ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Sortha/ सोरठा
सो. सुनु सुभ कथा भवानि रामचरितमानस बिमल । कहा भुसुंडि बखानि सुना बिहग नायक गरुड ॥ १२०(ख) ॥
सो संबाद उदार जेहि बिधि भा आगें कहब । सुनहु राम अवतार चरित परम सुंदर अनघ ॥ १२०(ग) ॥
हरि गुन नाम अपार कथा रूप अगनित अमित । मैं निज मति अनुसार कहउँ उमा सादर सुनहु ॥ १२०(घ ॥
Chaupai / चोपाई
सुनु गिरिजा हरिचरित सुहाए । बिपुल बिसद निगमागम गाए ॥ हरि अवतार हेतु जेहि होई । इदमित्थं कहि जाइ न सोई ॥
राम अतर्क्य बुद्धि मन बानी । मत हमार अस सुनहि सयानी ॥ तदपि संत मुनि बेद पुराना । जस कछु कहहिं स्वमति अनुमाना ॥
तस मैं सुमुखि सुनावउँ तोही । समुझि परइ जस कारन मोही ॥ जब जब होइ धरम कै हानी । बाढहिं असुर अधम अभिमानी ॥
करहिं अनीति जाइ नहिं बरनी । सीदहिं बिप्र धेनु सुर धरनी ॥ तब तब प्रभु धरि बिबिध सरीरा । हरहि कृपानिधि सज्जन पीरा ॥
Doha / दोहा
दो. असुर मारि थापहिं सुरन्ह राखहिं निज श्रुति सेतु । जग बिस्तारहिं बिसद जस राम जन्म कर हेतु ॥ १२१ ॥
Chaupai / चोपाई
सोइ जस गाइ भगत भव तरहीं । कृपासिंधु जन हित तनु धरहीं ॥ राम जनम के हेतु अनेका । परम बिचित्र एक तें एका ॥
जनम एक दुइ कहउँ बखानी । सावधान सुनु सुमति भवानी ॥ द्वारपाल हरि के प्रिय दोऊ । जय अरु बिजय जान सब कोऊ ॥
बिप्र श्राप तें दूनउ भाई । तामस असुर देह तिन्ह पाई ॥ कनककसिपु अरु हाटक लोचन । जगत बिदित सुरपति मद मोचन ॥
बिजई समर बीर बिख्याता । धरि बराह बपु एक निपाता ॥ होइ नरहरि दूसर पुनि मारा । जन प्रहलाद सुजस बिस्तारा ॥
Doha / दोहा
दो. भए निसाचर जाइ तेइ महाबीर बलवान । कुंभकरन रावण सुभट सुर बिजई जग जान ॥ १२२ ।
Chaupai / चोपाई
मुकुत न भए हते भगवाना । तीनि जनम द्विज बचन प्रवाना ॥ एक बार तिन्ह के हित लागी । धरेउ सरीर भगत अनुरागी ॥
कस्यप अदिति तहाँ पितु माता । दसरथ कौसल्या बिख्याता ॥ एक कलप एहि बिधि अवतारा । चरित्र पवित्र किए संसारा ॥
एक कलप सुर देखि दुखारे । समर जलंधर सन सब हारे ॥ संभु कीन्ह संग्राम अपारा । दनुज महाबल मरइ न मारा ॥
परम सती असुराधिप नारी । तेहि बल ताहि न जितहिं पुरारी ॥
Doha / दोहा
दो. छल करि टारेउ तासु ब्रत प्रभु सुर कारज कीन्ह ॥ जब तेहि जानेउ मरम तब श्राप कोप करि दीन्ह ॥ १२३ ॥
Chaupai / चोपाई
तासु श्राप हरि दीन्ह प्रमाना । कौतुकनिधि कृपाल भगवाना ॥ तहाँ जलंधर रावन भयऊ । रन हति राम परम पद दयऊ ॥
एक जनम कर कारन एहा । जेहि लागि राम धरी नरदेहा ॥ प्रति अवतार कथा प्रभु केरी । सुनु मुनि बरनी कबिन्ह घनेरी ॥
नारद श्राप दीन्ह एक बारा । कलप एक तेहि लगि अवतारा ॥ गिरिजा चकित भई सुनि बानी । नारद बिष्नुभगत पुनि ग्यानि ॥
कारन कवन श्राप मुनि दीन्हा । का अपराध रमापति कीन्हा ॥ यह प्रसंग मोहि कहहु पुरारी । मुनि मन मोह आचरज भारी ॥
Doha / दोहा
दो. बोले बिहसि महेस तब ग्यानी मूढ़ न कोइ । जेहि जस रघुपति करहिं जब सो तस तेहि छन होइ ॥ १२४(क) ॥
Sortha/ सोरठा
सो. कहउँ राम गुन गाथ भरद्वाज सादर सुनहु । भव भंजन रघुनाथ भजु तुलसी तजि मान मद ॥ १२४(ख) ॥
Chaupai / चोपाई
हिमगिरि गुहा एक अति पावनि । बह समीप सुरसरी सुहावनि ॥ आश्रम परम पुनीत सुहावा । देखि देवरिषि मन अति भावा ॥
निरखि सैल सरि बिपिन बिभागा । भयउ रमापति पद अनुरागा ॥ सुमिरत हरिहि श्राप गति बाधी । सहज बिमल मन लागि समाधी ॥
मुनि गति देखि सुरेस डेराना । कामहि बोलि कीन्ह समाना ॥ सहित सहाय जाहु मम हेतू । चकेउ हरषि हियँ जलचरकेतू ॥
सुनासीर मन महुँ असि त्रासा । चहत देवरिषि मम पुर बासा ॥ जे कामी लोलुप जग माहीं । कुटिल काक इव सबहि डेराहीं ॥
Doha / दोहा
दो. सुख हाड़ लै भाग सठ स्वान निरखि मृगराज । छीनि लेइ जनि जान जड़ तिमि सुरपतिहि न लाज ॥ १२५ ॥
Chaupai / चोपाई
तेहि आश्रमहिं मदन जब गयऊ । निज मायाँ बसंत निरमयऊ ॥ कुसुमित बिबिध बिटप बहुरंगा । कूजहिं कोकिल गुंजहि भृंगा ॥
चली सुहावनि त्रिबिध बयारी । काम कृसानु बढ़ावनिहारी ॥ रंभादिक सुरनारि नबीना । सकल असमसर कला प्रबीना ॥
करहिं गान बहु तान तरंगा । बहुबिधि क्रीड़हि पानि पतंगा ॥ देखि सहाय मदन हरषाना । कीन्हेसि पुनि प्रपंच बिधि नाना ॥
काम कला कछु मुनिहि न ब्यापी । निज भयँ डरेउ मनोभव पापी ॥ सीम कि चाँपि सकइ कोउ तासु । बड़ रखवार रमापति जासू ॥
Doha / दोहा
दो. सहित सहाय सभीत अति मानि हारि मन मैन । गहेसि जाइ मुनि चरन तब कहि सुठि आरत बैन ॥ १२६ ॥
Chaupai / चोपाई
भयउ न नारद मन कछु रोषा । कहि प्रिय बचन काम परितोषा ॥ नाइ चरन सिरु आयसु पाई । गयउ मदन तब सहित सहाई ॥
मुनि सुसीलता आपनि करनी । सुरपति सभाँ जाइ सब बरनी ॥ सुनि सब कें मन अचरजु आवा । मुनिहि प्रसंसि हरिहि सिरु नावा ॥
तब नारद गवने सिव पाहीं । जिता काम अहमिति मन माहीं ॥ मार चरित संकरहिं सुनाए । अतिप्रिय जानि महेस सिखाए ॥
बार बार बिनवउँ मुनि तोहीं । जिमि यह कथा सुनायहु मोहीं ॥ तिमि जनि हरिहि सुनावहु कबहूँ । चलेहुँ प्रसंग दुराएडु तबहूँ ॥
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