Ram Charita Manas

Bala-Kanda

Announcement of Janak's pledge by the servants, Various Kings failing to lift the Pinaka bow , disappointing state of King Janak.

ॐ श्री परमात्मने नमः


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संस्कृत्म
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ॐ श्री गणेशाय नमः

Chaupai / चोपाई

तब बंदीजन जनक बौलाए । बिरिदावली कहत चलि आए ॥ कह नृप जाइ कहहु पन मोरा । चले भाट हियँ हरषु न थोरा ॥

Chapter : 49 Number : 261

Doha / दोहा

दो. बोले बंदी बचन बर सुनहु सकल महिपाल । पन बिदेह कर कहहिं हम भुजा उठाइ बिसाल ॥ २४९ ॥

Chapter : 49 Number : 262

Chaupai / चोपाई

नृप भुजबल बिधु सिवधनु राहू । गरुअ कठोर बिदित सब काहू ॥ रावनु बानु महाभट भारे । देखि सरासन गवँहिं सिधारे ॥

Chapter : 49 Number : 262

सोइ पुरारि कोदंडु कठोरा । राज समाज आजु जोइ तोरा ॥ त्रिभुवन जय समेत बैदेही ॥ बिनहिं बिचार बरइ हठि तेही ॥

Chapter : 49 Number : 262

सुनि पन सकल भूप अभिलाषे । भटमानी अतिसय मन माखे ॥ परिकर बाँधि उठे अकुलाई । चले इष्टदेवन्ह सिर नाई ॥

Chapter : 49 Number : 262

तमकि ताकि तकि सिवधनु धरहीं । उठइ न कोटि भाँति बलु करहीं ॥ जिन्ह के कछु बिचारु मन माहीं । चाप समीप महीप न जाहीं ॥

Chapter : 49 Number : 262

Doha / दोहा

दो. तमकि धरहिं धनु मूढ़ नृप उठइ न चलहिं लजाइ । मनहुँ पाइ भट बाहुबलु अधिकु अधिकु गरुआइ ॥ २५० ॥

Chapter : 49 Number : 263

Chaupai / चोपाई

भूप सहस दस एकहि बारा । लगे उठावन टरइ न टारा ॥ डगइ न संभु सरासन कैसें । कामी बचन सती मनु जैसें ॥

Chapter : 49 Number : 263

सब नृप भए जोगु उपहासी । जैसें बिनु बिराग संन्यासी ॥ कीरति बिजय बीरता भारी । चले चाप कर बरबस हारी ॥

Chapter : 49 Number : 263

श्रीहत भए हारि हियँ राजा । बैठे निज निज जाइ समाजा ॥ नृपन्ह बिलोकि जनकु अकुलाने । बोले बचन रोष जनु साने ॥

Chapter : 49 Number : 263

दीप दीप के भूपति नाना । आए सुनि हम जो पनु ठाना ॥ देव दनुज धरि मनुज सरीरा । बिपुल बीर आए रनधीरा ॥

Chapter : 49 Number : 263

Doha / दोहा

दो. कुअँरि मनोहर बिजय बड़ि कीरति अति कमनीय । पावनिहार बिरंचि जनु रचेउ न धनु दमनीय ॥ २५१ ॥

Chapter : 49 Number : 264

Chaupai / चोपाई

कहहु काहि यहु लाभु न भावा । काहुँ न संकर चाप चढ़ावा ॥ रहउ चढ़ाउब तोरब भाई । तिलु भरि भूमि न सके छड़ाई ॥

Chapter : 49 Number : 264

अब जनि कोउ माखै भट मानी । बीर बिहीन मही मैं जानी ॥ तजहु आस निज निज गृह जाहू । लिखा न बिधि बैदेहि बिबाहू ॥

Chapter : 49 Number : 264

सुकृत जाइ जौं पनु परिहरऊँ । कुअँरि कुआरि रहउ का करऊँ ॥ जो जनतेउँ बिनु भट भुबि भाई । तौ पनु करि होतेउँ न हँसाई ॥

Chapter : 49 Number : 264

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