ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Doha / दोहा
दो. उठे लखन निसि बिगत सुनि अरुनसिखा धुनि कान ॥ गुर तें पहिलेहिं जगतपति जागे रामु सुजान ॥ २२६ ॥
Chaupai / चोपाई
सकल सौच करि जाइ नहाए । नित्य निबाहि मुनिहि सिर नाए ॥ समय जानि गुर आयसु पाई । लेन प्रसून चले दोउ भाई ॥
भूप बागु बर देखेउ जाई । जहँ बसंत रितु रही लोभाई ॥ लागे बिटप मनोहर नाना । बरन बरन बर बेलि बिताना ॥
नव पल्लव फल सुमान सुहाए । निज संपति सुर रूख लजाए ॥ चातक कोकिल कीर चकोरा । कूजत बिहग नटत कल मोरा ॥
मध्य बाग सरु सोह सुहावा । मनि सोपान बिचित्र बनावा ॥ बिमल सलिलु सरसिज बहुरंगा । जलखग कूजत गुंजत भृंगा ॥
Doha / दोहा
दो. बागु तड़ागु बिलोकि प्रभु हरषे बंधु समेत । परम रम्य आरामु यहु जो रामहि सुख देत ॥ २२७ ॥
Chaupai / चोपाई
चहुँ दिसि चितइ पूँछि मालिगन । लगे लेन दल फूल मुदित मन ॥ तेहि अवसर सीता तहँ आई । गिरिजा पूजन जननि पठाई ॥
संग सखीं सब सुभग सयानी । गावहिं गीत मनोहर बानी ॥ सर समीप गिरिजा गृह सोहा । बरनि न जाइ देखि मनु मोहा ॥
मज्जनु करि सर सखिन्ह समेता । गई मुदित मन गौरि निकेता ॥ पूजा कीन्हि अधिक अनुरागा । निज अनुरूप सुभग बरु मागा ॥
एक सखी सिय संगु बिहाई । गई रही देखन फुलवाई ॥ तेहि दोउ बंधु बिलोके जाई । प्रेम बिबस सीता पहिं आई ॥
Doha / दोहा
दो. तासु दसा देखि सखिन्ह पुलक गात जलु नैन । कहु कारनु निज हरष कर पूछहि सब मृदु बैन ॥ २२८ ॥
Chaupai / चोपाई
देखन बागु कुअँर दुइ आए । बय किसोर सब भाँति सुहाए ॥ स्याम गौर किमि कहौं बखानी । गिरा अनयन नयन बिनु बानी ॥
सुनि हरषीँ सब सखीं सयानी । सिय हियँ अति उतकंठा जानी ॥ एक कहइ नृपसुत तेइ आली । सुने जे मुनि सँग आए काली ॥
जिन्ह निज रूप मोहनी डारी । कीन्ह स्वबस नगर नर नारी ॥ बरनत छबि जहँ तहँ सब लोगू । अवसि देखिअहिं देखन जोगू ॥
तासु वचन अति सियहि सुहाने । दरस लागि लोचन अकुलाने ॥ चली अग्र करि प्रिय सखि सोई । प्रीति पुरातन लखइ न कोई ॥
Doha / दोहा
दो. सुमिरि सीय नारद बचन उपजी प्रीति पुनीत ॥ चकित बिलोकति सकल दिसि जनु सिसु मृगी सभीत ॥ २२९ ॥
Chaupai / चोपाई
कंकन किंकिनि नूपुर धुनि सुनि । कहत लखन सन रामु हृदयँ गुनि ॥ मानहुँ मदन दुंदुभी दीन्ही ॥ मनसा बिस्व बिजय कहँ कीन्ही ॥
अस कहि फिरि चितए तेहि ओरा । सिय मुख ससि भए नयन चकोरा ॥ भए बिलोचन चारु अचंचल । मनहुँ सकुचि निमि तजे दिगंचल ॥
देखि सीय सोभा सुखु पावा । हृदयँ सराहत बचनु न आवा ॥ जनु बिरंचि सब निज निपुनाई । बिरचि बिस्व कहँ प्रगटि देखाई ॥
सुंदरता कहुँ सुंदर करई । छबिगृहँ दीपसिखा जनु बरई ॥ सब उपमा कबि रहे जुठारी । केहिं पटतरौं बिदेहकुमारी ॥
Doha / दोहा
दो. सिय सोभा हियँ बरनि प्रभु आपनि दसा बिचारि । बोले सुचि मन अनुज सन बचन समय अनुहारि ॥ २३० ॥
Chaupai / चोपाई
तात जनकतनया यह सोई । धनुषजग्य जेहि कारन होई ॥ पूजन गौरि सखीं लै आई । करत प्रकासु फिरइ फुलवाई ॥
जासु बिलोकि अलोकिक सोभा । सहज पुनीत मोर मनु छोभा ॥ सो सबु कारन जान बिधाता । फरकहिं सुभद अंग सुनु भ्राता ॥
रघुबंसिंह कर सहज सुभाऊ । मनु कुपंथ पगु धरइ न काऊ ॥ मोहि अतिसय प्रतीति मन केरी । जेहिं सपनेहुँ परनारि न हेरी ॥
जिन्ह कै लहहिं न रिपु रन पीठी । नहिं पावहिं परतिय मनु डीठी ॥ मंगन लहहि न जिन्ह कै नाहीं । ते नरबर थोरे जग माहीं ॥
Doha / दोहा
दो. करत बतकहि अनुज सन मन सिय रूप लोभान । मुख सरोज मकरंद छबि करइ मधुप इव पान ॥ २३१ ॥
Chaupai / चोपाई
चितवहि चकित चहूँ दिसि सीता । कहँ गए नृपकिसोर मनु चिंता ॥ जहँ बिलोक मृग सावक नैनी । जनु तहँ बरिस कमल सित श्रेनी ॥
लता ओट तब सखिन्ह लखाए । स्यामल गौर किसोर सुहाए ॥ देखि रूप लोचन ललचाने । हरषे जनु निज निधि पहिचाने ॥
थके नयन रघुपति छबि देखें । पलकन्हिहूँ परिहरीं निमेषें ॥ अधिक सनेहँ देह भै भोरी । सरद ससिहि जनु चितव चकोरी ॥
लोचन मग रामहि उर आनी । दीन्हे पलक कपाट सयानी ॥ जब सिय सखिन्ह प्रेमबस जानी । कहि न सकहिं कछु मन सकुचानी ॥
Doha / दोहा
दो. लताभवन तें प्रगट भे तेहि अवसर दोउ भाइ । निकसे जनु जुग बिमल बिधु जलद पटल बिलगाइ ॥ २३२ ॥
Chaupai / चोपाई
सोभा सीवँ सुभग दोउ बीरा । नील पीत जलजाभ सरीरा ॥ मोरपंख सिर सोहत नीके । गुच्छ बीच बिच कुसुम कली के ॥
भाल तिलक श्रमबिंदु सुहाए । श्रवन सुभग भूषन छबि छाए ॥ बिकट भृकुटि कच घूघरवारे । नव सरोज लोचन रतनारे ॥
चारु चिबुक नासिका कपोला । हास बिलास लेत मनु मोला ॥ मुखछबि कहि न जाइ मोहि पाहीं । जो बिलोकि बहु काम लजाहीं ॥
उर मनि माल कंबु कल गीवा । काम कलभ कर भुज बलसींवा ॥ सुमन समेत बाम कर दोना । सावँर कुअँर सखी सुठि लोना ॥
Doha / दोहा
दो. केहरि कटि पट पीत धर सुषमा सील निधान । देखि भानुकुलभूषनहि बिसरा सखिन्ह अपान ॥ २३३ ॥
Chaupai / चोपाई
धरि धीरजु एक आलि सयानी । सीता सन बोली गहि पानी ॥ बहुरि गौरि कर ध्यान करेहू । भूपकिसोर देखि किन लेहू ॥
सकुचि सीयँ तब नयन उघारे । सनमुख दोउ रघुसिंघ निहारे ॥ नख सिख देखि राम कै सोभा । सुमिरि पिता पनु मनु अति छोभा ॥
परबस सखिन्ह लखी जब सीता । भयउ गहरु सब कहहि सभीता ॥ पुनि आउब एहि बेरिआँ काली । अस कहि मन बिहसी एक आली ॥
गूढ़ गिरा सुनि सिय सकुचानी । भयउ बिलंबु मातु भय मानी ॥ धरि बड़ि धीर रामु उर आने । फिरि अपनपउ पितुबस जाने ॥
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