ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Chaupai / चोपाई
प्रातकाल उठि कै रघुनाथा । मातु पिता गुरु नावहिं माथा ॥ आयसु मागि करहिं पुर काजा । देखि चरित हरषइ मन राजा ॥
Doha / दोहा
दो. ब्यापक अकल अनीह अज निर्गुन नाम न रूप । भगत हेतु नाना बिधि करत चरित्र अनूप ॥ २०५ ॥
Chaupai / चोपाई
यह सब चरित कहा मैं गाई । आगिलि कथा सुनहु मन लाई ॥ बिस्वामित्र महामुनि ग्यानी । बसहि बिपिन सुभ आश्रम जानी ॥
जहँ जप जग्य मुनि करही । अति मारीच सुबाहुहि डरहीं ॥ देखत जग्य निसाचर धावहि । करहि उपद्रव मुनि दुख पावहिं ॥
गाधितनय मन चिंता ब्यापी । हरि बिनु मरहि न निसिचर पापी ॥ तब मुनिवर मन कीन्ह बिचारा । प्रभु अवतरेउ हरन महि भारा ॥
एहुँ मिस देखौं पद जाई । करि बिनती आनौ दोउ भाई ॥ ग्यान बिराग सकल गुन अयना । सो प्रभु मै देखब भरि नयना ॥
Doha / दोहा
दो. बहुबिधि करत मनोरथ जात लागि नहिं बार । करि मज्जन सरऊ जल गए भूप दरबार ॥ २०६ ॥
Chaupai / चोपाई
मुनि आगमन सुना जब राजा । मिलन गयऊ लै बिप्र समाजा ॥ करि दंडवत मुनिहि सनमानी । निज आसन बैठारेन्हि आनी ॥
चरन पखारि कीन्हि अति पूजा । मो सम आजु धन्य नहिं दूजा ॥ बिबिध भाँति भोजन करवावा । मुनिवर हृदयँ हरष अति पावा ॥
पुनि चरननि मेले सुत चारी । राम देखि मुनि देह बिसारी ॥ भए मगन देखत मुख सोभा । जनु चकोर पूरन ससि लोभा ॥
तब मन हरषि बचन कह राऊ । मुनि अस कृपा न कीन्हिहु काऊ ॥ केहि कारन आगमन तुम्हारा । कहहु सो करत न लावउँ बारा ॥
असुर समूह सतावहिं मोही । मै जाचन आयउँ नृप तोही ॥ अनुज समेत देहु रघुनाथा । निसिचर बध मैं होब सनाथा ॥
Doha / दोहा
दो. देहु भूप मन हरषित तजहु मोह अग्यान । धर्म सुजस प्रभु तुम्ह कौं इन्ह कहँ अति कल्यान ॥ २०७ ॥
Chaupai / चोपाई
सुनि राजा अति अप्रिय बानी । हृदय कंप मुख दुति कुमुलानी ॥ चौथेंपन पायउँ सुत चारी । बिप्र बचन नहिं कहेहु बिचारी ॥
मागहु भूमि धेनु धन कोसा । सर्बस देउँ आजु सहरोसा ॥ देह प्रान तें प्रिय कछु नाही । सोउ मुनि देउँ निमिष एक माही ॥
सब सुत प्रिय मोहि प्रान कि नाईं । राम देत नहिं बनइ गोसाई ॥ कहँ निसिचर अति घोर कठोरा । कहँ सुंदर सुत परम किसोरा ॥
सुनि नृप गिरा प्रेम रस सानी । हृदयँ हरष माना मुनि ग्यानी ॥ तब बसिष्ट बहु निधि समुझावा । नृप संदेह नास कहँ पावा ॥
अति आदर दोउ तनय बोलाए । हृदयँ लाइ बहु भाँति सिखाए ॥ मेरे प्रान नाथ सुत दोऊ । तुम्ह मुनि पिता आन नहिं कोऊ ॥
Doha / दोहा
दो. सौंपे भूप रिषिहि सुत बहु बिधि देइ असीस । जननी भवन गए प्रभु चले नाइ पद सीस ॥ २०८(क) ॥
Sortha/ सोरठा
सो. पुरुषसिंह दोउ बीर हरषि चले मुनि भय हरन ॥ कृपासिंधु मतिधीर अखिल बिस्व कारन करन ॥ २०८(ख)
Chaupai / चोपाई
अरुन नयन उर बाहु बिसाला । नील जलज तनु स्याम तमाला ॥ कटि पट पीत कसें बर भाथा । रुचिर चाप सायक दुहुँ हाथा ॥
स्याम गौर सुंदर दोउ भाई । बिस्बामित्र महानिधि पाई ॥ प्रभु ब्रह्मन्यदेव मै जाना । मोहि निति पिता तजेहु भगवाना ॥
चले जात मुनि दीन्हि दिखाई । सुनि ताड़का क्रोध करि धाई ॥ एकहिं बान प्रान हरि लीन्हा । दीन जानि तेहि निज पद दीन्हा ॥
तब रिषि निज नाथहि जियँ चीन्ही । बिद्यानिधि कहुँ बिद्या दीन्ही ॥ जाते लाग न छुधा पिपासा । अतुलित बल तनु तेज प्रकासा ॥
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