ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Doha / दोहा
दो. प्रेम मगन मनु जानि नृपु करि बिबेकु धरि धीर । बोलेउ मुनि पद नाइ सिरु गदगद गिरा गभीर ॥ २१५ ॥
Chaupai / चोपाई
कहहु नाथ सुंदर दोउ बालक । मुनिकुल तिलक कि नृपकुल पालक ॥ ब्रह्म जो निगम नेति कहि गावा । उभय बेष धरि की सोइ आवा ॥
सहज बिरागरुप मनु मोरा । थकित होत जिमि चंद चकोरा ॥ ताते प्रभु पूछउँ सतिभाऊ । कहहु नाथ जनि करहु दुराऊ ॥
इन्हहि बिलोकत अति अनुरागा । बरबस ब्रह्मसुखहि मन त्यागा ॥ कह मुनि बिहसि कहेहु नृप नीका । बचन तुम्हार न होइ अलीका ॥
ए प्रिय सबहि जहाँ लगि प्रानी । मन मुसुकाहिं रामु सुनि बानी ॥ रघुकुल मनि दसरथ के जाए । मम हित लागि नरेस पठाए ॥
Doha / दोहा
दो. रामु लखनु दोउ बंधुबर रूप सील बल धाम । मख राखेउ सबु साखि जगु जिते असुर संग्राम ॥ २१६ ॥
Chaupai / चोपाई
मुनि तव चरन देखि कह राऊ । कहि न सकउँ निज पुन्य प्राभाऊ ॥ सुंदर स्याम गौर दोउ भ्राता । आनँदहू के आनँद दाता ॥
इन्ह कै प्रीति परसपर पावनि । कहि न जाइ मन भाव सुहावनि ॥ सुनहु नाथ कह मुदित बिदेहू । ब्रह्म जीव इव सहज सनेहू ॥
पुनि पुनि प्रभुहि चितव नरनाहू । पुलक गात उर अधिक उछाहू ॥ म्रुनिहि प्रसंसि नाइ पद सीसू । चलेउ लवाइ नगर अवनीसू ॥
सुंदर सदनु सुखद सब काला । तहाँ बासु लै दीन्ह भुआला ॥ करि पूजा सब बिधि सेवकाई । गयउ राउ गृह बिदा कराई ॥
Doha / दोहा
दो. रिषय संग रघुबंस मनि करि भोजनु बिश्रामु । बैठे प्रभु भ्राता सहित दिवसु रहा भरि जामु ॥ २१७ ॥
Chaupai / चोपाई
लखन हृदयँ लालसा बिसेषी । जाइ जनकपुर आइअ देखी ॥ प्रभु भय बहुरि मुनिहि सकुचाहीं । प्रगट न कहहिं मनहिं मुसुकाहीं ॥
राम अनुज मन की गति जानी । भगत बछलता हिंयँ हुलसानी ॥ परम बिनीत सकुचि मुसुकाई । बोले गुर अनुसासन पाई ॥
नाथ लखनु पुरु देखन चहहीं । प्रभु सकोच डर प्रगट न कहहीं ॥ जौं राउर आयसु मैं पावौं । नगर देखाइ तुरत लै आवौ ॥
सुनि मुनीसु कह बचन सप्रीती । कस न राम तुम्ह राखहु नीती ॥ धरम सेतु पालक तुम्ह ताता । प्रेम बिबस सेवक सुखदाता ॥
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