ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Chaupai / चोपाई
बाढ़े खल बहु चोर जुआरा । जे लंपट परधन परदारा ॥ मानहिं मातु पिता नहिं देवा । साधुन्ह सन करवावहिं सेवा ॥
जिन्ह के यह आचरन भवानी । ते जानेहु निसिचर सब प्रानी ॥ अतिसय देखि धर्म कै ग्लानी । परम सभीत धरा अकुलानी ॥
गिरि सरि सिंधु भार नहिं मोही । जस मोहि गरुअ एक परद्रोही ॥ सकल धर्म देखइ बिपरीता । कहि न सकइ रावन भय भीता ॥
धेनु रूप धरि हृदयँ बिचारी । गई तहाँ जहँ सुर मुनि झारी ॥ निज संताप सुनाएसि रोई । काहू तें कछु काज न होई ॥
Chanda / छन्द
छं. सुर मुनि गंधर्बा मिलि करि सर्बा गे बिरंचि के लोका । सँग गोतनुधारी भूमि बिचारी परम बिकल भय सोका ॥ ब्रह्माँ सब जाना मन अनुमाना मोर कछू न बसाई । जा करि तैं दासी सो अबिनासी हमरेउ तोर सहाई ॥
Sortha/ सोरठा
सो. धरनि धरहि मन धीर कह बिरंचि हरिपद सुमिरु । जानत जन की पीर प्रभु भंजिहि दारुन बिपति ॥ १८४ ॥
Chaupai / चोपाई
बैठे सुर सब करहिं बिचारा । कहँ पाइअ प्रभु करिअ पुकारा ॥ पुर बैकुंठ जान कह कोई । कोउ कह पयनिधि बस प्रभु सोई ॥
जाके हृदयँ भगति जसि प्रीति । प्रभु तहँ प्रगट सदा तेहिं रीती ॥ तेहि समाज गिरिजा मैं रहेऊँ । अवसर पाइ बचन एक कहेऊँ ॥
हरि ब्यापक सर्बत्र समाना । प्रेम तें प्रगट होहिं मैं जाना ॥ देस काल दिसि बिदिसिहु माहीं । कहहु सो कहाँ जहाँ प्रभु नाहीं ॥
अग जगमय सब रहित बिरागी । प्रेम तें प्रभु प्रगटइ जिमि आगी ॥ मोर बचन सब के मन माना । साधु साधु करि ब्रह्म बखाना ॥
Doha / दोहा
दो. सुनि बिरंचि मन हरष तन पुलकि नयन बह नीर । अस्तुति करत जोरि कर सावधान मतिधीर ॥ १८५ ॥
Chanda / छन्द
छं. जय जय सुरनायक जन सुखदायक प्रनतपाल भगवंता । गो द्विज हितकारी जय असुरारी सिधुंसुता प्रिय कंता ॥ पालन सुर धरनी अद्भुत करनी मरम न जानइ कोई । जो सहज कृपाला दीनदयाला करउ अनुग्रह सोई ॥
जय जय अबिनासी सब घट बासी ब्यापक परमानंदा । अबिगत गोतीतं चरित पुनीतं मायारहित मुकुंदा ॥ जेहि लागि बिरागी अति अनुरागी बिगतमोह मुनिबृंदा । निसि बासर ध्यावहिं गुन गन गावहिं जयति सच्चिदानंदा ॥
जेहिं सृष्टि उपाई त्रिबिध बनाई संग सहाय न दूजा । सो करउ अघारी चिंत हमारी जानिअ भगति न पूजा ॥ जो भव भय भंजन मुनि मन रंजन गंजन बिपति बरूथा । मन बच क्रम बानी छाड़ि सयानी सरन सकल सुर जूथा ॥
सारद श्रुति सेषा रिषय असेषा जा कहुँ कोउ नहि जाना । जेहि दीन पिआरे बेद पुकारे द्रवउ सो श्रीभगवाना ॥ भव बारिधि मंदर सब बिधि सुंदर गुनमंदिर सुखपुंजा । मुनि सिद्ध सकल सुर परम भयातुर नमत नाथ पद कंजा ॥
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