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ॐ श्री गणेशाय नमः

दो. राम रूपु भूपति भगति ब्याहु उछाहु अनंदु । जात सराहत मनहिं मन मुदित गाधिकुलचंदु ॥ ३६० ॥
बामदेव रघुकुल गुर ग्यानी । बहुरि गाधिसुत कथा बखानी ॥ सुनि मुनि सुजसु मनहिं मन राऊ । बरनत आपन पुन्य प्रभाऊ ॥
बहुरे लोग रजायसु भयऊ । सुतन्ह समेत नृपति गृहँ गयऊ ॥ जहँ तहँ राम ब्याहु सबु गावा । सुजसु पुनीत लोक तिहुँ छावा ॥
आए ब्याहि रामु घर जब तें । बसइ अनंद अवध सब तब तें ॥ प्रभु बिबाहँ जस भयउ उछाहू । सकहिं न बरनि गिरा अहिनाहू ॥
कबिकुल जीवनु पावन जानी ॥ राम सीय जसु मंगल खानी ॥ तेहि ते मैं कछु कहा बखानी । करन पुनीत हेतु निज बानी ॥
छं. निज गिरा पावनि करन कारन राम जसु तुलसी कह्यो । रघुबीर चरित अपार बारिधि पारु कबि कौनें लह्यो ॥ उपबीत ब्याह उछाह मंगल सुनि जे सादर गावहीं । बैदेहि राम प्रसाद ते जन सर्बदा सुखु पावहीं ॥
सो. सिय रघुबीर बिबाहु जे सप्रेम गावहिं सुनहिं । तिन्ह कहुँ सदा उछाहु मंगलायतन राम जसु ॥ ३६१ ॥

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