ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Chaupai / चोपाई
नाथ संभुधनु भंजनिहारा । होइहि केउ एक दास तुम्हारा ॥ आयसु काह कहिअ किन मोही । सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही ॥
सेवकु सो जो करै सेवकाई । अरि करनी करि करिअ लराई ॥ सुनहु राम जेहिं सिवधनु तोरा । सहसबाहु सम सो रिपु मोरा ॥
सो बिलगाउ बिहाइ समाजा । न त मारे जैहहिं सब राजा ॥ सुनि मुनि बचन लखन मुसुकाने । बोले परसुधरहि अपमाने ॥
बहु धनुहीं तोरीं लरिकाईं । कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं ॥ एहि धनु पर ममता केहि हेतू । सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू ॥
Doha / दोहा
दो. रे नृप बालक कालबस बोलत तोहि न सँमार ॥ धनुही सम तिपुरारि धनु बिदित सकल संसार ॥ २७१ ॥
Chaupai / चोपाई
लखन कहा हँसि हमरें जाना । सुनहु देव सब धनुष समाना ॥ का छति लाभु जून धनु तौरें । देखा राम नयन के भोरें ॥
छुअत टूट रघुपतिहु न दोसू । मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू । बोले चितइ परसु की ओरा । रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा ॥
बालकु बोलि बधउँ नहिं तोही । केवल मुनि जड़ जानहि मोही ॥ बाल ब्रह्मचारी अति कोही । बिस्व बिदित छत्रियकुल द्रोही ॥
भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही । बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही ॥ सहसबाहु भुज छेदनिहारा । परसु बिलोकु महीपकुमारा ॥
Doha / दोहा
दो. मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर । गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर ॥ २७२ ॥
Chaupai / चोपाई
बिहसि लखनु बोले मृदु बानी । अहो मुनीसु महा भटमानी ॥ पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारू । चहत उड़ावन फूँकि पहारू ॥
इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं । जे तरजनी देखि मरि जाहीं ॥ देखि कुठारु सरासन बाना । मैं कछु कहा सहित अभिमाना ॥
भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी । जो कछु कहहु सहउँ रिस रोकी ॥ सुर महिसुर हरिजन अरु गाई । हमरें कुल इन्ह पर न सुराई ॥
बधें पापु अपकीरति हारें । मारतहूँ पा परिअ तुम्हारें ॥ कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा । ब्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा ॥
Doha / दोहा
दो. जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर । सुनि सरोष भृगुबंसमनि बोले गिरा गभीर ॥ २७३ ॥
Chaupai / चोपाई
कौसिक सुनहु मंद यहु बालकु । कुटिल कालबस निज कुल घालकु ॥ भानु बंस राकेस कलंकू । निपट निरंकुस अबुध असंकू ॥
काल कवलु होइहि छन माहीं । कहउँ पुकारि खोरि मोहि नाहीं ॥ तुम्ह हटकउ जौं चहहु उबारा । कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा ॥
लखन कहेउ मुनि सुजस तुम्हारा । तुम्हहि अछत को बरनै पारा ॥ अपने मुँह तुम्ह आपनि करनी । बार अनेक भाँति बहु बरनी ॥
नहिं संतोषु त पुनि कछु कहहू । जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू ॥ बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा । गारी देत न पावहु सोभा ॥
Doha / दोहा
दो. सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु । बिद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु ॥ २७४ ॥
Chaupai / चोपाई
तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा । बार बार मोहि लागि बोलावा ॥ सुनत लखन के बचन कठोरा । परसु सुधारि धरेउ कर घोरा ॥
अब जनि देइ दोसु मोहि लोगू । कटुबादी बालकु बधजोगू ॥ बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा । अब यहु मरनिहार भा साँचा ॥
कौसिक कहा छमिअ अपराधू । बाल दोष गुन गनहिं न साधू ॥ खर कुठार मैं अकरुन कोही । आगें अपराधी गुरुद्रोही ॥
उतर देत छोड़उँ बिनु मारें । केवल कौसिक सील तुम्हारें ॥ न त एहि काटि कुठार कठोरें । गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोरें ॥
Doha / दोहा
दो. गाधिसूनु कह हृदयँ हँसि मुनिहि हरिअरइ सूझ । अयमय खाँड न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ ॥ २७५ ॥
Chaupai / चोपाई
कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा । को नहि जान बिदित संसारा ॥ माता पितहि उरिन भए नीकें । गुर रिनु रहा सोचु बड़ जीकें ॥
सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा । दिन चलि गए ब्याज बड़ बाढ़ा ॥ अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली । तुरत देउँ मैं थैली खोली ॥
सुनि कटु बचन कुठार सुधारा । हाय हाय सब सभा पुकारा ॥ भृगुबर परसु देखावहु मोही । बिप्र बिचारि बचउँ नृपद्रोही ॥
मिले न कबहुँ सुभट रन गाढ़े । द्विज देवता घरहि के बाढ़े ॥ अनुचित कहि सब लोग पुकारे । रघुपति सयनहिं लखनु नेवारे ॥
Doha / दोहा
दो. लखन उतर आहुति सरिस भृगुबर कोपु कृसानु । बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु ॥ २७६ ॥
Chaupai / चोपाई
नाथ करहु बालक पर छोहू । सूध दूधमुख करिअ न कोहू ॥ जौं पै प्रभु प्रभाउ कछु जाना । तौ कि बराबरि करत अयाना ॥
जौं लरिका कछु अचगरि करहीं । गुर पितु मातु मोद मन भरहीं ॥ करिअ कृपा सिसु सेवक जानी । तुम्ह सम सील धीर मुनि ग्यानी ॥
राम बचन सुनि कछुक जुड़ाने । कहि कछु लखनु बहुरि मुसकाने ॥ हँसत देखि नख सिख रिस ब्यापी । राम तोर भ्राता बड़ पापी ॥
गौर सरीर स्याम मन माहीं । कालकूटमुख पयमुख नाहीं ॥ सहज टेढ़ अनुहरइ न तोही । नीचु मीचु सम देख न मौहीं ॥
Doha / दोहा
दो. लखन कहेउ हँसि सुनहु मुनि क्रोधु पाप कर मूल । जेहि बस जन अनुचित करहिं चरहिं बिस्व प्रतिकूल ॥ २७७ ॥
Chaupai / चोपाई
मैं तुम्हार अनुचर मुनिराया । परिहरि कोपु करिअ अब दाया ॥ टूट चाप नहिं जुरहि रिसाने । बैठिअ होइहिं पाय पिराने ॥
जौ अति प्रिय तौ करिअ उपाई । जोरिअ कोउ बड़ गुनी बोलाई ॥ बोलत लखनहिं जनकु डेराहीं । मष्ट करहु अनुचित भल नाहीं ॥
थर थर कापहिं पुर नर नारी । छोट कुमार खोट बड़ भारी ॥ भृगुपति सुनि सुनि निरभय बानी । रिस तन जरइ होइ बल हानी ॥
बोले रामहि देइ निहोरा । बचउँ बिचारि बंधु लघु तोरा ॥ मनु मलीन तनु सुंदर कैसें । बिष रस भरा कनक घटु जैसैं ॥
Doha / दोहा
दो. सुनि लछिमन बिहसे बहुरि नयन तरेरे राम । गुर समीप गवने सकुचि परिहरि बानी बाम ॥ २७८ ॥
Chaupai / चोपाई
अति बिनीत मृदु सीतल बानी । बोले रामु जोरि जुग पानी ॥ सुनहु नाथ तुम्ह सहज सुजाना । बालक बचनु करिअ नहिं काना ॥
बररै बालक एकु सुभाऊ । इन्हहि न संत बिदूषहिं काऊ ॥ तेहिं नाहीं कछु काज बिगारा । अपराधी में नाथ तुम्हारा ॥
कृपा कोपु बधु बँधब गोसाईं । मो पर करिअ दास की नाई ॥ कहिअ बेगि जेहि बिधि रिस जाई । मुनिनायक सोइ करौं उपाई ॥
कह मुनि राम जाइ रिस कैसें । अजहुँ अनुज तव चितव अनैसें ॥ एहि के कंठ कुठारु न दीन्हा । तौ मैं काह कोपु करि कीन्हा ॥
Doha / दोहा
दो. गर्भ स्त्रवहिं अवनिप रवनि सुनि कुठार गति घोर । परसु अछत देखउँ जिअत बैरी भूपकिसोर ॥ २७९ ॥
Chaupai / चोपाई
बहइ न हाथु दहइ रिस छाती । भा कुठारु कुंठित नृपघाती ॥ भयउ बाम बिधि फिरेउ सुभाऊ । मोरे हृदयँ कृपा कसि काऊ ॥
आजु दया दुखु दुसह सहावा । सुनि सौमित्र बिहसि सिरु नावा ॥ बाउ कृपा मूरति अनुकूला । बोलत बचन झरत जनु फूला ॥
जौं पै कृपाँ जरिहिं मुनि गाता । क्रोध भएँ तनु राख बिधाता ॥ देखु जनक हठि बालक एहू । कीन्ह चहत जड़ जमपुर गेहू ॥
बेगि करहु किन आँखिन्ह ओटा । देखत छोट खोट नृप ढोटा ॥ बिहसे लखनु कहा मन माहीं । मूदें आँखि कतहुँ कोउ नाहीं ॥
Doha / दोहा
दो. परसुरामु तब राम प्रति बोले उर अति क्रोधु । संभु सरासनु तोरि सठ करसि हमार प्रबोधु ॥ २८० ॥
Chaupai / चोपाई
बंधु कहइ कटु संमत तोरें । तू छल बिनय करसि कर जोरें ॥ करु परितोषु मोर संग्रामा । नाहिं त छाड़ कहाउब रामा ॥
छलु तजि करहि समरु सिवद्रोही । बंधु सहित न त मारउँ तोही ॥ भृगुपति बकहिं कुठार उठाएँ । मन मुसकाहिं रामु सिर नाएँ ॥
गुनह लखन कर हम पर रोषू । कतहुँ सुधाइहु ते बड़ दोषू ॥ टेढ़ जानि सब बंदइ काहू । बक्र चंद्रमहि ग्रसइ न राहू ॥
राम कहेउ रिस तजिअ मुनीसा । कर कुठारु आगें यह सीसा ॥ जेंहिं रिस जाइ करिअ सोइ स्वामी । मोहि जानि आपन अनुगामी ॥
Doha / दोहा
दो. प्रभुहि सेवकहि समरु कस तजहु बिप्रबर रोसु । बेषु बिलोकें कहेसि कछु बालकहू नहिं दोसु ॥ २८१ ॥
Chaupai / चोपाई
देखि कुठार बान धनु धारी । भै लरिकहि रिस बीरु बिचारी ॥ नामु जान पै तुम्हहि न चीन्हा । बंस सुभायँ उतरु तेंहिं दीन्हा ॥
जौं तुम्ह औतेहु मुनि की नाईं । पद रज सिर सिसु धरत गोसाईं ॥ छमहु चूक अनजानत केरी । चहिअ बिप्र उर कृपा घनेरी ॥
हमहि तुम्हहि सरिबरि कसि नाथा ॥ कहहु न कहाँ चरन कहँ माथा ॥ राम मात्र लघु नाम हमारा । परसु सहित बड़ नाम तोहारा ॥
देव एकु गुनु धनुष हमारें । नव गुन परम पुनीत तुम्हारें ॥ सब प्रकार हम तुम्ह सन हारे । छमहु बिप्र अपराध हमारे ॥
Doha / दोहा
दो. बार बार मुनि बिप्रबर कहा राम सन राम । बोले भृगुपति सरुष हसि तहूँ बंधु सम बाम ॥ २८२ ॥
Chaupai / चोपाई
निपटहिं द्विज करि जानहि मोही । मैं जस बिप्र सुनावउँ तोही ॥ चाप स्त्रुवा सर आहुति जानू । कोप मोर अति घोर कृसानु ॥
समिधि सेन चतुरंग सुहाई । महा महीप भए पसु आई ॥ मै एहि परसु काटि बलि दीन्हे । समर जग्य जप कोटिन्ह कीन्हे ॥
मोर प्रभाउ बिदित नहिं तोरें । बोलसि निदरि बिप्र के भोरें ॥ भंजेउ चापु दापु बड़ बाढ़ा । अहमिति मनहुँ जीति जगु ठाढ़ा ॥
राम कहा मुनि कहहु बिचारी । रिस अति बड़ि लघु चूक हमारी ॥ छुअतहिं टूट पिनाक पुराना । मैं कहि हेतु करौं अभिमाना ॥
Doha / दोहा
दो. जौं हम निदरहिं बिप्र बदि सत्य सुनहु भृगुनाथ । तौ अस को जग सुभटु जेहि भय बस नावहिं माथ ॥ २८३ ॥
Chaupai / चोपाई
देव दनुज भूपति भट नाना । समबल अधिक होउ बलवाना ॥ जौं रन हमहि पचारै कोऊ । लरहिं सुखेन कालु किन होऊ ॥
छत्रिय तनु धरि समर सकाना । कुल कलंकु तेहिं पावँर आना ॥ कहउँ सुभाउ न कुलहि प्रसंसी । कालहु डरहिं न रन रघुबंसी ॥
बिप्रबंस कै असि प्रभुताई । अभय होइ जो तुम्हहि डेराई ॥ सुनु मृदु गूढ़ बचन रघुपति के । उघरे पटल परसुधर मति के ॥
राम रमापति कर धनु लेहू । खैंचहु मिटै मोर संदेहू ॥ देत चापु आपुहिं चलि गयऊ । परसुराम मन बिसमय भयऊ ॥
Doha / दोहा
दो. जाना राम प्रभाउ तब पुलक प्रफुल्लित गात । जोरि पानि बोले बचन ह्दयँ न प्रेमु अमात ॥ २८४ ॥
Chaupai / चोपाई
जय रघुबंस बनज बन भानू । गहन दनुज कुल दहन कृसानु ॥ जय सुर बिप्र धेनु हितकारी । जय मद मोह कोह भ्रम हारी ॥
बिनय सील करुना गुन सागर । जयति बचन रचना अति नागर ॥ सेवक सुखद सुभग सब अंगा । जय सरीर छबि कोटि अनंगा ॥
करौं काह मुख एक प्रसंसा । जय महेस मन मानस हंसा ॥ अनुचित बहुत कहेउँ अग्याता । छमहु छमामंदिर दोउ भ्राता ॥
कहि जय जय जय रघुकुलकेतू । भृगुपति गए बनहि तप हेतू ॥ अपभयँ कुटिल महीप डेराने । जहँ तहँ कायर गवँहिं पराने ॥
Doha / दोहा
दो. देवन्ह दीन्हीं दुंदुभीं प्रभु पर बरषहिं फूल । हरषे पुर नर नारि सब मिटी मोहमय सूल ॥ २८५ ॥
Chaupai / चोपाई
अति गहगहे बाजने बाजे । सबहिं मनोहर मंगल साजे ॥ जूथ जूथ मिलि सुमुख सुनयनीं । करहिं गान कल कोकिलबयनी ॥
सुखु बिदेह कर बरनि न जाई । जन्मदरिद्र मनहुँ निधि पाई ॥ गत त्रास भइ सीय सुखारी । जनु बिधु उदयँ चकोरकुमारी ॥
जनक कीन्ह कौसिकहि प्रनामा । प्रभु प्रसाद धनु भंजेउ रामा ॥ मोहि कृतकृत्य कीन्ह दुहुँ भाईं । अब जो उचित सो कहिअ गोसाई ॥
कह मुनि सुनु नरनाथ प्रबीना । रहा बिबाहु चाप आधीना ॥ टूटतहीं धनु भयउ बिबाहू । सुर नर नाग बिदित सब काहु ॥
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