ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Chaupai / चोपाई
बंदउँ संत असज्जन चरना । दुखप्रद उभय बीच कछु बरना ॥ बिछुरत एक प्रान हरि लेहीं । मिलत एक दुख दारुन देहीं ॥
उपजहिं एक संग जग माहीं । जलज जोंक जिमि गुन बिलगाहीं ॥ सुधा सुरा सम साधू असाधू । जनक एक जग जलधि अगाधू ॥
भल अनभल निज निज करतूती । लहत सुजस अपलोक बिभूती ॥ सुधा सुधाकर सुरसरि साधू । गरल अनल कलिमल सरि ब्याधू ॥
गुन अवगुन जानत सब कोई । जो जेहि भाव नीक तेहि सोई ॥
Doha / दोहा
दो. भलो भलाइहि पै लहइ लहइ निचाइहि नीचु । सुधा सराहिअ अमरताँ गरल सराहिअ मीचु ॥ ५ ॥
Chaupai / चोपाई
खल अघ अगुन साधू गुन गाहा । उभय अपार उदधि अवगाहा ॥ तेहि तें कछु गुन दोष बखाने । संग्रह त्याग न बिनु पहिचाने ॥
भलेउ पोच सब बिधि उपजाए । गनि गुन दोष बेद बिलगाए ॥ कहहिं बेद इतिहास पुराना । बिधि प्रपंचु गुन अवगुन साना ॥
दुख सुख पाप पुन्य दिन राती । साधु असाधु सुजाति कुजाती ॥ दानव देव ऊँच अरु नीचू । अमिअ सुजीवनु माहुरु मीचू ॥
माया ब्रह्म जीव जगदीसा । लच्छि अलच्छि रंक अवनीसा ॥ कासी मग सुरसरि क्रमनासा । मरु मारव महिदेव गवासा ॥
सरग नरक अनुराग बिरागा । निगमागम गुन दोष बिभागा ॥
Doha / दोहा
दो. जड़ चेतन गुन दोषमय बिस्व कीन्ह करतार । संत हंस गुन गहहिं पय परिहरि बारि बिकार ॥ ६ ॥
Chaupai / चोपाई
अस बिबेक जब देइ बिधाता । तब तजि दोष गुनहिं मनु राता ॥ काल सुभाउ करम बरिआई । भलेउ प्रकृति बस चुकइ भलाई ॥
सो सुधारि हरिजन जिमि लेहीं । दलि दुख दोष बिमल जसु देहीं ॥ खलउ करहिं भल पाइ सुसंगू । मिटइ न मलिन सुभाउ अभंगू ॥
लखि सुबेष जग बंचक जेऊ । बेष प्रताप पूजिअहिं तेऊ ॥ उधरहिं अंत न होइ निबाहू । कालनेमि जिमि रावन राहू ॥
किएहुँ कुबेष साधु सनमानू । जिमि जग जामवंत हनुमानू ॥ हानि कुसंग सुसंगति लाहू । लोकहुँ बेद बिदित सब काहू ॥
गगन चढ़इ रज पवन प्रसंगा । कीचहिं मिलइ नीच जल संगा ॥ साधु असाधु सदन सुक सारीं । सुमिरहिं राम देहिं गनि गारी ॥
धूम कुसंगति कारिख होई । लिखिअ पुरान मंजु मसि सोई ॥ सोइ जल अनल अनिल संघाता । होइ जलद जग जीवन दाता ॥
Doha / दोहा
दो. ग्रह भेषज जल पवन पट पाइ कुजोग सुजोग । होहि कुबस्तु सुबस्तु जग लखहिं सुलच्छन लोग ॥ ७(क) ॥
सम प्रकास तम पाख दुहुँ नाम भेद बिधि कीन्ह । ससि सोषक पोषक समुझि जग जस अपजस दीन्ह ॥ ७(ख) ॥
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