Ram Charita Manas

Bala-Kanda

Entry of Vishwamitra in Janakpur with Shri Ram-Laxman

ॐ श्री परमात्मने नमः


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ॐ श्री गणेशाय नमः

Chaupai / चोपाई

चले राम लछिमन मुनि संगा । गए जहाँ जग पावनि गंगा ॥ गाधिसूनु सब कथा सुनाई । जेहि प्रकार सुरसरि महि आई ॥

Chapter : 42 Number : 233

तब प्रभु रिषिन्ह समेत नहाए । बिबिध दान महिदेवन्हि पाए ॥ हरषि चले मुनि बृंद सहाया । बेगि बिदेह नगर निअराया ॥

Chapter : 42 Number : 233

पुर रम्यता राम जब देखी । हरषे अनुज समेत बिसेषी ॥ बापीं कूप सरित सर नाना । सलिल सुधासम मनि सोपाना ॥

Chapter : 42 Number : 233

गुंजत मंजु मत्त रस भृंगा । कूजत कल बहुबरन बिहंगा ॥ बरन बरन बिकसे बन जाता । त्रिबिध समीर सदा सुखदाता ॥

Chapter : 42 Number : 233

Doha / दोहा

दो. सुमन बाटिका बाग बन बिपुल बिहंग निवास । फूलत फलत सुपल्लवत सोहत पुर चहुँ पास ॥ २१२ ॥

Chapter : 42 Number : 224

Chaupai / चोपाई

बनइ न बरनत नगर निकाई । जहाँ जाइ मन तहँइँ लोभाई ॥ चारु बजारु बिचित्र अँबारी । मनिमय बिधि जनु स्वकर सँवारी ॥

Chapter : 42 Number : 224

धनिक बनिक बर धनद समाना । बैठ सकल बस्तु लै नाना ॥ चौहट सुंदर गलीं सुहाई । संतत रहहिं सुगंध सिंचाई ॥

Chapter : 42 Number : 224

मंगलमय मंदिर सब केरें । चित्रित जनु रतिनाथ चितेरें ॥ पुर नर नारि सुभग सुचि संता । धरमसील ग्यानी गुनवंता ॥

Chapter : 42 Number : 224

अति अनूप जहँ जनक निवासू । बिथकहिं बिबुध बिलोकि बिलासू ॥ होत चकित चित कोट बिलोकी । सकल भुवन सोभा जनु रोकी ॥

Chapter : 42 Number : 224

Doha / दोहा

दो. धवल धाम मनि पुरट पट सुघटित नाना भाँति । सिय निवास सुंदर सदन सोभा किमि कहि जाति ॥ २१३ ॥

Chapter : 42 Number : 225

Chaupai / चोपाई

सुभग द्वार सब कुलिस कपाटा । भूप भीर नट मागध भाटा ॥ बनी बिसाल बाजि गज साला । हय गय रथ संकुल सब काला ॥

Chapter : 42 Number : 225

सूर सचिव सेनप बहुतेरे । नृपगृह सरिस सदन सब केरे ॥ पुर बाहेर सर सारित समीपा । उतरे जहँ तहँ बिपुल महीपा ॥

Chapter : 42 Number : 225

देखि अनूप एक अँवराई । सब सुपास सब भाँति सुहाई ॥ कौसिक कहेउ मोर मनु माना । इहाँ रहिअ रघुबीर सुजाना ॥

Chapter : 42 Number : 225

भलेहिं नाथ कहि कृपानिकेता । उतरे तहँ मुनिबृंद समेता ॥ बिस्वामित्र महामुनि आए । समाचार मिथिलापति पाए ॥

Chapter : 42 Number : 225

Doha / दोहा

दो. संग सचिव सुचि भूरि भट भूसुर बर गुर ग्याति । चले मिलन मुनिनायकहि मुदित राउ एहि भाँति ॥ २१४ ॥

Chapter : 42 Number : 226

Chaupai / चोपाई

कीन्ह प्रनामु चरन धरि माथा । दीन्हि असीस मुदित मुनिनाथा ॥ बिप्रबृंद सब सादर बंदे । जानि भाग्य बड़ राउ अनंदे ॥

Chapter : 42 Number : 226

कुसल प्रस्न कहि बारहिं बारा । बिस्वामित्र नृपहि बैठारा ॥ तेहि अवसर आए दोउ भाई । गए रहे देखन फुलवाई ॥

Chapter : 42 Number : 226

स्याम गौर मृदु बयस किसोरा । लोचन सुखद बिस्व चित चोरा ॥ उठे सकल जब रघुपति आए । बिस्वामित्र निकट बैठाए ॥

Chapter : 42 Number : 226

भए सब सुखी देखि दोउ भ्राता । बारि बिलोचन पुलकित गाता ॥ मूरति मधुर मनोहर देखी । भयउ बिदेहु बिदेहु बिसेषी ॥

Chapter : 42 Number : 226

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