ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Chaupai / चोपाई
जनक बचन सुनि सब नर नारी । देखि जानकिहि भए दुखारी ॥ माखे लखनु कुटिल भइँ भौंहें । रदपट फरकत नयन रिसौंहें ॥
Doha / दोहा
दो. कहि न सकत रघुबीर डर लगे बचन जनु बान । नाइ राम पद कमल सिरु बोले गिरा प्रमान ॥ २५२ ॥
Chaupai / चोपाई
रघुबंसिंह महुँ जहँ कोउ होई । तेहिं समाज अस कहइ न कोई ॥ कही जनक जसि अनुचित बानी । बिद्यमान रघुकुल मनि जानी ॥
सुनहु भानुकुल पंकज भानू । कहउँ सुभाउ न कछु अभिमानू ॥ जौ तुम्हारि अनुसासन पावौं । कंदुक इव ब्रह्मांड उठावौं ॥
काचे घट जिमि डारौं फोरी । सकउँ मेरु मूलक जिमि तोरी ॥ तव प्रताप महिमा भगवाना । को बापुरो पिनाक पुराना ॥
नाथ जानि अस आयसु होऊ । कौतुकु करौं बिलोकिअ सोऊ ॥ कमल नाल जिमि चाफ चढ़ावौं । जोजन सत प्रमान लै धावौं ॥
Doha / दोहा
दो. तोरौं छत्रक दंड जिमि तव प्रताप बल नाथ । जौं न करौं प्रभु पद सपथ कर न धरौं धनु भाथ ॥ २५३ ॥
Chaupai / चोपाई
लखन सकोप बचन जे बोले । डगमगानि महि दिग्गज डोले ॥ सकल लोक सब भूप डेराने । सिय हियँ हरषु जनकु सकुचाने ॥
गुर रघुपति सब मुनि मन माहीं । मुदित भए पुनि पुनि पुलकाहीं ॥ सयनहिं रघुपति लखनु नेवारे । प्रेम समेत निकट बैठारे ॥
बिस्वामित्र समय सुभ जानी । बोले अति सनेहमय बानी ॥ उठहु राम भंजहु भवचापा । मेटहु तात जनक परितापा ॥
सुनि गुरु बचन चरन सिरु नावा । हरषु बिषादु न कछु उर आवा ॥ ठाढ़े भए उठि सहज सुभाएँ । ठवनि जुबा मृगराजु लजाएँ ॥
Doha / दोहा
दो. उदित उदयगिरि मंच पर रघुबर बालपतंग । बिकसे संत सरोज सब हरषे लोचन भृंग ॥ २५४ ॥
Chaupai / चोपाई
नृपन्ह केरि आसा निसि नासी । बचन नखत अवली न प्रकासी ॥ मानी महिप कुमुद सकुचाने । कपटी भूप उलूक लुकाने ॥
भए बिसोक कोक मुनि देवा । बरिसहिं सुमन जनावहिं सेवा ॥ गुर पद बंदि सहित अनुरागा । राम मुनिन्ह सन आयसु मागा ॥
सहजहिं चले सकल जग स्वामी । मत्त मंजु बर कुंजर गामी ॥ चलत राम सब पुर नर नारी । पुलक पूरि तन भए सुखारी ॥
बंदि पितर सुर सुकृत सँभारे । जौं कछु पुन्य प्रभाउ हमारे ॥ तौ सिवधनु मृनाल की नाईं । तोरहुँ राम गनेस गोसाईं ॥
Doha / दोहा
दो. रामहि प्रेम समेत लखि सखिन्ह समीप बोलाइ । सीता मातु सनेह बस बचन कहइ बिलखाइ ॥ २५५ ॥
Chaupai / चोपाई
सखि सब कौतुक देखनिहारे । जेठ कहावत हितू हमारे ॥ कोउ न बुझाइ कहइ गुर पाहीं । ए बालक असि हठ भलि नाहीं ॥
रावन बान छुआ नहिं चापा । हारे सकल भूप करि दापा ॥ सो धनु राजकुअँर कर देहीं । बाल मराल कि मंदर लेहीं ॥
भूप सयानप सकल सिरानी । सखि बिधि गति कछु जाति न जानी ॥ बोली चतुर सखी मृदु बानी । तेजवंत लघु गनिअ न रानी ॥
कहँ कुंभज कहँ सिंधु अपारा । सोषेउ सुजसु सकल संसारा ॥ रबि मंडल देखत लघु लागा । उदयँ तासु तिभुवन तम भागा ॥
Doha / दोहा
दो. मंत्र परम लघु जासु बस बिधि हरि हर सुर सर्ब । महामत्त गजराज कहुँ बस कर अंकुस खर्ब ॥ २५६ ॥
Chaupai / चोपाई
काम कुसुम धनु सायक लीन्हे । सकल भुवन अपने बस कीन्हे ॥ देबि तजिअ संसउ अस जानी । भंजब धनुष रामु सुनु रानी ॥
सखी बचन सुनि भै परतीती । मिटा बिषादु बढ़ी अति प्रीती ॥ तब रामहि बिलोकि बैदेही । सभय हृदयँ बिनवति जेहि तेही ॥
मनहीं मन मनाव अकुलानी । होहु प्रसन्न महेस भवानी ॥ करहु सफल आपनि सेवकाई । करि हितु हरहु चाप गरुआई ॥
गननायक बरदायक देवा । आजु लगें कीन्हिउँ तुअ सेवा ॥ बार बार बिनती सुनि मोरी । करहु चाप गुरुता अति थोरी ॥
Doha / दोहा
दो. देखि देखि रघुबीर तन सुर मनाव धरि धीर ॥ भरे बिलोचन प्रेम जल पुलकावली सरीर ॥ २५७ ॥
Chaupai / चोपाई
नीकें निरखि नयन भरि सोभा । पितु पनु सुमिरि बहुरि मनु छोभा ॥ अहह तात दारुनि हठ ठानी । समुझत नहिं कछु लाभु न हानी ॥
सचिव सभय सिख देइ न कोई । बुध समाज बड़ अनुचित होई ॥ कहँ धनु कुलिसहु चाहि कठोरा । कहँ स्यामल मृदुगात किसोरा ॥
बिधि केहि भाँति धरौं उर धीरा । सिरस सुमन कन बेधिअ हीरा ॥ सकल सभा कै मति भै भोरी । अब मोहि संभुचाप गति तोरी ॥
निज जड़ता लोगन्ह पर डारी । होहि हरुअ रघुपतिहि निहारी ॥ अति परिताप सीय मन माही । लव निमेष जुग सब सय जाहीं ॥
Doha / दोहा
दो. प्रभुहि चितइ पुनि चितव महि राजत लोचन लोल । खेलत मनसिज मीन जुग जनु बिधु मंडल डोल ॥ २५८ ॥
Chaupai / चोपाई
गिरा अलिनि मुख पंकज रोकी । प्रगट न लाज निसा अवलोकी ॥ लोचन जलु रह लोचन कोना । जैसे परम कृपन कर सोना ॥
सकुची ब्याकुलता बड़ि जानी । धरि धीरजु प्रतीति उर आनी ॥ तन मन बचन मोर पनु साचा । रघुपति पद सरोज चितु राचा ॥
तौ भगवानु सकल उर बासी । करिहिं मोहि रघुबर कै दासी ॥ जेहि कें जेहि पर सत्य सनेहू । सो तेहि मिलइ न कछु संहेहू ॥
प्रभु तन चितइ प्रेम तन ठाना । कृपानिधान राम सबु जाना ॥ सियहि बिलोकि तकेउ धनु कैसे । चितव गरुरु लघु ब्यालहि जैसे ॥
Doha / दोहा
दो. लखन लखेउ रघुबंसमनि ताकेउ हर कोदंडु । पुलकि गात बोले बचन चरन चापि ब्रह्मांडु ॥ २५९ ॥
Chaupai / चोपाई
दिसकुंजरहु कमठ अहि कोला । धरहु धरनि धरि धीर न डोला ॥ रामु चहहिं संकर धनु तोरा । होहु सजग सुनि आयसु मोरा ॥
चाप सपीप रामु जब आए । नर नारिन्ह सुर सुकृत मनाए ॥ सब कर संसउ अरु अग्यानू । मंद महीपन्ह कर अभिमानू ॥
भृगुपति केरि गरब गरुआई । सुर मुनिबरन्ह केरि कदराई ॥ सिय कर सोचु जनक पछितावा । रानिन्ह कर दारुन दुख दावा ॥
संभुचाप बड बोहितु पाई । चढे जाइ सब संगु बनाई ॥ राम बाहुबल सिंधु अपारू । चहत पारु नहि कोउ कड़हारू ॥
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