ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Sortha/ सोरठा
सो. बंदउँ मुनि पद कंजु रामायन जेहिं निरमयउ । सखर सुकोमल मंजु दोष रहित दूषन सहित ॥ १४(घ) ॥
बंदउँ चारिउ बेद भव बारिधि बोहित सरिस । जिन्हहि न सपनेहुँ खेद बरनत रघुबर बिसद जसु ॥ १४(ङ) ॥
बंदउँ बिधि पद रेनु भव सागर जेहि कीन्ह जहँ । संत सुधा ससि धेनु प्रगटे खल बिष बारुनी ॥ १४(च) ॥
Doha / दोहा
दो. बिबुध बिप्र बुध ग्रह चरन बंदि कहउँ कर जोरि । होइ प्रसन्न पुरवहु सकल मंजु मनोरथ मोरि ॥ १४(छ) ॥
Chaupai / चोपाई
पुनि बंदउँ सारद सुरसरिता । जुगल पुनीत मनोहर चरिता ॥ मज्जन पान पाप हर एका । कहत सुनत एक हर अबिबेका ॥
गुर पितु मातु महेस भवानी । प्रनवउँ दीनबंधु दिन दानी ॥ सेवक स्वामि सखा सिय पी के । हित निरुपधि सब बिधि तुलसीके ॥
कलि बिलोकि जग हित हर गिरिजा । साबर मंत्र जाल जिन्ह सिरिजा ॥ अनमिल आखर अरथ न जापू । प्रगट प्रभाउ महेस प्रतापू ॥
सो उमेस मोहि पर अनुकूला । करिहिं कथा मुद मंगल मूला ॥ सुमिरि सिवा सिव पाइ पसाऊ । बरनउँ रामचरित चित चाऊ ॥
भनिति मोरि सिव कृपाँ बिभाती । ससि समाज मिलि मनहुँ सुराती ॥ जे एहि कथहि सनेह समेता । कहिहहिं सुनिहहिं समुझि सचेता ॥
होइहहिं राम चरन अनुरागी । कलि मल रहित सुमंगल भागी ॥
Doha / दोहा
दो. सपनेहुँ साचेहुँ मोहि पर जौं हर गौरि पसाउ । तौ फुर होउ जो कहेउँ सब भाषा भनिति प्रभाउ ॥ १५ ॥
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