ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Chaupai / चोपाई
चरन कमल बंदउँ तिन्ह केरे । पुरवहुँ सकल मनोरथ मेरे ॥ कलि के कबिन्ह करउँ परनामा । जिन्ह बरने रघुपति गुन ग्रामा ॥
जे प्राकृत कबि परम सयाने । भाषाँ जिन्ह हरि चरित बखाने ॥ भए जे अहहिं जे होइहहिं आगें । प्रनवउँ सबहिं कपट सब त्यागें ॥
होहु प्रसन्न देहु बरदानू । साधु समाज भनिति सनमानू ॥ जो प्रबंध बुध नहिं आदरहीं । सो श्रम बादि बाल कबि करहीं ॥
कीरति भनिति भूति भलि सोई । सुरसरि सम सब कहँ हित होई ॥ राम सुकीरति भनिति भदेसा । असमंजस अस मोहि अँदेसा ॥
तुम्हरी कृपा सुलभ सोउ मोरे । सिअनि सुहावनि टाट पटोरे ॥
Doha / दोहा
दो. सरल कबित कीरति बिमल सोइ आदरहिं सुजान । सहज बयर बिसराइ रिपु जो सुनि करहिं बखान ॥ १४(क) ॥
सो न होइ बिनु बिमल मति मोहि मति बल अति थोर । करहु कृपा हरि जस कहउँ पुनि पुनि करउँ निहोर ॥ १४(ख) ॥
कबि कोबिद रघुबर चरित मानस मंजु मराल । बाल बिनय सुनि सुरुचि लखि मोपर होहु कृपाल ॥ १४(ग) ॥
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