ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Doha / दोहा
दो. संभु दीन्ह उपदेस हित नहिं नारदहि सोहान । भारद्वाज कौतुक सुनहु हरि इच्छा बलवान ॥ १२७ ॥
Chaupai / चोपाई
राम कीन्ह चाहहिं सोइ होई । करै अन्यथा अस नहिं कोई ॥ संभु बचन मुनि मन नहिं भाए । तब बिरंचि के लोक सिधाए ॥
एक बार करतल बर बीना । गावत हरि गुन गान प्रबीना ॥ छीरसिंधु गवने मुनिनाथा । जहँ बस श्रीनिवास श्रुतिमाथा ॥
हरषि मिले उठि रमानिकेता । बैठे आसन रिषिहि समेता ॥ बोले बिहसि चराचर राया । बहुते दिनन कीन्हि मुनि दाया ॥
काम चरित नारद सब भाषे । जद्यपि प्रथम बरजि सिवँ राखे ॥ अति प्रचंड रघुपति कै माया । जेहि न मोह अस को जग जाया ॥
Doha / दोहा
दो. रूख बदन करि बचन मृदु बोले श्रीभगवान । तुम्हरे सुमिरन तें मिटहिं मोह मार मद मान ॥ १२८ ॥
Chaupai / चोपाई
सुनु मुनि मोह होइ मन ताकें । ग्यान बिराग हृदय नहिं जाके ॥ ब्रह्मचरज ब्रत रत मतिधीरा । तुम्हहि कि करइ मनोभव पीरा ॥
नारद कहेउ सहित अभिमाना । कृपा तुम्हारि सकल भगवाना ॥ करुनानिधि मन दीख बिचारी । उर अंकुरेउ गरब तरु भारी ॥
बेगि सो मै डारिहउँ उखारी । पन हमार सेवक हितकारी ॥ मुनि कर हित मम कौतुक होई । अवसि उपाय करबि मै सोई ॥
तब नारद हरि पद सिर नाई । चले हृदयँ अहमिति अधिकाई ॥ श्रीपति निज माया तब प्रेरी । सुनहु कठिन करनी तेहि केरी ॥
Doha / दोहा
दो. बिरचेउ मग महुँ नगर तेहिं सत जोजन बिस्तार । श्रीनिवासपुर तें अधिक रचना बिबिध प्रकार ॥ १२९ ॥
Chaupai / चोपाई
बसहिं नगर सुंदर नर नारी । जनु बहु मनसिज रति तनुधारी ॥ तेहिं पुर बसइ सीलनिधि राजा । अगनित हय गय सेन समाजा ॥
सत सुरेस सम बिभव बिलासा । रूप तेज बल नीति निवासा ॥ बिस्वमोहनी तासु कुमारी । श्री बिमोह जिसु रूपु निहारी ॥
सोइ हरिमाया सब गुन खानी । सोभा तासु कि जाइ बखानी ॥ करइ स्वयंबर सो नृपबाला । आए तहँ अगनित महिपाला ॥
मुनि कौतुकी नगर तेहिं गयऊ । पुरबासिंह सब पूछत भयऊ ॥ सुनि सब चरित भूपगृहँ आए । करि पूजा नृप मुनि बैठाए ॥
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