Ram Charita Manas

Bala-Kanda

Return of procession to Ayodhya and joy in Ayodhya

ॐ श्री परमात्मने नमः


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संस्कृत्म
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ॐ श्री गणेशाय नमः

Chaupai / चोपाई

चली बरात निसान बजाई । मुदित छोट बड़ सब समुदाई ॥ रामहि निरखि ग्राम नर नारी । पाइ नयन फलु होहिं सुखारी ॥

Chapter : 57 Number : 298

Doha / दोहा

दो. बीच बीच बर बास करि मग लोगन्ह सुख देत । अवध समीप पुनीत दिन पहुँची आइ जनेत ॥ ३४३ ॥

Chapter : 57 Number : 299

Chaupai / चोपाई

हने निसान पनव बर बाजे । भेरि संख धुनि हय गय गाजे ॥ झाँझि बिरव डिंडमीं सुहाई । सरस राग बाजहिं सहनाई ॥

Chapter : 57 Number : 299

पुर जन आवत अकनि बराता । मुदित सकल पुलकावलि गाता ॥ निज निज सुंदर सदन सँवारे । हाट बाट चौहट पुर द्वारे ॥

Chapter : 57 Number : 299

गलीं सकल अरगजाँ सिंचाई । जहँ तहँ चौकें चारु पुराई ॥ बना बजारु न जाइ बखाना । तोरन केतु पताक बिताना ॥

Chapter : 57 Number : 299

सफल पूगफल कदलि रसाला । रोपे बकुल कदंब तमाला ॥ लगे सुभग तरु परसत धरनी । मनिमय आलबाल कल करनी ॥

Chapter : 57 Number : 299

Doha / दोहा

दो. बिबिध भाँति मंगल कलस गृह गृह रचे सँवारि । सुर ब्रह्मादि सिहाहिं सब रघुबर पुरी निहारि ॥ ३४४ ॥

Chapter : 57 Number : 300

Chaupai / चोपाई

भूप भवन तेहि अवसर सोहा । रचना देखि मदन मनु मोहा ॥ मंगल सगुन मनोहरताई । रिधि सिधि सुख संपदा सुहाई ॥

Chapter : 57 Number : 300

जनु उछाह सब सहज सुहाए । तनु धरि धरि दसरथ दसरथ गृहँ छाए ॥ देखन हेतु राम बैदेही । कहहु लालसा होहि न केही ॥

Chapter : 57 Number : 300

जुथ जूथ मिलि चलीं सुआसिनि । निज छबि निदरहिं मदन बिलासनि ॥ सकल सुमंगल सजें आरती । गावहिं जनु बहु बेष भारती ॥

Chapter : 57 Number : 300

भूपति भवन कोलाहलु होई । जाइ न बरनि समउ सुखु सोई ॥ कौसल्यादि राम महतारीं । प्रेम बिबस तन दसा बिसारीं ॥

Chapter : 57 Number : 300

Doha / दोहा

दो. दिए दान बिप्रन्ह बिपुल पूजि गनेस पुरारी । प्रमुदित परम दरिद्र जनु पाइ पदारथ चारि ॥ ३४५ ॥

Chapter : 57 Number : 301

Chaupai / चोपाई

मोद प्रमोद बिबस सब माता । चलहिं न चरन सिथिल भए गाता ॥ राम दरस हित अति अनुरागीं । परिछनि साजु सजन सब लागीं ॥

Chapter : 57 Number : 301

बिबिध बिधान बाजने बाजे । मंगल मुदित सुमित्राँ साजे ॥ हरद दूब दधि पल्लव फूला । पान पूगफल मंगल मूला ॥

Chapter : 57 Number : 301

अच्छत अंकुर लोचन लाजा । मंजुल मंजरि तुलसि बिराजा ॥ छुहे पुरट घट सहज सुहाए । मदन सकुन जनु नीड़ बनाए ॥

Chapter : 57 Number : 301

सगुन सुंगध न जाहिं बखानी । मंगल सकल सजहिं सब रानी ॥ रचीं आरतीं बहुत बिधाना । मुदित करहिं कल मंगल गाना ॥

Chapter : 57 Number : 301

Doha / दोहा

दो. कनक थार भरि मंगलन्हि कमल करन्हि लिएँ मात । चलीं मुदित परिछनि करन पुलक पल्लवित गात ॥ ३४६ ॥

Chapter : 57 Number : 302

Chaupai / चोपाई

धूप धूम नभु मेचक भयऊ । सावन घन घमंडु जनु ठयऊ ॥ सुरतरु सुमन माल सुर बरषहिं । मनहुँ बलाक अवलि मनु करषहिं ॥

Chapter : 57 Number : 302

मंजुल मनिमय बंदनिवारे । मनहुँ पाकरिपु चाप सँवारे ॥ प्रगटहिं दुरहिं अटन्ह पर भामिनि । चारु चपल जनु दमकहिं दामिनि ॥

Chapter : 57 Number : 302

दुंदुभि धुनि घन गरजनि घोरा । जाचक चातक दादुर मोरा ॥ सुर सुगन्ध सुचि बरषहिं बारी । सुखी सकल ससि पुर नर नारी ॥

Chapter : 57 Number : 302

समउ जानी गुर आयसु दीन्हा । पुर प्रबेसु रघुकुलमनि कीन्हा ॥ सुमिरि संभु गिरजा गनराजा । मुदित महीपति सहित समाजा ॥

Chapter : 57 Number : 302

Doha / दोहा

दो. होहिं सगुन बरषहिं सुमन सुर दुंदुभीं बजाइ । बिबुध बधू नाचहिं मुदित मंजुल मंगल गाइ ॥ ३४७ ॥

Chapter : 57 Number : 303

Chaupai / चोपाई

मागध सूत बंदि नट नागर । गावहिं जसु तिहु लोक उजागर ॥ जय धुनि बिमल बेद बर बानी । दस दिसि सुनिअ सुमंगल सानी ॥

Chapter : 57 Number : 303

बिपुल बाजने बाजन लागे । नभ सुर नगर लोग अनुरागे ॥ बने बराती बरनि न जाहीं । महा मुदित मन सुख न समाहीं ॥

Chapter : 57 Number : 303

पुरबासिंह तब राय जोहारे । देखत रामहि भए सुखारे ॥ करहिं निछावरि मनिगन चीरा । बारि बिलोचन पुलक सरीरा ॥

Chapter : 57 Number : 303

आरति करहिं मुदित पुर नारी । हरषहिं निरखि कुँअर बर चारी ॥ सिबिका सुभग ओहार उघारी । देखि दुलहिनिन्ह होहिं सुखारी ॥

Chapter : 57 Number : 303

Doha / दोहा

दो. एहि बिधि सबही देत सुखु आए राजदुआर । मुदित मातु परुछनि करहिं बधुन्ह समेत कुमार ॥ ३४८ ॥

Chapter : 57 Number : 304

Chaupai / चोपाई

करहिं आरती बारहिं बारा । प्रेमु प्रमोदु कहै को पारा ॥ भूषन मनि पट नाना जाती ॥ करही निछावरि अगनित भाँती ॥

Chapter : 57 Number : 304

बधुन्ह समेत देखि सुत चारी । परमानंद मगन महतारी ॥ पुनि पुनि सीय राम छबि देखी ॥ मुदित सफल जग जीवन लेखी ॥

Chapter : 57 Number : 304

सखीं सीय मुख पुनि पुनि चाही । गान करहिं निज सुकृत सराही ॥ बरषहिं सुमन छनहिं छन देवा । नाचहिं गावहिं लावहिं सेवा ॥

Chapter : 57 Number : 304

देखि मनोहर चारिउ जोरीं । सारद उपमा सकल ढँढोरीं ॥ देत न बनहिं निपट लघु लागी । एकटक रहीं रूप अनुरागीं ॥

Chapter : 57 Number : 304

Doha / दोहा

दो. निगम नीति कुल रीति करि अरघ पाँवड़े देत । बधुन्ह सहित सुत परिछि सब चलीं लवाइ निकेत ॥ ३४९ ॥

Chapter : 57 Number : 305

Chaupai / चोपाई

चारि सिंघासन सहज सुहाए । जनु मनोज निज हाथ बनाए ॥ तिन्ह पर कुअँरि कुअँर बैठारे । सादर पाय पुनित पखारे ॥

Chapter : 57 Number : 305

धूप दीप नैबेद बेद बिधि । पूजे बर दुलहिनि मंगलनिधि ॥ बारहिं बार आरती करहीं । ब्यजन चारु चामर सिर ढरहीं ॥

Chapter : 57 Number : 305

बस्तु अनेक निछावर होहीं । भरीं प्रमोद मातु सब सोहीं ॥ पावा परम तत्त्व जनु जोगीं । अमृत लहेउ जनु संतत रोगीं ॥

Chapter : 57 Number : 305

जनम रंक जनु पारस पावा । अंधहि लोचन लाभु सुहावा ॥ मूक बदन जनु सारद छाई । मानहुँ समर सूर जय पाई ॥

Chapter : 57 Number : 305

Doha / दोहा

दो. एहि सुख ते सत कोटि गुन पावहिं मातु अनंदु ॥ भाइन्ह सहित बिआहि घर आए रघुकुलचंदु ॥ ३५०(क) ॥

Chapter : 57 Number : 306

Chaupai / चोपाई

लोक रीत जननी करहिं बर दुलहिनि सकुचाहिं । मोदु बिनोदु बिलोकि बड़ रामु मनहिं मुसकाहिं ॥ ३५०(ख) ॥

Chapter : 57 Number : 306

देव पितर पूजे बिधि नीकी । पूजीं सकल बासना जी की ॥ सबहिं बंदि मागहिं बरदाना । भाइन्ह सहित राम कल्याना ॥

Chapter : 57 Number : 306

अंतरहित सुर आसिष देहीं । मुदित मातु अंचल भरि लेंहीं ॥ भूपति बोलि बराती लीन्हे । जान बसन मनि भूषन दीन्हे ॥

Chapter : 57 Number : 306

आयसु पाइ राखि उर रामहि । मुदित गए सब निज निज धामहि ॥ पुर नर नारि सकल पहिराए । घर घर बाजन लगे बधाए ॥

Chapter : 57 Number : 306

जाचक जन जाचहि जोइ जोई । प्रमुदित राउ देहिं सोइ सोई ॥ सेवक सकल बजनिआ नाना । पूरन किए दान सनमाना ॥

Chapter : 57 Number : 306

Doha / दोहा

दो. देंहिं असीस जोहारि सब गावहिं गुन गन गाथ । तब गुर भूसुर सहित गृहँ गवनु कीन्ह नरनाथ ॥ ३५१ ॥

Chapter : 57 Number : 307

Chaupai / चोपाई

जो बसिष्ठ अनुसासन दीन्ही । लोक बेद बिधि सादर कीन्ही ॥ भूसुर भीर देखि सब रानी । सादर उठीं भाग्य बड़ जानी ॥

Chapter : 57 Number : 307

पाय पखारि सकल अन्हवाए । पूजि भली बिधि भूप जेवाँए ॥ आदर दान प्रेम परिपोषे । देत असीस चले मन तोषे ॥

Chapter : 57 Number : 307

बहु बिधि कीन्हि गाधिसुत पूजा । नाथ मोहि सम धन्य न दूजा ॥ कीन्हि प्रसंसा भूपति भूरी । रानिन्ह सहित लीन्हि पग धूरी ॥

Chapter : 57 Number : 307

भीतर भवन दीन्ह बर बासु । मन जोगवत रह नृप रनिवासू ॥ पूजे गुर पद कमल बहोरी । कीन्हि बिनय उर प्रीति न थोरी ॥

Chapter : 57 Number : 307

Doha / दोहा

दो. बधुन्ह समेत कुमार सब रानिन्ह सहित महीसु । पुनि पुनि बंदत गुर चरन देत असीस मुनीसु ॥ ३५२ ॥

Chapter : 57 Number : 308

Chaupai / चोपाई

बिनय कीन्हि उर अति अनुरागें । सुत संपदा राखि सब आगें ॥ नेगु मागि मुनिनायक लीन्हा । आसिरबादु बहुत बिधि दीन्हा ॥

Chapter : 57 Number : 308

उर धरि रामहि सीय समेता । हरषि कीन्ह गुर गवनु निकेता ॥ बिप्रबधू सब भूप बोलाई । चैल चारु भूषन पहिराई ॥

Chapter : 57 Number : 308

बहुरि बोलाइ सुआसिनि लीन्हीं । रुचि बिचारि पहिरावनि दीन्हीं ॥ नेगी नेग जोग सब लेहीं । रुचि अनुरुप भूपमनि देहीं ॥

Chapter : 57 Number : 308

प्रिय पाहुने पूज्य जे जाने । भूपति भली भाँति सनमाने ॥ देव देखि रघुबीर बिबाहू । बरषि प्रसून प्रसंसि उछाहू ॥

Chapter : 57 Number : 308

Doha / दोहा

दो. चले निसान बजाइ सुर निज निज पुर सुख पाइ । कहत परसपर राम जसु प्रेम न हृदयँ समाइ ॥ ३५३ ॥

Chapter : 57 Number : 309

Chaupai / चोपाई

सब बिधि सबहि समदि नरनाहू । रहा हृदयँ भरि पूरि उछाहू ॥ जहँ रनिवासु तहाँ पगु धारे । सहित बहूटिन्ह कुअँर निहारे ॥

Chapter : 57 Number : 309

लिए गोद करि मोद समेता । को कहि सकइ भयउ सुखु जेता ॥ बधू सप्रेम गोद बैठारीं । बार बार हियँ हरषि दुलारीं ॥

Chapter : 57 Number : 309

देखि समाजु मुदित रनिवासू । सब कें उर अनंद कियो बासू ॥ कहेउ भूप जिमि भयउ बिबाहू । सुनि हरषु होत सब काहू ॥

Chapter : 57 Number : 309

जनक राज गुन सीलु बड़ाई । प्रीति रीति संपदा सुहाई ॥ बहुबिधि भूप भाट जिमि बरनी । रानीं सब प्रमुदित सुनि करनी ॥

Chapter : 57 Number : 309

Doha / दोहा

दो. सुतन्ह समेत नहाइ नृप बोलि बिप्र गुर ग्याति । भोजन कीन्ह अनेक बिधि घरी पंच गइ राति ॥ ३५४ ॥

Chapter : 57 Number : 310

Chaupai / चोपाई

मंगलगान करहिं बर भामिनि । भै सुखमूल मनोहर जामिनि ॥ अँचइ पान सब काहूँ पाए । स्त्रग सुगंध भूषित छबि छाए ॥

Chapter : 57 Number : 310

रामहि देखि रजायसु पाई । निज निज भवन चले सिर नाई ॥ प्रेम प्रमोद बिनोदु बढ़ाई । समउ समाजु मनोहरताई ॥

Chapter : 57 Number : 310

कहि न सकहि सत सारद सेसू । बेद बिरंचि महेस गनेसू ॥ सो मै कहौं कवन बिधि बरनी । भूमिनागु सिर धरइ कि धरनी ॥

Chapter : 57 Number : 310

नृप सब भाँति सबहि सनमानी । कहि मृदु बचन बोलाई रानी ॥ बधू लरिकनीं पर घर आईं । राखेहु नयन पलक की नाई ॥

Chapter : 57 Number : 310

Doha / दोहा

दो. लरिका श्रमित उनीद बस सयन करावहु जाइ । अस कहि गे बिश्रामगृहँ राम चरन चितु लाइ ॥ ३५५ ॥

Chapter : 57 Number : 311

Chaupai / चोपाई

भूप बचन सुनि सहज सुहाए । जरित कनक मनि पलँग डसाए ॥ सुभग सुरभि पय फेन समाना । कोमल कलित सुपेतीं नाना ॥

Chapter : 57 Number : 311

उपबरहन बर बरनि न जाहीं । स्त्रग सुगंध मनिमंदिर माहीं ॥ रतनदीप सुठि चारु चँदोवा । कहत न बनइ जान जेहिं जोवा ॥

Chapter : 57 Number : 311

सेज रुचिर रचि रामु उठाए । प्रेम समेत पलँग पौढ़ाए ॥ अग्या पुनि पुनि भाइन्ह दीन्ही । निज निज सेज सयन तिन्ह कीन्ही ॥

Chapter : 57 Number : 311

देखि स्याम मृदु मंजुल गाता । कहहिं सप्रेम बचन सब माता ॥ मारग जात भयावनि भारी । केहि बिधि तात ताड़का मारी ॥

Chapter : 57 Number : 311

Doha / दोहा

दो. घोर निसाचर बिकट भट समर गनहिं नहिं काहु ॥ मारे सहित सहाय किमि खल मारीच सुबाहु ॥ ३५६ ॥

Chapter : 57 Number : 312

Chaupai / चोपाई

मुनि प्रसाद बलि तात तुम्हारी । ईस अनेक करवरें टारी ॥ मख रखवारी करि दुहुँ भाई । गुरु प्रसाद सब बिद्या पाई ॥

Chapter : 57 Number : 312

मुनितय तरी लगत पग धूरी । कीरति रही भुवन भरि पूरी ॥ कमठ पीठि पबि कूट कठोरा । नृप समाज महुँ सिव धनु तोरा ॥

Chapter : 57 Number : 312

बिस्व बिजय जसु जानकि पाई । आए भवन ब्याहि सब भाई ॥ सकल अमानुष करम तुम्हारे । केवल कौसिक कृपाँ सुधारे ॥

Chapter : 57 Number : 312

आजु सुफल जग जनमु हमारा । देखि तात बिधुबदन तुम्हारा ॥ जे दिन गए तुम्हहि बिनु देखें । ते बिरंचि जनि पारहिं लेखें ॥

Chapter : 57 Number : 312

Doha / दोहा

दो. राम प्रतोषीं मातु सब कहि बिनीत बर बैन । सुमिरि संभु गुर बिप्र पद किए नीदबस नैन ॥ ३५७ ॥

Chapter : 57 Number : 313

Chaupai / चोपाई

नीदउँ बदन सोह सुठि लोना । मनहुँ साँझ सरसीरुह सोना ॥ घर घर करहिं जागरन नारीं । देहिं परसपर मंगल गारीं ॥

Chapter : 57 Number : 313

पुरी बिराजति राजति रजनी । रानीं कहहिं बिलोकहु सजनी ॥ सुंदर बधुन्ह सासु लै सोई । फनिकन्ह जनु सिरमनि उर गोई ॥

Chapter : 57 Number : 313

प्रात पुनीत काल प्रभु जागे । अरुनचूड़ बर बोलन लागे ॥ बंदि मागधन्हि गुनगन गाए । पुरजन द्वार जोहारन आए ॥

Chapter : 57 Number : 313

बंदि बिप्र सुर गुर पितु माता । पाइ असीस मुदित सब भ्राता ॥ जननिन्ह सादर बदन निहारे । भूपति संग द्वार पगु धारे ॥

Chapter : 57 Number : 313

Doha / दोहा

दो. कीन्ह सौच सब सहज सुचि सरित पुनीत नहाइ । प्रातक्रिया करि तात पहिं आए चारिउ भाइ ॥ ३५८ ॥

Chapter : 57 Number : 314

Chaupai / चोपाई

भूप बिलोकि लिए उर लाई । बैठै हरषि रजायसु पाई ॥ देखि रामु सब सभा जुड़ानी । लोचन लाभ अवधि अनुमानी ॥

Chapter : 57 Number : 314

पुनि बसिष्टु मुनि कौसिक आए । सुभग आसनन्हि मुनि बैठाए ॥ सुतन्ह समेत पूजि पद लागे । निरखि रामु दोउ गुर अनुरागे ॥

Chapter : 57 Number : 314

कहहिं बसिष्टु धरम इतिहासा । सुनहिं महीसु सहित रनिवासा ॥ मुनि मन अगम गाधिसुत करनी । मुदित बसिष्ट बिपुल बिधि बरनी ॥

Chapter : 57 Number : 314

बोले बामदेउ सब साँची । कीरति कलित लोक तिहुँ माची ॥ सुनि आनंदु भयउ सब काहू । राम लखन उर अधिक उछाहू ॥

Chapter : 57 Number : 314

Doha / दोहा

दो. मंगल मोद उछाह नित जाहिं दिवस एहि भाँति । उमगी अवध अनंद भरि अधिक अधिक अधिकाति ॥ ३५९ ॥

Chapter : 57 Number : 315

Chaupai / चोपाई

सुदिन सोधि कल कंकन छौरे । मंगल मोद बिनोद न थोरे ॥ नित नव सुखु सुर देखि सिहाहीं । अवध जन्म जाचहिं बिधि पाहीं ॥

Chapter : 57 Number : 315

बिस्वामित्रु चलन नित चहहीं । राम सप्रेम बिनय बस रहहीं ॥ दिन दिन सयगुन भूपति भाऊ । देखि सराह महामुनिराऊ ॥

Chapter : 57 Number : 315

मागत बिदा राउ अनुरागे । सुतन्ह समेत ठाढ़ भे आगे ॥ नाथ सकल संपदा तुम्हारी । मैं सेवकु समेत सुत नारी ॥

Chapter : 57 Number : 315

करब सदा लरिकनः पर छोहू । दरसन देत रहब मुनि मोहू ॥ अस कहि राउ सहित सुत रानी । परेउ चरन मुख आव न बानी ॥

Chapter : 57 Number : 315

दीन्ह असीस बिप्र बहु भाँती । चले न प्रीति रीति कहि जाती ॥ रामु सप्रेम संग सब भाई । आयसु पाइ फिरे पहुँचाई ॥

Chapter : 57 Number : 315

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