई
रामकथा सुंदर कर तारी । संसय बिहग उडावनिहारी ॥ रामकथा कलि बिटप कुठारी । सादर सुनु गिरिराजकुमारी ॥
राम नाम गुन चरित सुहाए । जनम करम अगनित श्रुति गाए ॥ जथा अनंत राम भगवाना । तथा कथा कीरति गुन नाना ॥
तदपि जथा श्रुत जसि मति मोरी । कहिहउँ देखि प्रीति अति तोरी ॥ उमा प्रस्न तव सहज सुहाई । सुखद संतसंमत मोहि भाई ॥
एक बात नहि मोहि सोहानी । जदपि मोह बस कहेहु भवानी ॥ तुम जो कहा राम कोउ आना । जेहि श्रुति गाव धरहिं मुनि ध्याना ॥
Doha / दोहा
दो. कहहि सुनहि अस अधम नर ग्रसे जे मोह पिसाच । पाषंडी हरि पद बिमुख जानहिं झूठ न साच ॥ ११४ ॥
Chaupai / चोपाई
अग्य अकोबिद अंध अभागी । काई बिषय मुकर मन लागी ॥ लंपट कपटी कुटिल बिसेषी । सपनेहुँ संतसभा नहिं देखी ॥
कहहिं ते बेद असंमत बानी । जिन्ह कें सूझ लाभु नहिं हानी ॥ मुकर मलिन अरु नयन बिहीना । राम रूप देखहिं किमि दीना ॥
जिन्ह कें अगुन न सगुन बिबेका । जल्पहिं कल्पित बचन अनेका ॥ हरिमाया बस जगत भ्रमाहीं । तिन्हहि कहत कछु अघटित नाहीं ॥
बातुल भूत बिबस मतवारे । ते नहिं बोलहिं बचन बिचारे ॥ जिन्ह कृत महामोह मद पाना । तिन् कर कहा करिअ नहिं काना ॥
Doha / दोहा
सो. अस निज हृदयँ बिचारि तजु संसय भजु राम पद । सुनु गिरिराज कुमारि भ्रम तम रबि कर बचन मम ॥ ११५ ॥
Chaupai / चोपाई
सगुनहि अगुनहि नहिं कछु भेदा । गावहिं मुनि पुरान बुध बेदा ॥ अगुन अरुप अलख अज जोई । भगत प्रेम बस सगुन सो होई ॥
जो गुन रहित सगुन सोइ कैसें । जलु हिम उपल बिलग नहिं जैसें ॥ जासु नाम भ्रम तिमिर पतंगा । तेहि किमि कहिअ बिमोह प्रसंगा ॥
राम सच्चिदानंद दिनेसा । नहिं तहँ मोह निसा लवलेसा ॥ सहज प्रकासरुप भगवाना । नहिं तहँ पुनि बिग्यान बिहाना ॥
हरष बिषाद ग्यान अग्याना । जीव धर्म अहमिति अभिमाना ॥ राम ब्रह्म ब्यापक जग जाना । परमानन्द परेस पुराना ॥
Doha / दोहा
दो. पुरुष प्रसिद्ध प्रकास निधि प्रगट परावर नाथ ॥ रघुकुलमनि मम स्वामि सोइ कहि सिवँ नायउ माथ ॥ ११६ ॥
Chaupai / चोपाई
निज भ्रम नहिं समुझहिं अग्यानी । प्रभु पर मोह धरहिं जड़ प्रानी ॥ जथा गगन घन पटल निहारी । झाँपेउ मानु कहहिं कुबिचारी ॥
चितव जो लोचन अंगुलि लाएँ । प्रगट जुगल ससि तेहि के भाएँ ॥ उमा राम बिषइक अस मोहा । नभ तम धूम धूरि जिमि सोहा ॥
बिषय करन सुर जीव समेता । सकल एक तें एक सचेता ॥ सब कर परम प्रकासक जोई । राम अनादि अवधपति सोई ॥
जगत प्रकास्य प्रकासक रामू । मायाधीस ग्यान गुन धामू ॥ जासु सत्यता तें जड माया । भास सत्य इव मोह सहाया ॥
Doha / दोहा
दो. रजत सीप महुँ मास जिमि जथा भानु कर बारि । जदपि मृषा तिहुँ काल सोइ भ्रम न सकइ कोउ टारि ॥ ११७ ॥
Chaupai / चोपाई
एहि बिधि जग हरि आश्रित रहई । जदपि असत्य देत दुख अहई ॥ जौं सपनें सिर काटै कोई । बिनु जागें न दूरि दुख होई ॥
जासु कृपाँ अस भ्रम मिटि जाई । गिरिजा सोइ कृपाल रघुराई ॥ आदि अंत कोउ जासु न पावा । मति अनुमानि निगम अस गावा ॥
बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना । कर बिनु करम करइ बिधि नाना ॥ आनन रहित सकल रस भोगी । बिनु बानी बकता बड़ जोगी ॥
तनु बिनु परस नयन बिनु देखा । ग्रहइ घ्रान बिनु बास असेषा ॥ असि सब भाँति अलौकिक करनी । महिमा जासु जाइ नहिं बरनी ॥
Doha / दोहा
दो. जेहि इमि गावहि बेद बुध जाहि धरहिं मुनि ध्यान ॥ सोइ दसरथ सुत भगत हित कोसलपति भगवान ॥ ११८ ॥
Chaupai / चोपाई
कासीं मरत जंतु अवलोकी । जासु नाम बल करउँ बिसोकी ॥ सोइ प्रभु मोर चराचर स्वामी । रघुबर सब उर अंतरजामी ॥
बिबसहुँ जासु नाम नर कहहीं । जनम अनेक रचित अघ दहहीं ॥ सादर सुमिरन जे नर करहीं । भव बारिधि गोपद इव तरहीं ॥
राम सो परमातमा भवानी । तहँ भ्रम अति अबिहित तव बानी ॥ अस संसय आनत उर माहीं । ग्यान बिराग सकल गुन जाहीं ॥
सुनि सिव के भ्रम भंजन बचना । मिटि गै सब कुतरक कै रचना ॥ भइ रघुपति पद प्रीति प्रतीती । दारुन असंभावना बीती ॥
Doha / दोहा
दो. पुनि पुनि प्रभु पद कमल गहि जोरि पंकरुह पानि । बोली गिरिजा बचन बर मनहुँ प्रेम रस सानि ॥ ११९ ॥
Chaupai / चोपाई
ससि कर सम सुनि गिरा तुम्हारी । मिटा मोह सरदातप भारी ॥ तुम्ह कृपाल सबु संसउ हरेऊ । राम स्वरुप जानि मोहि परेऊ ॥
नाथ कृपाँ अब गयउ बिषादा । सुखी भयउँ प्रभु चरन प्रसादा ॥ अब मोहि आपनि किंकरि जानी । जदपि सहज जड नारि अयानी ॥
प्रथम जो मैं पूछा सोइ कहहू । जौं मो पर प्रसन्न प्रभु अहहू ॥ राम ब्रह्म चिनमय अबिनासी । सर्ब रहित सब उर पुर बासी ॥
नाथ धरेउ नरतनु केहि हेतू । मोहि समुझाइ कहहु बृषकेतू ॥ उमा बचन सुनि परम बिनीता । रामकथा पर प्रीति पुनीता ॥
Doha / दोहा
दो. हिँयँ हरषे कामारि तब संकर सहज सुजान बहु बिधि उमहि प्रसंसि पुनि बोले कृपानिधान ॥ १२०(क) ॥
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