ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Doha / दोहा
दो. राम बिलोके लोग सब चित्र लिखे से देखि । चितई सीय कृपायतन जानी बिकल बिसेषि ॥ २६० ॥
Chaupai / चोपाई
देखी बिपुल बिकल बैदेही । निमिष बिहात कलप सम तेही ॥ तृषित बारि बिनु जो तनु त्यागा । मुएँ करइ का सुधा तड़ागा ॥
का बरषा सब कृषी सुखानें । समय चुकें पुनि का पछितानें ॥ अस जियँ जानि जानकी देखी । प्रभु पुलके लखि प्रीति बिसेषी ॥
गुरहि प्रनामु मनहि मन कीन्हा । अति लाघवँ उठाइ धनु लीन्हा ॥ दमकेउ दामिनि जिमि जब लयऊ । पुनि नभ धनु मंडल सम भयऊ ॥
लेत चढ़ावत खैंचत गाढ़ें । काहुँ न लखा देख सबु ठाढ़ें ॥ तेहि छन राम मध्य धनु तोरा । भरे भुवन धुनि घोर कठोरा ॥
Chanda / छन्द
छं. भरे भुवन घोर कठोर रव रबि बाजि तजि मारगु चले । चिक्करहिं दिग्गज डोल महि अहि कोल कूरुम कलमले ॥ सुर असुर मुनि कर कान दीन्हें सकल बिकल बिचारहीं । कोदंड खंडेउ राम तुलसी जयति बचन उचारही ॥
Sortha/ सोरठा
सो. संकर चापु जहाजु सागरु रघुबर बाहुबलु । बूड़ सो सकल समाजु चढ़ा जो प्रथमहिं मोह बस ॥ २६१ ॥
Chaupai / चोपाई
प्रभु दोउ चापखंड महि डारे । देखि लोग सब भए सुखारे ॥ कोसिकरुप पयोनिधि पावन । प्रेम बारि अवगाहु सुहावन ॥
रामरूप राकेसु निहारी । बढ़त बीचि पुलकावलि भारी ॥ बाजे नभ गहगहे निसाना । देवबधू नाचहिं करि गाना ॥
ब्रह्मादिक सुर सिद्ध मुनीसा । प्रभुहि प्रसंसहि देहिं असीसा ॥ बरिसहिं सुमन रंग बहु माला । गावहिं किंनर गीत रसाला ॥
रही भुवन भरि जय जय बानी । धनुषभंग धुनि जात न जानी ॥ मुदित कहहिं जहँ तहँ नर नारी । भंजेउ राम संभुधनु भारी ॥
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