ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Chaupai / चोपाई
सुनु मुनि कथा पुनीत पुरानी । जो गिरिजा प्रति संभु बखानी ॥ बिस्व बिदित एक कैकय देसू । सत्यकेतु तहँ बसइ नरेसू ॥
धरम धुरंधर नीति निधाना । तेज प्रताप सील बलवाना ॥ तेहि कें भए जुगल सुत बीरा । सब गुन धाम महा रनधीरा ॥
राज धनी जो जेठ सुत आही । नाम प्रतापभानु अस ताही ॥ अपर सुतहि अरिमर्दन नामा । भुजबल अतुल अचल संग्रामा ॥
भाइहि भाइहि परम समीती । सकल दोष छल बरजित प्रीती ॥ जेठे सुतहि राज नृप दीन्हा । हरि हित आपु गवन बन कीन्हा ॥
Doha / दोहा
दो. जब प्रतापरबि भयउ नृप फिरी दोहाई देस । प्रजा पाल अति बेदबिधि कतहुँ नहीं अघ लेस ॥ १५३ ॥
Chaupai / चोपाई
नृप हितकारक सचिव सयाना । नाम धरमरुचि सुक्र समाना ॥ सचिव सयान बंधु बलबीरा । आपु प्रतापपुंज रनधीरा ॥
सेन संग चतुरंग अपारा । अमित सुभट सब समर जुझारा ॥ सेन बिलोकि राउ हरषाना । अरु बाजे गहगहे निसाना ॥
बिजय हेतु कटकई बनाई । सुदिन साधि नृप चलेउ बजाई ॥ जँह तहँ परीं अनेक लराईं । जीते सकल भूप बरिआई ॥
सप्त दीप भुजबल बस कीन्हे । लै लै दंड छाड़ि नृप दीन्हें ॥ सकल अवनि मंडल तेहि काला । एक प्रतापभानु महिपाला ॥
Doha / दोहा
दो. स्वबस बिस्व करि बाहुबल निज पुर कीन्ह प्रबेसु । अरथ धरम कामादि सुख सेवइ समयँ नरेसु ॥ १५४ ॥
Chaupai / चोपाई
भूप प्रतापभानु बल पाई । कामधेनु भै भूमि सुहाई ॥ सब दुख बरजित प्रजा सुखारी । धरमसील सुंदर नर नारी ॥
सचिव धरमरुचि हरि पद प्रीती । नृप हित हेतु सिखव नित नीती ॥ गुर सुर संत पितर महिदेवा । करइ सदा नृप सब कै सेवा ॥
भूप धरम जे बेद बखाने । सकल करइ सादर सुख माने ॥ दिन प्रति देह बिबिध बिधि दाना । सुनहु सास्त्र बर बेद पुराना ॥
नाना बापीं कूप तड़ागा । सुमन बाटिका सुंदर बागा ॥ बिप्रभवन सुरभवन सुहाए । सब तीरथन्ह बिचित्र बनाए ॥
Doha / दोहा
दो. जँह लगि कहे पुरान श्रुति एक एक सब जाग । बार सहस्र सहस्र नृप किए सहित अनुराग ॥ १५५ ॥
Chaupai / चोपाई
हृदयँ न कछु फल अनुसंधाना । भूप बिबेकी परम सुजाना ॥ करइ जे धरम करम मन बानी । बासुदेव अर्पित नृप ग्यानी ॥
चढ़ि बर बाजि बार एक राजा । मृगया कर सब साजि समाजा ॥ बिंध्याचल गभीर बन गयऊ । मृग पुनीत बहु मारत भयऊ ॥
फिरत बिपिन नृप दीख बराहू । जनु बन दुरेउ ससिहि ग्रसि राहू ॥ बड़ बिधु नहि समात मुख माहीं । मनहुँ क्रोधबस उगिलत नाहीं ॥
कोल कराल दसन छबि गाई । तनु बिसाल पीवर अधिकाई ॥ घुरुघुरात हय आरौ पाएँ । चकित बिलोकत कान उठाएँ ॥
Doha / दोहा
दो. नील महीधर सिखर सम देखि बिसाल बराहु । चपरि चलेउ हय सुटुकि नृप हाँकि न होइ निबाहु ॥ १५६ ॥
Chaupai / चोपाई
आवत देखि अधिक रव बाजी । चलेउ बराह मरुत गति भाजी ॥ तुरत कीन्ह नृप सर संधाना । महि मिलि गयउ बिलोकत बाना ॥
तकि तकि तीर महीस चलावा । करि छल सुअर सरीर बचावा ॥ प्रगटत दुरत जाइ मृग भागा । रिस बस भूप चलेउ संग लागा ॥
गयउ दूरि घन गहन बराहू । जहँ नाहिन गज बाजि निबाहू ॥ अति अकेल बन बिपुल कलेसू । तदपि न मृग मग तजइ नरेसू ॥
कोल बिलोकि भूप बड़ धीरा । भागि पैठ गिरिगुहाँ गभीरा ॥ अगम देखि नृप अति पछिताई । फिरेउ महाबन परेउ भुलाई ॥
Doha / दोहा
दो. खेद खिन्न छुद्धित तृषित राजा बाजि समेत । खोजत ब्याकुल सरित सर जल बिनु भयउ अचेत ॥ १५७ ॥
Chaupai / चोपाई
फिरत बिपिन आश्रम एक देखा । तहँ बस नृपति कपट मुनिबेषा ॥ जासु देस नृप लीन्ह छड़ाई । समर सेन तजि गयउ पराई ॥
समय प्रतापभानु कर जानी । आपन अति असमय अनुमानी ॥ गयउ न गृह मन बहुत गलानी । मिला न राजहि नृप अभिमानी ॥
रिस उर मारि रंक जिमि राजा । बिपिन बसइ तापस कें साजा ॥ तासु समीप गवन नृप कीन्हा । यह प्रतापरबि तेहि तब चीन्हा ॥
राउ तृषित नहि सो पहिचाना । देखि सुबेष महामुनि जाना ॥ उतरि तुरग तें कीन्ह प्रनामा । परम चतुर न कहेउ निज नामा ॥
Doha / दोहा
दो० भूपति तृषित बिलोकि तेहिं सरबरु दीन्ह देखाइ । मज्जन पान समेत हय कीन्ह नृपति हरषाइ ॥ १५८ ॥
Chaupai / चोपाई
गै श्रम सकल सुखी नृप भयऊ । निज आश्रम तापस लै गयऊ ॥ आसन दीन्ह अस्त रबि जानी । पुनि तापस बोलेउ मृदु बानी ॥
को तुम्ह कस बन फिरहु अकेलें । सुंदर जुबा जीव परहेलें ॥ चक्रबर्ति के लच्छन तोरें । देखत दया लागि अति मोरें ॥
नाम प्रतापभानु अवनीसा । तासु सचिव मैं सुनहु मुनीसा ॥ फिरत अहेरें परेउँ भुलाई । बडे भाग देखउँ पद आई ॥
हम कहँ दुर्लभ दरस तुम्हारा । जानत हौं कछु भल होनिहारा ॥ कह मुनि तात भयउ अँधियारा । जोजन सत्तरि नगरु तुम्हारा ॥
Doha / दोहा
दो. निसा घोर गम्भीर बन पंथ न सुनहु सुजान । बसहु आजु अस जानि तुम्ह जाएहु होत बिहान ॥ १५९(क) ॥
तुलसी जसि भवतब्यता तैसी मिलइ सहाइ । आपुनु आवइ ताहि पहिं ताहि तहाँ लै जाइ ॥ १५९(ख) ॥
Chaupai / चोपाई
भलेहिं नाथ आयसु धरि सीसा । बाँधि तुरग तरु बैठ महीसा ॥ नृप बहु भाति प्रसंसेउ ताही । चरन बंदि निज भाग्य सराही ॥
पुनि बोले मृदु गिरा सुहाई । जानि पिता प्रभु करउँ ढिठाई ॥ मोहि मुनिस सुत सेवक जानी । नाथ नाम निज कहहु बखानी ॥
तेहि न जान नृप नृपहि सो जाना । भूप सुह्रद सो कपट सयाना ॥ बैरी पुनि छत्री पुनि राजा । छल बल कीन्ह चहइ निज काजा ॥
समुझि राजसुख दुखित अराती । अवाँ अनल इव सुलगइ छाती ॥ सरल बचन नृप के सुनि काना । बयर सँभारि हृदयँ हरषाना ॥
Doha / दोहा
दो. कपट बोरि बानी मृदुल बोलेउ जुगुति समेत । नाम हमार भिखारि अब निर्धन रहित निकेति ॥ १६० ॥
Chaupai / चोपाई
कह नृप जे बिग्यान निधाना । तुम्ह सारिखे गलित अभिमाना ॥ सदा रहहि अपनपौ दुराएँ । सब बिधि कुसल कुबेष बनाएँ ॥
तेहि तें कहहि संत श्रुति टेरें । परम अकिंचन प्रिय हरि केरें ॥ तुम्ह सम अधन भिखारि अगेहा । होत बिरंचि सिवहि संदेहा ॥
जोसि सोसि तव चरन नमामी । मो पर कृपा करिअ अब स्वामी ॥ सहज प्रीति भूपति कै देखी । आपु बिषय बिस्वास बिसेषी ॥
सब प्रकार राजहि अपनाई । बोलेउ अधिक सनेह जनाई ॥ सुनु सतिभाउ कहउँ महिपाला । इहाँ बसत बीते बहु काला ॥
Doha / दोहा
दो. अब लगि मोहि न मिलेउ कोउ मैं न जनावउँ काहु । लोकमान्यता अनल सम कर तप कानन दाहु ॥ १६१(क) ॥
Chaupai / चोपाई
सो. तुलसी देखि सुबेषु भूलहिं मूढ़ न चतुर नर । सुंदर केकिहि पेखु बचन सुधा सम असन अहि ॥ १६१(ख)
तातें गुपुत रहउँ जग माहीं । हरि तजि किमपि प्रयोजन नाहीं ॥ प्रभु जानत सब बिनहिं जनाएँ । कहहु कवनि सिधि लोक रिझाएँ ॥
तुम्ह सुचि सुमति परम प्रिय मोरें । प्रीति प्रतीति मोहि पर तोरें ॥ अब जौं तात दुरावउँ तोही । दारुन दोष घटइ अति मोही ॥
जिमि जिमि तापसु कथइ उदासा । तिमि तिमि नृपहि उपज बिस्वासा ॥ देखा स्वबस कर्म मन बानी । तब बोला तापस बगध्यानी ॥
नाम हमार एकतनु भाई । सुनि नृप बोले पुनि सिरु नाई ॥ कहहु नाम कर अरथ बखानी । मोहि सेवक अति आपन जानी ॥
Doha / दोहा
दो. आदिसृष्टि उपजी जबहिं तब उतपति भै मोरि । नाम एकतनु हेतु तेहि देह न धरी बहोरि ॥ १६२ ॥
Chaupai / चोपाई
जनि आचरुज करहु मन माहीं । सुत तप तें दुर्लभ कछु नाहीं ॥ तपबल तें जग सृजइ बिधाता । तपबल बिष्नु भए परित्राता ॥
तपबल संभु करहिं संघारा । तप तें अगम न कछु संसारा ॥ भयउ नृपहि सुनि अति अनुरागा । कथा पुरातन कहै सो लागा ॥
करम धरम इतिहास अनेका । करइ निरूपन बिरति बिबेका ॥ उदभव पालन प्रलय कहानी । कहेसि अमित आचरज बखानी ॥
सुनि महिप तापस बस भयऊ । आपन नाम कहत तब लयऊ ॥ कह तापस नृप जानउँ तोही । कीन्हेहु कपट लाग भल मोही ॥
Sortha/ सोरठा
सो. सुनु महीस असि नीति जहँ तहँ नाम न कहहिं नृप । मोहि तोहि पर अति प्रीति सोइ चतुरता बिचारि तव ॥ १६३ ॥
Chaupai / चोपाई
नाम तुम्हार प्रताप दिनेसा । सत्यकेतु तव पिता नरेसा ॥ गुर प्रसाद सब जानिअ राजा । कहिअ न आपन जानि अकाजा ॥
देखि तात तव सहज सुधाई । प्रीति प्रतीति नीति निपुनाई ॥ उपजि परि ममता मन मोरें । कहउँ कथा निज पूछे तोरें ॥
अब प्रसन्न मैं संसय नाहीं । मागु जो भूप भाव मन माहीं ॥ सुनि सुबचन भूपति हरषाना । गहि पद बिनय कीन्हि बिधि नाना ॥
कृपासिंधु मुनि दरसन तोरें । चारि पदारथ करतल मोरें ॥ प्रभुहि तथापि प्रसन्न बिलोकी । मागि अगम बर होउँ असोकी ॥
Doha / दोहा
दो. जरा मरन दुख रहित तनु समर जितै जनि कोउ । एकछत्र रिपुहीन महि राज कलप सत होउ ॥ १६४ ॥
Chaupai / चोपाई
कह तापस नृप ऐसेइ होऊ । कारन एक कठिन सुनु सोऊ ॥ कालउ तुअ पद नाइहि सीसा । एक बिप्रकुल छाड़ि महीसा ॥
तपबल बिप्र सदा बरिआरा । तिन्ह के कोप न कोउ रखवारा ॥ जौं बिप्रन्ह सब करहु नरेसा । तौ तुअ बस बिधि बिष्नु महेसा ॥
चल न ब्रह्मकुल सन बरिआई । सत्य कहउँ दोउ भुजा उठाई ॥ बिप्र श्राप बिनु सुनु महिपाला । तोर नास नहि कवनेहुँ काला ॥
हरषेउ राउ बचन सुनि तासू । नाथ न होइ मोर अब नासू ॥ तव प्रसाद प्रभु कृपानिधाना । मो कहुँ सर्ब काल कल्याना ॥
Doha / दोहा
दो. एवमस्तु कहि कपटमुनि बोला कुटिल बहोरि । मिलब हमार भुलाब निज कहहु त हमहि न खोरि ॥ १६५ ॥
Chaupai / चोपाई
तातें मै तोहि बरजउँ राजा । कहें कथा तव परम अकाजा ॥ छठें श्रवन यह परत कहानी । नास तुम्हार सत्य मम बानी ॥
यह प्रगटें अथवा द्विजश्रापा । नास तोर सुनु भानुप्रतापा ॥ आन उपायँ निधन तव नाहीं । जौं हरि हर कोपहिं मन माहीं ॥
सत्य नाथ पद गहि नृप भाषा । द्विज गुर कोप कहहु को राखा ॥ राखइ गुर जौं कोप बिधाता । गुर बिरोध नहिं कोउ जग त्राता ॥
जौं न चलब हम कहे तुम्हारें । होउ नास नहिं सोच हमारें ॥ एकहिं डर डरपत मन मोरा । प्रभु महिदेव श्राप अति घोरा ॥
Doha / दोहा
दो. होहिं बिप्र बस कवन बिधि कहहु कृपा करि सोउ । तुम्ह तजि दीनदयाल निज हितू न देखउँ कोउँ ॥ १६६ ॥
Chaupai / चोपाई
सुनु नृप बिबिध जतन जग माहीं । कष्टसाध्य पुनि होहिं कि नाहीं ॥ अहइ एक अति सुगम उपाई । तहाँ परंतु एक कठिनाई ॥
मम आधीन जुगुति नृप सोई । मोर जाब तव नगर न होई ॥ आजु लगें अरु जब तें भयऊँ । काहू के गृह ग्राम न गयऊँ ॥
जौं न जाउँ तव होइ अकाजू । बना आइ असमंजस आजू ॥ सुनि महीस बोलेउ मृदु बानी । नाथ निगम असि नीति बखानी ॥
बड़े सनेह लघुन्ह पर करहीं । गिरि निज सिरनि सदा तृन धरहीं ॥ जलधि अगाध मौलि बह फेनू । संतत धरनि धरत सिर रेनू ॥
Doha / दोहा
दो. अस कहि गहे नरेस पद स्वामी होहु कृपाल । मोहि लागि दुख सहिअ प्रभु सज्जन दीनदयाल ॥ १६७ ॥
Chaupai / चोपाई
जानि नृपहि आपन आधीना । बोला तापस कपट प्रबीना ॥ सत्य कहउँ भूपति सुनु तोही । जग नाहिन दुर्लभ कछु मोही ॥
अवसि काज मैं करिहउँ तोरा । मन तन बचन भगत तैं मोरा ॥ जोग जुगुति तप मंत्र प्रभाऊ । फलइ तबहिं जब करिअ दुराऊ ॥
जौं नरेस मैं करौं रसोई । तुम्ह परुसहु मोहि जान न कोई ॥ अन्न सो जोइ जोइ भोजन करई । सोइ सोइ तव आयसु अनुसरई ॥
पुनि तिन्ह के गृह जेवँइ जोऊ । तव बस होइ भूप सुनु सोऊ ॥ जाइ उपाय रचहु नृप एहू । संबत भरि संकलप करेहू ॥
Doha / दोहा
दो. नित नूतन द्विज सहस सत बरेहु सहित परिवार । मैं तुम्हरे संकलप लगि दिनहिंइब जेवनार ॥ १६८ ॥
Chaupai / चोपाई
एहि बिधि भूप कष्ट अति थोरें । होइहहिं सकल बिप्र बस तोरें ॥ करिहहिं बिप्र होम मख सेवा । तेहिं प्रसंग सहजेहिं बस देवा ॥
और एक तोहि कहऊँ लखाऊ । मैं एहि बेष न आउब काऊ ॥ तुम्हरे उपरोहित कहुँ राया । हरि आनब मैं करि निज माया ॥
तपबल तेहि करि आपु समाना । रखिहउँ इहाँ बरष परवाना ॥ मैं धरि तासु बेषु सुनु राजा । सब बिधि तोर सँवारब काजा ॥
गै निसि बहुत सयन अब कीजे । मोहि तोहि भूप भेंट दिन तीजे ॥ मैं तपबल तोहि तुरग समेता । पहुँचेहउँ सोवतहि निकेता ॥
Doha / दोहा
दो. मैं आउब सोइ बेषु धरि पहिचानेहु तब मोहि । जब एकांत बोलाइ सब कथा सुनावौं तोहि ॥ १६९ ॥
Chaupai / चोपाई
सयन कीन्ह नृप आयसु मानी । आसन जाइ बैठ छलग्यानी ॥ श्रमित भूप निद्रा अति आई । सो किमि सोव सोच अधिकाई ॥
कालकेतु निसिचर तहँ आवा । जेहिं सूकर होइ नृपहि भुलावा ॥ परम मित्र तापस नृप केरा । जानइ सो अति कपट घनेरा ॥
तेहि के सत सुत अरु दस भाई । खल अति अजय देव दुखदाई ॥ प्रथमहि भूप समर सब मारे । बिप्र संत सुर देखि दुखारे ॥
तेहिं खल पाछिल बयरु सँभरा । तापस नृप मिलि मंत्र बिचारा ॥ जेहि रिपु छय सोइ रचेन्हि उपाऊ । भावी बस न जान कछु राऊ ॥
Doha / दोहा
दो. रिपु तेजसी अकेल अपि लघु करि गनिअ न ताहु । अजहुँ देत दुख रबि ससिहि सिर अवसेषित राहु ॥ १७० ॥
Chaupai / चोपाई
तापस नृप निज सखहि निहारी । हरषि मिलेउ उठि भयउ सुखारी ॥ मित्रहि कहि सब कथा सुनाई । जातुधान बोला सुख पाई ॥
अब साधेउँ रिपु सुनहु नरेसा । जौं तुम्ह कीन्ह मोर उपदेसा ॥ परिहरि सोच रहहु तुम्ह सोई । बिनु औषध बिआधि बिधि खोई ॥
कुल समेत रिपु मूल बहाई । चौथे दिवस मिलब मैं आई ॥ तापस नृपहि बहुत परितोषी । चला महाकपटी अतिरोषी ॥
भानुप्रतापहि बाजि समेता । पहुँचाएसि छन माझ निकेता ॥ नृपहि नारि पहिं सयन कराई । हयगृहँ बाँधेसि बाजि बनाई ॥
Doha / दोहा
दो. राजा के उपरोहितहि हरि लै गयउ बहोरि । लै राखेसि गिरि खोह महुँ मायाँ करि मति भोरि ॥ १७१ ॥
Chaupai / चोपाई
आपु बिरचि उपरोहित रूपा । परेउ जाइ तेहि सेज अनूपा ॥ जागेउ नृप अनभएँ बिहाना । देखि भवन अति अचरजु माना ॥
मुनि महिमा मन महुँ अनुमानी । उठेउ गवँहि जेहि जान न रानी ॥ कानन गयउ बाजि चढ़ि तेहीं । पुर नर नारि न जानेउ केहीं ॥
गएँ जाम जुग भूपति आवा । घर घर उत्सव बाज बधावा ॥ उपरोहितहि देख जब राजा । चकित बिलोकि सुमिरि सोइ काजा ॥
जुग सम नृपहि गए दिन तीनी । कपटी मुनि पद रह मति लीनी ॥ समय जानि उपरोहित आवा । नृपहि मते सब कहि समुझावा ॥
Doha / दोहा
दो. नृप हरषेउ पहिचानि गुरु भ्रम बस रहा न चेत । बरे तुरत सत सहस बर बिप्र कुटुंब समेत ॥ १७२ ॥
Chaupai / चोपाई
उपरोहित जेवनार बनाई । छरस चारि बिधि जसि श्रुति गाई ॥ मायामय तेहिं कीन्ह रसोई । बिंजन बहु गनि सकइ न कोई ॥
बिबिध मृगन्ह कर आमिष राँधा । तेहि महुँ बिप्र माँसु खल साँधा ॥ भोजन कहुँ सब बिप्र बोलाए । पद पखारि सादर बैठाए ॥
परुसन जबहिं लाग महिपाला । भै अकासबानी तेहि काला ॥ बिप्रबृंद उठि उठि गृह जाहू । है बड़ि हानि अन्न जनि खाहू ॥
भयउ रसोईं भूसुर माँसू । सब द्विज उठे मानि बिस्वासू ॥ भूप बिकल मति मोहँ भुलानी । भावी बस आव मुख बानी ॥
Doha / दोहा
दो. बोले बिप्र सकोप तब नहिं कछु कीन्ह बिचार । जाइ निसाचर होहु नृप मूढ़ सहित परिवार ॥ १७३ ॥
Chaupai / चोपाई
छत्रबंधु तैं बिप्र बोलाई । घालै लिए सहित समुदाई ॥ ईस्वर राखा धरम हमारा । जैहसि तैं समेत परिवारा ॥
संबत मध्य नास तव होऊ । जलदाता न रहिहि कुल कोऊ ॥ नृप सुनि श्राप बिकल अति त्रासा । भै बहोरि बर गिरा अकासा ॥
बिप्रहु श्राप बिचारि न दीन्हा । नहिं अपराध भूप कछु कीन्हा ॥ चकित बिप्र सब सुनि नभबानी । भूप गयउ जहँ भोजन खानी ॥
तहँ न असन नहिं बिप्र सुआरा । फिरेउ राउ मन सोच अपारा ॥ सब प्रसंग महिसुरन्ह सुनाई । त्रसित परेउ अवनीं अकुलाई ॥
Doha / दोहा
दो. भूपति भावी मिटइ नहिं जदपि न दूषन तोर । किएँ अन्यथा होइ नहिं बिप्रश्राप अति घोर ॥ १७४ ॥
Chaupai / चोपाई
अस कहि सब महिदेव सिधाए । समाचार पुरलोगन्ह पाए ॥ सोचहिं दूषन दैवहि देहीं । बिचरत हंस काग किय जेहीं ॥
उपरोहितहि भवन पहुँचाई । असुर तापसहि खबरि जनाई ॥ तेहिं खल जहँ तहँ पत्र पठाए । सजि सजि सेन भूप सब धाए ॥
घेरेन्हि नगर निसान बजाई । बिबिध भाँति नित होई लराई ॥ जूझे सकल सुभट करि करनी । बंधु समेत परेउ नृप धरनी ॥
सत्यकेतु कुल कोउ नहिं बाँचा । बिप्रश्राप किमि होइ असाँचा ॥ रिपु जिति सब नृप नगर बसाई । निज पुर गवने जय जसु पाई ॥
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