Ram Charita Manas

Bala-Kanda

The humility of Tulsidasji and the glory of devotional poetry to Shri Rama

ॐ श्री परमात्मने नमः


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ॐ श्री गणेशाय नमः

Chaupai / चोपाई

जानि कृपाकर किंकर मोहू । सब मिलि करहु छाड़ि छल छोहू ॥ निज बुधि बल भरोस मोहि नाहीं । तातें बिनय करउँ सब पाही ॥

Chapter : 7 Number : 9

करन चहउँ रघुपति गुन गाहा । लघु मति मोरि चरित अवगाहा ॥ सूझ न एकउ अंग उपाऊ । मन मति रंक मनोरथ राऊ ॥

Chapter : 7 Number : 9

मति अति नीच ऊँचि रुचि आछी । चहिअ अमिअ जग जुरइ न छाछी ॥ छमिहहिं सज्जन मोरि ढिठाई । सुनिहहिं बालबचन मन लाई ॥

Chapter : 7 Number : 9

जौ बालक कह तोतरि बाता । सुनहिं मुदित मन पितु अरु माता ॥ हँसिहहि कूर कुटिल कुबिचारी । जे पर दूषन भूषनधारी ॥

Chapter : 7 Number : 9

निज कवित केहि लाग न नीका । सरस होउ अथवा अति फीका ॥ जे पर भनिति सुनत हरषाही । ते बर पुरुष बहुत जग नाहीं ॥

Chapter : 7 Number : 9

जग बहु नर सर सरि सम भाई । जे निज बाढ़ि बढ़हिं जल पाई ॥ सज्जन सकृत सिंधु सम कोई । देखि पूर बिधु बाढ़इ जोई ॥

Chapter : 7 Number : 9

Doha / दोहा

दो. भाग छोट अभिलाषु बड़ करउँ एक बिस्वास । पैहहिं सुख सुनि सुजन सब खल करहहिं उपहास ॥ ८ ॥

Chapter : 7 Number : 10

Chaupai / चोपाई

खल परिहास होइ हित मोरा । काक कहहिं कलकंठ कठोरा ॥ हंसहि बक दादुर चातकही । हँसहिं मलिन खल बिमल बतकही ॥

Chapter : 7 Number : 10

कबित रसिक न राम पद नेहू । तिन्ह कहँ सुखद हास रस एहू ॥ भाषा भनिति भोरि मति मोरी । हँसिबे जोग हँसें नहिं खोरी ॥

Chapter : 7 Number : 10

प्रभु पद प्रीति न सामुझि नीकी । तिन्हहि कथा सुनि लागहि फीकी ॥ हरि हर पद रति मति न कुतरकी । तिन्ह कहुँ मधुर कथा रघुवर की ॥

Chapter : 7 Number : 10

राम भगति भूषित जियँ जानी । सुनिहहिं सुजन सराहि सुबानी ॥ कबि न होउँ नहिं बचन प्रबीनू । सकल कला सब बिद्या हीनू ॥

Chapter : 7 Number : 10

आखर अरथ अलंकृति नाना । छंद प्रबंध अनेक बिधाना ॥ भाव भेद रस भेद अपारा । कबित दोष गुन बिबिध प्रकारा ॥

Chapter : 7 Number : 10

कबित बिबेक एक नहिं मोरें । सत्य कहउँ लिखि कागद कोरे ॥

Chapter : 7 Number : 10

Doha / दोहा

दो. भनिति मोरि सब गुन रहित बिस्व बिदित गुन एक । सो बिचारि सुनिहहिं सुमति जिन्ह कें बिमल बिवेक ॥ ९ ॥

Chapter : 7 Number : 11

Chaupai / चोपाई

एहि महँ रघुपति नाम उदारा । अति पावन पुरान श्रुति सारा ॥ मंगल भवन अमंगल हारी । उमा सहित जेहि जपत पुरारी ॥

Chapter : 7 Number : 11

भनिति बिचित्र सुकबि कृत जोऊ । राम नाम बिनु सोह न सोऊ ॥ बिधुबदनी सब भाँति सँवारी । सोन न बसन बिना बर नारी ॥

Chapter : 7 Number : 11

सब गुन रहित कुकबि कृत बानी । राम नाम जस अंकित जानी ॥ सादर कहहिं सुनहिं बुध ताही । मधुकर सरिस संत गुनग्राही ॥

Chapter : 7 Number : 11

जदपि कबित रस एकउ नाही । राम प्रताप प्रकट एहि माहीं ॥ सोइ भरोस मोरें मन आवा । केहिं न सुसंग बडप्पनु पावा ॥

Chapter : 7 Number : 11

धूमउ तजइ सहज करुआई । अगरु प्रसंग सुगंध बसाई ॥ भनिति भदेस बस्तु भलि बरनी । राम कथा जग मंगल करनी ॥

Chapter : 7 Number : 11

Chanda / छन्द

छं. मंगल करनि कलि मल हरनि तुलसी कथा रघुनाथ की ॥ गति कूर कबिता सरित की ज्यों सरित पावन पाथ की ॥ प्रभु सुजस संगति भनिति भलि होइहि सुजन मन भावनी ॥ भव अंग भूति मसान की सुमिरत सुहावनि पावनी ॥

Chapter : 7 Number : 12

Doha / दोहा

दो. प्रिय लागिहि अति सबहि मम भनिति राम जस संग । दारु बिचारु कि करइ कोउ बंदिअ मलय प्रसंग ॥ १०(क) ॥

Chapter : 7 Number : 12

स्याम सुरभि पय बिसद अति गुनद करहिं सब पान । गिरा ग्राम्य सिय राम जस गावहिं सुनहिं सुजान ॥ १०(ख) ॥

Chapter : 7 Number : 12

Chaupai / चोपाई

मनि मानिक मुकुता छबि जैसी । अहि गिरि गज सिर सोह न तैसी ॥ नृप किरीट तरुनी तनु पाई । लहहिं सकल सोभा अधिकाई ॥

Chapter : 7 Number : 12

तैसेहिं सुकबि कबित बुध कहहीं । उपजहिं अनत अनत छबि लहहीं ॥ भगति हेतु बिधि भवन बिहाई । सुमिरत सारद आवति धाई ॥

Chapter : 7 Number : 12

राम चरित सर बिनु अन्हवाएँ । सो श्रम जाइ न कोटि उपाएँ ॥ कबि कोबिद अस हृदयँ बिचारी । गावहिं हरि जस कलि मल हारी ॥

Chapter : 7 Number : 12

कीन्हें प्राकृत जन गुन गाना । सिर धुनि गिरा लगत पछिताना ॥ हृदय सिंधु मति सीप समाना । स्वाति सारदा कहहिं सुजाना ॥

Chapter : 7 Number : 12

जौं बरषइ बर बारि बिचारू । होहिं कबित मुकुतामनि चारू ॥

Chapter : 7 Number : 12

Doha / दोहा

दो. जुगुति बेधि पुनि पोहिअहिं रामचरित बर ताग । पहिरहिं सज्जन बिमल उर सोभा अति अनुराग ॥ ११ ॥

Chapter : 7 Number : 13

Chaupai / चोपाई

जे जनमे कलिकाल कराला । करतब बायस बेष मराला ॥ चलत कुपंथ बेद मग छाँड़े । कपट कलेवर कलि मल भाँड़ें ॥

Chapter : 7 Number : 13

बंचक भगत कहाइ राम के । किंकर कंचन कोह काम के ॥ तिन्ह महँ प्रथम रेख जग मोरी । धींग धरमध्वज धंधक धोरी ॥

Chapter : 7 Number : 13

जौं अपने अवगुन सब कहऊँ । बाढ़इ कथा पार नहिं लहऊँ ॥ ताते मैं अति अलप बखाने । थोरे महुँ जानिहहिं सयाने ॥

Chapter : 7 Number : 13

समुझि बिबिधि बिधि बिनती मोरी । कोउ न कथा सुनि देइहि खोरी ॥ एतेहु पर करिहहिं जे असंका । मोहि ते अधिक ते जड़ मति रंका ॥

Chapter : 7 Number : 13

कबि न होउँ नहिं चतुर कहावउँ । मति अनुरूप राम गुन गावउँ ॥ कहँ रघुपति के चरित अपारा । कहँ मति मोरि निरत संसारा ॥

Chapter : 7 Number : 13

जेहिं मारुत गिरि मेरु उड़ाहीं । कहहु तूल केहि लेखे माहीं ॥ समुझत अमित राम प्रभुताई । करत कथा मन अति कदराई ॥

Chapter : 7 Number : 13

Doha / दोहा

दो. सारद सेस महेस बिधि आगम निगम पुरान । नेति नेति कहि जासु गुन करहिं निरंतर गान ॥ १२ ॥

Chapter : 7 Number : 14

Chaupai / चोपाई

सब जानत प्रभु प्रभुता सोई । तदपि कहें बिनु रहा न कोई ॥ तहाँ बेद अस कारन राखा । भजन प्रभाउ भाँति बहु भाषा ॥

Chapter : 7 Number : 14

एक अनीह अरूप अनामा । अज सच्चिदानंद पर धामा ॥ ब्यापक बिस्वरूप भगवाना । तेहिं धरि देह चरित कृत नाना ॥

Chapter : 7 Number : 14

सो केवल भगतन हित लागी । परम कृपाल प्रनत अनुरागी ॥ जेहि जन पर ममता अति छोहू । जेहिं करुना करि कीन्ह न कोहू ॥

Chapter : 7 Number : 14

गई बहोर गरीब नेवाजू । सरल सबल साहिब रघुराजू ॥ बुध बरनहिं हरि जस अस जानी । करहि पुनीत सुफल निज बानी ॥

Chapter : 7 Number : 14

तेहिं बल मैं रघुपति गुन गाथा । कहिहउँ नाइ राम पद माथा ॥ मुनिन्ह प्रथम हरि कीरति गाई । तेहिं मग चलत सुगम मोहि भाई ॥

Chapter : 7 Number : 14

Doha / दोहा

दो. अति अपार जे सरित बर जौं नृप सेतु कराहिं । चढि पिपीलिकउ परम लघु बिनु श्रम पारहि जाहिं ॥ १३ ॥

Chapter : 7 Number : 15

Chaupai / चोपाई

एहि प्रकार बल मनहि देखाई । करिहउँ रघुपति कथा सुहाई ॥ ब्यास आदि कबि पुंगव नाना । जिन्ह सादर हरि सुजस बखाना ॥

Chapter : 7 Number : 15

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