ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Chaupai / चोपाई
जानि कृपाकर किंकर मोहू । सब मिलि करहु छाड़ि छल छोहू ॥ निज बुधि बल भरोस मोहि नाहीं । तातें बिनय करउँ सब पाही ॥
करन चहउँ रघुपति गुन गाहा । लघु मति मोरि चरित अवगाहा ॥ सूझ न एकउ अंग उपाऊ । मन मति रंक मनोरथ राऊ ॥
मति अति नीच ऊँचि रुचि आछी । चहिअ अमिअ जग जुरइ न छाछी ॥ छमिहहिं सज्जन मोरि ढिठाई । सुनिहहिं बालबचन मन लाई ॥
जौ बालक कह तोतरि बाता । सुनहिं मुदित मन पितु अरु माता ॥ हँसिहहि कूर कुटिल कुबिचारी । जे पर दूषन भूषनधारी ॥
निज कवित केहि लाग न नीका । सरस होउ अथवा अति फीका ॥ जे पर भनिति सुनत हरषाही । ते बर पुरुष बहुत जग नाहीं ॥
जग बहु नर सर सरि सम भाई । जे निज बाढ़ि बढ़हिं जल पाई ॥ सज्जन सकृत सिंधु सम कोई । देखि पूर बिधु बाढ़इ जोई ॥
Doha / दोहा
दो. भाग छोट अभिलाषु बड़ करउँ एक बिस्वास । पैहहिं सुख सुनि सुजन सब खल करहहिं उपहास ॥ ८ ॥
Chaupai / चोपाई
खल परिहास होइ हित मोरा । काक कहहिं कलकंठ कठोरा ॥ हंसहि बक दादुर चातकही । हँसहिं मलिन खल बिमल बतकही ॥
कबित रसिक न राम पद नेहू । तिन्ह कहँ सुखद हास रस एहू ॥ भाषा भनिति भोरि मति मोरी । हँसिबे जोग हँसें नहिं खोरी ॥
प्रभु पद प्रीति न सामुझि नीकी । तिन्हहि कथा सुनि लागहि फीकी ॥ हरि हर पद रति मति न कुतरकी । तिन्ह कहुँ मधुर कथा रघुवर की ॥
राम भगति भूषित जियँ जानी । सुनिहहिं सुजन सराहि सुबानी ॥ कबि न होउँ नहिं बचन प्रबीनू । सकल कला सब बिद्या हीनू ॥
आखर अरथ अलंकृति नाना । छंद प्रबंध अनेक बिधाना ॥ भाव भेद रस भेद अपारा । कबित दोष गुन बिबिध प्रकारा ॥
कबित बिबेक एक नहिं मोरें । सत्य कहउँ लिखि कागद कोरे ॥
Doha / दोहा
दो. भनिति मोरि सब गुन रहित बिस्व बिदित गुन एक । सो बिचारि सुनिहहिं सुमति जिन्ह कें बिमल बिवेक ॥ ९ ॥
Chaupai / चोपाई
एहि महँ रघुपति नाम उदारा । अति पावन पुरान श्रुति सारा ॥ मंगल भवन अमंगल हारी । उमा सहित जेहि जपत पुरारी ॥
भनिति बिचित्र सुकबि कृत जोऊ । राम नाम बिनु सोह न सोऊ ॥ बिधुबदनी सब भाँति सँवारी । सोन न बसन बिना बर नारी ॥
सब गुन रहित कुकबि कृत बानी । राम नाम जस अंकित जानी ॥ सादर कहहिं सुनहिं बुध ताही । मधुकर सरिस संत गुनग्राही ॥
जदपि कबित रस एकउ नाही । राम प्रताप प्रकट एहि माहीं ॥ सोइ भरोस मोरें मन आवा । केहिं न सुसंग बडप्पनु पावा ॥
धूमउ तजइ सहज करुआई । अगरु प्रसंग सुगंध बसाई ॥ भनिति भदेस बस्तु भलि बरनी । राम कथा जग मंगल करनी ॥
Chanda / छन्द
छं. मंगल करनि कलि मल हरनि तुलसी कथा रघुनाथ की ॥ गति कूर कबिता सरित की ज्यों सरित पावन पाथ की ॥ प्रभु सुजस संगति भनिति भलि होइहि सुजन मन भावनी ॥ भव अंग भूति मसान की सुमिरत सुहावनि पावनी ॥
Doha / दोहा
दो. प्रिय लागिहि अति सबहि मम भनिति राम जस संग । दारु बिचारु कि करइ कोउ बंदिअ मलय प्रसंग ॥ १०(क) ॥
स्याम सुरभि पय बिसद अति गुनद करहिं सब पान । गिरा ग्राम्य सिय राम जस गावहिं सुनहिं सुजान ॥ १०(ख) ॥
Chaupai / चोपाई
मनि मानिक मुकुता छबि जैसी । अहि गिरि गज सिर सोह न तैसी ॥ नृप किरीट तरुनी तनु पाई । लहहिं सकल सोभा अधिकाई ॥
तैसेहिं सुकबि कबित बुध कहहीं । उपजहिं अनत अनत छबि लहहीं ॥ भगति हेतु बिधि भवन बिहाई । सुमिरत सारद आवति धाई ॥
राम चरित सर बिनु अन्हवाएँ । सो श्रम जाइ न कोटि उपाएँ ॥ कबि कोबिद अस हृदयँ बिचारी । गावहिं हरि जस कलि मल हारी ॥
कीन्हें प्राकृत जन गुन गाना । सिर धुनि गिरा लगत पछिताना ॥ हृदय सिंधु मति सीप समाना । स्वाति सारदा कहहिं सुजाना ॥
जौं बरषइ बर बारि बिचारू । होहिं कबित मुकुतामनि चारू ॥
Doha / दोहा
दो. जुगुति बेधि पुनि पोहिअहिं रामचरित बर ताग । पहिरहिं सज्जन बिमल उर सोभा अति अनुराग ॥ ११ ॥
Chaupai / चोपाई
जे जनमे कलिकाल कराला । करतब बायस बेष मराला ॥ चलत कुपंथ बेद मग छाँड़े । कपट कलेवर कलि मल भाँड़ें ॥
बंचक भगत कहाइ राम के । किंकर कंचन कोह काम के ॥ तिन्ह महँ प्रथम रेख जग मोरी । धींग धरमध्वज धंधक धोरी ॥
जौं अपने अवगुन सब कहऊँ । बाढ़इ कथा पार नहिं लहऊँ ॥ ताते मैं अति अलप बखाने । थोरे महुँ जानिहहिं सयाने ॥
समुझि बिबिधि बिधि बिनती मोरी । कोउ न कथा सुनि देइहि खोरी ॥ एतेहु पर करिहहिं जे असंका । मोहि ते अधिक ते जड़ मति रंका ॥
कबि न होउँ नहिं चतुर कहावउँ । मति अनुरूप राम गुन गावउँ ॥ कहँ रघुपति के चरित अपारा । कहँ मति मोरि निरत संसारा ॥
जेहिं मारुत गिरि मेरु उड़ाहीं । कहहु तूल केहि लेखे माहीं ॥ समुझत अमित राम प्रभुताई । करत कथा मन अति कदराई ॥
Doha / दोहा
दो. सारद सेस महेस बिधि आगम निगम पुरान । नेति नेति कहि जासु गुन करहिं निरंतर गान ॥ १२ ॥
Chaupai / चोपाई
सब जानत प्रभु प्रभुता सोई । तदपि कहें बिनु रहा न कोई ॥ तहाँ बेद अस कारन राखा । भजन प्रभाउ भाँति बहु भाषा ॥
एक अनीह अरूप अनामा । अज सच्चिदानंद पर धामा ॥ ब्यापक बिस्वरूप भगवाना । तेहिं धरि देह चरित कृत नाना ॥
सो केवल भगतन हित लागी । परम कृपाल प्रनत अनुरागी ॥ जेहि जन पर ममता अति छोहू । जेहिं करुना करि कीन्ह न कोहू ॥
गई बहोर गरीब नेवाजू । सरल सबल साहिब रघुराजू ॥ बुध बरनहिं हरि जस अस जानी । करहि पुनीत सुफल निज बानी ॥
तेहिं बल मैं रघुपति गुन गाथा । कहिहउँ नाइ राम पद माथा ॥ मुनिन्ह प्रथम हरि कीरति गाई । तेहिं मग चलत सुगम मोहि भाई ॥
Doha / दोहा
दो. अति अपार जे सरित बर जौं नृप सेतु कराहिं । चढि पिपीलिकउ परम लघु बिनु श्रम पारहि जाहिं ॥ १३ ॥
Chaupai / चोपाई
एहि प्रकार बल मनहि देखाई । करिहउँ रघुपति कथा सुहाई ॥ ब्यास आदि कबि पुंगव नाना । जिन्ह सादर हरि सुजस बखाना ॥
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