ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Doha / दोहा
दो. देखन मिस मृग बिहग तरु फिरइ बहोरि बहोरि । निरखि निरखि रघुबीर छबि बाढ़इ प्रीति न थोरि ॥ २३४ ॥
Chaupai / चोपाई
जानि कठिन सिवचाप बिसूरति । चली राखि उर स्यामल मूरति ॥ प्रभु जब जात जानकी जानी । सुख सनेह सोभा गुन खानी ॥
परम प्रेममय मृदु मसि कीन्ही । चारु चित भीतीं लिख लीन्ही ॥ गई भवानी भवन बहोरी । बंदि चरन बोली कर जोरी ॥
जय जय गिरिबरराज किसोरी । जय महेस मुख चंद चकोरी ॥ जय गज बदन षड़ानन माता । जगत जननि दामिनि दुति गाता ॥
नहिं तव आदि मध्य अवसाना । अमित प्रभाउ बेदु नहिं जाना ॥ भव भव बिभव पराभव कारिनि । बिस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिनि ॥
Doha / दोहा
दो. पतिदेवता सुतीय महुँ मातु प्रथम तव रेख । महिमा अमित न सकहिं कहि सहस सारदा सेष ॥ २३५ ॥
Chaupai / चोपाई
सेवत तोहि सुलभ फल चारी । बरदायनी पुरारि पिआरी ॥ देबि पूजि पद कमल तुम्हारे । सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे ॥
मोर मनोरथु जानहु नीकें । बसहु सदा उर पुर सबही कें ॥ कीन्हेउँ प्रगट न कारन तेहीं । अस कहि चरन गहे बैदेहीं ॥
बिनय प्रेम बस भई भवानी । खसी माल मूरति मुसुकानी ॥ सादर सियँ प्रसादु सिर धरेऊ । बोली गौरि हरषु हियँ भरेऊ ॥
सुनु सिय सत्य असीस हमारी । पूजिहि मन कामना तुम्हारी ॥ नारद बचन सदा सुचि साचा । सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा ॥
Chanda / छन्द
छं. मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर साँवरो । करुना निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो ॥ एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय सहित हियँ हरषीं अली । तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि मुदित मन मंदिर चली ॥
Sortha/ सोरठा
सो. जानि गौरि अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि । मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे ॥ २३६ ॥
Chaupai / चोपाई
हृदयँ सराहत सीय लोनाई । गुर समीप गवने दोउ भाई ॥ राम कहा सबु कौसिक पाहीं । सरल सुभाउ छुअत छल नाहीं ॥
सुमन पाइ मुनि पूजा कीन्ही । पुनि असीस दुहु भाइन्ह दीन्ही ॥ सुफल मनोरथ होहुँ तुम्हारे । रामु लखनु सुनि भए सुखारे ॥
करि भोजनु मुनिबर बिग्यानी । लगे कहन कछु कथा पुरानी ॥ बिगत दिवसु गुरु आयसु पाई । संध्या करन चले दोउ भाई ॥
प्राची दिसि ससि उयउ सुहावा । सिय मुख सरिस देखि सुखु पावा ॥ बहुरि बिचारु कीन्ह मन माहीं । सीय बदन सम हिमकर नाहीं ॥
Doha / दोहा
दो. जनमु सिंधु पुनि बंधु बिषु दिन मलीन सकलंक । सिय मुख समता पाव किमि चंदु बापुरो रंक ॥ २३७ ॥
Chaupai / चोपाई
घटइ बढ़इ बिरहनि दुखदाई । ग्रसइ राहु निज संधिहिं पाई ॥ कोक सिकप्रद पंकज द्रोही । अवगुन बहुत चंद्रमा तोही ॥
बैदेही मुख पटतर दीन्हे । होइ दोष बड़ अनुचित कीन्हे ॥ सिय मुख छबि बिधु ब्याज बखानी । गुरु पहिं चले निसा बड़ि जानी ॥
करि मुनि चरन सरोज प्रनामा । आयसु पाइ कीन्ह बिश्रामा ॥ बिगत निसा रघुनायक जागे । बंधु बिलोकि कहन अस लागे ॥
उदउ अरुन अवलोकहु ताता । पंकज कोक लोक सुखदाता ॥ बोले लखनु जोरि जुग पानी । प्रभु प्रभाउ सूचक मृदु बानी ॥
Doha / दोहा
दो. अरुनोदयँ सकुचे कुमुद उडगन जोति मलीन । जिमि तुम्हार आगमन सुनि भए नृपति बलहीन ॥ २३८ ॥
Chaupai / चोपाई
नृप सब नखत करहिं उजिआरी । टारि न सकहिं चाप तम भारी ॥ कमल कोक मधुकर खग नाना । हरषे सकल निसा अवसाना ॥
ऐसेहिं प्रभु सब भगत तुम्हारे । होइहहिं टूटें धनुष सुखारे ॥ उयउ भानु बिनु श्रम तम नासा । दुरे नखत जग तेजु प्रकासा ॥
रबि निज उदय ब्याज रघुराया । प्रभु प्रतापु सब नृपन्ह दिखाया ॥ तव भुज बल महिमा उदघाटी । प्रगटी धनु बिघटन परिपाटी ॥
बंधु बचन सुनि प्रभु मुसुकाने । होइ सुचि सहज पुनीत नहाने ॥ नित्यक्रिया करि गुरु पहिं आए । चरन सरोज सुभग सिर नाए ॥
सतानंदु तब जनक बोलाए । कौसिक मुनि पहिं तुरत पठाए ॥ जनक बिनय तिन्ह आइ सुनाई । हरषे बोलि लिए दोउ भाई ॥
Doha / दोहा
दो. सतानंद पद बंदि प्रभु बैठे गुर पहिं जाइ । चलहु तात मुनि कहेउ तब पठवा जनक बोलाइ ॥ २३९ ॥
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