ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Chaupai / चोपाई
कनक कलस भरि कोपर थारा । भाजन ललित अनेक प्रकारा ॥ भरे सुधासम सब पकवाने । नाना भाँति न जाहिं बखाने ॥
फल अनेक बर बस्तु सुहाईं । हरषि भेंट हित भूप पठाईं ॥ भूषन बसन महामनि नाना । खग मृग हय गय बहुबिधि जाना ॥
मंगल सगुन सुगंध सुहाए । बहुत भाँति महिपाल पठाए ॥ दधि चिउरा उपहार अपारा । भरि भरि काँवरि चले कहारा ॥
अगवानन्ह जब दीखि बराता । उर आनंदु पुलक भर गाता ॥ देखि बनाव सहित अगवाना । मुदित बरातिन्ह हने निसाना ॥
Doha / दोहा
दो. हरषि परसपर मिलन हित कछुक चले बगमेल । जनु आनंद समुद्र दुइ मिलत बिहाइ सुबेल ॥ ३०५ ॥
Chaupai / चोपाई
बरषि सुमन सुर सुंदरि गावहिं । मुदित देव दुंदुभीं बजावहिं ॥ बस्तु सकल राखीं नृप आगें । बिनय कीन्ह तिन्ह अति अनुरागें ॥
प्रेम समेत रायँ सबु लीन्हा । भै बकसीस जाचकन्हि दीन्हा ॥ करि पूजा मान्यता बड़ाई । जनवासे कहुँ चले लवाई ॥
बसन बिचित्र पाँवड़े परहीं । देखि धनहु धन मदु परिहरहीं ॥ अति सुंदर दीन्हेउ जनवासा । जहँ सब कहुँ सब भाँति सुपासा ॥
जानी सियँ बरात पुर आई । कछु निज महिमा प्रगटि जनाई ॥ हृदयँ सुमिरि सब सिद्धि बोलाई । भूप पहुनई करन पठाई ॥
Doha / दोहा
दो. सिधि सब सिय आयसु अकनि गईं जहाँ जनवास । लिएँ संपदा सकल सुख सुरपुर भोग बिलास ॥ ३०६ ॥
Chaupai / चोपाई
निज निज बास बिलोकि बराती । सुर सुख सकल सुलभ सब भाँती ॥ बिभव भेद कछु कोउ न जाना । सकल जनक कर करहिं बखाना ॥
सिय महिमा रघुनायक जानी । हरषे हृदयँ हेतु पहिचानी ॥ पितु आगमनु सुनत दोउ भाई । हृदयँ न अति आनंदु अमाई ॥
सकुचन्ह कहि न सकत गुरु पाहीं । पितु दरसन लालचु मन माहीं ॥ बिस्वामित्र बिनय बड़ि देखी । उपजा उर संतोषु बिसेषी ॥
हरषि बंधु दोउ हृदयँ लगाए । पुलक अंग अंबक जल छाए ॥ चले जहाँ दसरथु जनवासे । मनहुँ सरोबर तकेउ पिआसे ॥
Doha / दोहा
दो. भूप बिलोके जबहिं मुनि आवत सुतन्ह समेत । उठे हरषि सुखसिंधु महुँ चले थाह सी लेत ॥ ३०७ ॥
Chaupai / चोपाई
मुनिहि दंडवत कीन्ह महीसा । बार बार पद रज धरि सीसा ॥ कौसिक राउ लिये उर लाई । कहि असीस पूछी कुसलाई ॥
पुनि दंडवत करत दोउ भाई । देखि नृपति उर सुखु न समाई ॥ सुत हियँ लाइ दुसह दुख मेटे । मृतक सरीर प्रान जनु भेंटे ॥
पुनि बसिष्ठ पद सिर तिन्ह नाए । प्रेम मुदित मुनिबर उर लाए ॥ बिप्र बृंद बंदे दुहुँ भाईं । मन भावती असीसें पाईं ॥
भरत सहानुज कीन्ह प्रनामा । लिए उठाइ लाइ उर रामा ॥ हरषे लखन देखि दोउ भ्राता । मिले प्रेम परिपूरित गाता ॥
Doha / दोहा
दो. पुरजन परिजन जातिजन जाचक मंत्री मीत । मिले जथाबिधि सबहि प्रभु परम कृपाल बिनीत ॥ ३०८ ॥
Chaupai / चोपाई
रामहि देखि बरात जुड़ानी । प्रीति कि रीति न जाति बखानी ॥ नृप समीप सोहहिं सुत चारी । जनु धन धरमादिक तनुधारी ॥
सुतन्ह समेत दसरथहि देखी । मुदित नगर नर नारि बिसेषी ॥ सुमन बरिसि सुर हनहिं निसाना । नाकनटीं नाचहिं करि गाना ॥
सतानंद अरु बिप्र सचिव गन । मागध सूत बिदुष बंदीजन ॥ सहित बरात राउ सनमाना । आयसु मागि फिरे अगवाना ॥
प्रथम बरात लगन तें आई । तातें पुर प्रमोदु अधिकाई ॥ ब्रह्मानंदु लोग सब लहहीं । बढ़हुँ दिवस निसि बिधि सन कहहीं ॥
Doha / दोहा
दो. रामु सीय सोभा अवधि सुकृत अवधि दोउ राज । जहँ जहँ पुरजन कहहिं अस मिलि नर नारि समाज ॥ । ३०९ ॥
Chaupai / चोपाई
जनक सुकृत मूरति बैदेही । दसरथ सुकृत रामु धरें देही ॥ इन्ह सम काँहु न सिव अवराधे । काहिँ न इन्ह समान फल लाधे ॥
इन्ह सम कोउ न भयउ जग माहीं । है नहिं कतहूँ होनेउ नाहीं ॥ हम सब सकल सुकृत कै रासी । भए जग जनमि जनकपुर बासी ॥
जिन्ह जानकी राम छबि देखी । को सुकृती हम सरिस बिसेषी ॥ पुनि देखब रघुबीर बिआहू । लेब भली बिधि लोचन लाहू ॥
कहहिं परसपर कोकिलबयनीं । एहि बिआहँ बड़ लाभु सुनयनीं ॥ बड़ें भाग बिधि बात बनाई । नयन अतिथि होइहहिं दोउ भाई ॥
Doha / दोहा
दो. बारहिं बार सनेह बस जनक बोलाउब सीय । लेन आइहहिं बंधु दोउ कोटि काम कमनीय ॥ ३१० ॥
Chaupai / चोपाई
बिबिध भाँति होइहि पहुनाई । प्रिय न काहि अस सासुर माई ॥ तब तब राम लखनहि निहारी । होइहहिं सब पुर लोग सुखारी ॥
सखि जस राम लखनकर जोटा । तैसेइ भूप संग दुइ ढोटा ॥ स्याम गौर सब अंग सुहाए । ते सब कहहिं देखि जे आए ॥
कहा एक मैं आजु निहारे । जनु बिरंचि निज हाथ सँवारे ॥ भरतु रामही की अनुहारी । सहसा लखि न सकहिं नर नारी ॥
लखनु सत्रुसूदनु एकरूपा । नख सिख ते सब अंग अनूपा ॥ मन भावहिं मुख बरनि न जाहीं । उपमा कहुँ त्रिभुवन कोउ नाहीं ॥
Chanda / छन्द
छं. उपमा न कोउ कह दास तुलसी कतहुँ कबि कोबिद कहैं । बल बिनय बिद्या सील सोभा सिंधु इन्ह से एइ अहैं ॥ पुर नारि सकल पसारि अंचल बिधिहि बचन सुनावहीं ॥ ब्याहिअहुँ चारिउ भाइ एहिं पुर हम सुमंगल गावहीं ॥
Sortha/ सोरठा
सो. कहहिं परस्पर नारि बारि बिलोचन पुलक तन । सखि सबु करब पुरारि पुन्य पयोनिधि भूप दोउ ॥ ३११ ॥
Chaupai / चोपाई
एहि बिधि सकल मनोरथ करहीं । आनँद उमगि उमगि उर भरहीं ॥ जे नृप सीय स्वयंबर आए । देखि बंधु सब तिन्ह सुख पाए ॥
कहत राम जसु बिसद बिसाला । निज निज भवन गए महिपाला ॥ गए बीति कुछ दिन एहि भाँती । प्रमुदित पुरजन सकल बराती ॥
मंगल मूल लगन दिनु आवा । हिम रितु अगहनु मासु सुहावा ॥ ग्रह तिथि नखतु जोगु बर बारू । लगन सोधि बिधि कीन्ह बिचारू ॥
पठै दीन्हि नारद सन सोई । गनी जनक के गनकन्ह जोई ॥ सुनी सकल लोगन्ह यह बाता । कहहिं जोतिषी आहिं बिधाता ॥
Doha / दोहा
दो. धेनुधूरि बेला बिमल सकल सुमंगल मूल । बिप्रन्ह कहेउ बिदेह सन जानि सगुन अनुकुल ॥ ३१२ ॥
Chaupai / चोपाई
उपरोहितहि कहेउ नरनाहा । अब बिलंब कर कारनु काहा ॥ सतानंद तब सचिव बोलाए । मंगल सकल साजि सब ल्याए ॥
संख निसान पनव बहु बाजे । मंगल कलस सगुन सुभ साजे ॥ सुभग सुआसिनि गावहिं गीता । करहिं बेद धुनि बिप्र पुनीता ॥
लेन चले सादर एहि भाँती । गए जहाँ जनवास बराती ॥ कोसलपति कर देखि समाजू । अति लघु लाग तिन्हहि सुरराजू ॥
भयउ समउ अब धारिअ पाऊ । यह सुनि परा निसानहिं घाऊ ॥ गुरहि पूछि करि कुल बिधि राजा । चले संग मुनि साधु समाजा ॥
Doha / दोहा
दो. भाग्य बिभव अवधेस कर देखि देव ब्रह्मादि । लगे सराहन सहस मुख जानि जनम निज बादि ॥ ३१३ ॥
Chaupai / चोपाई
सुरन्ह सुमंगल अवसरु जाना । बरषहिं सुमन बजाइ निसाना ॥ सिव ब्रह्मादिक बिबुध बरूथा । चढ़े बिमानन्हि नाना जूथा ॥
प्रेम पुलक तन हृदयँ उछाहू । चले बिलोकन राम बिआहू ॥ देखि जनकपुरु सुर अनुरागे । निज निज लोक सबहिं लघु लागे ॥
चितवहिं चकित बिचित्र बिताना । रचना सकल अलौकिक नाना ॥ नगर नारि नर रूप निधाना । सुघर सुधरम सुसील सुजाना ॥
तिन्हहि देखि सब सुर सुरनारीं । भए नखत जनु बिधु उजिआरीं ॥ बिधिहि भयह आचरजु बिसेषी । निज करनी कछु कतहुँ न देखी ॥
Doha / दोहा
दो. सिवँ समुझाए देव सब जनि आचरज भुलाहु । हृदयँ बिचारहु धीर धरि सिय रघुबीर बिआहु ॥ ३१४ ॥
Chaupai / चोपाई
जिन्ह कर नामु लेत जग माहीं । सकल अमंगल मूल नसाहीं ॥ करतल होहिं पदारथ चारी । तेइ सिय रामु कहेउ कामारी ॥
एहि बिधि संभु सुरन्ह समुझावा । पुनि आगें बर बसह चलावा ॥ देवन्ह देखे दसरथु जाता । महामोद मन पुलकित गाता ॥
साधु समाज संग महिदेवा । जनु तनु धरें करहिं सुख सेवा ॥ सोहत साथ सुभग सुत चारी । जनु अपबरग सकल तनुधारी ॥
मरकत कनक बरन बर जोरी । देखि सुरन्ह भै प्रीति न थोरी ॥ पुनि रामहि बिलोकि हियँ हरषे । नृपहि सराहि सुमन तिन्ह बरषे ॥
Doha / दोहा
दो. राम रूपु नख सिख सुभग बारहिं बार निहारि । पुलक गात लोचन सजल उमा समेत पुरारि ॥ ३१५ ॥
Chaupai / चोपाई
केकि कंठ दुति स्यामल अंगा । तड़ित बिनिंदक बसन सुरंगा ॥ ब्याह बिभूषन बिबिध बनाए । मंगल सब सब भाँति सुहाए ॥
सरद बिमल बिधु बदनु सुहावन । नयन नवल राजीव लजावन ॥ सकल अलौकिक सुंदरताई । कहि न जाइ मनहीं मन भाई ॥
बंधु मनोहर सोहहिं संगा । जात नचावत चपल तुरंगा ॥ राजकुअँर बर बाजि देखावहिं । बंस प्रसंसक बिरिद सुनावहिं ॥
जेहि तुरंग पर रामु बिराजे । गति बिलोकि खगनायकु लाजे ॥ कहि न जाइ सब भाँति सुहावा । बाजि बेषु जनु काम बनावा ॥
Chanda / छन्द
छं. जनु बाजि बेषु बनाइ मनसिजु राम हित अति सोहई । आपनें बय बल रूप गुन गति सकल भुवन बिमोहई ॥ जगमगत जीनु जराव जोति सुमोति मनि मानिक लगे । किंकिनि ललाम लगामु ललित बिलोकि सुर नर मुनि ठगे ॥
Doha / दोहा
दो. प्रभु मनसहिं लयलीन मनु चलत बाजि छबि पाव । भूषित उड़गन तड़ित घनु जनु बर बरहि नचाव ॥ ३१६ ॥
Chaupai / चोपाई
जेहिं बर बाजि रामु असवारा । तेहि सारदउ न बरनै पारा ॥ संकरु राम रूप अनुरागे । नयन पंचदस अति प्रिय लागे ॥
हरि हित सहित रामु जब जोहे । रमा समेत रमापति मोहे ॥ निरखि राम छबि बिधि हरषाने । आठइ नयन जानि पछिताने ॥
सुर सेनप उर बहुत उछाहू । बिधि ते डेवढ़ लोचन लाहू ॥ रामहि चितव सुरेस सुजाना । गौतम श्रापु परम हित माना ॥
देव सकल सुरपतिहि सिहाहीं । आजु पुरंदर सम कोउ नाहीं ॥ मुदित देवगन रामहि देखी । नृपसमाज दुहुँ हरषु बिसेषी ॥
Chanda / छन्द
छं. अति हरषु राजसमाज दुहु दिसि दुंदुभीं बाजहिं घनी । बरषहिं सुमन सुर हरषि कहि जय जयति जय रघुकुलमनी ॥ एहि भाँति जानि बरात आवत बाजने बहु बाजहीं । रानि सुआसिनि बोलि परिछनि हेतु मंगल साजहीं ॥
Doha / दोहा
दो. सजि आरती अनेक बिधि मंगल सकल सँवारि । चलीं मुदित परिछनि करन गजगामिनि बर नारि ॥ ३१७ ॥
Chaupai / चोपाई
बिधुबदनीं सब सब मृगलोचनि । सब निज तन छबि रति मदु मोचनि ॥ पहिरें बरन बरन बर चीरा । सकल बिभूषन सजें सरीरा ॥
सकल सुमंगल अंग बनाएँ । करहिं गान कलकंठि लजाएँ ॥ कंकन किंकिनि नूपुर बाजहिं । चालि बिलोकि काम गज लाजहिं ॥
बाजहिं बाजने बिबिध प्रकारा । नभ अरु नगर सुमंगलचारा ॥ सची सारदा रमा भवानी । जे सुरतिय सुचि सहज सयानी ॥
कपट नारि बर बेष बनाई । मिलीं सकल रनिवासहिं जाई ॥ करहिं गान कल मंगल बानीं । हरष बिबस सब काहुँ न जानी ॥
Chanda / छन्द
छं. को जान केहि आनंद बस सब ब्रह्मु बर परिछन चली । कल गान मधुर निसान बरषहिं सुमन सुर सोभा भली ॥
Doha / दोहा
दो. जो सुख भा सिय मातु मन देखि राम बर बेषु । सो न सकहिं कहि कलप सत सहस सारदा सेषु ॥ ३१८ ॥
Chaupai / चोपाई
नयन नीरु हटि मंगल जानी । परिछनि करहिं मुदित मन रानी ॥ बेद बिहित अरु कुल आचारू । कीन्ह भली बिधि सब ब्यवहारू ॥
पंच सबद धुनि मंगल गाना । पट पाँवड़े परहिं बिधि नाना ॥ करि आरती अरघु तिन्ह दीन्हा । राम गमनु मंडप तब कीन्हा ॥
दसरथु सहित समाज बिराजे । बिभव बिलोकि लोकपति लाजे ॥ समयँ समयँ सुर बरषहिं फूला । सांति पढ़हिं महिसुर अनुकूला ॥
नभ अरु नगर कोलाहल होई । आपनि पर कछु सुनइ न कोई ॥ एहि बिधि रामु मंडपहिं आए । अरघु देइ आसन बैठाए ॥
Chanda / छन्द
छं. बैठारि आसन आरती करि निरखि बरु सुखु पावहीं ॥ मनि बसन भूषन भूरि वारहिं नारि मंगल गावहीं ॥ ब्रह्मादि सुरबर बिप्र बेष बनाइ कौतुक देखहीं । अवलोकि रघुकुल कमल रबि छबि सुफल जीवन लेखहीं ॥
Doha / दोहा
दो. नाऊ बारी भाट नट राम निछावरि पाइ । मुदित असीसहिं नाइ सिर हरषु न हृदयँ समाइ ॥ ३१९ ॥
Chaupai / चोपाई
मिले जनकु दसरथु अति प्रीतीं । करि बैदिक लौकिक सब रीतीं ॥ मिलत महा दोउ राज बिराजे । उपमा खोजि खोजि कबि लाजे ॥
लही न कतहुँ हारि हियँ मानी । इन्ह सम एइ उपमा उर आनी ॥ सामध देखि देव अनुरागे । सुमन बरषि जसु गावन लागे ॥
जगु बिरंचि उपजावा जब तें । देखे सुने ब्याह बहु तब तें ॥ सकल भाँति सम साजु समाजू । सम समधी देखे हम आजू ॥
देव गिरा सुनि सुंदर साँची । प्रीति अलौकिक दुहु दिसि माची ॥ देत पाँवड़े अरघु सुहाए । सादर जनकु मंडपहिं ल्याए ॥
Chanda / छन्द
छं. मंडपु बिलोकि बिचीत्र रचनाँ रुचिरताँ मुनि मन हरे ॥ निज पानि जनक सुजान सब कहुँ आनि सिंघासन धरे ॥ कुल इष्ट सरिस बसिष्ट पूजे बिनय करि आसिष लही । कौसिकहि पूजत परम प्रीति कि रीति तौ न परै कही ॥
Doha / दोहा
दो. बामदेव आदिक रिषय पूजे मुदित महीस । दिए दिब्य आसन सबहि सब सन लही असीस ॥ ३२० ॥
Chaupai / चोपाई
बहुरि कीन्ह कोसलपति पूजा । जानि ईस सम भाउ न दूजा ॥ कीन्ह जोरि कर बिनय बड़ाई । कहि निज भाग्य बिभव बहुताई ॥
पूजे भूपति सकल बराती । समधि सम सादर सब भाँती ॥ आसन उचित दिए सब काहू । कहौं काह मूख एक उछाहू ॥
सकल बरात जनक सनमानी । दान मान बिनती बर बानी ॥ बिधि हरि हरु दिसिपति दिनराऊ । जे जानहिं रघुबीर प्रभाऊ ॥
कपट बिप्र बर बेष बनाएँ । कौतुक देखहिं अति सचु पाएँ ॥ पूजे जनक देव सम जानें । दिए सुआसन बिनु पहिचानें ॥
Chanda / छन्द
छं. पहिचान को केहि जान सबहिं अपान सुधि भोरी भई । आनंद कंदु बिलोकि दूलहु उभय दिसि आनँद मई ॥ सुर लखे राम सुजान पूजे मानसिक आसन दए । अवलोकि सीलु सुभाउ प्रभु को बिबुध मन प्रमुदित भए ॥
Doha / दोहा
दो. रामचंद्र मुख चंद्र छबि लोचन चारु चकोर । करत पान सादर सकल प्रेमु प्रमोदु न थोर ॥ ३२१ ॥
Chaupai / चोपाई
समउ बिलोकि बसिष्ठ बोलाए । सादर सतानंदु सुनि आए ॥ बेगि कुअँरि अब आनहु जाई । चले मुदित मुनि आयसु पाई ॥
रानी सुनि उपरोहित बानी । प्रमुदित सखिन्ह समेत सयानी ॥ बिप्र बधू कुलबृद्ध बोलाईं । करि कुल रीति सुमंगल गाईं ॥
नारि बेष जे सुर बर बामा । सकल सुभायँ सुंदरी स्यामा ॥ तिन्हहि देखि सुखु पावहिं नारीं । बिनु पहिचानि प्रानहु ते प्यारीं ॥
बार बार सनमानहिं रानी । उमा रमा सारद सम जानी ॥ सीय सँवारि समाजु बनाई । मुदित मंडपहिं चलीं लवाई ॥
Sign In