Ram Charita Manas

Bala-Kanda

Janakji's infatuation on seeing Shri Ram-Laxman

ॐ श्री परमात्मने नमः


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ॐ श्री गणेशाय नमः

Doha / दोहा

दो. प्रेम मगन मनु जानि नृपु करि बिबेकु धरि धीर । बोलेउ मुनि पद नाइ सिरु गदगद गिरा गभीर ॥ २१५ ॥

Chapter : 43 Number : 227

Chaupai / चोपाई

कहहु नाथ सुंदर दोउ बालक । मुनिकुल तिलक कि नृपकुल पालक ॥ ब्रह्म जो निगम नेति कहि गावा । उभय बेष धरि की सोइ आवा ॥

Chapter : 43 Number : 227

सहज बिरागरुप मनु मोरा । थकित होत जिमि चंद चकोरा ॥ ताते प्रभु पूछउँ सतिभाऊ । कहहु नाथ जनि करहु दुराऊ ॥

Chapter : 43 Number : 227

इन्हहि बिलोकत अति अनुरागा । बरबस ब्रह्मसुखहि मन त्यागा ॥ कह मुनि बिहसि कहेहु नृप नीका । बचन तुम्हार न होइ अलीका ॥

Chapter : 43 Number : 227

ए प्रिय सबहि जहाँ लगि प्रानी । मन मुसुकाहिं रामु सुनि बानी ॥ रघुकुल मनि दसरथ के जाए । मम हित लागि नरेस पठाए ॥

Chapter : 43 Number : 227

Doha / दोहा

दो. रामु लखनु दोउ बंधुबर रूप सील बल धाम । मख राखेउ सबु साखि जगु जिते असुर संग्राम ॥ २१६ ॥

Chapter : 43 Number : 228

Chaupai / चोपाई

मुनि तव चरन देखि कह राऊ । कहि न सकउँ निज पुन्य प्राभाऊ ॥ सुंदर स्याम गौर दोउ भ्राता । आनँदहू के आनँद दाता ॥

Chapter : 43 Number : 228

इन्ह कै प्रीति परसपर पावनि । कहि न जाइ मन भाव सुहावनि ॥ सुनहु नाथ कह मुदित बिदेहू । ब्रह्म जीव इव सहज सनेहू ॥

Chapter : 43 Number : 228

पुनि पुनि प्रभुहि चितव नरनाहू । पुलक गात उर अधिक उछाहू ॥ म्रुनिहि प्रसंसि नाइ पद सीसू । चलेउ लवाइ नगर अवनीसू ॥

Chapter : 43 Number : 228

सुंदर सदनु सुखद सब काला । तहाँ बासु लै दीन्ह भुआला ॥ करि पूजा सब बिधि सेवकाई । गयउ राउ गृह बिदा कराई ॥

Chapter : 43 Number : 228

Doha / दोहा

दो. रिषय संग रघुबंस मनि करि भोजनु बिश्रामु । बैठे प्रभु भ्राता सहित दिवसु रहा भरि जामु ॥ २१७ ॥

Chapter : 43 Number : 229

Chaupai / चोपाई

लखन हृदयँ लालसा बिसेषी । जाइ जनकपुर आइअ देखी ॥ प्रभु भय बहुरि मुनिहि सकुचाहीं । प्रगट न कहहिं मनहिं मुसुकाहीं ॥

Chapter : 43 Number : 229

राम अनुज मन की गति जानी । भगत बछलता हिंयँ हुलसानी ॥ परम बिनीत सकुचि मुसुकाई । बोले गुर अनुसासन पाई ॥

Chapter : 43 Number : 229

नाथ लखनु पुरु देखन चहहीं । प्रभु सकोच डर प्रगट न कहहीं ॥ जौं राउर आयसु मैं पावौं । नगर देखाइ तुरत लै आवौ ॥

Chapter : 43 Number : 229

सुनि मुनीसु कह बचन सप्रीती । कस न राम तुम्ह राखहु नीती ॥ धरम सेतु पालक तुम्ह ताता । प्रेम बिबस सेवक सुखदाता ॥

Chapter : 43 Number : 229

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