ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Doha / दोहा
दो. भरद्वाज सुनु जाहि जब होइ बिधाता बाम । धूरि मेरुसम जनक जम ताहि ब्यालसम दाम ॥ । १७५ ॥
Chaupai / चोपाई
काल पाइ मुनि सुनु सोइ राजा । भयउ निसाचर सहित समाजा ॥ दस सिर ताहि बीस भुजदंडा । रावन नाम बीर बरिबंडा ॥
भूप अनुज अरिमर्दन नामा । भयउ सो कुंभकरन बलधामा ॥ सचिव जो रहा धरमरुचि जासू । भयउ बिमात्र बंधु लघु तासू ॥
नाम बिभीषन जेहि जग जाना । बिष्नुभगत बिग्यान निधाना ॥ रहे जे सुत सेवक नृप केरे । भए निसाचर घोर घनेरे ॥
कामरूप खल जिनस अनेका । कुटिल भयंकर बिगत बिबेका ॥ कृपा रहित हिंसक सब पापी । बरनि न जाहिं बिस्व परितापी ॥
Doha / दोहा
दो. उपजे जदपि पुलस्त्यकुल पावन अमल अनूप । तदपि महीसुर श्राप बस भए सकल अघरूप ॥ १७६ ॥
Chaupai / चोपाई
कीन्ह बिबिध तप तीनिहुँ भाई । परम उग्र नहिं बरनि सो जाई ॥ गयउ निकट तप देखि बिधाता । मागहु बर प्रसन्न मैं ताता ॥
करि बिनती पद गहि दससीसा । बोलेउ बचन सुनहु जगदीसा ॥ हम काहू के मरहिं न मारें । बानर मनुज जाति दुइ बारें ॥
एवमस्तु तुम्ह बड़ तप कीन्हा । मैं ब्रह्माँ मिलि तेहि बर दीन्हा ॥ पुनि प्रभु कुंभकरन पहिं गयऊ । तेहि बिलोकि मन बिसमय भयऊ ॥
जौं एहिं खल नित करब अहारू । होइहि सब उजारि संसारू ॥ सारद प्रेरि तासु मति फेरी । मागेसि नीद मास षट केरी ॥
Doha / दोहा
दो. गए बिभीषन पास पुनि कहेउ पुत्र बर मागु । तेहिं मागेउ भगवंत पद कमल अमल अनुरागु ॥ १७७ ॥
Chaupai / चोपाई
तिन्हि देइ बर ब्रह्म सिधाए । हरषित ते अपने गृह आए ॥ मय तनुजा मंदोदरि नामा । परम सुंदरी नारि ललामा ॥
सोइ मयँ दीन्हि रावनहि आनी । होइहि जातुधानपति जानी ॥ हरषित भयउ नारि भलि पाई । पुनि दोउ बंधु बिआहेसि जाई ॥
गिरि त्रिकूट एक सिंधु मझारी । बिधि निर्मित दुर्गम अति भारी ॥ सोइ मय दानवँ बहुरि सँवारा । कनक रचित मनिभवन अपारा ॥
भोगावति जसि अहिकुल बासा । अमरावति जसि सक्रनिवासा ॥ तिन्ह तें अधिक रम्य अति बंका । जग बिख्यात नाम तेहि लंका ॥
Doha / दोहा
दो. खाईं सिंधु गभीर अति चारिहुँ दिसि फिरि आव । कनक कोट मनि खचित दृढ़ बरनि न जाइ बनाव ॥ १७८(क) ॥
हरिप्रेरित जेहिं कलप जोइ जातुधानपति होइ । सूर प्रतापी अतुलबल दल समेत बस सोइ ॥ १७८(ख) ॥
Chaupai / चोपाई
रहे तहाँ निसिचर भट भारे । ते सब सुरन्ह समर संघारे ॥ अब तहँ रहहिं सक्र के प्रेरे । रच्छक कोटि जच्छपति केरे ॥
दसमुख कतहुँ खबरि असि पाई । सेन साजि गढ़ घेरेसि जाई ॥ देखि बिकट भट बड़ि कटकाई । जच्छ जीव लै गए पराई ॥
फिरि सब नगर दसानन देखा । गयउ सोच सुख भयउ बिसेषा ॥ सुंदर सहज अगम अनुमानी । कीन्हि तहाँ रावन रजधानी ॥
जेहि जस जोग बाँटि गृह दीन्हे । सुखी सकल रजनीचर कीन्हे ॥ एक बार कुबेर पर धावा । पुष्पक जान जीति लै आवा ॥
Doha / दोहा
दो. कौतुकहीं कैलास पुनि लीन्हेसि जाइ उठाइ । मनहुँ तौलि निज बाहुबल चला बहुत सुख पाइ ॥ १७९ ॥
Chaupai / चोपाई
सुख संपति सुत सेन सहाई । जय प्रताप बल बुद्धि बड़ाई ॥ नित नूतन सब बाढ़त जाई । जिमि प्रतिलाभ लोभ अधिकाई ॥
अतिबल कुंभकरन अस भ्राता । जेहि कहुँ नहिं प्रतिभट जग जाता ॥ करइ पान सोवइ षट मासा । जागत होइ तिहुँ पुर त्रासा ॥
जौं दिन प्रति अहार कर सोई । बिस्व बेगि सब चौपट होई ॥ समर धीर नहिं जाइ बखाना । तेहि सम अमित बीर बलवाना ॥
बारिदनाद जेठ सुत तासू । भट महुँ प्रथम लीक जग जासू ॥ जेहि न होइ रन सनमुख कोई । सुरपुर नितहिं परावन होई ॥
Doha / दोहा
दो. कुमुख अकंपन कुलिसरद धूमकेतु अतिकाय । एक एक जग जीति सक ऐसे सुभट निकाय ॥ १८० ॥
Chaupai / चोपाई
कामरूप जानहिं सब माया । सपनेहुँ जिन्ह कें धरम न दाया ॥ दसमुख बैठ सभाँ एक बारा । देखि अमित आपन परिवारा ॥
सुत समूह जन परिजन नाती । गे को पार निसाचर जाती ॥ सेन बिलोकि सहज अभिमानी । बोला बचन क्रोध मद सानी ॥
सुनहु सकल रजनीचर जूथा । हमरे बैरी बिबुध बरूथा ॥ ते सनमुख नहिं करही लराई । देखि सबल रिपु जाहिं पराई ॥
तेन्ह कर मरन एक बिधि होई । कहउँ बुझाइ सुनहु अब सोई ॥ द्विजभोजन मख होम सराधा ॥ सब कै जाइ करहु तुम्ह बाधा ॥
Doha / दोहा
दो. छुधा छीन बलहीन सुर सहजेहिं मिलिहहिं आइ । तब मारिहउँ कि छाड़िहउँ भली भाँति अपनाइ ॥ १८१ ॥
Chaupai / चोपाई
मेघनाद कहुँ पुनि हँकरावा । दीन्ही सिख बलु बयरु बढ़ावा ॥ जे सुर समर धीर बलवाना । जिन्ह कें लरिबे कर अभिमाना ॥
तिन्हहि जीति रन आनेसु बाँधी । उठि सुत पितु अनुसासन काँधी ॥ एहि बिधि सबही अग्या दीन्ही । आपुनु चलेउ गदा कर लीन्ही ॥
चलत दसानन डोलति अवनी । गर्जत गर्भ स्त्रवहिं सुर रवनी ॥ रावन आवत सुनेउ सकोहा । देवन्ह तके मेरु गिरि खोहा ॥
दिगपालन्ह के लोक सुहाए । सूने सकल दसानन पाए ॥ पुनि पुनि सिंघनाद करि भारी । देइ देवतन्ह गारि पचारी ॥
रन मद मत्त फिरइ जग धावा । प्रतिभट खौजत कतहुँ न पावा ॥ रबि ससि पवन बरुन धनधारी । अगिनि काल जम सब अधिकारी ॥
किंनर सिद्ध मनुज सुर नागा । हठि सबही के पंथहिं लागा ॥ ब्रह्मसृष्टि जहँ लगि तनुधारी । दसमुख बसबर्ती नर नारी ॥
आयसु करहिं सकल भयभीता । नवहिं आइ नित चरन बिनीता ॥
Doha / दोहा
दो. भुजबल बिस्व बस्य करि राखेसि कोउ न सुतंत्र । मंडलीक मनि रावन राज करइ निज मंत्र ॥ १८२(ख) ॥
देव जच्छ गंधर्व नर किंनर नाग कुमारि । जीति बरीं निज बाहुबल बहु सुंदर बर नारि ॥ १८२ख ॥
Chaupai / चोपाई
इंद्रजीत सन जो कछु कहेऊ । सो सब जनु पहिलेहिं करि रहेऊ ॥ प्रथमहिं जिन्ह कहुँ आयसु दीन्हा । तिन्ह कर चरित सुनहु जो कीन्हा ॥
देखत भीमरूप सब पापी । निसिचर निकर देव परितापी ॥ करहि उपद्रव असुर निकाया । नाना रूप धरहिं करि माया ॥
जेहि बिधि होइ धर्म निर्मूला । सो सब करहिं बेद प्रतिकूला ॥ जेहिं जेहिं देस धेनु द्विज पावहिं । नगर गाउँ पुर आगि लगावहिं ॥
सुभ आचरन कतहुँ नहिं होई । देव बिप्र गुरू मान न कोई ॥ नहिं हरिभगति जग्य तप ग्याना । सपनेहुँ सुनिअ न बेद पुराना ॥
Chanda / छन्द
छं. जप जोग बिरागा तप मख भागा श्रवन सुनइ दससीसा । आपुनु उठि धावइ रहै न पावइ धरि सब घालइ खीसा ॥ अस भ्रष्ट अचारा भा संसारा धर्म सुनिअ नहि काना । तेहि बहुबिधि त्रासइ देस निकासइ जो कह बेद पुराना ॥
Sortha/ सोरठा
सो. बरनि न जाइ अनीति घोर निसाचर जो करहिं । हिंसा पर अति प्रीति तिन्ह के पापहि कवनि मिति ॥ १८३ ॥
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