ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Chaupai / चोपाई
तब बंदीजन जनक बौलाए । बिरिदावली कहत चलि आए ॥ कह नृप जाइ कहहु पन मोरा । चले भाट हियँ हरषु न थोरा ॥
Doha / दोहा
दो. बोले बंदी बचन बर सुनहु सकल महिपाल । पन बिदेह कर कहहिं हम भुजा उठाइ बिसाल ॥ २४९ ॥
Chaupai / चोपाई
नृप भुजबल बिधु सिवधनु राहू । गरुअ कठोर बिदित सब काहू ॥ रावनु बानु महाभट भारे । देखि सरासन गवँहिं सिधारे ॥
सोइ पुरारि कोदंडु कठोरा । राज समाज आजु जोइ तोरा ॥ त्रिभुवन जय समेत बैदेही ॥ बिनहिं बिचार बरइ हठि तेही ॥
सुनि पन सकल भूप अभिलाषे । भटमानी अतिसय मन माखे ॥ परिकर बाँधि उठे अकुलाई । चले इष्टदेवन्ह सिर नाई ॥
तमकि ताकि तकि सिवधनु धरहीं । उठइ न कोटि भाँति बलु करहीं ॥ जिन्ह के कछु बिचारु मन माहीं । चाप समीप महीप न जाहीं ॥
Doha / दोहा
दो. तमकि धरहिं धनु मूढ़ नृप उठइ न चलहिं लजाइ । मनहुँ पाइ भट बाहुबलु अधिकु अधिकु गरुआइ ॥ २५० ॥
Chaupai / चोपाई
भूप सहस दस एकहि बारा । लगे उठावन टरइ न टारा ॥ डगइ न संभु सरासन कैसें । कामी बचन सती मनु जैसें ॥
सब नृप भए जोगु उपहासी । जैसें बिनु बिराग संन्यासी ॥ कीरति बिजय बीरता भारी । चले चाप कर बरबस हारी ॥
श्रीहत भए हारि हियँ राजा । बैठे निज निज जाइ समाजा ॥ नृपन्ह बिलोकि जनकु अकुलाने । बोले बचन रोष जनु साने ॥
दीप दीप के भूपति नाना । आए सुनि हम जो पनु ठाना ॥ देव दनुज धरि मनुज सरीरा । बिपुल बीर आए रनधीरा ॥
Doha / दोहा
दो. कुअँरि मनोहर बिजय बड़ि कीरति अति कमनीय । पावनिहार बिरंचि जनु रचेउ न धनु दमनीय ॥ २५१ ॥
Chaupai / चोपाई
कहहु काहि यहु लाभु न भावा । काहुँ न संकर चाप चढ़ावा ॥ रहउ चढ़ाउब तोरब भाई । तिलु भरि भूमि न सके छड़ाई ॥
अब जनि कोउ माखै भट मानी । बीर बिहीन मही मैं जानी ॥ तजहु आस निज निज गृह जाहू । लिखा न बिधि बैदेहि बिबाहू ॥
सुकृत जाइ जौं पनु परिहरऊँ । कुअँरि कुआरि रहउ का करऊँ ॥ जो जनतेउँ बिनु भट भुबि भाई । तौ पनु करि होतेउँ न हँसाई ॥
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