ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Doha / दोहा
दो. जानि सुअवसरु सीय तब पठई जनक बोलाई । चतुर सखीं सुंदर सकल सादर चलीं लवाईं ॥ २४६ ॥
Chaupai / चोपाई
सिय सोभा नहिं जाइ बखानी । जगदंबिका रूप गुन खानी ॥ उपमा सकल मोहि लघु लागीं । प्राकृत नारि अंग अनुरागीं ॥
सिय बरनिअ तेइ उपमा देई । कुकबि कहाइ अजसु को लेई ॥ जौ पटतरिअ तीय सम सीया । जग असि जुबति कहाँ कमनीया ॥
गिरा मुखर तन अरध भवानी । रति अति दुखित अतनु पति जानी ॥ बिष बारुनी बंधु प्रिय जेही । कहिअ रमासम किमि बैदेही ॥
जौ छबि सुधा पयोनिधि होई । परम रूपमय कच्छप सोई ॥ सोभा रजु मंदरु सिंगारू । मथै पानि पंकज निज मारू ॥
Doha / दोहा
दो. एहि बिधि उपजै लच्छि जब सुंदरता सुख मूल । तदपि सकोच समेत कबि कहहिं सीय समतूल ॥ २४७ ॥
Chaupai / चोपाई
चलिं संग लै सखीं सयानी । गावत गीत मनोहर बानी ॥ सोह नवल तनु सुंदर सारी । जगत जननि अतुलित छबि भारी ॥
भूषन सकल सुदेस सुहाए । अंग अंग रचि सखिन्ह बनाए ॥ रंगभूमि जब सिय पगु धारी । देखि रूप मोहे नर नारी ॥
हरषि सुरन्ह दुंदुभीं बजाई । बरषि प्रसून अपछरा गाई ॥ पानि सरोज सोह जयमाला । अवचट चितए सकल भुआला ॥
सीय चकित चित रामहि चाहा । भए मोहबस सब नरनाहा ॥ मुनि समीप देखे दोउ भाई । लगे ललकि लोचन निधि पाई ॥
Doha / दोहा
दो. गुरजन लाज समाजु बड़ देखि सीय सकुचानि ॥ लागि बिलोकन सखिन्ह तन रघुबीरहि उर आनि ॥ २४८ ॥
Chaupai / चोपाई
राम रूपु अरु सिय छबि देखें । नर नारिन्ह परिहरीं निमेषें ॥ सोचहिं सकल कहत सकुचाहीं । बिधि सन बिनय करहिं मन माहीं ॥
हरु बिधि बेगि जनक जड़ताई । मति हमारि असि देहि सुहाई ॥ बिनु बिचार पनु तजि नरनाहु । सीय राम कर करै बिबाहू ॥
जगु भल कहहि भाव सब काहू । हठ कीन्हे अंतहुँ उर दाहू ॥ एहिं लालसाँ मगन सब लोगू । बरु साँवरो जानकी जोगू ॥
Sign In