ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Doha / दोहा
दो. तदपि जाइ तुम्ह करहु अब जथा बंस ब्यवहारु । बूझि बिप्र कुलबृद्ध गुर बेद बिदित आचारु ॥ २८६ ॥
Chaupai / चोपाई
दूत अवधपुर पठवहु जाई । आनहिं नृप दसरथहि बोलाई ॥ मुदित राउ कहि भलेहिं कृपाला । पठए दूत बोलि तेहि काला ॥
बहुरि महाजन सकल बोलाए । आइ सबन्हि सादर सिर नाए ॥ हाट बाट मंदिर सुरबासा । नगरु सँवारहु चारिहुँ पासा ॥
हरषि चले निज निज गृह आए । पुनि परिचारक बोलि पठाए ॥ रचहु बिचित्र बितान बनाई । सिर धरि बचन चले सचु पाई ॥
पठए बोलि गुनी तिन्ह नाना । जे बितान बिधि कुसल सुजाना ॥ बिधिहि बंदि तिन्ह कीन्ह अरंभा । बिरचे कनक कदलि के खंभा ॥
Doha / दोहा
दो. हरित मनिन्ह के पत्र फल पदुमराग के फूल । रचना देखि बिचित्र अति मनु बिरंचि कर भूल ॥ २८७ ॥
Chaupai / चोपाई
बेनि हरित मनिमय सब कीन्हे । सरल सपरब परहिं नहिं चीन्हे ॥ कनक कलित अहिबेल बनाई । लखि नहि परइ सपरन सुहाई ॥
तेहि के रचि पचि बंध बनाए । बिच बिच मुकता दाम सुहाए ॥ मानिक मरकत कुलिस पिरोजा । चीरि कोरि पचि रचे सरोजा ॥
किए भृंग बहुरंग बिहंगा । गुंजहिं कूजहिं पवन प्रसंगा ॥ सुर प्रतिमा खंभन गढ़ी काढ़ी । मंगल द्रब्य लिएँ सब ठाढ़ी ॥
चौंकें भाँति अनेक पुराईं । सिंधुर मनिमय सहज सुहाई ॥
Doha / दोहा
दो. सौरभ पल्लव सुभग सुठि किए नीलमनि कोरि ॥ हेम बौर मरकत घवरि लसत पाटमय डोरि ॥ २८८ ॥
Chaupai / चोपाई
रचे रुचिर बर बंदनिबारे । मनहुँ मनोभवँ फंद सँवारे ॥ मंगल कलस अनेक बनाए । ध्वज पताक पट चमर सुहाए ॥
दीप मनोहर मनिमय नाना । जाइ न बरनि बिचित्र बिताना ॥ जेहिं मंडप दुलहिनि बैदेही । सो बरनै असि मति कबि केही ॥
दूलहु रामु रूप गुन सागर । सो बितानु तिहुँ लोक उजागर ॥ जनक भवन कै सौभा जैसी । गृह गृह प्रति पुर देखिअ तैसी ॥
जेहिं तेरहुति तेहि समय निहारी । तेहि लघु लगहिं भुवन दस चारी ॥ जो संपदा नीच गृह सोहा । सो बिलोकि सुरनायक मोहा ॥
Doha / दोहा
दो. बसइ नगर जेहि लच्छ करि कपट नारि बर बेषु ॥ तेहि पुर कै सोभा कहत सकुचहिं सारद सेषु ॥ २८९ ॥
Chaupai / चोपाई
पहुँचे दूत राम पुर पावन । हरषे नगर बिलोकि सुहावन ॥ भूप द्वार तिन्ह खबरि जनाई । दसरथ नृप सुनि लिए बोलाई ॥
करि प्रनामु तिन्ह पाती दीन्ही । मुदित महीप आपु उठि लीन्ही ॥ बारि बिलोचन बाचत पाँती । पुलक गात आई भरि छाती ॥
रामु लखनु उर कर बर चीठी । रहि गए कहत न खाटी मीठी ॥ पुनि धरि धीर पत्रिका बाँची । हरषी सभा बात सुनि साँची ॥
खेलत रहे तहाँ सुधि पाई । आए भरतु सहित हित भाई ॥ पूछत अति सनेहँ सकुचाई । तात कहाँ तें पाती आई ॥
Doha / दोहा
दो. कुसल प्रानप्रिय बंधु दोउ अहहिं कहहु केहिं देस । सुनि सनेह साने बचन बाची बहुरि नरेस ॥ २९० ॥
Chaupai / चोपाई
सुनि पाती पुलके दोउ भ्राता । अधिक सनेहु समात न गाता ॥ प्रीति पुनीत भरत कै देखी । सकल सभाँ सुखु लहेउ बिसेषी ॥
तब नृप दूत निकट बैठारे । मधुर मनोहर बचन उचारे ॥ भैया कहहु कुसल दोउ बारे । तुम्ह नीकें निज नयन निहारे ॥
स्यामल गौर धरें धनु भाथा । बय किसोर कौसिक मुनि साथा ॥ पहिचानहु तुम्ह कहहु सुभाऊ । प्रेम बिबस पुनि पुनि कह राऊ ॥
जा दिन तें मुनि गए लवाई । तब तें आजु साँचि सुधि पाई ॥ कहहु बिदेह कवन बिधि जाने । सुनि प्रिय बचन दूत मुसकाने ॥
Doha / दोहा
दो. सुनहु महीपति मुकुट मनि तुम्ह सम धन्य न कोउ । रामु लखनु जिन्ह के तनय बिस्व बिभूषन दोउ ॥ २९१ ॥
Chaupai / चोपाई
पूछन जोगु न तनय तुम्हारे । पुरुषसिंघ तिहु पुर उजिआरे ॥ जिन्ह के जस प्रताप कें आगे । ससि मलीन रबि सीतल लागे ॥
तिन्ह कहँ कहिअ नाथ किमि चीन्हे । देखिअ रबि कि दीप कर लीन्हे ॥ सीय स्वयंबर भूप अनेका । समिटे सुभट एक तें एका ॥
संभु सरासनु काहुँ न टारा । हारे सकल बीर बरिआरा ॥ तीनि लोक महँ जे भटमानी । सभ कै सकति संभु धनु भानी ॥
सकइ उठाइ सरासुर मेरू । सोउ हियँ हारि गयउ करि फेरू ॥ जेहि कौतुक सिवसैलु उठावा । सोउ तेहि सभाँ पराभउ पावा ॥
Doha / दोहा
दो. तहाँ राम रघुबंस मनि सुनिअ महा महिपाल । भंजेउ चाप प्रयास बिनु जिमि गज पंकज नाल ॥ २९२ ॥
Chaupai / चोपाई
सुनि सरोष भृगुनायकु आए । बहुत भाँति तिन्ह आँखि देखाए ॥ देखि राम बलु निज धनु दीन्हा । करि बहु बिनय गवनु बन कीन्हा ॥
राजन रामु अतुलबल जैसें । तेज निधान लखनु पुनि तैसें ॥ कंपहि भूप बिलोकत जाकें । जिमि गज हरि किसोर के ताकें ॥
देव देखि तव बालक दोऊ । अब न आँखि तर आवत कोऊ ॥ दूत बचन रचना प्रिय लागी । प्रेम प्रताप बीर रस पागी ॥
सभा समेत राउ अनुरागे । दूतन्ह देन निछावरि लागे ॥ कहि अनीति ते मूदहिं काना । धरमु बिचारि सबहिं सुख माना ॥
Doha / दोहा
दो. तब उठि भूप बसिष्ठ कहुँ दीन्हि पत्रिका जाइ । कथा सुनाई गुरहि सब सादर दूत बोलाइ ॥ २९३ ॥
Chaupai / चोपाई
सुनि बोले गुर अति सुखु पाई । पुन्य पुरुष कहुँ महि सुख छाई ॥ जिमि सरिता सागर महुँ जाहीं । जद्यपि ताहि कामना नाहीं ॥
तिमि सुख संपति बिनहिं बोलाएँ । धरमसील पहिं जाहिं सुभाएँ ॥ तुम्ह गुर बिप्र धेनु सुर सेबी । तसि पुनीत कौसल्या देबी ॥
सुकृती तुम्ह समान जग माहीं । भयउ न है कोउ होनेउ नाहीं ॥ तुम्ह ते अधिक पुन्य बड़ काकें । राजन राम सरिस सुत जाकें ॥
बीर बिनीत धरम ब्रत धारी । गुन सागर बर बालक चारी ॥ तुम्ह कहुँ सर्ब काल कल्याना । सजहु बरात बजाइ निसाना ॥
Doha / दोहा
दो. चलहु बेगि सुनि गुर बचन भलेहिं नाथ सिरु नाइ । भूपति गवने भवन तब दूतन्ह बासु देवाइ ॥ २९४ ॥
Chaupai / चोपाई
राजा सबु रनिवास बोलाई । जनक पत्रिका बाचि सुनाई ॥ सुनि संदेसु सकल हरषानीं । अपर कथा सब भूप बखानीं ॥
प्रेम प्रफुल्लित राजहिं रानी । मनहुँ सिखिनि सुनि बारिद बनी ॥ मुदित असीस देहिं गुरु नारीं । अति आनंद मगन महतारीं ॥
लेहिं परस्पर अति प्रिय पाती । हृदयँ लगाइ जुड़ावहिं छाती ॥ राम लखन कै कीरति करनी । बारहिं बार भूपबर बरनी ॥
मुनि प्रसादु कहि द्वार सिधाए । रानिन्ह तब महिदेव बोलाए ॥ दिए दान आनंद समेता । चले बिप्रबर आसिष देता ॥
Sortha/ सोरठा
सो. जाचक लिए हँकारि दीन्हि निछावरि कोटि बिधि । चिरु जीवहुँ सुत चारि चक्रबर्ति दसरत्थ के ॥ २९५ ॥
Chaupai / चोपाई
कहत चले पहिरें पट नाना । हरषि हने गहगहे निसाना ॥ समाचार सब लोगन्ह पाए । लागे घर घर होने बधाए ॥
भुवन चारि दस भरा उछाहू । जनकसुता रघुबीर बिआहू ॥ सुनि सुभ कथा लोग अनुरागे । मग गृह गलीं सँवारन लागे ॥
जद्यपि अवध सदैव सुहावनि । राम पुरी मंगलमय पावनि ॥ तदपि प्रीति कै प्रीति सुहाई । मंगल रचना रची बनाई ॥
ध्वज पताक पट चामर चारु । छावा परम बिचित्र बजारू ॥ कनक कलस तोरन मनि जाला । हरद दूब दधि अच्छत माला ॥
Doha / दोहा
दो. मंगलमय निज निज भवन लोगन्ह रचे बनाइ । बीथीं सीचीं चतुरसम चौकें चारु पुराइ ॥ २९६ ॥
Chaupai / चोपाई
जहँ तहँ जूथ जूथ मिलि भामिनि । सजि नव सप्त सकल दुति दामिनि ॥ बिधुबदनीं मृग सावक लोचनि । निज सरुप रति मानु बिमोचनि ॥
गावहिं मंगल मंजुल बानीं । सुनिकल रव कलकंठि लजानीं ॥ भूप भवन किमि जाइ बखाना । बिस्व बिमोहन रचेउ बिताना ॥
मंगल द्रब्य मनोहर नाना । राजत बाजत बिपुल निसाना ॥ कतहुँ बिरिद बंदी उच्चरहीं । कतहुँ बेद धुनि भूसुर करहीं ॥
गावहिं सुंदरि मंगल गीता । लै लै नामु रामु अरु सीता ॥ बहुत उछाहु भवनु अति थोरा । मानहुँ उमगि चला चहु ओरा ॥
Doha / दोहा
दो. सोभा दसरथ भवन कइ को कबि बरनै पार । जहाँ सकल सुर सीस मनि राम लीन्ह अवतार ॥ २९७ ॥
Chaupai / चोपाई
भूप भरत पुनि लिए बोलाई । हय गय स्यंदन साजहु जाई ॥ चलहु बेगि रघुबीर बराता । सुनत पुलक पूरे दोउ भ्राता ॥
भरत सकल साहनी बोलाए । आयसु दीन्ह मुदित उठि धाए ॥ रचि रुचि जीन तुरग तिन्ह साजे । बरन बरन बर बाजि बिराजे ॥
सुभग सकल सुठि चंचल करनी । अय इव जरत धरत पग धरनी ॥ नाना जाति न जाहिं बखाने । निदरि पवनु जनु चहत उड़ाने ॥
तिन्ह सब छयल भए असवारा । भरत सरिस बय राजकुमारा ॥ सब सुंदर सब भूषनधारी । कर सर चाप तून कटि भारी ॥
Doha / दोहा
दो. छरे छबीले छयल सब सूर सुजान नबीन । जुग पदचर असवार प्रति जे असिकला प्रबीन ॥ २९८ ॥
Chaupai / चोपाई
बाँधे बिरद बीर रन गाढ़े । निकसि भए पुर बाहेर ठाढ़े ॥ फेरहिं चतुर तुरग गति नाना । हरषहिं सुनि सुनि पवन निसाना ॥
रथ सारथिन्ह बिचित्र बनाए । ध्वज पताक मनि भूषन लाए ॥ चवँर चारु किंकिन धुनि करही । भानु जान सोभा अपहरहीं ॥
सावँकरन अगनित हय होते । ते तिन्ह रथन्ह सारथिन्ह जोते ॥ सुंदर सकल अलंकृत सोहे । जिन्हहि बिलोकत मुनि मन मोहे ॥
जे जल चलहिं थलहि की नाई । टाप न बूड़ बेग अधिकाई ॥ अस्त्र सस्त्र सबु साजु बनाई । रथी सारथिन्ह लिए बोलाई ॥
Doha / दोहा
दो. चढ़ि चढ़ि रथ बाहेर नगर लागी जुरन बरात । होत सगुन सुन्दर सबहि जो जेहि कारज जात ॥ २९९ ॥
Chaupai / चोपाई
कलित करिबरन्हि परीं अँबारीं । कहि न जाहिं जेहि भाँति सँवारीं ॥ चले मत्तगज घंट बिराजी । मनहुँ सुभग सावन घन राजी ॥
बाहन अपर अनेक बिधाना । सिबिका सुभग सुखासन जाना ॥ तिन्ह चढ़ि चले बिप्रबर बृन्दा । जनु तनु धरें सकल श्रुति छंदा ॥
मागध सूत बंदि गुनगायक । चले जान चढ़ि जो जेहि लायक ॥ बेसर ऊँट बृषभ बहु जाती । चले बस्तु भरि अगनित भाँती ॥
कोटिन्ह काँवरि चले कहारा । बिबिध बस्तु को बरनै पारा ॥ चले सकल सेवक समुदाई । निज निज साजु समाजु बनाई ॥
Doha / दोहा
दो. सब कें उर निर्भर हरषु पूरित पुलक सरीर । कबहिं देखिबे नयन भरि रामु लखनू दोउ बीर ॥ ३०० ॥
Chaupai / चोपाई
गरजहिं गज घंटा धुनि घोरा । रथ रव बाजि हिंस चहु ओरा ॥ निदरि घनहि घुर्म्मरहिं निसाना । निज पराइ कछु सुनिअ न काना ॥
महा भीर भूपति के द्वारें । रज होइ जाइ पषान पबारें ॥ चढ़ी अटारिन्ह देखहिं नारीं । लिँएँ आरती मंगल थारी ॥
गावहिं गीत मनोहर नाना । अति आनंदु न जाइ बखाना ॥ तब सुमंत्र दुइ स्पंदन साजी । जोते रबि हय निंदक बाजी ॥
दोउ रथ रुचिर भूप पहिं आने । नहिं सारद पहिं जाहिं बखाने ॥ राज समाजु एक रथ साजा । दूसर तेज पुंज अति भ्राजा ॥
Doha / दोहा
दो. तेहिं रथ रुचिर बसिष्ठ कहुँ हरषि चढ़ाइ नरेसु । आपु चढ़ेउ स्पंदन सुमिरि हर गुर गौरि गनेसु ॥ ३०१ ॥
Chaupai / चोपाई
सहित बसिष्ठ सोह नृप कैसें । सुर गुर संग पुरंदर जैसें ॥ करि कुल रीति बेद बिधि राऊ । देखि सबहि सब भाँति बनाऊ ॥
सुमिरि रामु गुर आयसु पाई । चले महीपति संख बजाई ॥ हरषे बिबुध बिलोकि बराता । बरषहिं सुमन सुमंगल दाता ॥
भयउ कोलाहल हय गय गाजे । ब्योम बरात बाजने बाजे ॥ सुर नर नारि सुमंगल गाई । सरस राग बाजहिं सहनाई ॥
घंट घंटि धुनि बरनि न जाहीं । सरव करहिं पाइक फहराहीं ॥ करहिं बिदूषक कौतुक नाना । हास कुसल कल गान सुजाना ।
Doha / दोहा
दो. तुरग नचावहिं कुँअर बर अकनि मृदंग निसान ॥ नागर नट चितवहिं चकित डगहिं न ताल बँधान ॥ ३०२ ॥
Chaupai / चोपाई
बनइ न बरनत बनी बराता । होहिं सगुन सुंदर सुभदाता ॥ चारा चाषु बाम दिसि लेई । मनहुँ सकल मंगल कहि देई ॥
दाहिन काग सुखेत सुहावा । नकुल दरसु सब काहूँ पावा ॥ सानुकूल बह त्रिबिध बयारी । सघट सवाल आव बर नारी ॥
लोवा फिरि फिरि दरसु देखावा । सुरभी सनमुख सिसुहि पिआवा ॥ मृगमाला फिरि दाहिनि आई । मंगल गन जनु दीन्हि देखाई ॥
छेमकरी कह छेम बिसेषी । स्यामा बाम सुतरु पर देखी ॥ सनमुख आयउ दधि अरु मीना । कर पुस्तक दुइ बिप्र प्रबीना ॥
Doha / दोहा
दो. मंगलमय कल्यानमय अभिमत फल दातार । जनु सब साचे होन हित भए सगुन एक बार ॥ ३०३ ॥
Chaupai / चोपाई
मंगल सगुन सुगम सब ताकें । सगुन ब्रह्म सुंदर सुत जाकें ॥ राम सरिस बरु दुलहिनि सीता । समधी दसरथु जनकु पुनीता ॥
सुनि अस ब्याहु सगुन सब नाचे । अब कीन्हे बिरंचि हम साँचे ॥ एहि बिधि कीन्ह बरात पयाना । हय गय गाजहिं हने निसाना ॥
आवत जानि भानुकुल केतू । सरितन्हि जनक बँधाए सेतू ॥ बीच बीच बर बास बनाए । सुरपुर सरिस संपदा छाए ॥
असन सयन बर बसन सुहाए । पावहिं सब निज निज मन भाए ॥ नित नूतन सुख लखि अनुकूले । सकल बरातिन्ह मंदिर भूले ॥
Doha / दोहा
दो. आवत जानि बरात बर सुनि गहगहे निसान । सजि गज रथ पदचर तुरग लेन चले अगवान ॥ ३०४ ॥
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