ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Doha / दोहा
दो. आयुष सब समर्पि कै प्रभु निज आश्रम आनि । कंद मूल फल भोजन दीन्ह भगति हित जानि ॥ २०९ ॥
Chaupai / चोपाई
प्रात कहा मुनि सन रघुराई । निर्भय जग्य करहु तुम्ह जाई ॥ होम करन लागे मुनि झारी । आपु रहे मख कीं रखवारी ॥
सुनि मारीच निसाचर क्रोही । लै सहाय धावा मुनिद्रोही ॥ बिनु फर बान राम तेहि मारा । सत जोजन गा सागर पारा ॥
पावक सर सुबाहु पुनि मारा । अनुज निसाचर कटकु सँघारा ॥ मारि असुर द्विज निर्मयकारी । अस्तुति करहिं देव मुनि झारी ॥
तहँ पुनि कछुक दिवस रघुराया । रहे कीन्हि बिप्रन्ह पर दाया ॥ भगति हेतु बहु कथा पुराना । कहे बिप्र जद्यपि प्रभु जाना ॥
तब मुनि सादर कहा बुझाई । चरित एक प्रभु देखिअ जाई ॥ धनुषजग्य मुनि रघुकुल नाथा । हरषि चले मुनिबर के साथा ॥
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