ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Chaupai / चोपाई
बंदउँ प्रथम महीसुर चरना । मोह जनित संसय सब हरना ॥ सुजन समाज सकल गुन खानी । करउँ प्रनाम सप्रेम सुबानी ॥
साधु चरित सुभ चरित कपासू । निरस बिसद गुनमय फल जासू ॥ जो सहि दुख परछिद्र दुरावा । बंदनीय जेहिं जग जस पावा ॥
मुद मंगलमय संत समाजू । जो जग जंगम तीरथराजू ॥ राम भक्ति जहँ सुरसरि धारा । सरसइ ब्रह्म बिचार प्रचारा ॥
बिधि निषेधमय कलि मल हरनी । करम कथा रबिनंदनि बरनी ॥ हरि हर कथा बिराजति बेनी । सुनत सकल मुद मंगल देनी ॥
बटु बिस्वास अचल निज धरमा । तीरथराज समाज सुकरमा ॥ सबहिं सुलभ सब दिन सब देसा । सेवत सादर समन कलेसा ॥
अकथ अलौकिक तीरथराऊ । देइ सद्य फल प्रगट प्रभाऊ ॥
Doha / दोहा
दो. सुनि समुझहिं जन मुदित मन मज्जहिं अति अनुराग । लहहिं चारि फल अछत तनु साधु समाज प्रयाग ॥ २ ॥
Chaupai / चोपाई
मज्जन फल पेखिअ ततकाला । काक होहिं पिक बकउ मराला ॥ सुनि आचरज करै जनि कोई । सतसंगति महिमा नहिं गोई ॥
बालमीक नारद घटजोनी । निज निज मुखनि कही निज होनी ॥ जलचर थलचर नभचर नाना । जे जड़ चेतन जीव जहाना ॥
मति कीरति गति भूति भलाई । जब जेहिं जतन जहाँ जेहिं पाई ॥ सो जानब सतसंग प्रभाऊ । लोकहुँ बेद न आन उपाऊ ॥
बिनु सतसंग बिबेक न होई । राम कृपा बिनु सुलभ न सोई ॥ सतसंगत मुद मंगल मूला । सोइ फल सिधि सब साधन फूला ॥
सठ सुधरहिं सतसंगति पाई । पारस परस कुधातु सुहाई ॥ बिधि बस सुजन कुसंगत परहीं । फनि मनि सम निज गुन अनुसरहीं ॥
बिधि हरि हर कबि कोबिद बानी । कहत साधु महिमा सकुचानी ॥ सो मो सन कहि जात न कैसें । साक बनिक मनि गुन गन जैसें ॥
Doha / दोहा
दो. बंदउँ संत समान चित हित अनहित नहिं कोइ । अंजलि गत सुभ सुमन जिमि सम सुगंध कर दोइ ॥ ३(क) ॥
संत सरल चित जगत हित जानि सुभाउ सनेहु । बालबिनय सुनि करि कृपा राम चरन रति देहु ॥ ३(ख) ॥
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