Ram Charita Manas

Complete Bala-Kanda

ॐ श्री परमात्मने नमः

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Ram Charitra Manas / अथ श्री राम चरित मानस


श्री रामचरित मानस प्रथम सोपान (बालकाण्ड) |



Shloka/ श्लोक्


वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि । मङ्गलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ ॥ १ ॥


भवानीशङ्करौ वन्दे श्रद्धाविश्वासरूपिणौ । याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धाःस्वान्तःस्थमीश्वरम् ॥ २ ॥


वन्दे बोधमयं नित्यं गुरुं शङ्कररूपिणम् । यमाश्रितो हि वक्रोऽपि चन्द्रः सर्वत्र वन्द्यते ॥ ३ ॥


सीतारामगुणग्रामपुण्यारण्यविहारिणौ । वन्दे विशुद्धविज्ञानौ कबीश्वरकपीश्वरौ ॥ ४ ॥


उद्भवस्थितिसंहारकारिणीं क्लेशहारिणीम् । सर्वश्रेयस्करीं सीतां नतोऽहं रामवल्लभाम् ॥ ५ ॥


यन्मायावशवर्तिं विश्वमखिलं ब्रह्मादिदेवासुरायत्सत्वादमृषैव भाति सकलं रज्जौ यथाहेर्भ्रमः । यत्पादप्लवमेकमेव हि भवाम्भोधेस्तितीर्षावतांवन्देऽहं तमशेषकारणपरं रामाख्यमीशं हरिम् ॥ ६ ॥


नानापुराणनिगमागमसम्मतं यद्रामायणे निगदितं क्वचिदन्यतोऽपि । स्वान्तःसुखाय तुलसी रघुनाथगाथा-भाषानिबन्धमतिमञ्जुलमातनोति ॥ ७ ॥



Sortha/ सोरठा


सो. जो सुमिरत सिधि होइ गन नायक करिबर बदन । करउ अनुग्रह सोइ बुद्धि रासि सुभ गुन सदन ॥ १ ॥


मूक होइ बाचाल पंगु चढइ गिरिबर गहन । जासु कृपाँ सो दयाल द्रवउ सकल कलि मल दहन ॥ २ ॥


नील सरोरुह स्याम तरुन अरुन बारिज नयन । करउ सो मम उर धाम सदा छीरसागर सयन ॥ ३ ॥


कुंद इंदु सम देह उमा रमन करुना अयन । जाहि दीन पर नेह करउ कृपा मर्दन मयन ॥ ४ ॥


बंदउ गुरु पद कंज कृपा सिंधु नररूप हरि । महामोह तम पुंज जासु बचन रबि कर निकर ॥ ५ ॥



Chaupai / चोपाई


बंदउ गुरु पद पदुम परागा । सुरुचि सुबास सरस अनुरागा ॥ अमिय मूरिमय चूरन चारू । समन सकल भव रुज परिवारू ॥


सुकृति संभु तन बिमल बिभूती । मंजुल मंगल मोद प्रसूती ॥ जन मन मंजु मुकुर मल हरनी । किएँ तिलक गुन गन बस करनी ॥


श्रीगुर पद नख मनि गन जोती । सुमिरत दिब्य द्रृष्टि हियँ होती ॥ दलन मोह तम सो सप्रकासू । बड़े भाग उर आवइ जासू ॥


उघरहिं बिमल बिलोचन ही के । मिटहिं दोष दुख भव रजनी के ॥ सूझहिं राम चरित मनि मानिक । गुपुत प्रगट जहँ जो जेहि खानिक ॥



Doha / दोहा


दो. जथा सुअंजन अंजि दृग साधक सिद्ध सुजान । कौतुक देखत सैल बन भूतल भूरि निधान ॥ १ ॥



Chaupai / चोपाई


गुरु पद रज मृदु मंजुल अंजन । नयन अमिअ दृग दोष बिभंजन ॥ तेहिं करि बिमल बिबेक बिलोचन । बरनउँ राम चरित भव मोचन ॥


बंदउँ प्रथम महीसुर चरना । मोह जनित संसय सब हरना ॥ सुजन समाज सकल गुन खानी । करउँ प्रनाम सप्रेम सुबानी ॥


साधु चरित सुभ चरित कपासू । निरस बिसद गुनमय फल जासू ॥ जो सहि दुख परछिद्र दुरावा । बंदनीय जेहिं जग जस पावा ॥


मुद मंगलमय संत समाजू । जो जग जंगम तीरथराजू ॥ राम भक्ति जहँ सुरसरि धारा । सरसइ ब्रह्म बिचार प्रचारा ॥


बिधि निषेधमय कलि मल हरनी । करम कथा रबिनंदनि बरनी ॥ हरि हर कथा बिराजति बेनी । सुनत सकल मुद मंगल देनी ॥


बटु बिस्वास अचल निज धरमा । तीरथराज समाज सुकरमा ॥ सबहिं सुलभ सब दिन सब देसा । सेवत सादर समन कलेसा ॥


अकथ अलौकिक तीरथराऊ । देइ सद्य फल प्रगट प्रभाऊ ॥



Doha / दोहा


दो. सुनि समुझहिं जन मुदित मन मज्जहिं अति अनुराग । लहहिं चारि फल अछत तनु साधु समाज प्रयाग ॥ २ ॥



Chaupai / चोपाई


मज्जन फल पेखिअ ततकाला । काक होहिं पिक बकउ मराला ॥ सुनि आचरज करै जनि कोई । सतसंगति महिमा नहिं गोई ॥


बालमीक नारद घटजोनी । निज निज मुखनि कही निज होनी ॥ जलचर थलचर नभचर नाना । जे जड़ चेतन जीव जहाना ॥


मति कीरति गति भूति भलाई । जब जेहिं जतन जहाँ जेहिं पाई ॥ सो जानब सतसंग प्रभाऊ । लोकहुँ बेद न आन उपाऊ ॥


बिनु सतसंग बिबेक न होई । राम कृपा बिनु सुलभ न सोई ॥ सतसंगत मुद मंगल मूला । सोइ फल सिधि सब साधन फूला ॥


सठ सुधरहिं सतसंगति पाई । पारस परस कुधात सुहाई ॥ बिधि बस सुजन कुसंगत परहीं । फनि मनि सम निज गुन अनुसरहीं ॥


बिधि हरि हर कबि कोबिद बानी । कहत साधु महिमा सकुचानी ॥ सो मो सन कहि जात न कैसें । साक बनिक मनि गुन गन जैसें ॥



Doha / दोहा


दो. बंदउँ संत समान चित हित अनहित नहिं कोइ । अंजलि गत सुभ सुमन जिमि सम सुगंध कर दोइ ॥ ३(क) ॥


संत सरल चित जगत हित जानि सुभाउ सनेहु । बालबिनय सुनि करि कृपा राम चरन रति देहु ॥ ३(ख) ॥



Chaupai / चोपाई


बहुरि बंदि खल गन सतिभाएँ । जे बिनु काज दाहिनेहु बाएँ ॥ पर हित हानि लाभ जिन्ह केरें । उजरें हरष बिषाद बसेरें ॥


हरि हर जस राकेस राहु से । पर अकाज भट सहसबाहु से ॥ जे पर दोष लखहिं सहसाखी । पर हित घृत जिन्ह के मन माखी ॥


तेज कृसानु रोष महिषेसा । अघ अवगुन धन धनी धनेसा ॥ उदय केत सम हित सबही के । कुंभकरन सम सोवत नीके ॥


पर अकाजु लगि तनु परिहरहीं । जिमि हिम उपल कृषी दलि गरहीं ॥ बंदउँ खल जस सेष सरोषा । सहस बदन बरनइ पर दोषा ॥


पुनि प्रनवउँ पृथुराज समाना । पर अघ सुनइ सहस दस काना ॥ बहुरि सक्र सम बिनवउँ तेही । संतत सुरानीक हित जेही ॥


बचन बज्र जेहि सदा पिआरा । सहस नयन पर दोष निहारा ॥



Doha / दोहा


दो. उदासीन अरि मीत हित सुनत जरहिं खल रीति । जानि पानि जुग जोरि जन बिनती करइ सप्रीति ॥ ४ ॥



Chaupai / चोपाई


मैं अपनी दिसि कीन्ह निहोरा । तिन्ह निज ओर न लाउब भोरा ॥ बायस पलिअहिं अति अनुरागा । होहिं निरामिष कबहुँ कि कागा ॥


बंदउँ संत असज्जन चरना । दुखप्रद उभय बीच कछु बरना ॥ बिछुरत एक प्रान हरि लेहीं । मिलत एक दुख दारुन देहीं ॥


उपजहिं एक संग जग माहीं । जलज जोंक जिमि गुन बिलगाहीं ॥ सुधा सुरा सम साधू असाधू । जनक एक जग जलधि अगाधू ॥


भल अनभल निज निज करतूती । लहत सुजस अपलोक बिभूती ॥ सुधा सुधाकर सुरसरि साधू । गरल अनल कलिमल सरि ब्याधू ॥


गुन अवगुन जानत सब कोई । जो जेहि भाव नीक तेहि सोई ॥



Doha / दोहा


दो. भलो भलाइहि पै लहइ लहइ निचाइहि नीचु । सुधा सराहिअ अमरताँ गरल सराहिअ मीचु ॥ ५ ॥



Chaupai / चोपाई


खल अघ अगुन साधू गुन गाहा । उभय अपार उदधि अवगाहा ॥ तेहि तें कछु गुन दोष बखाने । संग्रह त्याग न बिनु पहिचाने ॥


भलेउ पोच सब बिधि उपजाए । गनि गुन दोष बेद बिलगाए ॥ कहहिं बेद इतिहास पुराना । बिधि प्रपंचु गुन अवगुन साना ॥


दुख सुख पाप पुन्य दिन राती । साधु असाधु सुजाति कुजाती ॥ दानव देव ऊँच अरु नीचू । अमिअ सुजीवनु माहुरु मीचू ॥


माया ब्रह्म जीव जगदीसा । लच्छि अलच्छि रंक अवनीसा ॥ कासी मग सुरसरि क्रमनासा । मरु मारव महिदेव गवासा ॥


सरग नरक अनुराग बिरागा । निगमागम गुन दोष बिभागा ॥



Doha / दोहा


दो. जड़ चेतन गुन दोषमय बिस्व कीन्ह करतार । संत हंस गुन गहहिं पय परिहरि बारि बिकार ॥ ६ ॥



Chaupai / चोपाई


अस बिबेक जब देइ बिधाता । तब तजि दोष गुनहिं मनु राता ॥ काल सुभाउ करम बरिआई । भलेउ प्रकृति बस चुकइ भलाई ॥


सो सुधारि हरिजन जिमि लेहीं । दलि दुख दोष बिमल जसु देहीं ॥ खलउ करहिं भल पाइ सुसंगू । मिटइ न मलिन सुभाउ अभंगू ॥


लखि सुबेष जग बंचक जेऊ । बेष प्रताप पूजिअहिं तेऊ ॥ उधरहिं अंत न होइ निबाहू । कालनेमि जिमि रावन राहू ॥


किएहुँ कुबेष साधु सनमानू । जिमि जग जामवंत हनुमानू ॥ हानि कुसंग सुसंगति लाहू । लोकहुँ बेद बिदित सब काहू ॥


गगन चढ़इ रज पवन प्रसंगा । कीचहिं मिलइ नीच जल संगा ॥ साधु असाधु सदन सुक सारीं । सुमिरहिं राम देहिं गनि गारी ॥


धूम कुसंगति कारिख होई । लिखिअ पुरान मंजु मसि सोई ॥ सोइ जल अनल अनिल संघाता । होइ जलद जग जीवन दाता ॥



Doha / दोहा


दो. ग्रह भेषज जल पवन पट पाइ कुजोग सुजोग । होहि कुबस्तु सुबस्तु जग लखहिं सुलच्छन लोग ॥ ७(क) ॥


सम प्रकास तम पाख दुहुँ नाम भेद बिधि कीन्ह । ससि सोषक पोषक समुझि जग जस अपजस दीन्ह ॥ ७(ख) ॥


जड़ चेतन जग जीव जत सकल राममय जानि । बंदउँ सब के पद कमल सदा जोरि जुग पानि ॥ ७(ग) ॥


देव दनुज नर नाग खग प्रेत पितर गंधर्ब । बंदउँ किंनर रजनिचर कृपा करहु अब सर्ब ॥ ७(घ) ॥



Chaupai / चोपाई


आकर चारि लाख चौरासी । जाति जीव जल थल नभ बासी ॥ सीय राममय सब जग जानी । करउँ प्रनाम जोरि जुग पानी ॥


जानि कृपाकर किंकर मोहू । सब मिलि करहु छाड़ि छल छोहू ॥ निज बुधि बल भरोस मोहि नाहीं । तातें बिनय करउँ सब पाही ॥


करन चहउँ रघुपति गुन गाहा । लघु मति मोरि चरित अवगाहा ॥ सूझ न एकउ अंग उपाऊ । मन मति रंक मनोरथ राऊ ॥


मति अति नीच ऊँचि रुचि आछी । चहिअ अमिअ जग जुरइ न छाछी ॥ छमिहहिं सज्जन मोरि ढिठाई । सुनिहहिं बालबचन मन लाई ॥


जौ बालक कह तोतरि बाता । सुनहिं मुदित मन पितु अरु माता ॥ हँसिहहि कूर कुटिल कुबिचारी । जे पर दूषन भूषनधारी ॥


निज कवित केहि लाग न नीका । सरस होउ अथवा अति फीका ॥ जे पर भनिति सुनत हरषाही । ते बर पुरुष बहुत जग नाहीं ॥


जग बहु नर सर सरि सम भाई । जे निज बाढ़ि बढ़हिं जल पाई ॥ सज्जन सकृत सिंधु सम कोई । देखि पूर बिधु बाढ़इ जोई ॥



Doha / दोहा


दो. भाग छोट अभिलाषु बड़ करउँ एक बिस्वास । पैहहिं सुख सुनि सुजन सब खल करहहिं उपहास ॥ ८ ॥



Chaupai / चोपाई


खल परिहास होइ हित मोरा । काक कहहिं कलकंठ कठोरा ॥ हंसहि बक दादुर चातकही । हँसहिं मलिन खल बिमल बतकही ॥


कबित रसिक न राम पद नेहू । तिन्ह कहँ सुखद हास रस एहू ॥ भाषा भनिति भोरि मति मोरी । हँसिबे जोग हँसें नहिं खोरी ॥


प्रभु पद प्रीति न सामुझि नीकी । तिन्हहि कथा सुनि लागहि फीकी ॥ हरि हर पद रति मति न कुतरकी । तिन्ह कहुँ मधुर कथा रघुवर की ॥


राम भगति भूषित जियँ जानी । सुनिहहिं सुजन सराहि सुबानी ॥ कबि न होउँ नहिं बचन प्रबीनू । सकल कला सब बिद्या हीनू ॥


आखर अरथ अलंकृति नाना । छंद प्रबंध अनेक बिधाना ॥ भाव भेद रस भेद अपारा । कबित दोष गुन बिबिध प्रकारा ॥


कबित बिबेक एक नहिं मोरें । सत्य कहउँ लिखि कागद कोरे ॥



Doha / दोहा


दो. भनिति मोरि सब गुन रहित बिस्व बिदित गुन एक । सो बिचारि सुनिहहिं सुमति जिन्ह कें बिमल बिवेक ॥ ९ ॥



Chaupai / चोपाई


एहि महँ रघुपति नाम उदारा । अति पावन पुरान श्रुति सारा ॥ मंगल भवन अमंगल हारी । उमा सहित जेहि जपत पुरारी ॥


भनिति बिचित्र सुकबि कृत जोऊ । राम नाम बिनु सोह न सोऊ ॥ बिधुबदनी सब भाँति सँवारी । सोन न बसन बिना बर नारी ॥


सब गुन रहित कुकबि कृत बानी । राम नाम जस अंकित जानी ॥ सादर कहहिं सुनहिं बुध ताही । मधुकर सरिस संत गुनग्राही ॥


जदपि कबित रस एकउ नाही । राम प्रताप प्रकट एहि माहीं ॥ सोइ भरोस मोरें मन आवा । केहिं न सुसंग बडप्पनु पावा ॥


धूमउ तजइ सहज करुआई । अगरु प्रसंग सुगंध बसाई ॥ भनिति भदेस बस्तु भलि बरनी । राम कथा जग मंगल करनी ॥



Chanda / छन्द


छं. मंगल करनि कलि मल हरनि तुलसी कथा रघुनाथ की ॥ गति कूर कबिता सरित की ज्यों सरित पावन पाथ की ॥ प्रभु सुजस संगति भनिति भलि होइहि सुजन मन भावनी ॥ भव अंग भूति मसान की सुमिरत सुहावनि पावनी ॥



Doha / दोहा


दो. प्रिय लागिहि अति सबहि मम भनिति राम जस संग । दारु बिचारु कि करइ कोउ बंदिअ मलय प्रसंग ॥ १०(क) ॥


स्याम सुरभि पय बिसद अति गुनद करहिं सब पान । गिरा ग्राम्य सिय राम जस गावहिं सुनहिं सुजान ॥ १०(ख) ॥



Chaupai / चोपाई


मनि मानिक मुकुता छबि जैसी । अहि गिरि गज सिर सोह न तैसी ॥ नृप किरीट तरुनी तनु पाई । लहहिं सकल सोभा अधिकाई ॥


तैसेहिं सुकबि कबित बुध कहहीं । उपजहिं अनत अनत छबि लहहीं ॥ भगति हेतु बिधि भवन बिहाई । सुमिरत सारद आवति धाई ॥


राम चरित सर बिनु अन्हवाएँ । सो श्रम जाइ न कोटि उपाएँ ॥ कबि कोबिद अस हृदयँ बिचारी । गावहिं हरि जस कलि मल हारी ॥


कीन्हें प्राकृत जन गुन गाना । सिर धुनि गिरा लगत पछिताना ॥ हृदय सिंधु मति सीप समाना । स्वाति सारदा कहहिं सुजाना ॥


जौं बरषइ बर बारि बिचारू । होहिं कबित मुकुतामनि चारू ॥



Doha / दोहा


दो. जुगुति बेधि पुनि पोहिअहिं रामचरित बर ताग । पहिरहिं सज्जन बिमल उर सोभा अति अनुराग ॥ ११ ॥



Chaupai / चोपाई


जे जनमे कलिकाल कराला । करतब बायस बेष मराला ॥ चलत कुपंथ बेद मग छाँड़े । कपट कलेवर कलि मल भाँड़ें ॥


बंचक भगत कहाइ राम के । किंकर कंचन कोह काम के ॥ तिन्ह महँ प्रथम रेख जग मोरी । धींग धरमध्वज धंधक धोरी ॥


जौं अपने अवगुन सब कहऊँ । बाढ़इ कथा पार नहिं लहऊँ ॥ ताते मैं अति अलप बखाने । थोरे महुँ जानिहहिं सयाने ॥


समुझि बिबिधि बिधि बिनती मोरी । कोउ न कथा सुनि देइहि खोरी ॥ एतेहु पर करिहहिं जे असंका । मोहि ते अधिक ते जड़ मति रंका ॥


कबि न होउँ नहिं चतुर कहावउँ । मति अनुरूप राम गुन गावउँ ॥ कहँ रघुपति के चरित अपारा । कहँ मति मोरि निरत संसारा ॥


जेहिं मारुत गिरि मेरु उड़ाहीं । कहहु तूल केहि लेखे माहीं ॥ समुझत अमित राम प्रभुताई । करत कथा मन अति कदराई ॥



Doha / दोहा


दो. सारद सेस महेस बिधि आगम निगम पुरान । नेति नेति कहि जासु गुन करहिं निरंतर गान ॥ १२ ॥



Chaupai / चोपाई


सब जानत प्रभु प्रभुता सोई । तदपि कहें बिनु रहा न कोई ॥ तहाँ बेद अस कारन राखा । भजन प्रभाउ भाँति बहु भाषा ॥


एक अनीह अरूप अनामा । अज सच्चिदानंद पर धामा ॥ ब्यापक बिस्वरूप भगवाना । तेहिं धरि देह चरित कृत नाना ॥


सो केवल भगतन हित लागी । परम कृपाल प्रनत अनुरागी ॥ जेहि जन पर ममता अति छोहू । जेहिं करुना करि कीन्ह न कोहू ॥


गई बहोर गरीब नेवाजू । सरल सबल साहिब रघुराजू ॥ बुध बरनहिं हरि जस अस जानी । करहि पुनीत सुफल निज बानी ॥


तेहिं बल मैं रघुपति गुन गाथा । कहिहउँ नाइ राम पद माथा ॥ मुनिन्ह प्रथम हरि कीरति गाई । तेहिं मग चलत सुगम मोहि भाई ॥



Doha / दोहा


दो. अति अपार जे सरित बर जौं नृप सेतु कराहिं । चढि पिपीलिकउ परम लघु बिनु श्रम पारहि जाहिं ॥ १३ ॥



Chaupai / चोपाई


एहि प्रकार बल मनहि देखाई । करिहउँ रघुपति कथा सुहाई ॥ ब्यास आदि कबि पुंगव नाना । जिन्ह सादर हरि सुजस बखाना ॥


चरन कमल बंदउँ तिन्ह केरे । पुरवहुँ सकल मनोरथ मेरे ॥ कलि के कबिन्ह करउँ परनामा । जिन्ह बरने रघुपति गुन ग्रामा ॥


जे प्राकृत कबि परम सयाने । भाषाँ जिन्ह हरि चरित बखाने ॥ भए जे अहहिं जे होइहहिं आगें । प्रनवउँ सबहिं कपट सब त्यागें ॥


होहु प्रसन्न देहु बरदानू । साधु समाज भनिति सनमानू ॥ जो प्रबंध बुध नहिं आदरहीं । सो श्रम बादि बाल कबि करहीं ॥


कीरति भनिति भूति भलि सोई । सुरसरि सम सब कहँ हित होई ॥ राम सुकीरति भनिति भदेसा । असमंजस अस मोहि अँदेसा ॥


तुम्हरी कृपा सुलभ सोउ मोरे । सिअनि सुहावनि टाट पटोरे ॥



Doha / दोहा


दो. सरल कबित कीरति बिमल सोइ आदरहिं सुजान । सहज बयर बिसराइ रिपु जो सुनि करहिं बखान ॥ १४(क) ॥


सो न होइ बिनु बिमल मति मोहि मति बल अति थोर । करहु कृपा हरि जस कहउँ पुनि पुनि करउँ निहोर ॥ १४(ख) ॥


कबि कोबिद रघुबर चरित मानस मंजु मराल । बाल बिनय सुनि सुरुचि लखि मोपर होहु कृपाल ॥ १४(ग) ॥



Sortha/ सोरठा


सो. बंदउँ मुनि पद कंजु रामायन जेहिं निरमयउ । सखर सुकोमल मंजु दोष रहित दूषन सहित ॥ १४(घ) ॥


बंदउँ चारिउ बेद भव बारिधि बोहित सरिस । जिन्हहि न सपनेहुँ खेद बरनत रघुबर बिसद जसु ॥ १४(ङ) ॥


बंदउँ बिधि पद रेनु भव सागर जेहि कीन्ह जहँ । संत सुधा ससि धेनु प्रगटे खल बिष बारुनी ॥ १४(च) ॥



Doha / दोहा


दो. बिबुध बिप्र बुध ग्रह चरन बंदि कहउँ कर जोरि । होइ प्रसन्न पुरवहु सकल मंजु मनोरथ मोरि ॥ १४(छ) ॥



Chaupai / चोपाई


पुनि बंदउँ सारद सुरसरिता । जुगल पुनीत मनोहर चरिता ॥ मज्जन पान पाप हर एका । कहत सुनत एक हर अबिबेका ॥


गुर पितु मातु महेस भवानी । प्रनवउँ दीनबंधु दिन दानी ॥ सेवक स्वामि सखा सिय पी के । हित निरुपधि सब बिधि तुलसीके ॥


कलि बिलोकि जग हित हर गिरिजा । साबर मंत्र जाल जिन्ह सिरिजा ॥ अनमिल आखर अरथ न जापू । प्रगट प्रभाउ महेस प्रतापू ॥


सो उमेस मोहि पर अनुकूला । करिहिं कथा मुद मंगल मूला ॥ सुमिरि सिवा सिव पाइ पसाऊ । बरनउँ रामचरित चित चाऊ ॥


भनिति मोरि सिव कृपाँ बिभाती । ससि समाज मिलि मनहुँ सुराती ॥ जे एहि कथहि सनेह समेता । कहिहहिं सुनिहहिं समुझि सचेता ॥


होइहहिं राम चरन अनुरागी । कलि मल रहित सुमंगल भागी ॥



Doha / दोहा


दो. सपनेहुँ साचेहुँ मोहि पर जौं हर गौरि पसाउ । तौ फुर होउ जो कहेउँ सब भाषा भनिति प्रभाउ ॥ १५ ॥



Chaupai / चोपाई


बंदउँ अवध पुरी अति पावनि । सरजू सरि कलि कलुष नसावनि ॥ प्रनवउँ पुर नर नारि बहोरी । ममता जिन्ह पर प्रभुहि न थोरी ॥


सिय निंदक अघ ओघ नसाए । लोक बिसोक बनाइ बसाए ॥ बंदउँ कौसल्या दिसि प्राची । कीरति जासु सकल जग माची ॥


प्रगटेउ जहँ रघुपति ससि चारू । बिस्व सुखद खल कमल तुसारू ॥ दसरथ राउ सहित सब रानी । सुकृत सुमंगल मूरति मानी ॥


करउँ प्रनाम करम मन बानी । करहु कृपा सुत सेवक जानी ॥ जिन्हहि बिरचि बड़ भयउ बिधाता । महिमा अवधि राम पितु माता ॥



Doha / दोहा


सो. बंदउँ अवध भुआल सत्य प्रेम जेहि राम पद । बिछुरत दीनदयाल प्रिय तनु तृन इव परिहरेउ ॥ १६ ॥



Chaupai / चोपाई


प्रनवउँ परिजन सहित बिदेहू । जाहि राम पद गूढ़ सनेहू ॥ जोग भोग महँ राखेउ गोई । राम बिलोकत प्रगटेउ सोई ॥


प्रनवउँ प्रथम भरत के चरना । जासु नेम ब्रत जाइ न बरना ॥ राम चरन पंकज मन जासू । लुबुध मधुप इव तजइ न पासू ॥


बंदउँ लछिमन पद जलजाता । सीतल सुभग भगत सुख दाता ॥ रघुपति कीरति बिमल पताका । दंड समान भयउ जस जाका ॥


सेष सहस्रसीस जग कारन । जो अवतरेउ भूमि भय टारन ॥ सदा सो सानुकूल रह मो पर । कृपासिंधु सौमित्रि गुनाकर ॥


रिपुसूदन पद कमल नमामी । सूर सुसील भरत अनुगामी ॥ महावीर बिनवउँ हनुमाना । राम जासु जस आप बखाना ॥



Sortha/ सोरठा


सो. प्रनवउँ पवनकुमार खल बन पावक ग्यानधन । जासु हृदय आगार बसहिं राम सर चाप धर ॥ १७ ॥



Chaupai / चोपाई


कपिपति रीछ निसाचर राजा । अंगदादि जे कीस समाजा ॥ बंदउँ सब के चरन सुहाए । अधम सरीर राम जिन्ह पाए ॥


रघुपति चरन उपासक जेते । खग मृग सुर नर असुर समेते ॥ बंदउँ पद सरोज सब केरे । जे बिनु काम राम के चेरे ॥


सुक सनकादि भगत मुनि नारद । जे मुनिबर बिग्यान बिसारद ॥ प्रनवउँ सबहिं धरनि धरि सीसा । करहु कृपा जन जानि मुनीसा ॥


जनकसुता जग जननि जानकी । अतिसय प्रिय करुना निधान की ॥ ताके जुग पद कमल मनावउँ । जासु कृपाँ निरमल मति पावउँ ॥


पुनि मन बचन कर्म रघुनायक । चरन कमल बंदउँ सब लायक ॥ राजिवनयन धरें धनु सायक । भगत बिपति भंजन सुख दायक ॥



Doha / दोहा


दो. गिरा अरथ जल बीचि सम कहिअत भिन्न न भिन्न । बदउँ सीता राम पद जिन्हहि परम प्रिय खिन्न ॥ १८ ॥



Chaupai / चोपाई


बंदउँ नाम राम रघुवर को । हेतु कृसानु भानु हिमकर को ॥ बिधि हरि हरमय बेद प्रान सो । अगुन अनूपम गुन निधान सो ॥


महामंत्र जोइ जपत महेसू । कासीं मुकुति हेतु उपदेसू ॥ महिमा जासु जान गनराउ । प्रथम पूजिअत नाम प्रभाऊ ॥


जान आदिकबि नाम प्रतापू । भयउ सुद्ध करि उलटा जापू ॥ सहस नाम सम सुनि सिव बानी । जपि जेई पिय संग भवानी ॥


हरषे हेतु हेरि हर ही को । किय भूषन तिय भूषन ती को ॥ नाम प्रभाउ जान सिव नीको । कालकूट फलु दीन्ह अमी को ॥



Doha / दोहा


दो. बरषा रितु रघुपति भगति तुलसी सालि सुदास ॥ राम नाम बर बरन जुग सावन भादव मास ॥ १९ ॥



Chaupai / चोपाई


आखर मधुर मनोहर दोऊ । बरन बिलोचन जन जिय जोऊ ॥ सुमिरत सुलभ सुखद सब काहू । लोक लाहु परलोक निबाहू ॥


कहत सुनत सुमिरत सुठि नीके । राम लखन सम प्रिय तुलसी के ॥ बरनत बरन प्रीति बिलगाती । ब्रह्म जीव सम सहज सँघाती ॥


नर नारायन सरिस सुभ्राता । जग पालक बिसेषि जन त्राता ॥ भगति सुतिय कल करन बिभूषन । जग हित हेतु बिमल बिधु पूषन ।


स्वाद तोष सम सुगति सुधा के । कमठ सेष सम धर बसुधा के ॥ जन मन मंजु कंज मधुकर से । जीह जसोमति हरि हलधर से ॥



Doha / दोहा


दो. एकु छत्रु एकु मुकुटमनि सब बरननि पर जोउ । तुलसी रघुबर नाम के बरन बिराजत दोउ ॥ २० ॥



Chaupai / चोपाई


समुझत सरिस नाम अरु नामी । प्रीति परसपर प्रभु अनुगामी ॥ नाम रूप दुइ ईस उपाधी । अकथ अनादि सुसामुझि साधी ॥


को बड़ छोट कहत अपराधू । सुनि गुन भेद समुझिहहिं साधू ॥ देखिअहिं रूप नाम आधीना । रूप ग्यान नहिं नाम बिहीना ॥


रूप बिसेष नाम बिनु जानें । करतल गत न परहिं पहिचानें ॥ सुमिरिअ नाम रूप बिनु देखें । आवत हृदयँ सनेह बिसेषें ॥


नाम रूप गति अकथ कहानी । समुझत सुखद न परति बखानी ॥ अगुन सगुन बिच नाम सुसाखी । उभय प्रबोधक चतुर दुभाषी ॥



Doha / दोहा


दो. राम नाम मनिदीप धरु जीह देहरी द्वार । तुलसी भीतर बाहेरहुँ जौं चाहसि उजिआर ॥ २१ ॥



Chaupai / चोपाई


नाम जीहँ जपि जागहिं जोगी । बिरति बिरंचि प्रपंच बियोगी ॥ ब्रह्मसुखहि अनुभवहिं अनूपा । अकथ अनामय नाम न रूपा ॥


जाना चहहिं गूढ़ गति जेऊ । नाम जीहँ जपि जानहिं तेऊ ॥ साधक नाम जपहिं लय लाएँ । होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएँ ॥


जपहिं नामु जन आरत भारी । मिटहिं कुसंकट होहिं सुखारी ॥ राम भगत जग चारि प्रकारा । सुकृती चारिउ अनघ उदारा ॥


चहू चतुर कहुँ नाम अधारा । ग्यानी प्रभुहि बिसेषि पिआरा ॥ चहुँ जुग चहुँ श्रुति ना प्रभाऊ । कलि बिसेषि नहिं आन उपाऊ ॥



Doha / दोहा


दो. सकल कामना हीन जे राम भगति रस लीन । नाम सुप्रेम पियूष हद तिन्हहुँ किए मन मीन ॥ २२ ॥



Chaupai / चोपाई


अगुन सगुन दुइ ब्रह्म सरूपा । अकथ अगाध अनादि अनूपा ॥ मोरें मत बड़ नामु दुहू तें । किए जेहिं जुग निज बस निज बूतें ॥


प्रोढ़ि सुजन जनि जानहिं जन की । कहउँ प्रतीति प्रीति रुचि मन की ॥ एकु दारुगत देखिअ एकू । पावक सम जुग ब्रह्म बिबेकू ॥


उभय अगम जुग सुगम नाम तें । कहेउँ नामु बड़ ब्रह्म राम तें ॥ ब्यापकु एकु ब्रह्म अबिनासी । सत चेतन धन आनँद रासी ॥


अस प्रभु हृदयँ अछत अबिकारी । सकल जीव जग दीन दुखारी ॥ नाम निरूपन नाम जतन तें । सोउ प्रगटत जिमि मोल रतन तें ॥



Doha / दोहा


दो. निरगुन तें एहि भाँति बड़ नाम प्रभाउ अपार । कहउँ नामु बड़ राम तें निज बिचार अनुसार ॥ २३ ॥



Chaupai / चोपाई


राम भगत हित नर तनु धारी । सहि संकट किए साधु सुखारी ॥ नामु सप्रेम जपत अनयासा । भगत होहिं मुद मंगल बासा ॥


राम एक तापस तिय तारी । नाम कोटि खल कुमति सुधारी ॥ रिषि हित राम सुकेतुसुता की । सहित सेन सुत कीन्ह बिबाकी ॥


सहित दोष दुख दास दुरासा । दलइ नामु जिमि रबि निसि नासा ॥ भंजेउ राम आपु भव चापू । भव भय भंजन नाम प्रतापू ॥


दंडक बनु प्रभु कीन्ह सुहावन । जन मन अमित नाम किए पावन ॥ । निसिचर निकर दले रघुनंदन । नामु सकल कलि कलुष निकंदन ॥



Doha / दोहा


दो. सबरी गीध सुसेवकनि सुगति दीन्हि रघुनाथ । नाम उधारे अमित खल बेद बिदित गुन गाथ ॥ २४ ॥



Chaupai / चोपाई


राम सुकंठ बिभीषन दोऊ । राखे सरन जान सबु कोऊ ॥ नाम गरीब अनेक नेवाजे । लोक बेद बर बिरिद बिराजे ॥


राम भालु कपि कटकु बटोरा । सेतु हेतु श्रमु कीन्ह न थोरा ॥ नामु लेत भवसिंधु सुखाहीं । करहु बिचारु सुजन मन माहीं ॥


राम सकुल रन रावनु मारा । सीय सहित निज पुर पगु धारा ॥ राजा रामु अवध रजधानी । गावत गुन सुर मुनि बर बानी ॥


सेवक सुमिरत नामु सप्रीती । बिनु श्रम प्रबल मोह दलु जीती ॥ फिरत सनेहँ मगन सुख अपनें । नाम प्रसाद सोच नहिं सपनें ॥



Doha / दोहा


दो. ब्रह्म राम तें नामु बड़ बर दायक बर दानि । रामचरित सत कोटि महँ लिय महेस जियँ जानि ॥ २५ ॥



Chaupai / चोपाई


नाम प्रसाद संभु अबिनासी । साजु अमंगल मंगल रासी ॥ सुक सनकादि सिद्ध मुनि जोगी । नाम प्रसाद ब्रह्मसुख भोगी ॥


नारद जानेउ नाम प्रतापू । जग प्रिय हरि हरि हर प्रिय आपू ॥ नामु जपत प्रभु कीन्ह प्रसादू । भगत सिरोमनि भे प्रहलादू ॥


ध्रुवँ सगलानि जपेउ हरि नाऊँ । पायउ अचल अनूपम ठाऊँ ॥ सुमिरि पवनसुत पावन नामू । अपने बस करि राखे रामू ॥


अपतु अजामिलु गजु गनिकाऊ । भए मुकुत हरि नाम प्रभाऊ ॥ कहौं कहाँ लगि नाम बड़ाई । रामु न सकहिं नाम गुन गाई ॥



Doha / दोहा


दो. नामु राम को कलपतरु कलि कल्यान निवासु । जो सुमिरत भयो भाँग तें तुलसी तुलसीदासु ॥ २६ ॥



Chaupai / चोपाई


चहुँ जुग तीनि काल तिहुँ लोका । भए नाम जपि जीव बिसोका ॥ बेद पुरान संत मत एहू । सकल सुकृत फल राम सनेहू ॥


ध्यानु प्रथम जुग मखबिधि दूजें । द्वापर परितोषत प्रभु पूजें ॥ कलि केवल मल मूल मलीना । पाप पयोनिधि जन जन मीना ॥


नाम कामतरु काल कराला । सुमिरत समन सकल जग जाला ॥ राम नाम कलि अभिमत दाता । हित परलोक लोक पितु माता ॥


नहिं कलि करम न भगति बिबेकू । राम नाम अवलंबन एकू ॥ कालनेमि कलि कपट निधानू । नाम सुमति समरथ हनुमानू ॥



Doha / दोहा


दो. राम नाम नरकेसरी कनककसिपु कलिकाल । जापक जन प्रहलाद जिमि पालिहि दलि सुरसाल ॥ २७ ॥



Chaupai / चोपाई


भायँ कुभायँ अनख आलसहूँ । नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ ॥ सुमिरि सो नाम राम गुन गाथा । करउँ नाइ रघुनाथहि माथा ॥


मोरि सुधारिहि सो सब भाँती । जासु कृपा नहिं कृपाँ अघाती ॥ राम सुस्वामि कुसेवकु मोसो । निज दिसि दैखि दयानिधि पोसो ॥


लोकहुँ बेद सुसाहिब रीतीं । बिनय सुनत पहिचानत प्रीती ॥ गनी गरीब ग्रामनर नागर । पंडित मूढ़ मलीन उजागर ॥


सुकबि कुकबि निज मति अनुहारी । नृपहि सराहत सब नर नारी ॥ साधु सुजान सुसील नृपाला । ईस अंस भव परम कृपाला ॥


सुनि सनमानहिं सबहि सुबानी । भनिति भगति नति गति पहिचानी ॥ यह प्राकृत महिपाल सुभाऊ । जान सिरोमनि कोसलराऊ ॥


रीझत राम सनेह निसोतें । को जग मंद मलिनमति मोतें ॥



Doha / दोहा


दो. सठ सेवक की प्रीति रुचि रखिहहिं राम कृपालु । उपल किए जलजान जेहिं सचिव सुमति कपि भालु ॥ २८(क) ॥


हौहु कहावत सबु कहत राम सहत उपहास । साहिब सीतानाथ सो सेवक तुलसीदास ॥ २८(ख) ॥



Chaupai / चोपाई


अति बड़ि मोरि ढिठाई खोरी । सुनि अघ नरकहुँ नाक सकोरी ॥ समुझि सहम मोहि अपडर अपनें । सो सुधि राम कीन्हि नहिं सपनें ॥


सुनि अवलोकि सुचित चख चाही । भगति मोरि मति स्वामि सराही ॥ कहत नसाइ होइ हियँ नीकी । रीझत राम जानि जन जी की ॥


रहति न प्रभु चित चूक किए की । करत सुरति सय बार हिए की ॥ जेहिं अघ बधेउ ब्याध जिमि बाली । फिरि सुकंठ सोइ कीन्ह कुचाली ॥


सोइ करतूति बिभीषन केरी । सपनेहुँ सो न राम हियँ हेरी ॥ ते भरतहि भेंटत सनमाने । राजसभाँ रघुबीर बखाने ॥



Doha / दोहा


दो. प्रभु तरु तर कपि डार पर ते किए आपु समान ॥ तुलसी कहूँ न राम से साहिब सीलनिधान ॥ २९(क) ॥


राम निकाईं रावरी है सबही को नीक । जों यह साँची है सदा तौ नीको तुलसीक ॥ २९(ख) ॥


एहि बिधि निज गुन दोष कहि सबहि बहुरि सिरु नाइ । बरनउँ रघुबर बिसद जसु सुनि कलि कलुष नसाइ ॥ २९(ग) ॥



Chaupai / चोपाई


जागबलिक जो कथा सुहाई । भरद्वाज मुनिबरहि सुनाई ॥ कहिहउँ सोइ संबाद बखानी । सुनहुँ सकल सज्जन सुखु मानी ॥


संभु कीन्ह यह चरित सुहावा । बहुरि कृपा करि उमहि सुनावा ॥ सोइ सिव कागभुसुंडिहि दीन्हा । राम भगत अधिकारी चीन्हा ॥


तेहि सन जागबलिक पुनि पावा । तिन्ह पुनि भरद्वाज प्रति गावा ॥ ते श्रोता बकता समसीला । सवँदरसी जानहिं हरिलीला ॥


जानहिं तीनि काल निज ग्याना । करतल गत आमलक समाना ॥ औरउ जे हरिभगत सुजाना । कहहिं सुनहिं समुझहिं बिधि नाना ॥



Doha / दोहा


दो. मै पुनि निज गुर सन सुनी कथा सो सूकरखेत । समुझी नहि तसि बालपन तब अति रहेउँ अचेत ॥ ३०(क) ॥


श्रोता बकता ग्याननिधि कथा राम कै गूढ़ । किमि समुझौं मै जीव जड़ कलि मल ग्रसित बिमूढ़ ॥ ३०(ख)



Chaupai / चोपाई


तदपि कही गुर बारहिं बारा । समुझि परी कछु मति अनुसारा ॥ भाषाबद्ध करबि मैं सोई । मोरें मन प्रबोध जेहिं होई ॥


जस कछु बुधि बिबेक बल मेरें । तस कहिहउँ हियँ हरि के प्रेरें ॥ निज संदेह मोह भ्रम हरनी । करउँ कथा भव सरिता तरनी ॥


बुध बिश्राम सकल जन रंजनि । रामकथा कलि कलुष बिभंजनि ॥ रामकथा कलि पंनग भरनी । पुनि बिबेक पावक कहुँ अरनी ॥


रामकथा कलि कामद गाई । सुजन सजीवनि मूरि सुहाई ॥ सोइ बसुधातल सुधा तरंगिनि । भय भंजनि भ्रम भेक भुअंगिनि ॥


असुर सेन सम नरक निकंदिनि । साधु बिबुध कुल हित गिरिनंदिनि ॥ संत समाज पयोधि रमा सी । बिस्व भार भर अचल छमा सी ॥


जम गन मुहँ मसि जग जमुना सी । जीवन मुकुति हेतु जनु कासी ॥ रामहि प्रिय पावनि तुलसी सी । तुलसिदास हित हियँ हुलसी सी ॥


सिवप्रय मेकल सैल सुता सी । सकल सिद्धि सुख संपति रासी ॥ सदगुन सुरगन अंब अदिति सी । रघुबर भगति प्रेम परमिति सी ॥



Doha / दोहा


दो. राम कथा मंदाकिनी चित्रकूट चित चारु । तुलसी सुभग सनेह बन सिय रघुबीर बिहारु ॥ ३१ ॥



Chaupai / चोपाई


राम चरित चिंतामनि चारू । संत सुमति तिय सुभग सिंगारू ॥ जग मंगल गुन ग्राम राम के । दानि मुकुति धन धरम धाम के ॥


सदगुर ग्यान बिराग जोग के । बिबुध बैद भव भीम रोग के ॥ जननि जनक सिय राम प्रेम के । बीज सकल ब्रत धरम नेम के ॥


समन पाप संताप सोक के । प्रिय पालक परलोक लोक के ॥ सचिव सुभट भूपति बिचार के । कुंभज लोभ उदधि अपार के ॥


काम कोह कलिमल करिगन के । केहरि सावक जन मन बन के ॥ अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद घन दारिद दवारि के ॥


मंत्र महामनि बिषय ब्याल के । मेटत कठिन कुअंक भाल के ॥ हरन मोह तम दिनकर कर से । सेवक सालि पाल जलधर से ॥


अभिमत दानि देवतरु बर से । सेवत सुलभ सुखद हरि हर से ॥ सुकबि सरद नभ मन उडगन से । रामभगत जन जीवन धन से ॥


सकल सुकृत फल भूरि भोग से । जग हित निरुपधि साधु लोग से ॥ सेवक मन मानस मराल से । पावक गंग तंरग माल से ॥



Doha / दोहा


दो. कुपथ कुतरक कुचालि कलि कपट दंभ पाषंड । दहन राम गुन ग्राम जिमि इंधन अनल प्रचंड ॥ ३२(क) ॥


रामचरित राकेस कर सरिस सुखद सब काहु । सज्जन कुमुद चकोर चित हित बिसेषि बड़ लाहु ॥ ३२(ख) ॥



Chaupai / चोपाई


कीन्हि प्रस्न जेहि भाँति भवानी । जेहि बिधि संकर कहा बखानी ॥ सो सब हेतु कहब मैं गाई । कथाप्रबंध बिचित्र बनाई ॥


जेहि यह कथा सुनी नहिं होई । जनि आचरजु करैं सुनि सोई ॥ कथा अलौकिक सुनहिं जे ग्यानी । नहिं आचरजु करहिं अस जानी ॥


रामकथा कै मिति जग नाहीं । असि प्रतीति तिन्ह के मन माहीं ॥ नाना भाँति राम अवतारा । रामायन सत कोटि अपारा ॥


कलपभेद हरिचरित सुहाए । भाँति अनेक मुनीसन्ह गाए ॥ करिअ न संसय अस उर आनी । सुनिअ कथा सारद रति मानी ॥



Doha / दोहा


दो. राम अनंत अनंत गुन अमित कथा बिस्तार । सुनि आचरजु न मानिहहिं जिन्ह कें बिमल बिचार ॥ ३३ ॥



Chaupai / चोपाई


एहि बिधि सब संसय करि दूरी । सिर धरि गुर पद पंकज धूरी ॥ पुनि सबही बिनवउँ कर जोरी । करत कथा जेहिं लाग न खोरी ॥


सादर सिवहि नाइ अब माथा । बरनउँ बिसद राम गुन गाथा ॥ संबत सोरह सै एकतीसा । करउँ कथा हरि पद धरि सीसा ॥


नौमी भौम बार मधु मासा । अवधपुरीं यह चरित प्रकासा ॥ जेहि दिन राम जनम श्रुति गावहिं । तीरथ सकल तहाँ चलि आवहिं ॥


असुर नाग खग नर मुनि देवा । आइ करहिं रघुनायक सेवा ॥ जन्म महोत्सव रचहिं सुजाना । करहिं राम कल कीरति गाना ॥



Doha / दोहा


दो. मज्जहि सज्जन बृंद बहु पावन सरजू नीर । जपहिं राम धरि ध्यान उर सुंदर स्याम सरीर ॥ ३४ ॥



Chaupai / चोपाई


दरस परस मज्जन अरु पाना । हरइ पाप कह बेद पुराना ॥ नदी पुनीत अमित महिमा अति । कहि न सकइ सारद बिमलमति ॥


राम धामदा पुरी सुहावनि । लोक समस्त बिदित अति पावनि ॥ चारि खानि जग जीव अपारा । अवध तजे तनु नहि संसारा ॥


सब बिधि पुरी मनोहर जानी । सकल सिद्धिप्रद मंगल खानी ॥ बिमल कथा कर कीन्ह अरंभा । सुनत नसाहिं काम मद दंभा ॥


रामचरितमानस एहि नामा । सुनत श्रवन पाइअ बिश्रामा ॥ मन करि विषय अनल बन जरई । होइ सुखी जौ एहिं सर परई ॥


रामचरितमानस मुनि भावन । बिरचेउ संभु सुहावन पावन ॥ त्रिबिध दोष दुख दारिद दावन । कलि कुचालि कुलि कलुष नसावन ॥


रचि महेस निज मानस राखा । पाइ सुसमउ सिवा सन भाषा ॥ तातें रामचरितमानस बर । धरेउ नाम हियँ हेरि हरषि हर ॥


कहउँ कथा सोइ सुखद सुहाई । सादर सुनहु सुजन मन लाई ॥



Doha / दोहा


दो. जस मानस जेहि बिधि भयउ जग प्रचार जेहि हेतु । अब सोइ कहउँ प्रसंग सब सुमिरि उमा बृषकेतु ॥ ३५ ॥



Chaupai / चोपाई


संभु प्रसाद सुमति हियँ हुलसी । रामचरितमानस कबि तुलसी ॥ करइ मनोहर मति अनुहारी । सुजन सुचित सुनि लेहु सुधारी ॥


सुमति भूमि थल हृदय अगाधू । बेद पुरान उदधि घन साधू ॥ बरषहिं राम सुजस बर बारी । मधुर मनोहर मंगलकारी ॥


लीला सगुन जो कहहिं बखानी । सोइ स्वच्छता करइ मल हानी ॥ प्रेम भगति जो बरनि न जाई । सोइ मधुरता सुसीतलताई ॥


सो जल सुकृत सालि हित होई । राम भगत जन जीवन सोई ॥ मेधा महि गत सो जल पावन । सकिलि श्रवन मग चलेउ सुहावन ॥


भरेउ सुमानस सुथल थिराना । सुखद सीत रुचि चारु चिराना ॥



Doha / दोहा


दो. सुठि सुंदर संबाद बर बिरचे बुद्धि बिचारि । तेइ एहि पावन सुभग सर घाट मनोहर चारि ॥ ३६ ॥



Chaupai / चोपाई


सप्त प्रबन्ध सुभग सोपाना । ग्यान नयन निरखत मन माना ॥ रघुपति महिमा अगुन अबाधा । बरनब सोइ बर बारि अगाधा ॥


राम सीय जस सलिल सुधासम । उपमा बीचि बिलास मनोरम ॥ पुरइनि सघन चारु चौपाई । जुगुति मंजु मनि सीप सुहाई ॥


छंद सोरठा सुंदर दोहा । सोइ बहुरंग कमल कुल सोहा ॥ अरथ अनूप सुमाव सुभासा । सोइ पराग मकरंद सुबासा ॥


सुकृत पुंज मंजुल अलि माला । ग्यान बिराग बिचार मराला ॥ धुनि अवरेब कबित गुन जाती । मीन मनोहर ते बहुभाँती ॥


अरथ धरम कामादिक चारी । कहब ग्यान बिग्यान बिचारी ॥ नव रस जप तप जोग बिरागा । ते सब जलचर चारु तड़ागा ॥


सुकृती साधु नाम गुन गाना । ते बिचित्र जल बिहग समाना ॥ संतसभा चहुँ दिसि अवँराई । श्रद्धा रितु बसंत सम गाई ॥


भगति निरुपन बिबिध बिधाना । छमा दया दम लता बिताना ॥ सम जम नियम फूल फल ग्याना । हरि पत रति रस बेद बखाना ॥


औरउ कथा अनेक प्रसंगा । तेइ सुक पिक बहुबरन बिहंगा ॥



Doha / दोहा


दो. पुलक बाटिका बाग बन सुख सुबिहंग बिहारु । माली सुमन सनेह जल सींचत लोचन चारु ॥ ३७ ॥



Chaupai / चोपाई


जे गावहिं यह चरित सँभारे । तेइ एहि ताल चतुर रखवारे ॥ सदा सुनहिं सादर नर नारी । तेइ सुरबर मानस अधिकारी ॥


अति खल जे बिषई बग कागा । एहिं सर निकट न जाहिं अभागा ॥ संबुक भेक सेवार समाना । इहाँ न बिषय कथा रस नाना ॥


तेहि कारन आवत हियँ हारे । कामी काक बलाक बिचारे ॥ आवत एहिं सर अति कठिनाई । राम कृपा बिनु आइ न जाई ॥


कठिन कुसंग कुपंथ कराला । तिन्ह के बचन बाघ हरि ब्याला ॥ गृह कारज नाना जंजाला । ते अति दुर्गम सैल बिसाला ॥


बन बहु बिषम मोह मद माना । नदीं कुतर्क भयंकर नाना ॥



Doha / दोहा


दो. जे श्रद्धा संबल रहित नहि संतन्ह कर साथ । तिन्ह कहुँ मानस अगम अति जिन्हहि न प्रिय रघुनाथ ॥ ३८ ॥



Chaupai / चोपाई


जौं करि कष्ट जाइ पुनि कोई । जातहिं नींद जुड़ाई होई ॥ जड़ता जाड़ बिषम उर लागा । गएहुँ न मज्जन पाव अभागा ॥


करि न जाइ सर मज्जन पाना । फिरि आवइ समेत अभिमाना ॥ जौं बहोरि कोउ पूछन आवा । सर निंदा करि ताहि बुझावा ॥


सकल बिघ्न ब्यापहि नहिं तेही । राम सुकृपाँ बिलोकहिं जेही ॥ सोइ सादर सर मज्जनु करई । महा घोर त्रयताप न जरई ॥


ते नर यह सर तजहिं न काऊ । जिन्ह के राम चरन भल भाऊ ॥ जो नहाइ चह एहिं सर भाई । सो सतसंग करउ मन लाई ॥


अस मानस मानस चख चाही । भइ कबि बुद्धि बिमल अवगाही ॥ भयउ हृदयँ आनंद उछाहू । उमगेउ प्रेम प्रमोद प्रबाहू ॥


चली सुभग कबिता सरिता सो । राम बिमल जस जल भरिता सो ॥ सरजू नाम सुमंगल मूला । लोक बेद मत मंजुल कूला ॥


नदी पुनीत सुमानस नंदिनि । कलिमल तृन तरु मूल निकंदिनि ॥



Doha / दोहा


दो. श्रोता त्रिबिध समाज पुर ग्राम नगर दुहुँ कूल । संतसभा अनुपम अवध सकल सुमंगल मूल ॥ ३९ ॥



Chaupai / चोपाई


रामभगति सुरसरितहि जाई । मिली सुकीरति सरजु सुहाई ॥ सानुज राम समर जसु पावन । मिलेउ महानदु सोन सुहावन ॥


जुग बिच भगति देवधुनि धारा । सोहति सहित सुबिरति बिचारा ॥ त्रिबिध ताप त्रासक तिमुहानी । राम सरुप सिंधु समुहानी ॥


मानस मूल मिली सुरसरिही । सुनत सुजन मन पावन करिही ॥ बिच बिच कथा बिचित्र बिभागा । जनु सरि तीर तीर बन बागा ॥


उमा महेस बिबाह बराती । ते जलचर अगनित बहुभाँती ॥ रघुबर जनम अनंद बधाई । भवँर तरंग मनोहरताई ॥



Doha / दोहा


दो. बालचरित चहु बंधु के बनज बिपुल बहुरंग । नृप रानी परिजन सुकृत मधुकर बारिबिहंग ॥ ४० ॥



Chaupai / चोपाई


सीय स्वयंबर कथा सुहाई । सरित सुहावनि सो छबि छाई ॥ नदी नाव पटु प्रस्न अनेका । केवट कुसल उतर सबिबेका ॥


सुनि अनुकथन परस्पर होई । पथिक समाज सोह सरि सोई ॥ घोर धार भृगुनाथ रिसानी । घाट सुबद्ध राम बर बानी ॥


सानुज राम बिबाह उछाहू । सो सुभ उमग सुखद सब काहू ॥ कहत सुनत हरषहिं पुलकाहीं । ते सुकृती मन मुदित नहाहीं ॥


राम तिलक हित मंगल साजा । परब जोग जनु जुरे समाजा ॥ काई कुमति केकई केरी । परी जासु फल बिपति घनेरी ॥



Doha / दोहा


दो. समन अमित उतपात सब भरतचरित जपजाग । कलि अघ खल अवगुन कथन ते जलमल बग काग ॥ ४१ ॥



Chaupai / चोपाई


कीरति सरित छहूँ रितु रूरी । समय सुहावनि पावनि भूरी ॥ हिम हिमसैलसुता सिव ब्याहू । सिसिर सुखद प्रभु जनम उछाहू ॥


बरनब राम बिबाह समाजू । सो मुद मंगलमय रितुराजू ॥ ग्रीषम दुसह राम बनगवनू । पंथकथा खर आतप पवनू ॥


बरषा घोर निसाचर रारी । सुरकुल सालि सुमंगलकारी ॥ राम राज सुख बिनय बड़ाई । बिसद सुखद सोइ सरद सुहाई ॥


सती सिरोमनि सिय गुनगाथा । सोइ गुन अमल अनूपम पाथा ॥ भरत सुभाउ सुसीतलताई । सदा एकरस बरनि न जाई ॥



Doha / दोहा


दो. अवलोकनि बोलनि मिलनि प्रीति परसपर हास । भायप भलि चहु बंधु की जल माधुरी सुबास ॥ ४२ ॥



Chaupai / चोपाई


आरति बिनय दीनता मोरी । लघुता ललित सुबारि न थोरी ॥ अदभुत सलिल सुनत गुनकारी । आस पिआस मनोमल हारी ॥


राम सुप्रेमहि पोषत पानी । हरत सकल कलि कलुष गलानौ ॥ भव श्रम सोषक तोषक तोषा । समन दुरित दुख दारिद दोषा ॥


काम कोह मद मोह नसावन । बिमल बिबेक बिराग बढ़ावन ॥ सादर मज्जन पान किए तें । मिटहिं पाप परिताप हिए तें ॥


जिन्ह एहि बारि न मानस धोए । ते कायर कलिकाल बिगोए ॥ तृषित निरखि रबि कर भव बारी । फिरिहहि मृग जिमि जीव दुखारी ॥



Doha / दोहा


दो. मति अनुहारि सुबारि गुन गनि मन अन्हवाइ । सुमिरि भवानी संकरहि कह कबि कथा सुहाइ ॥ ४३(क) ॥


अब रघुपति पद पंकरुह हियँ धरि पाइ प्रसाद । कहउँ जुगल मुनिबर्ज कर मिलन सुभग संबाद ॥ ४३(ख) ॥



Chaupai / चोपाई


भरद्वाज मुनि बसहिं प्रयागा । तिन्हहि राम पद अति अनुरागा ॥ तापस सम दम दया निधाना । परमारथ पथ परम सुजाना ॥


माघ मकरगत रबि जब होई । तीरथपतिहिं आव सब कोई ॥ देव दनुज किंनर नर श्रेनी । सादर मज्जहिं सकल त्रिबेनीं ॥


पूजहि माधव पद जलजाता । परसि अखय बटु हरषहिं गाता ॥ भरद्वाज आश्रम अति पावन । परम रम्य मुनिबर मन भावन ॥


तहाँ होइ मुनि रिषय समाजा । जाहिं जे मज्जन तीरथराजा ॥ मज्जहिं प्रात समेत उछाहा । कहहिं परसपर हरि गुन गाहा ॥



Doha / दोहा


दो. ब्रह्म निरूपम धरम बिधि बरनहिं तत्त्व बिभाग । कहहिं भगति भगवंत कै संजुत ग्यान बिराग ॥ ४४ ॥



Chaupai / चोपाई


एहि प्रकार भरि माघ नहाहीं । पुनि सब निज निज आश्रम जाहीं ॥ प्रति संबत अति होइ अनंदा । मकर मज्जि गवनहिं मुनिबृंदा ॥


एक बार भरि मकर नहाए । सब मुनीस आश्रमन्ह सिधाए ॥ जगबालिक मुनि परम बिबेकी । भरव्दाज राखे पद टेकी ॥


सादर चरन सरोज पखारे । अति पुनीत आसन बैठारे ॥ करि पूजा मुनि सुजस बखानी । बोले अति पुनीत मृदु बानी ॥


नाथ एक संसउ बड़ मोरें । करगत बेदतत्व सबु तोरें ॥ कहत सो मोहि लागत भय लाजा । जौ न कहउँ बड़ होइ अकाजा ॥



Doha / दोहा


दो. संत कहहि असि नीति प्रभु श्रुति पुरान मुनि गाव । होइ न बिमल बिबेक उर गुर सन किएँ दुराव ॥ ४५ ॥



Chaupai / चोपाई


अस बिचारि प्रगटउँ निज मोहू । हरहु नाथ करि जन पर छोहू ॥ रास नाम कर अमित प्रभावा । संत पुरान उपनिषद गावा ॥


संतत जपत संभु अबिनासी । सिव भगवान ग्यान गुन रासी ॥ आकर चारि जीव जग अहहीं । कासीं मरत परम पद लहहीं ॥


सोऽपि राम महिमा मुनिराया । सिव उपदेसु करत करि दाया ॥ रामु कवन प्रभु पूछउँ तोही । कहिअ बुझाइ कृपानिधि मोही ॥


एक राम अवधेस कुमारा । तिन्ह कर चरित बिदित संसारा ॥ नारि बिरहँ दुखु लहेउ अपारा । भयहु रोषु रन रावनु मारा ॥



Doha / दोहा


दो. प्रभु सोइ राम कि अपर कोउ जाहि जपत त्रिपुरारि । सत्यधाम सर्बग्य तुम्ह कहहु बिबेकु बिचारि ॥ ४६ ॥



Chaupai / चोपाई


जैसे मिटै मोर भ्रम भारी । कहहु सो कथा नाथ बिस्तारी ॥ जागबलिक बोले मुसुकाई । तुम्हहि बिदित रघुपति प्रभुताई ॥


राममगत तुम्ह मन क्रम बानी । चतुराई तुम्हारी मैं जानी ॥ चाहहु सुनै राम गुन गूढ़ा । कीन्हिहु प्रस्न मनहुँ अति मूढ़ा ॥


तात सुनहु सादर मनु लाई । कहउँ राम कै कथा सुहाई ॥ महामोहु महिषेसु बिसाला । रामकथा कालिका कराला ॥


रामकथा ससि किरन समाना । संत चकोर करहिं जेहि पाना ॥ ऐसेइ संसय कीन्ह भवानी । महादेव तब कहा बखानी ॥



Doha / दोहा


दो. कहउँ सो मति अनुहारि अब उमा संभु संबाद । भयउ समय जेहि हेतु जेहि सुनु मुनि मिटिहि बिषाद ॥ ४७ ॥



Chaupai / चोपाई


एक बार त्रेता जुग माहीं । संभु गए कुंभज रिषि पाहीं ॥ संग सती जगजननि भवानी । पूजे रिषि अखिलेस्वर जानी ॥


रामकथा मुनीबर्ज बखानी । सुनी महेस परम सुखु मानी ॥ रिषि पूछी हरिभगति सुहाई । कही संभु अधिकारी पाई ॥


कहत सुनत रघुपति गुन गाथा । कछु दिन तहाँ रहे गिरिनाथा ॥ मुनि सन बिदा मागि त्रिपुरारी । चले भवन सँग दच्छकुमारी ॥


तेहि अवसर भंजन महिभारा । हरि रघुबंस लीन्ह अवतारा ॥ पिता बचन तजि राजु उदासी । दंडक बन बिचरत अबिनासी ॥



Doha / दोहा


दो. ह्दयँ बिचारत जात हर केहि बिधि दरसनु होइ । गुप्त रुप अवतरेउ प्रभु गएँ जान सबु कोइ ॥ ४८(क) ॥



Sortha/ सोरठा


सो. संकर उर अति छोभु सती न जानहिं मरमु सोइ ॥ तुलसी दरसन लोभु मन डरु लोचन लालची ॥ ४८(ख) ॥



Chaupai / चोपाई


रावन मरन मनुज कर जाचा । प्रभु बिधि बचनु कीन्ह चह साचा ॥ जौं नहिं जाउँ रहइ पछितावा । करत बिचारु न बनत बनावा ॥


एहि बिधि भए सोचबस ईसा । तेहि समय जाइ दससीसा ॥ लीन्ह नीच मारीचहि संगा । भयउ तुरत सोइ कपट कुरंगा ॥


करि छलु मूढ़ हरी बैदेही । प्रभु प्रभाउ तस बिदित न तेही ॥ मृग बधि बन्धु सहित हरि आए । आश्रमु देखि नयन जल छाए ॥


बिरह बिकल नर इव रघुराई । खोजत बिपिन फिरत दोउ भाई ॥ कबहूँ जोग बियोग न जाकें । देखा प्रगट बिरह दुख ताकें ॥



Doha / दोहा


दो. अति विचित्र रघुपति चरित जानहिं परम सुजान । जे मतिमंद बिमोह बस हृदयँ धरहिं कछु आन ॥ ४९ ॥



Chaupai / चोपाई


संभु समय तेहि रामहि देखा । उपजा हियँ अति हरपु बिसेषा ॥ भरि लोचन छबिसिंधु निहारी । कुसमय जानिन कीन्हि चिन्हारी ॥


जय सच्चिदानंद जग पावन । अस कहि चलेउ मनोज नसावन ॥ चले जात सिव सती समेता । पुनि पुनि पुलकत कृपानिकेता ॥


सतीं सो दसा संभु कै देखी । उर उपजा संदेहु बिसेषी ॥ संकरु जगतबंद्य जगदीसा । सुर नर मुनि सब नावत सीसा ॥


तिन्ह नृपसुतहि नह परनामा । कहि सच्चिदानंद परधामा ॥ भए मगन छबि तासु बिलोकी । अजहुँ प्रीति उर रहति न रोकी ॥



Doha / दोहा


दो. ब्रह्म जो व्यापक बिरज अज अकल अनीह अभेद । सो कि देह धरि होइ नर जाहि न जानत वेद ॥ ५० ॥



Chaupai / चोपाई


बिष्नु जो सुर हित नरतनु धारी । सोउ सर्बग्य जथा त्रिपुरारी ॥ खोजइ सो कि अग्य इव नारी । ग्यानधाम श्रीपति असुरारी ॥


संभुगिरा पुनि मृषा न होई । सिव सर्बग्य जान सबु कोई ॥ अस संसय मन भयउ अपारा । होई न हृदयँ प्रबोध प्रचारा ॥


जद्यपि प्रगट न कहेउ भवानी । हर अंतरजामी सब जानी ॥ सुनहि सती तव नारि सुभाऊ । संसय अस न धरिअ उर काऊ ॥


जासु कथा कुभंज रिषि गाई । भगति जासु मैं मुनिहि सुनाई ॥ सोउ मम इष्टदेव रघुबीरा । सेवत जाहि सदा मुनि धीरा ॥



Chanda / छन्द


छं. मुनि धीर जोगी सिद्ध संतत बिमल मन जेहि ध्यावहीं । कहि नेति निगम पुरान आगम जासु कीरति गावहीं ॥ सोइ रामु ब्यापक ब्रह्म भुवन निकाय पति माया धनी । अवतरेउ अपने भगत हित निजतंत्र नित रघुकुलमनि ॥



Doha / दोहा


सो. लाग न उर उपदेसु जदपि कहेउ सिवँ बार बहु । बोले बिहसि महेसु हरिमाया बलु जानि जियँ ॥ ५१ ॥



Chaupai / चोपाई


जौं तुम्हरें मन अति संदेहू । तौ किन जाइ परीछा लेहू ॥ तब लगि बैठ अहउँ बटछाहिं । जब लगि तुम्ह ऐहहु मोहि पाही ॥


जैसें जाइ मोह भ्रम भारी । करेहु सो जतनु बिबेक बिचारी ॥ चलीं सती सिव आयसु पाई । करहिं बिचारु करौं का भाई ॥


इहाँ संभु अस मन अनुमाना । दच्छसुता कहुँ नहिं कल्याना ॥ मोरेहु कहें न संसय जाहीं । बिधी बिपरीत भलाई नाहीं ॥


होइहि सोइ जो राम रचि राखा । को करि तर्क बढ़ावै साखा ॥ अस कहि लगे जपन हरिनामा । गई सती जहँ प्रभु सुखधामा ॥



Doha / दोहा


दो. पुनि पुनि हृदयँ विचारु करि धरि सीता कर रुप । आगें होइ चलि पंथ तेहि जेहिं आवत नरभूप ॥ ५२ ॥



Chaupai / चोपाई


लछिमन दीख उमाकृत बेषा चकित भए भ्रम हृदयँ बिसेषा ॥ कहि न सकत कछु अति गंभीरा । प्रभु प्रभाउ जानत मतिधीरा ॥


सती कपटु जानेउ सुरस्वामी । सबदरसी सब अंतरजामी ॥ सुमिरत जाहि मिटइ अग्याना । सोइ सरबग्य रामु भगवाना ॥


सती कीन्ह चह तहँहुँ दुराऊ । देखहु नारि सुभाव प्रभाऊ ॥ निज माया बलु हृदयँ बखानी । बोले बिहसि रामु मृदु बानी ॥


जोरि पानि प्रभु कीन्ह प्रनामू । पिता समेत लीन्ह निज नामू ॥ कहेउ बहोरि कहाँ बृषकेतू । बिपिन अकेलि फिरहु केहि हेतू ॥



Doha / दोहा


दो. राम बचन मृदु गूढ़ सुनि उपजा अति संकोचु । सती सभीत महेस पहिं चलीं हृदयँ बड़ सोचु ॥ ५३ ॥



Chaupai / चोपाई


मैं संकर कर कहा न माना । निज अग्यानु राम पर आना ॥ जाइ उतरु अब देहउँ काहा । उर उपजा अति दारुन दाहा ॥


जाना राम सतीं दुखु पावा । निज प्रभाउ कछु प्रगटि जनावा ॥ सतीं दीख कौतुकु मग जाता । आगें रामु सहित श्री भ्राता ॥


फिरि चितवा पाछें प्रभु देखा । सहित बंधु सिय सुंदर वेषा ॥ जहँ चितवहिं तहँ प्रभु आसीना । सेवहिं सिद्ध मुनीस प्रबीना ॥


देखे सिव बिधि बिष्नु अनेका । अमित प्रभाउ एक तें एका ॥ बंदत चरन करत प्रभु सेवा । बिबिध बेष देखे सब देवा ॥



Doha / दोहा


दो. सती बिधात्री इंदिरा देखीं अमित अनूप । जेहिं जेहिं बेष अजादि सुर तेहि तेहि तन अनुरूप ॥ ५४ ॥



Chaupai / चोपाई


देखे जहँ तहँ रघुपति जेते । सक्तिन्ह सहित सकल सुर तेते ॥ जीव चराचर जो संसारा । देखे सकल अनेक प्रकारा ॥


पूजहिं प्रभुहि देव बहु बेषा । राम रूप दूसर नहिं देखा ॥ अवलोके रघुपति बहुतेरे । सीता सहित न बेष घनेरे ॥


सोइ रघुबर सोइ लछिमनु सीता । देखि सती अति भई सभीता ॥ हृदय कंप तन सुधि कछु नाहीं । नयन मूदि बैठीं मग माहीं ॥


बहुरि बिलोकेउ नयन उघारी । कछु न दीख तहँ दच्छकुमारी ॥ पुनि पुनि नाइ राम पद सीसा । चलीं तहाँ जहँ रहे गिरीसा ॥



Doha / दोहा


दो. गई समीप महेस तब हँसि पूछी कुसलात । लीन्ही परीछा कवन बिधि कहहु सत्य सब बात ॥ ५५ ॥



Chaupai / चोपाई


सतीं समुझि रघुबीर प्रभाऊ । भय बस सिव सन कीन्ह दुराऊ ॥ कछु न परीछा लीन्हि गोसाई । कीन्ह प्रनामु तुम्हारिहि नाई ॥


जो तुम्ह कहा सो मृषा न होई । मोरें मन प्रतीति अति सोई ॥ तब संकर देखेउ धरि ध्याना । सतीं जो कीन्ह चरित सब जाना ॥


बहुरि राममायहि सिरु नावा । प्रेरि सतिहि जेहिं झूँठ कहावा ॥ हरि इच्छा भावी बलवाना । हृदयँ बिचारत संभु सुजाना ॥


सतीं कीन्ह सीता कर बेषा । सिव उर भयउ बिषाद बिसेषा ॥ जौं अब करउँ सती सन प्रीती । मिटइ भगति पथु होइ अनीती ॥



Doha / दोहा


दो. परम पुनीत न जाइ तजि किएँ प्रेम बड़ पापु । प्रगटि न कहत महेसु कछु हृदयँ अधिक संतापु ॥ ५६ ॥



Chaupai / चोपाई


तब संकर प्रभु पद सिरु नावा । सुमिरत रामु हृदयँ अस आवा ॥ एहिं तन सतिहि भेट मोहि नाहीं । सिव संकल्पु कीन्ह मन माहीं ॥


अस बिचारि संकरु मतिधीरा । चले भवन सुमिरत रघुबीरा ॥ चलत गगन भै गिरा सुहाई । जय महेस भलि भगति दृढ़ाई ॥


अस पन तुम्ह बिनु करइ को आना । रामभगत समरथ भगवाना ॥ सुनि नभगिरा सती उर सोचा । पूछा सिवहि समेत सकोचा ॥


कीन्ह कवन पन कहहु कृपाला । सत्यधाम प्रभु दीनदयाला ॥ जदपि सतीं पूछा बहु भाँती । तदपि न कहेउ त्रिपुर आराती ॥



Doha / दोहा


दो. सतीं हृदय अनुमान किय सबु जानेउ सर्बग्य । कीन्ह कपटु मैं संभु सन नारि सहज जड़ अग्य ॥ ५७क ॥



Chaupai / चोपाई


हृदयँ सोचु समुझत निज करनी । चिंता अमित जाइ नहि बरनी ॥ कृपासिंधु सिव परम अगाधा । प्रगट न कहेउ मोर अपराधा ॥


संकर रुख अवलोकि भवानी । प्रभु मोहि तजेउ हृदयँ अकुलानी ॥ निज अघ समुझि न कछु कहि जाई । तपइ अवाँ इव उर अधिकाई ॥


सतिहि ससोच जानि बृषकेतू । कहीं कथा सुंदर सुख हेतू ॥ बरनत पंथ बिबिध इतिहासा । बिस्वनाथ पहुँचे कैलासा ॥


तहँ पुनि संभु समुझि पन आपन । बैठे बट तर करि कमलासन ॥ संकर सहज सरुप संहारा । लागि समाधि अखंड अपारा ॥



Doha / दोहा


दो. सती बसहि कैलास तब अधिक सोचु मन माहिं । मरमु न कोऊ जान कछु जुग सम दिवस सिराहिं ॥ ५८ ॥



Chaupai / चोपाई


नित नव सोचु सतीं उर भारा । कब जैहउँ दुख सागर पारा ॥ मैं जो कीन्ह रघुपति अपमाना । पुनिपति बचनु मृषा करि जाना ॥


सो फलु मोहि बिधाताँ दीन्हा । जो कछु उचित रहा सोइ कीन्हा ॥ अब बिधि अस बूझिअ नहि तोही । संकर बिमुख जिआवसि मोही ॥


कहि न जाई कछु हृदय गलानी । मन महुँ रामाहि सुमिर सयानी ॥ जौ प्रभु दीनदयालु कहावा । आरती हरन बेद जसु गावा ॥


तौ मैं बिनय करउँ कर जोरी । छूटउ बेगि देह यह मोरी ॥ जौं मोरे सिव चरन सनेहू । मन क्रम बचन सत्य ब्रतु एहू ॥



Doha / दोहा


दो. तौ सबदरसी सुनिअ प्रभु करउ सो बेगि उपाइ । होइ मरनु जेही बिनहिं श्रम दुसह बिपत्ति बिहाइ ॥ ५९ ॥



Sortha/ सोरठा


सो. जलु पय सरिस बिकाइ देखहु प्रीति कि रीति भलि । बिलग होइ रसु जाइ कपट खटाई परत पुनि ॥ ५७ख ॥



Chaupai / चोपाई


एहि बिधि दुखित प्रजेसकुमारी । अकथनीय दारुन दुखु भारी ॥ बीतें संबत सहस सतासी । तजी समाधि संभु अबिनासी ॥


राम नाम सिव सुमिरन लागे । जानेउ सतीं जगतपति जागे ॥ जाइ संभु पद बंदनु कीन्ही । सनमुख संकर आसनु दीन्हा ॥


लगे कहन हरिकथा रसाला । दच्छ प्रजेस भए तेहि काला ॥ देखा बिधि बिचारि सब लायक । दच्छहि कीन्ह प्रजापति नायक ॥


बड़ अधिकार दच्छ जब पावा । अति अभिमानु हृदयँ तब आवा ॥ नहिं कोउ अस जनमा जग माहीं । प्रभुता पाइ जाहि मद नाहीं ॥



Doha / दोहा


दो. दच्छ लिए मुनि बोलि सब करन लगे बड़ जाग । नेवते सादर सकल सुर जे पावत मख भाग ॥ ६० ॥



Chaupai / चोपाई


किंनर नाग सिद्ध गंधर्बा । बधुन्ह समेत चले सुर सर्बा ॥ बिष्नु बिरंचि महेसु बिहाई । चले सकल सुर जान बनाई ॥


सतीं बिलोके ब्योम बिमाना । जात चले सुंदर बिधि नाना ॥ सुर सुंदरी करहिं कल गाना । सुनत श्रवन छूटहिं मुनि ध्याना ॥


पूछेउ तब सिवँ कहेउ बखानी । पिता जग्य सुनि कछु हरषानी ॥ जौं महेसु मोहि आयसु देहीं । कुछ दिन जाइ रहौं मिस एहीं ॥


पति परित्याग हृदय दुखु भारी । कहइ न निज अपराध बिचारी ॥ बोली सती मनोहर बानी । भय संकोच प्रेम रस सानी ॥



Doha / दोहा


दो. पिता भवन उत्सव परम जौं प्रभु आयसु होइ । तौ मै जाउँ कृपायतन सादर देखन सोइ ॥ ६१ ॥



Chaupai / चोपाई


कहेहु नीक मोरेहुँ मन भावा । यह अनुचित नहिं नेवत पठावा ॥ दच्छ सकल निज सुता बोलाई । हमरें बयर तुम्हउ बिसराई ॥


ब्रह्मसभाँ हम सन दुखु माना । तेहि तें अजहुँ करहिं अपमाना ॥ जौं बिनु बोलें जाहु भवानी । रहइ न सीलु सनेहु न कानी ॥


जदपि मित्र प्रभु पितु गुर गेहा । जाइअ बिनु बोलेहुँ न सँदेहा ॥ तदपि बिरोध मान जहँ कोई । तहाँ गएँ कल्यानु न होई ॥


भाँति अनेक संभु समुझावा । भावी बस न ग्यानु उर आवा ॥ कह प्रभु जाहु जो बिनहिं बोलाएँ । नहिं भलि बात हमारे भाएँ ॥



Doha / दोहा


दो. कहि देखा हर जतन बहु रहइ न दच्छकुमारि । दिए मुख्य गन संग तब बिदा कीन्ह त्रिपुरारि ॥ ६२ ॥



Chaupai / चोपाई


पिता भवन जब गई भवानी । दच्छ त्रास काहुँ न सनमानी ॥ सादर भलेहिं मिली एक माता । भगिनीं मिलीं बहुत मुसुकाता ॥


दच्छ न कछु पूछी कुसलाता । सतिहि बिलोकि जरे सब गाता ॥ सतीं जाइ देखेउ तब जागा । कतहुँ न दीख संभु कर भागा ॥


तब चित चढ़ेउ जो संकर कहेऊ । प्रभु अपमानु समुझि उर दहेऊ ॥ पाछिल दुखु न हृदयँ अस ब्यापा । जस यह भयउ महा परितापा ॥


जद्यपि जग दारुन दुख नाना । सब तें कठिन जाति अवमाना ॥ समुझि सो सतिहि भयउ अति क्रोधा । बहु बिधि जननीं कीन्ह प्रबोधा ॥



Doha / दोहा


दो. सिव अपमानु न जाइ सहि हृदयँ न होइ प्रबोध । सकल सभहि हठि हटकि तब बोलीं बचन सक्रोध ॥ ६३ ॥



Chaupai / चोपाई


सुनहु सभासद सकल मुनिंदा । कही सुनी जिन्ह संकर निंदा ॥ सो फलु तुरत लहब सब काहूँ । भली भाँति पछिताब पिताहूँ ॥


संत संभु श्रीपति अपबादा । सुनिअ जहाँ तहँ असि मरजादा ॥ काटिअ तासु जीभ जो बसाई । श्रवन मूदि न त चलिअ पराई ॥


जगदातमा महेसु पुरारी । जगत जनक सब के हितकारी ॥ पिता मंदमति निंदत तेही । दच्छ सुक्र संभव यह देही ॥


तजिहउँ तुरत देह तेहि हेतू । उर धरि चंद्रमौलि बृषकेतू ॥ अस कहि जोग अगिनि तनु जारा । भयउ सकल मख हाहाकारा ॥



Doha / दोहा


दो. सती मरनु सुनि संभु गन लगे करन मख खीस । जग्य बिधंस बिलोकि भृगु रच्छा कीन्हि मुनीस ॥ ६४ ॥



Chaupai / चोपाई


समाचार सब संकर पाए । बीरभद्रु करि कोप पठाए ॥ जग्य बिधंस जाइ तिन्ह कीन्हा । सकल सुरन्ह बिधिवत फलु दीन्हा ॥


भे जगबिदित दच्छ गति सोई । जसि कछु संभु बिमुख कै होई ॥ यह इतिहास सकल जग जानी । ताते मैं संछेप बखानी ॥


सतीं मरत हरि सन बरु मागा । जनम जनम सिव पद अनुरागा ॥ तेहि कारन हिमगिरि गृह जाई । जनमीं पारबती तनु पाई ॥


जब तें उमा सैल गृह जाईं । सकल सिद्धि संपति तहँ छाई ॥ जहँ तहँ मुनिन्ह सुआश्रम कीन्हे । उचित बास हिम भूधर दीन्हे ॥



Doha / दोहा


दो. सदा सुमन फल सहित सब द्रुम नव नाना जाति । प्रगटीं सुंदर सैल पर मनि आकर बहु भाँति ॥ ६५ ॥



Chaupai / चोपाई


सरिता सब पुनित जलु बहहीं । खग मृग मधुप सुखी सब रहहीं ॥ सहज बयरु सब जीवन्ह त्यागा । गिरि पर सकल करहिं अनुरागा ॥


सोह सैल गिरिजा गृह आएँ । जिमि जनु रामभगति के पाएँ ॥ नित नूतन मंगल गृह तासू । ब्रह्मादिक गावहिं जसु जासू ॥


नारद समाचार सब पाए । कौतुकहीं गिरि गेह सिधाए ॥ सैलराज बड़ आदर कीन्हा । पद पखारि बर आसनु दीन्हा ॥


नारि सहित मुनि पद सिरु नावा । चरन सलिल सबु भवनु सिंचावा ॥ निज सौभाग्य बहुत गिरि बरना । सुता बोलि मेली मुनि चरना ॥



Doha / दोहा


दो. त्रिकालग्य सर्बग्य तुम्ह गति सर्बत्र तुम्हारि ॥ कहहु सुता के दोष गुन मुनिबर हृदयँ बिचारि ॥ ६६ ॥



Chaupai / चोपाई


कह मुनि बिहसि गूढ़ मृदु बानी । सुता तुम्हारि सकल गुन खानी ॥ सुंदर सहज सुसील सयानी । नाम उमा अंबिका भवानी ॥


सब लच्छन संपन्न कुमारी । होइहि संतत पियहि पिआरी ॥ सदा अचल एहि कर अहिवाता । एहि तें जसु पैहहिं पितु माता ॥


होइहि पूज्य सकल जग माहीं । एहि सेवत कछु दुर्लभ नाहीं ॥ एहि कर नामु सुमिरि संसारा । त्रिय चढ़हहिँ पतिब्रत असिधारा ॥


सैल सुलच्छन सुता तुम्हारी । सुनहु जे अब अवगुन दुइ चारी ॥ अगुन अमान मातु पितु हीना । उदासीन सब संसय छीना ॥



Doha / दोहा


दो. जोगी जटिल अकाम मन नगन अमंगल बेष ॥ अस स्वामी एहि कहँ मिलिहि परी हस्त असि रेख ॥ ६७ ॥



Chaupai / चोपाई


सुनि मुनि गिरा सत्य जियँ जानी । दुख दंपतिहि उमा हरषानी ॥ नारदहुँ यह भेदु न जाना । दसा एक समुझब बिलगाना ॥


सकल सखीं गिरिजा गिरि मैना । पुलक सरीर भरे जल नैना ॥ होइ न मृषा देवरिषि भाषा । उमा सो बचनु हृदयँ धरि राखा ॥


उपजेउ सिव पद कमल सनेहू । मिलन कठिन मन भा संदेहू ॥ जानि कुअवसरु प्रीति दुराई । सखी उछँग बैठी पुनि जाई ॥


झूठि न होइ देवरिषि बानी । सोचहि दंपति सखीं सयानी ॥ उर धरि धीर कहइ गिरिराऊ । कहहु नाथ का करिअ उपाऊ ॥



Doha / दोहा


दो. कह मुनीस हिमवंत सुनु जो बिधि लिखा लिलार । देव दनुज नर नाग मुनि कोउ न मेटनिहार ॥ ६८ ॥



Chaupai / चोपाई


तदपि एक मैं कहउँ उपाई । होइ करै जौं दैउ सहाई ॥ जस बरु मैं बरनेउँ तुम्ह पाहीं । मिलहि उमहि तस संसय नाहीं ॥


जे जे बर के दोष बखाने । ते सब सिव पहि मैं अनुमाने ॥ जौं बिबाहु संकर सन होई । दोषउ गुन सम कह सबु कोई ॥


जौं अहि सेज सयन हरि करहीं । बुध कछु तिन्ह कर दोषु न धरहीं ॥ भानु कृसानु सर्ब रस खाहीं । तिन्ह कहँ मंद कहत कोउ नाहीं ॥


सुभ अरु असुभ सलिल सब बहई । सुरसरि कोउ अपुनीत न कहई ॥ समरथ कहुँ नहिं दोषु गोसाई । रबि पावक सुरसरि की नाई ॥



Doha / दोहा


दो. जौं अस हिसिषा करहिं नर जड़ि बिबेक अभिमान । परहिं कलप भरि नरक महुँ जीव कि ईस समान ॥ ६९ ॥



Chaupai / चोपाई


सुरसरि जल कृत बारुनि जाना । कबहुँ न संत करहिं तेहि पाना ॥ सुरसरि मिलें सो पावन जैसें । ईस अनीसहि अंतरु तैसें ॥


संभु सहज समरथ भगवाना । एहि बिबाहँ सब बिधि कल्याना ॥ दुराराध्य पै अहहिं महेसू । आसुतोष पुनि किएँ कलेसू ॥


जौं तपु करै कुमारि तुम्हारी । भाविउ मेटि सकहिं त्रिपुरारी ॥ जद्यपि बर अनेक जग माहीं । एहि कहँ सिव तजि दूसर नाहीं ॥


बर दायक प्रनतारति भंजन । कृपासिंधु सेवक मन रंजन ॥ इच्छित फल बिनु सिव अवराधे । लहिअ न कोटि जोग जप साधें ॥



Doha / दोहा


दो. अस कहि नारद सुमिरि हरि गिरिजहि दीन्हि असीस । होइहि यह कल्यान अब संसय तजहु गिरीस ॥ ७० ॥



Chaupai / चोपाई


कहि अस ब्रह्मभवन मुनि गयऊ । आगिल चरित सुनहु जस भयऊ ॥ पतिहि एकांत पाइ कह मैना । नाथ न मैं समुझे मुनि बैना ॥


जौं घरु बरु कुलु होइ अनूपा । करिअ बिबाहु सुता अनुरुपा ॥ न त कन्या बरु रहउ कुआरी । कंत उमा मम प्रानपिआरी ॥


जौं न मिलहि बरु गिरिजहि जोगू । गिरि जड़ सहज कहिहि सबु लोगू ॥ सोइ बिचारि पति करेहु बिबाहू । जेहिं न बहोरि होइ उर दाहू ॥


अस कहि परि चरन धरि सीसा । बोले सहित सनेह गिरीसा ॥ बरु पावक प्रगटै ससि माहीं । नारद बचनु अन्यथा नाहीं ॥



Doha / दोहा


दो. प्रिया सोचु परिहरहु सबु सुमिरहु श्रीभगवान । पारबतिहि निरमयउ जेहिं सोइ करिहि कल्यान ॥ ७१ ॥



Chaupai / चोपाई


अब जौ तुम्हहि सुता पर नेहू । तौ अस जाइ सिखावन देहू ॥ करै सो तपु जेहिं मिलहिं महेसू । आन उपायँ न मिटहि कलेसू ॥


नारद बचन सगर्भ सहेतू । सुंदर सब गुन निधि बृषकेतू ॥ अस बिचारि तुम्ह तजहु असंका । सबहि भाँति संकरु अकलंका ॥


सुनि पति बचन हरषि मन माहीं । गई तुरत उठि गिरिजा पाहीं ॥ उमहि बिलोकि नयन भरे बारी । सहित सनेह गोद बैठारी ॥


बारहिं बार लेति उर लाई । गदगद कंठ न कछु कहि जाई ॥ जगत मातु सर्बग्य भवानी । मातु सुखद बोलीं मृदु बानी ॥



Doha / दोहा


दो. सुनहि मातु मैं दीख अस सपन सुनावउँ तोहि । सुंदर गौर सुबिप्रबर अस उपदेसेउ मोहि ॥ ७२ ॥



Chaupai / चोपाई


करहि जाइ तपु सैलकुमारी । नारद कहा सो सत्य बिचारी ॥ मातु पितहि पुनि यह मत भावा । तपु सुखप्रद दुख दोष नसावा ॥


तपबल रचइ प्रपंच बिधाता । तपबल बिष्नु सकल जग त्राता ॥ तपबल संभु करहिं संघारा । तपबल सेषु धरइ महिभारा ॥


तप अधार सब सृष्टि भवानी । करहि जाइ तपु अस जियँ जानी ॥ सुनत बचन बिसमित महतारी । सपन सुनायउ गिरिहि हँकारी ॥


मातु पितुहि बहुबिधि समुझाई । चलीं उमा तप हित हरषाई ॥ प्रिय परिवार पिता अरु माता । भए बिकल मुख आव न बाता ॥



Doha / दोहा


दो. बेदसिरा मुनि आइ तब सबहि कहा समुझाइ ॥ पारबती महिमा सुनत रहे प्रबोधहि पाइ ॥ ७३ ॥



Chaupai / चोपाई


उर धरि उमा प्रानपति चरना । जाइ बिपिन लागीं तपु करना ॥ अति सुकुमार न तनु तप जोगू । पति पद सुमिरि तजेउ सबु भोगू ॥


नित नव चरन उपज अनुरागा । बिसरी देह तपहिं मनु लागा ॥ संबत सहस मूल फल खाए । सागु खाइ सत बरष गवाँए ॥


कछु दिन भोजनु बारि बतासा । किए कठिन कछु दिन उपबासा ॥ बेल पाती महि परइ सुखाई । तीनि सहस संबत सोई खाई ॥


पुनि परिहरे सुखानेउ परना । उमहि नाम तब भयउ अपरना ॥ देखि उमहि तप खीन सरीरा । ब्रह्मगिरा भै गगन गभीरा ॥



Doha / दोहा


दो. भयउ मनोरथ सुफल तव सुनु गिरिजाकुमारि । परिहरु दुसह कलेस सब अब मिलिहहिं त्रिपुरारि ॥ ७४ ॥



Chaupai / चोपाई


अस तपु काहुँ न कीन्ह भवानी । भउ अनेक धीर मुनि ग्यानी ॥ अब उर धरहु ब्रह्म बर बानी । सत्य सदा संतत सुचि जानी ॥


आवै पिता बोलावन जबहीं । हठ परिहरि घर जाएहु तबहीं ॥ मिलहिं तुम्हहि जब सप्त रिषीसा । जानेहु तब प्रमान बागीसा ॥


सुनत गिरा बिधि गगन बखानी । पुलक गात गिरिजा हरषानी ॥ उमा चरित सुंदर मैं गावा । सुनहु संभु कर चरित सुहावा ॥


जब तें सती जाइ तनु त्यागा । तब सें सिव मन भयउ बिरागा ॥ जपहिं सदा रघुनायक नामा । जहँ तहँ सुनहिं राम गुन ग्रामा ॥



Doha / दोहा


दो. चिदानन्द सुखधाम सिव बिगत मोह मद काम । बिचरहिं महि धरि हृदयँ हरि सकल लोक अभिराम ॥ ७५ ॥



Chaupai / चोपाई


कतहुँ मुनिन्ह उपदेसहिं ग्याना । कतहुँ राम गुन करहिं बखाना ॥ जदपि अकाम तदपि भगवाना । भगत बिरह दुख दुखित सुजाना ॥


एहि बिधि गयउ कालु बहु बीती । नित नै होइ राम पद प्रीती ॥ नैमु प्रेमु संकर कर देखा । अबिचल हृदयँ भगति कै रेखा ॥


प्रगटै रामु कृतग्य कृपाला । रूप सील निधि तेज बिसाला ॥ बहु प्रकार संकरहि सराहा । तुम्ह बिनु अस ब्रतु को निरबाहा ॥


बहुबिधि राम सिवहि समुझावा । पारबती कर जन्मु सुनावा ॥ अति पुनीत गिरिजा कै करनी । बिस्तर सहित कृपानिधि बरनी ॥



Doha / दोहा


दो. अब बिनती मम सुनेहु सिव जौं मो पर निज नेहु । जाइ बिबाहहु सैलजहि यह मोहि मागें देहु ॥ ७६ ॥



Chaupai / चोपाई


कह सिव जदपि उचित अस नाहीं । नाथ बचन पुनि मेटि न जाहीं ॥ सिर धरि आयसु करिअ तुम्हारा । परम धरमु यह नाथ हमारा ॥


मातु पिता गुर प्रभु कै बानी । बिनहिं बिचार करिअ सुभ जानी ॥ तुम्ह सब भाँति परम हितकारी । अग्या सिर पर नाथ तुम्हारी ॥


प्रभु तोषेउ सुनि संकर बचना । भक्ति बिबेक धर्म जुत रचना ॥ कह प्रभु हर तुम्हार पन रहेऊ । अब उर राखेहु जो हम कहेऊ ॥


अंतरधान भए अस भाषी । संकर सोइ मूरति उर राखी ॥ तबहिं सप्तरिषि सिव पहिं आए । बोले प्रभु अति बचन सुहाए ॥



Doha / दोहा


दो. पारबती पहिं जाइ तुम्ह प्रेम परिच्छा लेहु । गिरिहि प्रेरि पठएहु भवन दूरि करेहु संदेहु ॥ ७७ ॥



Chaupai / चोपाई


रिषिन्ह गौरि देखी तहँ कैसी । मूरतिमंत तपस्या जैसी ॥ बोले मुनि सुनु सैलकुमारी । करहु कवन कारन तपु भारी ॥


केहि अवराधहु का तुम्ह चहहू । हम सन सत्य मरमु किन कहहू ॥ कहत बचत मनु अति सकुचाई । हँसिहहु सुनि हमारि जड़ताई ॥


मनु हठ परा न सुनइ सिखावा । चहत बारि पर भीति उठावा ॥ नारद कहा सत्य सोइ जाना । बिनु पंखन्ह हम चहहिं उड़ाना ॥


देखहु मुनि अबिबेकु हमारा । चाहिअ सदा सिवहि भरतारा ॥



Doha / दोहा


दो. सुनत बचन बिहसे रिषय गिरिसंभव तब देह । नारद कर उपदेसु सुनि कहहु बसेउ किसु गेह ॥ ७८ ॥



Chaupai / चोपाई


दच्छसुतन्ह उपदेसेन्हि जाई । तिन्ह फिरि भवनु न देखा आई ॥ चित्रकेतु कर घरु उन घाला । कनककसिपु कर पुनि अस हाला ॥


नारद सिख जे सुनहिं नर नारी । अवसि होहिं तजि भवनु भिखारी ॥ मन कपटी तन सज्जन चीन्हा । आपु सरिस सबही चह कीन्हा ॥


तेहि कें बचन मानि बिस्वासा । तुम्ह चाहहु पति सहज उदासा ॥ निर्गुन निलज कुबेष कपाली । अकुल अगेह दिगंबर ब्याली ॥


कहहु कवन सुखु अस बरु पाएँ । भल भूलिहु ठग के बौराएँ ॥ पंच कहें सिवँ सती बिबाही । पुनि अवडेरि मराएन्हि ताही ॥



Doha / दोहा


दो. अब सुख सोवत सोचु नहि भीख मागि भव खाहिं । सहज एकाकिन्ह के भवन कबहुँ कि नारि खटाहिं ॥ ७९ ॥



Chaupai / चोपाई


अजहूँ मानहु कहा हमारा । हम तुम्ह कहुँ बरु नीक बिचारा ॥ अति सुंदर सुचि सुखद सुसीला । गावहिं बेद जासु जस लीला ॥


दूषन रहित सकल गुन रासी । श्रीपति पुर बैकुंठ निवासी ॥ अस बरु तुम्हहि मिलाउब आनी । सुनत बिहसि कह बचन भवानी ॥


सत्य कहेहु गिरिभव तनु एहा । हठ न छूट छूटै बरु देहा ॥ कनकउ पुनि पषान तें होई । जारेहुँ सहजु न परिहर सोई ॥


नारद बचन न मैं परिहरऊँ । बसउ भवनु उजरउ नहिं डरऊँ ॥ गुर कें बचन प्रतीति न जेही । सपनेहुँ सुगम न सुख सिधि तेही ॥



Doha / दोहा


दो. महादेव अवगुन भवन बिष्नु सकल गुन धाम । जेहि कर मनु रम जाहि सन तेहि तेही सन काम ॥ ८० ॥



Chaupai / चोपाई


जौं तुम्ह मिलतेहु प्रथम मुनीसा । सुनतिउँ सिख तुम्हारि धरि सीसा ॥ अब मैं जन्मु संभु हित हारा । को गुन दूषन करै बिचारा ॥


जौं तुम्हरे हठ हृदयँ बिसेषी । रहि न जाइ बिनु किएँ बरेषी ॥ तौ कौतुकिअन्ह आलसु नाहीं । बर कन्या अनेक जग माहीं ॥


जन्म कोटि लगि रगर हमारी । बरउँ संभु न त रहउँ कुआरी ॥ तजउँ न नारद कर उपदेसू । आपु कहहि सत बार महेसू ॥


मैं पा परउँ कहइ जगदंबा । तुम्ह गृह गवनहु भयउ बिलंबा ॥ देखि प्रेमु बोले मुनि ग्यानी । जय जय जगदंबिके भवानी ॥



Doha / दोहा


दो. तुम्ह माया भगवान सिव सकल जगत पितु मातु । नाइ चरन सिर मुनि चले पुनि पुनि हरषत गातु ॥ ८१ ॥



Chaupai / चोपाई


जाइ मुनिन्ह हिमवंतु पठाए । करि बिनती गिरजहिं गृह ल्याए ॥ बहुरि सप्तरिषि सिव पहिं जाई । कथा उमा कै सकल सुनाई ॥


भए मगन सिव सुनत सनेहा । हरषि सप्तरिषि गवने गेहा ॥ मनु थिर करि तब संभु सुजाना । लगे करन रघुनायक ध्याना ॥


तारकु असुर भयउ तेहि काला । भुज प्रताप बल तेज बिसाला ॥ तेंहि सब लोक लोकपति जीते । भए देव सुख संपति रीते ॥


अजर अमर सो जीति न जाई । हारे सुर करि बिबिध लराई ॥ तब बिरंचि सन जाइ पुकारे । देखे बिधि सब देव दुखारे ॥



Doha / दोहा


दो. सब सन कहा बुझाइ बिधि दनुज निधन तब होइ । संभु सुक्र संभूत सुत एहि जीतइ रन सोइ ॥ ८२ ॥



Chaupai / चोपाई


मोर कहा सुनि करहु उपाई । होइहि ईस्वर करिहि सहाई ॥ सतीं जो तजी दच्छ मख देहा । जनमी जाइ हिमाचल गेहा ॥


तेहिं तपु कीन्ह संभु पति लागी । सिव समाधि बैठे सबु त्यागी ॥ जदपि अहइ असमंजस भारी । तदपि बात एक सुनहु हमारी ॥


पठवहु कामु जाइ सिव पाहीं । करै छोभु संकर मन माहीं ॥ तब हम जाइ सिवहि सिर नाई । करवाउब बिबाहु बरिआई ॥


एहि बिधि भलेहि देवहित होई । मर अति नीक कहइ सबु कोई ॥ अस्तुति सुरन्ह कीन्हि अति हेतू । प्रगटेउ बिषमबान झषकेतू ॥



Doha / दोहा


दो. सुरन्ह कहीं निज बिपति सब सुनि मन कीन्ह बिचार । संभु बिरोध न कुसल मोहि बिहसि कहेउ अस मार ॥ ८३ ॥



Chaupai / चोपाई


तदपि करब मैं काजु तुम्हारा । श्रुति कह परम धरम उपकारा ॥ पर हित लागि तजइ जो देही । संतत संत प्रसंसहिं तेही ॥


अस कहि चलेउ सबहि सिरु नाई । सुमन धनुष कर सहित सहाई ॥ चलत मार अस हृदयँ बिचारा । सिव बिरोध ध्रुव मरनु हमारा ॥


तब आपन प्रभाउ बिस्तारा । निज बस कीन्ह सकल संसारा ॥ कोपेउ जबहि बारिचरकेतू । छन महुँ मिटे सकल श्रुति सेतू ॥


ब्रह्मचर्ज ब्रत संजम नाना । धीरज धरम ग्यान बिग्याना ॥ सदाचार जप जोग बिरागा । सभय बिबेक कटकु सब भागा ॥



Chanda / छन्द


छं. भागेउ बिबेक सहाय सहित सो सुभट संजुग महि मुरे । सदग्रंथ पर्बत कंदरन्हि महुँ जाइ तेहि अवसर दुरे ॥ होनिहार का करतार को रखवार जग खरभरु परा । दुइ माथ केहि रतिनाथ जेहि कहुँ कोऽपि कर धनु सरु धरा ॥



Doha / दोहा


दो. जे सजीव जग अचर चर नारि पुरुष अस नाम । ते निज निज मरजाद तजि भए सकल बस काम ॥ ८४ ॥



Chaupai / चोपाई


सब के हृदयँ मदन अभिलाषा । लता निहारि नवहिं तरु साखा ॥ नदीं उमगि अंबुधि कहुँ धाई । संगम करहिं तलाव तलाई ॥


जहँ असि दसा जड़न्ह कै बरनी । को कहि सकइ सचेतन करनी ॥ पसु पच्छी नभ जल थलचारी । भए कामबस समय बिसारी ॥


मदन अंध ब्याकुल सब लोका । निसि दिनु नहिं अवलोकहिं कोका ॥ देव दनुज नर किंनर ब्याला । प्रेत पिसाच भूत बेताला ॥


इन्ह कै दसा न कहेउँ बखानी । सदा काम के चेरे जानी ॥ सिद्ध बिरक्त महामुनि जोगी । तेपि कामबस भए बियोगी ॥



Chanda / छन्द


छं. भए कामबस जोगीस तापस पावँरन्हि की को कहै । देखहिं चराचर नारिमय जे ब्रह्ममय देखत रहे ॥ अबला बिलोकहिं पुरुषमय जगु पुरुष सब अबलामयं । दुइ दंड भरि ब्रह्मांड भीतर कामकृत कौतुक अयं ॥



Sortha/ सोरठा


सो. धरी न काहूँ धिर सबके मन मनसिज हरे । जे राखे रघुबीर ते उबरे तेहि काल महुँ ॥ ८५ ॥



Chaupai / चोपाई


उभय घरी अस कौतुक भयऊ । जौ लगि कामु संभु पहिं गयऊ ॥ सिवहि बिलोकि ससंकेउ मारू । भयउ जथाथिति सबु संसारू ॥


भए तुरत सब जीव सुखारे । जिमि मद उतरि गएँ मतवारे ॥ रुद्रहि देखि मदन भय माना । दुराधरष दुर्गम भगवाना ॥


फिरत लाज कछु करि नहिं जाई । मरनु ठानि मन रचेसि उपाई ॥ प्रगटेसि तुरत रुचिर रितुराजा । कुसुमित नव तरु राजि बिराजा ॥


बन उपबन बापिका तड़ागा । परम सुभग सब दिसा बिभागा ॥ जहँ तहँ जनु उमगत अनुरागा । देखि मुएहुँ मन मनसिज जागा ॥



Chanda / छन्द


छं. जागइ मनोभव मुएहुँ मन बन सुभगता न परै कही । सीतल सुगंध सुमंद मारुत मदन अनल सखा सही ॥ बिकसे सरन्हि बहु कंज गुंजत पुंज मंजुल मधुकरा । कलहंस पिक सुक सरस रव करि गान नाचहिं अपछरा ॥



Doha / दोहा


दो. सकल कला करि कोटि बिधि हारेउ सेन समेत । चली न अचल समाधि सिव कोपेउ हृदयनिकेत ॥ ८६ ॥



Chaupai / चोपाई


देखि रसाल बिटप बर साखा । तेहि पर चढ़ेउ मदनु मन माखा ॥ सुमन चाप निज सर संधाने । अति रिस ताकि श्रवन लगि ताने ॥


छाड़े बिषम बिसिख उर लागे । छुटि समाधि संभु तब जागे ॥ भयउ ईस मन छोभु बिसेषी । नयन उघारि सकल दिसि देखी ॥


सौरभ पल्लव मदनु बिलोका । भयउ कोपु कंपेउ त्रैलोका ॥ तब सिवँ तीसर नयन उघारा । चितवत कामु भयउ जरि छारा ॥


हाहाकार भयउ जग भारी । डरपे सुर भए असुर सुखारी ॥ समुझि कामसुखु सोचहिं भोगी । भए अकंटक साधक जोगी ॥



Chanda / छन्द


छं. जोगि अकंटक भए पति गति सुनत रति मुरुछित भई । रोदति बदति बहु भाँति करुना करति संकर पहिं गई । अति प्रेम करि बिनती बिबिध बिधि जोरि कर सन्मुख रही । प्रभु आसुतोष कृपाल सिव अबला निरखि बोले सही ॥



Doha / दोहा


दो. अब तें रति तव नाथ कर होइहि नामु अनंगु । बिनु बपु ब्यापिहि सबहि पुनि सुनु निज मिलन प्रसंगु ॥ ८७ ॥



Chaupai / चोपाई


जब जदुबंस कृष्न अवतारा । होइहि हरन महा महिभारा ॥ कृष्न तनय होइहि पति तोरा । बचनु अन्यथा होइ न मोरा ॥


रति गवनी सुनि संकर बानी । कथा अपर अब कहउँ बखानी ॥ देवन्ह समाचार सब पाए । ब्रह्मादिक बैकुंठ सिधाए ॥


सब सुर बिष्नु बिरंचि समेता । गए जहाँ सिव कृपानिकेता ॥ पृथक पृथक तिन्ह कीन्हि प्रसंसा । भए प्रसन्न चंद्र अवतंसा ॥


बोले कृपासिंधु बृषकेतू । कहहु अमर आए केहि हेतू ॥ कह बिधि तुम्ह प्रभु अंतरजामी । तदपि भगति बस बिनवउँ स्वामी ॥



Doha / दोहा


दो. सकल सुरन्ह के हृदयँ अस संकर परम उछाहु । निज नयनन्हि देखा चहहिं नाथ तुम्हार बिबाहु ॥ ८८ ॥



Chaupai / चोपाई


यह उत्सव देखिअ भरि लोचन । सोइ कछु करहु मदन मद मोचन । कामु जारि रति कहुँ बरु दीन्हा । कृपासिंधु यह अति भल कीन्हा ॥


सासति करि पुनि करहिं पसाऊ । नाथ प्रभुन्ह कर सहज सुभाऊ ॥ पारबतीं तपु कीन्ह अपारा । करहु तासु अब अंगीकारा ॥


सुनि बिधि बिनय समुझि प्रभु बानी । ऐसेइ होउ कहा सुखु मानी ॥ तब देवन्ह दुंदुभीं बजाईं । बरषि सुमन जय जय सुर साई ॥


अवसरु जानि सप्तरिषि आए । तुरतहिं बिधि गिरिभवन पठाए ॥ प्रथम गए जहँ रही भवानी । बोले मधुर बचन छल सानी ॥



Doha / दोहा


दो. कहा हमार न सुनेहु तब नारद कें उपदेस । अब भा झूठ तुम्हार पन जारेउ कामु महेस ॥ ८९ ॥



Chaupai / चोपाई


सुनि बोलीं मुसकाइ भवानी । उचित कहेहु मुनिबर बिग्यानी ॥ तुम्हरें जान कामु अब जारा । अब लगि संभु रहे सबिकारा ॥


हमरें जान सदा सिव जोगी । अज अनवद्य अकाम अभोगी ॥ जौं मैं सिव सेये अस जानी । प्रीति समेत कर्म मन बानी ॥


तौ हमार पन सुनहु मुनीसा । करिहहिं सत्य कृपानिधि ईसा ॥ तुम्ह जो कहा हर जारेउ मारा । सोइ अति बड़ अबिबेकु तुम्हारा ॥


तात अनल कर सहज सुभाऊ । हिम तेहि निकट जाइ नहिं काऊ ॥ गएँ समीप सो अवसि नसाई । असि मन्मथ महेस की नाई ॥



Doha / दोहा


दो. हियँ हरषे मुनि बचन सुनि देखि प्रीति बिस्वास ॥ चले भवानिहि नाइ सिर गए हिमाचल पास ॥ ९० ॥



Chaupai / चोपाई


सबु प्रसंगु गिरिपतिहि सुनावा । मदन दहन सुनि अति दुखु पावा ॥ बहुरि कहेउ रति कर बरदाना । सुनि हिमवंत बहुत सुखु माना ॥


हृदयँ बिचारि संभु प्रभुताई । सादर मुनिबर लिए बोलाई ॥ सुदिनु सुनखतु सुघरी सोचाई । बेगि बेदबिधि लगन धराई ॥


पत्री सप्तरिषिन्ह सोइ दीन्ही । गहि पद बिनय हिमाचल कीन्ही ॥ जाइ बिधिहि दीन्हि सो पाती । बाचत प्रीति न हृदयँ समाती ॥


लगन बाचि अज सबहि सुनाई । हरषे मुनि सब सुर समुदाई ॥ सुमन बृष्टि नभ बाजन बाजे । मंगल कलस दसहुँ दिसि साजे ॥



Doha / दोहा


दो. लगे सँवारन सकल सुर बाहन बिबिध बिमान । होहि सगुन मंगल सुभद करहिं अपछरा गान ॥ ९१ ॥



Chaupai / चोपाई


सिवहि संभु गन करहिं सिंगारा । जटा मुकुट अहि मौरु सँवारा ॥ कुंडल कंकन पहिरे ब्याला । तन बिभूति पट केहरि छाला ॥


ससि ललाट सुंदर सिर गंगा । नयन तीनि उपबीत भुजंगा ॥ गरल कंठ उर नर सिर माला । असिव बेष सिवधाम कृपाला ॥


कर त्रिसूल अरु डमरु बिराजा । चले बसहँ चढ़ि बाजहिं बाजा ॥ देखि सिवहि सुरत्रिय मुसुकाहीं । बर लायक दुलहिनि जग नाहीं ॥


बिष्नु बिरंचि आदि सुरब्राता । चढ़ि चढ़ि बाहन चले बराता ॥ सुर समाज सब भाँति अनूपा । नहिं बरात दूलह अनुरूपा ॥



Doha / दोहा


दो. बिष्नु कहा अस बिहसि तब बोलि सकल दिसिराज । बिलग बिलग होइ चलहु सब निज निज सहित समाज ॥ ९२ ॥



Chaupai / चोपाई


बर अनुहारि बरात न भाई । हँसी करैहहु पर पुर जाई ॥ बिष्नु बचन सुनि सुर मुसकाने । निज निज सेन सहित बिलगाने ॥


मनहीं मन महेसु मुसुकाहीं । हरि के बिंग्य बचन नहिं जाहीं ॥ अति प्रिय बचन सुनत प्रिय केरे । भृंगिहि प्रेरि सकल गन टेरे ॥


सिव अनुसासन सुनि सब आए । प्रभु पद जलज सीस तिन्ह नाए ॥ नाना बाहन नाना बेषा । बिहसे सिव समाज निज देखा ॥


कोउ मुखहीन बिपुल मुख काहू । बिनु पद कर कोउ बहु पद बाहू ॥ बिपुल नयन कोउ नयन बिहीना । रिष्टपुष्ट कोउ अति तनखीना ॥



Chanda / छन्द


छं. तन खीन कोउ अति पीन पावन कोउ अपावन गति धरें । भूषन कराल कपाल कर सब सद्य सोनित तन भरें ॥ खर स्वान सुअर सृकाल मुख गन बेष अगनित को गनै । बहु जिनस प्रेत पिसाच जोगि जमात बरनत नहिं बनै ॥



Sortha/ सोरठा


सो. नाचहिं गावहिं गीत परम तरंगी भूत सब । देखत अति बिपरीत बोलहिं बचन बिचित्र बिधि ॥ ९३ ॥



Chaupai / चोपाई


जस दूलहु तसि बनी बराता । कौतुक बिबिध होहिं मग जाता ॥ इहाँ हिमाचल रचेउ बिताना । अति बिचित्र नहिं जाइ बखाना ॥


सैल सकल जहँ लगि जग माहीं । लघु बिसाल नहिं बरनि सिराहीं ॥ बन सागर सब नदीं तलावा । हिमगिरि सब कहुँ नेवत पठावा ॥


कामरूप सुंदर तन धारी । सहित समाज सहित बर नारी ॥ गए सकल तुहिनाचल गेहा । गावहिं मंगल सहित सनेहा ॥


प्रथमहिं गिरि बहु गृह सँवराए । जथाजोगु तहँ तहँ सब छाए ॥ पुर सोभा अवलोकि सुहाई । लागइ लघु बिरंचि निपुनाई ॥



Chanda / छन्द


छं. लघु लाग बिधि की निपुनता अवलोकि पुर सोभा सही । बन बाग कूप तड़ाग सरिता सुभग सब सक को कही ॥ मंगल बिपुल तोरन पताका केतु गृह गृह सोहहीं ॥ बनिता पुरुष सुंदर चतुर छबि देखि मुनि मन मोहहीं ॥



Doha / दोहा


दो. जगदंबा जहँ अवतरी सो पुरु बरनि कि जाइ । रिद्धि सिद्धि संपत्ति सुख नित नूतन अधिकाइ ॥ ९४ ॥



Chaupai / चोपाई


नगर निकट बरात सुनि आई । पुर खरभरु सोभा अधिकाई ॥ करि बनाव सजि बाहन नाना । चले लेन सादर अगवाना ॥


हियँ हरषे सुर सेन निहारी । हरिहि देखि अति भए सुखारी ॥ सिव समाज जब देखन लागे । बिडरि चले बाहन सब भागे ॥


धरि धीरजु तहँ रहे सयाने । बालक सब लै जीव पराने ॥ गएँ भवन पूछहिं पितु माता । कहहिं बचन भय कंपित गाता ॥


कहिअ काह कहि जाइ न बाता । जम कर धार किधौं बरिआता ॥ बरु बौराह बसहँ असवारा । ब्याल कपाल बिभूषन छारा ॥



Chanda / छन्द


छं. तन छार ब्याल कपाल भूषन नगन जटिल भयंकरा । सँग भूत प्रेत पिसाच जोगिनि बिकट मुख रजनीचरा ॥ जो जिअत रहिहि बरात देखत पुन्य बड़ तेहि कर सही । देखिहि सो उमा बिबाहु घर घर बात असि लरिकन्ह कही ॥



Doha / दोहा


दो. समुझि महेस समाज सब जननि जनक मुसुकाहिं । बाल बुझाए बिबिध बिधि निडर होहु डरु नाहिं ॥ ९५ ॥



Chaupai / चोपाई


लै अगवान बरातहि आए । दिए सबहि जनवास सुहाए ॥ मैनाँ सुभ आरती सँवारी । संग सुमंगल गावहिं नारी ॥


कंचन थार सोह बर पानी । परिछन चली हरहि हरषानी ॥ बिकट बेष रुद्रहि जब देखा । अबलन्ह उर भय भयउ बिसेषा ॥


भागि भवन पैठीं अति त्रासा । गए महेसु जहाँ जनवासा ॥ मैना हृदयँ भयउ दुखु भारी । लीन्ही बोलि गिरीसकुमारी ॥


अधिक सनेहँ गोद बैठारी । स्याम सरोज नयन भरे बारी ॥ जेहिं बिधि तुम्हहि रूपु अस दीन्हा । तेहिं जड़ बरु बाउर कस कीन्हा ॥



Chanda / छन्द


छं. कस कीन्ह बरु बौराह बिधि जेहिं तुम्हहि सुंदरता दई । जो फलु चहिअ सुरतरुहिं सो बरबस बबूरहिं लागई ॥ तुम्ह सहित गिरि तें गिरौं पावक जरौं जलनिधि महुँ परौं ॥ घरु जाउ अपजसु होउ जग जीवत बिबाहु न हौं करौं ॥



Doha / दोहा


दो. भई बिकल अबला सकल दुखित देखि गिरिनारि । करि बिलापु रोदति बदति सुता सनेहु सँभारि ॥ ९६ ॥



Chaupai / चोपाई


नारद कर मैं काह बिगारा । भवनु मोर जिन्ह बसत उजारा ॥ अस उपदेसु उमहि जिन्ह दीन्हा । बौरे बरहि लगि तपु कीन्हा ॥


साचेहुँ उन्ह के मोह न माया । उदासीन धनु धामु न जाया ॥ पर घर घालक लाज न भीरा । बाझँ कि जान प्रसव कैं पीरा ॥


जननिहि बिकल बिलोकि भवानी । बोली जुत बिबेक मृदु बानी ॥ अस बिचारि सोचहि मति माता । सो न टरइ जो रचइ बिधाता ॥


करम लिखा जौ बाउर नाहू । तौ कत दोसु लगाइअ काहू ॥ तुम्ह सन मिटहिं कि बिधि के अंका । मातु ब्यर्थ जनि लेहु कलंका ॥



Chanda / छन्द


छं. जनि लेहु मातु कलंकु करुना परिहरहु अवसर नहीं । दुखु सुखु जो लिखा लिलार हमरें जाब जहँ पाउब तहीं ॥ सुनि उमा बचन बिनीत कोमल सकल अबला सोचहीं ॥ बहु भाँति बिधिहि लगाइ दूषन नयन बारि बिमोचहीं ॥



Doha / दोहा


दो. तेहि अवसर नारद सहित अरु रिषि सप्त समेत । समाचार सुनि तुहिनगिरि गवने तुरत निकेत ॥ ९७ ॥



Chaupai / चोपाई


तब नारद सबहि समुझावा । पूरुब कथाप्रसंगु सुनावा ॥ मयना सत्य सुनहु मम बानी । जगदंबा तव सुता भवानी ॥


अजा अनादि सक्ति अबिनासिनि । सदा संभु अरधंग निवासिनि ॥ जग संभव पालन लय कारिनि । निज इच्छा लीला बपु धारिनि ॥


जनमीं प्रथम दच्छ गृह जाई । नामु सती सुंदर तनु पाई ॥ तहँहुँ सती संकरहि बिबाहीं । कथा प्रसिद्ध सकल जग माहीं ॥


एक बार आवत सिव संगा । देखेउ रघुकुल कमल पतंगा ॥ भयउ मोहु सिव कहा न कीन्हा । भ्रम बस बेषु सीय कर लीन्हा ॥



Chanda / छन्द


छं. सिय बेषु सती जो कीन्ह तेहि अपराध संकर परिहरीं । हर बिरहँ जाइ बहोरि पितु कें जग्य जोगानल जरीं ॥ अब जनमि तुम्हरे भवन निज पति लागि दारुन तपु किया । अस जानि संसय तजहु गिरिजा सर्बदा संकर प्रिया ॥



Doha / दोहा


दो. सुनि नारद के बचन तब सब कर मिटा बिषाद । छन महुँ ब्यापेउ सकल पुर घर घर यह संबाद ॥ ९८ ॥



Chaupai / चोपाई


तब मयना हिमवंतु अनंदे । पुनि पुनि पारबती पद बंदे ॥ नारि पुरुष सिसु जुबा सयाने । नगर लोग सब अति हरषाने ॥


लगे होन पुर मंगलगाना । सजे सबहि हाटक घट नाना ॥ भाँति अनेक भई जेवराना । सूपसास्त्र जस कछु ब्यवहारा ॥


सो जेवनार कि जाइ बखानी । बसहिं भवन जेहिं मातु भवानी ॥ सादर बोले सकल बराती । बिष्नु बिरंचि देव सब जाती ॥


बिबिधि पाँति बैठी जेवनारा । लागे परुसन निपुन सुआरा ॥ नारिबृंद सुर जेवँत जानी । लगीं देन गारीं मृदु बानी ॥



Chanda / छन्द


छं. गारीं मधुर स्वर देहिं सुंदरि बिंग्य बचन सुनावहीं । भोजनु करहिं सुर अति बिलंबु बिनोदु सुनि सचु पावहीं ॥ जेवँत जो बढ़्यो अनंदु सो मुख कोटिहूँ न परै कह्यो । अचवाँइ दीन्हे पान गवने बास जहँ जाको रह्यो ॥



Doha / दोहा


दो. बहुरि मुनिन्ह हिमवंत कहुँ लगन सुनाई आइ । समय बिलोकि बिबाह कर पठए देव बोलाइ ॥ ९९ ॥



Chaupai / चोपाई


बोलि सकल सुर सादर लीन्हे । सबहि जथोचित आसन दीन्हे ॥ बेदी बेद बिधान सँवारी । सुभग सुमंगल गावहिं नारी ॥


सिंघासनु अति दिब्य सुहावा । जाइ न बरनि बिरंचि बनावा ॥ बैठे सिव बिप्रन्ह सिरु नाई । हृदयँ सुमिरि निज प्रभु रघुराई ॥


बहुरि मुनीसन्ह उमा बोलाई । करि सिंगारु सखीं लै आई ॥ देखत रूपु सकल सुर मोहे । बरनै छबि अस जग कबि को है ॥


जगदंबिका जानि भव भामा । सुरन्ह मनहिं मन कीन्ह प्रनामा ॥ सुंदरता मरजाद भवानी । जाइ न कोटिहुँ बदन बखानी ॥



Chanda / छन्द


छं. कोटिहुँ बदन नहिं बनै बरनत जग जननि सोभा महा । सकुचहिं कहत श्रुति सेष सारद मंदमति तुलसी कहा ॥ छबिखानि मातु भवानि गवनी मध्य मंडप सिव जहाँ ॥ अवलोकि सकहिं न सकुच पति पद कमल मनु मधुकरु तहाँ ॥



Doha / दोहा


दो. मुनि अनुसासन गनपतिहि पूजेउ संभु भवानि । कोउ सुनि संसय करै जनि सुर अनादि जियँ जानि ॥ १०० ॥



Chaupai / चोपाई


जसि बिबाह कै बिधि श्रुति गाई । महामुनिन्ह सो सब करवाई ॥ गहि गिरीस कुस कन्या पानी । भवहि समरपीं जानि भवानी ॥


पानिग्रहन जब कीन्ह महेसा । हिंयँ हरषे तब सकल सुरेसा ॥ बेद मंत्र मुनिबर उच्चरहीं । जय जय जय संकर सुर करहीं ॥


बाजहिं बाजन बिबिध बिधाना । सुमनबृष्टि नभ भै बिधि नाना ॥ हर गिरिजा कर भयउ बिबाहू । सकल भुवन भरि रहा उछाहू ॥


दासीं दास तुरग रथ नागा । धेनु बसन मनि बस्तु बिभागा ॥ अन्न कनकभाजन भरि जाना । दाइज दीन्ह न जाइ बखाना ॥



Chanda / छन्द


छं. दाइज दियो बहु भाँति पुनि कर जोरि हिमभूधर कह्यो । का देउँ पूरनकाम संकर चरन पंकज गहि रह्यो ॥ सिवँ कृपासागर ससुर कर संतोषु सब भाँतिहिं कियो । पुनि गहे पद पाथोज मयनाँ प्रेम परिपूरन हियो ॥



Doha / दोहा


दो. नाथ उमा मन प्रान सम गृहकिंकरी करेहु । छमेहु सकल अपराध अब होइ प्रसन्न बरु देहु ॥ १०१ ॥



Chaupai / चोपाई


बहु बिधि संभु सास समुझाई । गवनी भवन चरन सिरु नाई ॥ जननीं उमा बोलि तब लीन्ही । लै उछंग सुंदर सिख दीन्ही ॥


करेहु सदा संकर पद पूजा । नारिधरमु पति देउ न दूजा ॥ बचन कहत भरे लोचन बारी । बहुरि लाइ उर लीन्हि कुमारी ॥


कत बिधि सृजीं नारि जग माहीं । पराधीन सपनेहुँ सुखु नाहीं ॥ भै अति प्रेम बिकल महतारी । धीरजु कीन्ह कुसमय बिचारी ॥


पुनि पुनि मिलति परति गहि चरना । परम प्रेम कछु जाइ न बरना ॥ सब नारिन्ह मिलि भेटि भवानी । जाइ जननि उर पुनि लपटानी ॥



Chanda / छन्द


छं. जननिहि बहुरि मिलि चली उचित असीस सब काहूँ दईं । फिरि फिरि बिलोकति मातु तन तब सखीं लै सिव पहिं गई ॥ जाचक सकल संतोषि संकरु उमा सहित भवन चले । सब अमर हरषे सुमन बरषि निसान नभ बाजे भले ॥



Doha / दोहा


दो. चले संग हिमवंतु तब पहुँचावन अति हेतु । बिबिध भाँति परितोषु करि बिदा कीन्ह बृषकेतु ॥ १०२ ॥



Chaupai / चोपाई


तुरत भवन आए गिरिराई । सकल सैल सर लिए बोलाई ॥ आदर दान बिनय बहुमाना । सब कर बिदा कीन्ह हिमवाना ॥


जबहिं संभु कैलासहिं आए । सुर सब निज निज लोक सिधाए ॥ जगत मातु पितु संभु भवानी । तेही सिंगारु न कहउँ बखानी ॥


करहिं बिबिध बिधि भोग बिलासा । गनन्ह समेत बसहिं कैलासा ॥ हर गिरिजा बिहार नित नयऊ । एहि बिधि बिपुल काल चलि गयऊ ॥


तब जनमेउ षटबदन कुमारा । तारकु असुर समर जेहिं मारा ॥ आगम निगम प्रसिद्ध पुराना । षन्मुख जन्मु सकल जग जाना ॥



Chanda / छन्द


छं. जगु जान षन्मुख जन्मु कर्मु प्रतापु पुरुषारथु महा । तेहि हेतु मैं बृषकेतु सुत कर चरित संछेपहिं कहा ॥ यह उमा संगु बिबाहु जे नर नारि कहहिं जे गावहीं । कल्यान काज बिबाह मंगल सर्बदा सुखु पावहीं ॥



Doha / दोहा


दो. चरित सिंधु गिरिजा रमन बेद न पावहिं पारु । बरनै तुलसीदासु किमि अति मतिमंद गवाँरु ॥ १०३ ॥



Chaupai / चोपाई


संभु चरित सुनि सरस सुहावा । भरद्वाज मुनि अति सुख पावा ॥ बहु लालसा कथा पर बाढ़ी । नयनन्हि नीरु रोमावलि ठाढ़ी ॥


प्रेम बिबस मुख आव न बानी । दसा देखि हरषे मुनि ग्यानी ॥ अहो धन्य तव जन्मु मुनीसा । तुम्हहि प्रान सम प्रिय गौरीसा ॥


सिव पद कमल जिन्हहि रति नाहीं । रामहि ते सपनेहुँ न सोहाहीं ॥ बिनु छल बिस्वनाथ पद नेहू । राम भगत कर लच्छन एहू ॥


सिव सम को रघुपति ब्रतधारी । बिनु अघ तजी सती असि नारी ॥ पनु करि रघुपति भगति देखाई । को सिव सम रामहि प्रिय भाई ॥



Doha / दोहा


दो. प्रथमहिं मै कहि सिव चरित बूझा मरमु तुम्हार । सुचि सेवक तुम्ह राम के रहित समस्त बिकार ॥ १०४ ॥



Chaupai / चोपाई


मैं जाना तुम्हार गुन सीला । कहउँ सुनहु अब रघुपति लीला ॥ सुनु मुनि आजु समागम तोरें । कहि न जाइ जस सुखु मन मोरें ॥


राम चरित अति अमित मुनिसा । कहि न सकहिं सत कोटि अहीसा ॥ तदपि जथाश्रुत कहउँ बखानी । सुमिरि गिरापति प्रभु धनुपानी ॥


सारद दारुनारि सम स्वामी । रामु सूत्रधर अंतरजामी ॥ जेहि पर कृपा करहिं जनु जानी । कबि उर अजिर नचावहिं बानी ॥


प्रनवउँ सोइ कृपाल रघुनाथा । बरनउँ बिसद तासु गुन गाथा ॥ परम रम्य गिरिबरु कैलासू । सदा जहाँ सिव उमा निवासू ॥



Doha / दोहा


दो. सिद्ध तपोधन जोगिजन सूर किंनर मुनिबृंद । बसहिं तहाँ सुकृती सकल सेवहिं सिब सुखकंद ॥ १०५ ॥



Chaupai / चोपाई


हरि हर बिमुख धर्म रति नाहीं । ते नर तहँ सपनेहुँ नहिं जाहीं ॥ तेहि गिरि पर बट बिटप बिसाला । नित नूतन सुंदर सब काला ॥


त्रिबिध समीर सुसीतलि छाया । सिव बिश्राम बिटप श्रुति गाया ॥ एक बार तेहि तर प्रभु गयऊ । तरु बिलोकि उर अति सुखु भयऊ ॥


निज कर डासि नागरिपु छाला । बैठै सहजहिं संभु कृपाला ॥ कुंद इंदु दर गौर सरीरा । भुज प्रलंब परिधन मुनिचीरा ॥


तरुन अरुन अंबुज सम चरना । नख दुति भगत हृदय तम हरना ॥ भुजग भूति भूषन त्रिपुरारी । आननु सरद चंद छबि हारी ॥



Doha / दोहा


दो. जटा मुकुट सुरसरित सिर लोचन नलिन बिसाल । नीलकंठ लावन्यनिधि सोह बालबिधु भाल ॥ १०६ ॥



Chaupai / चोपाई


बैठे सोह कामरिपु कैसें । धरें सरीरु सांतरसु जैसें ॥ पारबती भल अवसरु जानी । गई संभु पहिं मातु भवानी ॥


जानि प्रिया आदरु अति कीन्हा । बाम भाग आसनु हर दीन्हा ॥ बैठीं सिव समीप हरषाई । पूरुब जन्म कथा चित आई ॥


पति हियँ हेतु अधिक अनुमानी । बिहसि उमा बोलीं प्रिय बानी ॥ कथा जो सकल लोक हितकारी । सोइ पूछन चह सैलकुमारी ॥


बिस्वनाथ मम नाथ पुरारी । त्रिभुवन महिमा बिदित तुम्हारी ॥ चर अरु अचर नाग नर देवा । सकल करहिं पद पंकज सेवा ॥



Doha / दोहा


दो. प्रभु समरथ सर्बग्य सिव सकल कला गुन धाम ॥ जोग ग्यान बैराग्य निधि प्रनत कलपतरु नाम ॥ १०७ ॥



Chaupai / चोपाई


जौं मो पर प्रसन्न सुखरासी । जानिअ सत्य मोहि निज दासी ॥ तौं प्रभु हरहु मोर अग्याना । कहि रघुनाथ कथा बिधि नाना ॥


जासु भवनु सुरतरु तर होई । सहि कि दरिद्र जनित दुखु सोई ॥ ससिभूषन अस हृदयँ बिचारी । हरहु नाथ मम मति भ्रम भारी ॥


प्रभु जे मुनि परमारथबादी । कहहिं राम कहुँ ब्रह्म अनादी ॥ सेस सारदा बेद पुराना । सकल करहिं रघुपति गुन गाना ॥


तुम्ह पुनि राम राम दिन राती । सादर जपहु अनँग आराती ॥ रामु सो अवध नृपति सुत सोई । की अज अगुन अलखगति कोई ॥



Doha / दोहा


दो. जौं नृप तनय त ब्रह्म किमि नारि बिरहँ मति भोरि । देख चरित महिमा सुनत भ्रमति बुद्धि अति मोरि ॥ १०८ ॥



Chaupai / चोपाई


जौं अनीह ब्यापक बिभु कोऊ । कबहु बुझाइ नाथ मोहि सोऊ ॥ अग्य जानि रिस उर जनि धरहू । जेहि बिधि मोह मिटै सोइ करहू ॥


मै बन दीखि राम प्रभुताई । अति भय बिकल न तुम्हहि सुनाई ॥ तदपि मलिन मन बोधु न आवा । सो फलु भली भाँति हम पावा ॥


अजहूँ कछु संसउ मन मोरे । करहु कृपा बिनवउँ कर जोरें ॥ प्रभु तब मोहि बहु भाँति प्रबोधा । नाथ सो समुझि करहु जनि क्रोधा ॥


तब कर अस बिमोह अब नाहीं । रामकथा पर रुचि मन माहीं ॥ कहहु पुनीत राम गुन गाथा । भुजगराज भूषन सुरनाथा ॥



Doha / दोहा


दो. बंदउ पद धरि धरनि सिरु बिनय करउँ कर जोरि । बरनहु रघुबर बिसद जसु श्रुति सिद्धांत निचोरि ॥ १०९ ॥



Chaupai / चोपाई


जदपि जोषिता नहिं अधिकारी । दासी मन क्रम बचन तुम्हारी ॥ गूढ़उ तत्त्व न साधु दुरावहिं । आरत अधिकारी जहँ पावहिं ॥


अति आरति पूछउँ सुरराया । रघुपति कथा कहहु करि दाया ॥ प्रथम सो कारन कहहु बिचारी । निर्गुन ब्रह्म सगुन बपु धारी ॥


पुनि प्रभु कहहु राम अवतारा । बालचरित पुनि कहहु उदारा ॥ कहहु जथा जानकी बिबाहीं । राज तजा सो दूषन काहीं ॥


बन बसि कीन्हे चरित अपारा । कहहु नाथ जिमि रावन मारा ॥ राज बैठि कीन्हीं बहु लीला । सकल कहहु संकर सुखलीला ॥



Doha / दोहा


दो. बहुरि कहहु करुनायतन कीन्ह जो अचरज राम । प्रजा सहित रघुबंसमनि किमि गवने निज धाम ॥ ११० ॥



Chaupai / चोपाई


पुनि प्रभु कहहु सो तत्त्व बखानी । जेहिं बिग्यान मगन मुनि ग्यानी ॥ भगति ग्यान बिग्यान बिरागा । पुनि सब बरनहु सहित बिभागा ॥


औरउ राम रहस्य अनेका । कहहु नाथ अति बिमल बिबेका ॥ जो प्रभु मैं पूछा नहि होई । सोउ दयाल राखहु जनि गोई ॥


तुम्ह त्रिभुवन गुर बेद बखाना । आन जीव पाँवर का जाना ॥ प्रस्न उमा कै सहज सुहाई । छल बिहीन सुनि सिव मन भाई ॥


हर हियँ रामचरित सब आए । प्रेम पुलक लोचन जल छाए ॥ श्रीरघुनाथ रूप उर आवा । परमानंद अमित सुख पावा ॥



Doha / दोहा


दो. मगन ध्यानरस दंड जुग पुनि मन बाहेर कीन्ह । रघुपति चरित महेस तब हरषित बरनै लीन्ह ॥ १११ ॥



Chaupai / चोपाई


झूठेउ सत्य जाहि बिनु जानें । जिमि भुजंग बिनु रजु पहिचानें ॥ जेहि जानें जग जाइ हेराई । जागें जथा सपन भ्रम जाई ॥


बंदउँ बालरूप सोई रामू । सब सिधि सुलभ जपत जिसु नामू ॥ मंगल भवन अमंगल हारी । द्रवउ सो दसरथ अजिर बिहारी ॥


करि प्रनाम रामहि त्रिपुरारी । हरषि सुधा सम गिरा उचारी ॥ धन्य धन्य गिरिराजकुमारी । तुम्ह समान नहिं कोउ उपकारी ॥


पूँछेहु रघुपति कथा प्रसंगा । सकल लोक जग पावनि गंगा ॥ तुम्ह रघुबीर चरन अनुरागी । कीन्हहु प्रस्न जगत हित लागी ॥



Doha / दोहा


दो. रामकृपा तें पारबति सपनेहुँ तव मन माहिं । सोक मोह संदेह भ्रम मम बिचार कछु नाहिं ॥ ११२ ॥



Chaupai / चोपाई


तदपि असंका कीन्हिहु सोई । कहत सुनत सब कर हित होई ॥ जिन्ह हरि कथा सुनी नहिं काना । श्रवन रंध्र अहिभवन समाना ॥


नयनन्हि संत दरस नहिं देखा । लोचन मोरपंख कर लेखा ॥ ते सिर कटु तुंबरि समतूला । जे न नमत हरि गुर पद मूला ॥


जिन्ह हरिभगति हृदयँ नहिं आनी । जीवत सव समान तेइ प्रानी ॥ जो नहिं करइ राम गुन गाना । जीह सो दादुर जीह समाना ॥


कुलिस कठोर निठुर सोइ छाती । सुनि हरिचरित न जो हरषाती ॥ गिरिजा सुनहु राम कै लीला । सुर हित दनुज बिमोहनसीला ॥



Doha / दोहा


दो. रामकथा सुरधेनु सम सेवत सब सुख दानि । सतसमाज सुरलोक सब को न सुनै अस जानि ॥ ११३ ॥



Chaupai / चोपाई


रामकथा सुंदर कर तारी । संसय बिहग उडावनिहारी ॥ रामकथा कलि बिटप कुठारी । सादर सुनु गिरिराजकुमारी ॥


राम नाम गुन चरित सुहाए । जनम करम अगनित श्रुति गाए ॥ जथा अनंत राम भगवाना । तथा कथा कीरति गुन नाना ॥


तदपि जथा श्रुत जसि मति मोरी । कहिहउँ देखि प्रीति अति तोरी ॥ उमा प्रस्न तव सहज सुहाई । सुखद संतसंमत मोहि भाई ॥


एक बात नहि मोहि सोहानी । जदपि मोह बस कहेहु भवानी ॥ तुम जो कहा राम कोउ आना । जेहि श्रुति गाव धरहिं मुनि ध्याना ॥



Doha / दोहा


दो. कहहि सुनहि अस अधम नर ग्रसे जे मोह पिसाच । पाषंडी हरि पद बिमुख जानहिं झूठ न साच ॥ ११४ ॥



Chaupai / चोपाई


अग्य अकोबिद अंध अभागी । काई बिषय मुकर मन लागी ॥ लंपट कपटी कुटिल बिसेषी । सपनेहुँ संतसभा नहिं देखी ॥


कहहिं ते बेद असंमत बानी । जिन्ह कें सूझ लाभु नहिं हानी ॥ मुकर मलिन अरु नयन बिहीना । राम रूप देखहिं किमि दीना ॥


जिन्ह कें अगुन न सगुन बिबेका । जल्पहिं कल्पित बचन अनेका ॥ हरिमाया बस जगत भ्रमाहीं । तिन्हहि कहत कछु अघटित नाहीं ॥


बातुल भूत बिबस मतवारे । ते नहिं बोलहिं बचन बिचारे ॥ जिन्ह कृत महामोह मद पाना । तिन् कर कहा करिअ नहिं काना ॥



Doha / दोहा


सो. अस निज हृदयँ बिचारि तजु संसय भजु राम पद । सुनु गिरिराज कुमारि भ्रम तम रबि कर बचन मम ॥ ११५ ॥



Chaupai / चोपाई


सगुनहि अगुनहि नहिं कछु भेदा । गावहिं मुनि पुरान बुध बेदा ॥ अगुन अरुप अलख अज जोई । भगत प्रेम बस सगुन सो होई ॥


जो गुन रहित सगुन सोइ कैसें । जलु हिम उपल बिलग नहिं जैसें ॥ जासु नाम भ्रम तिमिर पतंगा । तेहि किमि कहिअ बिमोह प्रसंगा ॥


राम सच्चिदानंद दिनेसा । नहिं तहँ मोह निसा लवलेसा ॥ सहज प्रकासरुप भगवाना । नहिं तहँ पुनि बिग्यान बिहाना ॥


हरष बिषाद ग्यान अग्याना । जीव धर्म अहमिति अभिमाना ॥ राम ब्रह्म ब्यापक जग जाना । परमानन्द परेस पुराना ॥



Doha / दोहा


दो. पुरुष प्रसिद्ध प्रकास निधि प्रगट परावर नाथ ॥ रघुकुलमनि मम स्वामि सोइ कहि सिवँ नायउ माथ ॥ ११६ ॥



Chaupai / चोपाई


निज भ्रम नहिं समुझहिं अग्यानी । प्रभु पर मोह धरहिं जड़ प्रानी ॥ जथा गगन घन पटल निहारी । झाँपेउ मानु कहहिं कुबिचारी ॥


चितव जो लोचन अंगुलि लाएँ । प्रगट जुगल ससि तेहि के भाएँ ॥ उमा राम बिषइक अस मोहा । नभ तम धूम धूरि जिमि सोहा ॥


बिषय करन सुर जीव समेता । सकल एक तें एक सचेता ॥ सब कर परम प्रकासक जोई । राम अनादि अवधपति सोई ॥


जगत प्रकास्य प्रकासक रामू । मायाधीस ग्यान गुन धामू ॥ जासु सत्यता तें जड माया । भास सत्य इव मोह सहाया ॥



Doha / दोहा


दो. रजत सीप महुँ मास जिमि जथा भानु कर बारि । जदपि मृषा तिहुँ काल सोइ भ्रम न सकइ कोउ टारि ॥ ११७ ॥



Chaupai / चोपाई


एहि बिधि जग हरि आश्रित रहई । जदपि असत्य देत दुख अहई ॥ जौं सपनें सिर काटै कोई । बिनु जागें न दूरि दुख होई ॥


जासु कृपाँ अस भ्रम मिटि जाई । गिरिजा सोइ कृपाल रघुराई ॥ आदि अंत कोउ जासु न पावा । मति अनुमानि निगम अस गावा ॥


बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना । कर बिनु करम करइ बिधि नाना ॥ आनन रहित सकल रस भोगी । बिनु बानी बकता बड़ जोगी ॥


तनु बिनु परस नयन बिनु देखा । ग्रहइ घ्रान बिनु बास असेषा ॥ असि सब भाँति अलौकिक करनी । महिमा जासु जाइ नहिं बरनी ॥



Doha / दोहा


दो. जेहि इमि गावहि बेद बुध जाहि धरहिं मुनि ध्यान ॥ सोइ दसरथ सुत भगत हित कोसलपति भगवान ॥ ११८ ॥



Chaupai / चोपाई


कासीं मरत जंतु अवलोकी । जासु नाम बल करउँ बिसोकी ॥ सोइ प्रभु मोर चराचर स्वामी । रघुबर सब उर अंतरजामी ॥


बिबसहुँ जासु नाम नर कहहीं । जनम अनेक रचित अघ दहहीं ॥ सादर सुमिरन जे नर करहीं । भव बारिधि गोपद इव तरहीं ॥


राम सो परमातमा भवानी । तहँ भ्रम अति अबिहित तव बानी ॥ अस संसय आनत उर माहीं । ग्यान बिराग सकल गुन जाहीं ॥


सुनि सिव के भ्रम भंजन बचना । मिटि गै सब कुतरक कै रचना ॥ भइ रघुपति पद प्रीति प्रतीती । दारुन असंभावना बीती ॥



Doha / दोहा


दो. पुनि पुनि प्रभु पद कमल गहि जोरि पंकरुह पानि । बोली गिरिजा बचन बर मनहुँ प्रेम रस सानि ॥ ११९ ॥



Chaupai / चोपाई


ससि कर सम सुनि गिरा तुम्हारी । मिटा मोह सरदातप भारी ॥ तुम्ह कृपाल सबु संसउ हरेऊ । राम स्वरुप जानि मोहि परेऊ ॥


नाथ कृपाँ अब गयउ बिषादा । सुखी भयउँ प्रभु चरन प्रसादा ॥ अब मोहि आपनि किंकरि जानी । जदपि सहज जड नारि अयानी ॥


प्रथम जो मैं पूछा सोइ कहहू । जौं मो पर प्रसन्न प्रभु अहहू ॥ राम ब्रह्म चिनमय अबिनासी । सर्ब रहित सब उर पुर बासी ॥


नाथ धरेउ नरतनु केहि हेतू । मोहि समुझाइ कहहु बृषकेतू ॥ उमा बचन सुनि परम बिनीता । रामकथा पर प्रीति पुनीता ॥



Doha / दोहा


दो. हिँयँ हरषे कामारि तब संकर सहज सुजान बहु बिधि उमहि प्रसंसि पुनि बोले कृपानिधान ॥ १२०(क) ॥



Sortha/ सोरठा


सो. सुनु सुभ कथा भवानि रामचरितमानस बिमल । कहा भुसुंडि बखानि सुना बिहग नायक गरुड ॥ १२०(ख) ॥


सो संबाद उदार जेहि बिधि भा आगें कहब । सुनहु राम अवतार चरित परम सुंदर अनघ ॥ १२०(ग) ॥


हरि गुन नाम अपार कथा रूप अगनित अमित । मैं निज मति अनुसार कहउँ उमा सादर सुनहु ॥ १२०(घ ॥



Chaupai / चोपाई


सुनु गिरिजा हरिचरित सुहाए । बिपुल बिसद निगमागम गाए ॥ हरि अवतार हेतु जेहि होई । इदमित्थं कहि जाइ न सोई ॥


राम अतर्क्य बुद्धि मन बानी । मत हमार अस सुनहि सयानी ॥ तदपि संत मुनि बेद पुराना । जस कछु कहहिं स्वमति अनुमाना ॥


तस मैं सुमुखि सुनावउँ तोही । समुझि परइ जस कारन मोही ॥ जब जब होइ धरम कै हानी । बाढहिं असुर अधम अभिमानी ॥


करहिं अनीति जाइ नहिं बरनी । सीदहिं बिप्र धेनु सुर धरनी ॥ तब तब प्रभु धरि बिबिध सरीरा । हरहि कृपानिधि सज्जन पीरा ॥



Doha / दोहा


दो. असुर मारि थापहिं सुरन्ह राखहिं निज श्रुति सेतु । जग बिस्तारहिं बिसद जस राम जन्म कर हेतु ॥ १२१ ॥



Chaupai / चोपाई


सोइ जस गाइ भगत भव तरहीं । कृपासिंधु जन हित तनु धरहीं ॥ राम जनम के हेतु अनेका । परम बिचित्र एक तें एका ॥


जनम एक दुइ कहउँ बखानी । सावधान सुनु सुमति भवानी ॥ द्वारपाल हरि के प्रिय दोऊ । जय अरु बिजय जान सब कोऊ ॥


बिप्र श्राप तें दूनउ भाई । तामस असुर देह तिन्ह पाई ॥ कनककसिपु अरु हाटक लोचन । जगत बिदित सुरपति मद मोचन ॥


बिजई समर बीर बिख्याता । धरि बराह बपु एक निपाता ॥ होइ नरहरि दूसर पुनि मारा । जन प्रहलाद सुजस बिस्तारा ॥



Doha / दोहा


दो. भए निसाचर जाइ तेइ महाबीर बलवान । कुंभकरन रावण सुभट सुर बिजई जग जान ॥ १२२ ।



Chaupai / चोपाई


मुकुत न भए हते भगवाना । तीनि जनम द्विज बचन प्रवाना ॥ एक बार तिन्ह के हित लागी । धरेउ सरीर भगत अनुरागी ॥


कस्यप अदिति तहाँ पितु माता । दसरथ कौसल्या बिख्याता ॥ एक कलप एहि बिधि अवतारा । चरित्र पवित्र किए संसारा ॥


एक कलप सुर देखि दुखारे । समर जलंधर सन सब हारे ॥ संभु कीन्ह संग्राम अपारा । दनुज महाबल मरइ न मारा ॥


परम सती असुराधिप नारी । तेहि बल ताहि न जितहिं पुरारी ॥



Doha / दोहा


दो. छल करि टारेउ तासु ब्रत प्रभु सुर कारज कीन्ह ॥ जब तेहि जानेउ मरम तब श्राप कोप करि दीन्ह ॥ १२३ ॥



Chaupai / चोपाई


तासु श्राप हरि दीन्ह प्रमाना । कौतुकनिधि कृपाल भगवाना ॥ तहाँ जलंधर रावन भयऊ । रन हति राम परम पद दयऊ ॥


एक जनम कर कारन एहा । जेहि लागि राम धरी नरदेहा ॥ प्रति अवतार कथा प्रभु केरी । सुनु मुनि बरनी कबिन्ह घनेरी ॥


नारद श्राप दीन्ह एक बारा । कलप एक तेहि लगि अवतारा ॥ गिरिजा चकित भई सुनि बानी । नारद बिष्नुभगत पुनि ग्यानि ॥


कारन कवन श्राप मुनि दीन्हा । का अपराध रमापति कीन्हा ॥ यह प्रसंग मोहि कहहु पुरारी । मुनि मन मोह आचरज भारी ॥



Doha / दोहा


दो. बोले बिहसि महेस तब ग्यानी मूढ़ न कोइ । जेहि जस रघुपति करहिं जब सो तस तेहि छन होइ ॥ १२४(क) ॥



Sortha/ सोरठा


सो. कहउँ राम गुन गाथ भरद्वाज सादर सुनहु । भव भंजन रघुनाथ भजु तुलसी तजि मान मद ॥ १२४(ख) ॥



Chaupai / चोपाई


हिमगिरि गुहा एक अति पावनि । बह समीप सुरसरी सुहावनि ॥ आश्रम परम पुनीत सुहावा । देखि देवरिषि मन अति भावा ॥


निरखि सैल सरि बिपिन बिभागा । भयउ रमापति पद अनुरागा ॥ सुमिरत हरिहि श्राप गति बाधी । सहज बिमल मन लागि समाधी ॥


मुनि गति देखि सुरेस डेराना । कामहि बोलि कीन्ह समाना ॥ सहित सहाय जाहु मम हेतू । चकेउ हरषि हियँ जलचरकेतू ॥


सुनासीर मन महुँ असि त्रासा । चहत देवरिषि मम पुर बासा ॥ जे कामी लोलुप जग माहीं । कुटिल काक इव सबहि डेराहीं ॥



Doha / दोहा


दो. सुख हाड़ लै भाग सठ स्वान निरखि मृगराज । छीनि लेइ जनि जान जड़ तिमि सुरपतिहि न लाज ॥ १२५ ॥



Chaupai / चोपाई


तेहि आश्रमहिं मदन जब गयऊ । निज मायाँ बसंत निरमयऊ ॥ कुसुमित बिबिध बिटप बहुरंगा । कूजहिं कोकिल गुंजहि भृंगा ॥


चली सुहावनि त्रिबिध बयारी । काम कृसानु बढ़ावनिहारी ॥ रंभादिक सुरनारि नबीना । सकल असमसर कला प्रबीना ॥


करहिं गान बहु तान तरंगा । बहुबिधि क्रीड़हि पानि पतंगा ॥ देखि सहाय मदन हरषाना । कीन्हेसि पुनि प्रपंच बिधि नाना ॥


काम कला कछु मुनिहि न ब्यापी । निज भयँ डरेउ मनोभव पापी ॥ सीम कि चाँपि सकइ कोउ तासु । बड़ रखवार रमापति जासू ॥



Doha / दोहा


दो. सहित सहाय सभीत अति मानि हारि मन मैन । गहेसि जाइ मुनि चरन तब कहि सुठि आरत बैन ॥ १२६ ॥



Chaupai / चोपाई


भयउ न नारद मन कछु रोषा । कहि प्रिय बचन काम परितोषा ॥ नाइ चरन सिरु आयसु पाई । गयउ मदन तब सहित सहाई ॥


मुनि सुसीलता आपनि करनी । सुरपति सभाँ जाइ सब बरनी ॥ सुनि सब कें मन अचरजु आवा । मुनिहि प्रसंसि हरिहि सिरु नावा ॥


तब नारद गवने सिव पाहीं । जिता काम अहमिति मन माहीं ॥ मार चरित संकरहिं सुनाए । अतिप्रिय जानि महेस सिखाए ॥


बार बार बिनवउँ मुनि तोहीं । जिमि यह कथा सुनायहु मोहीं ॥ तिमि जनि हरिहि सुनावहु कबहूँ । चलेहुँ प्रसंग दुराएडु तबहूँ ॥



Doha / दोहा


दो. संभु दीन्ह उपदेस हित नहिं नारदहि सोहान । भारद्वाज कौतुक सुनहु हरि इच्छा बलवान ॥ १२७ ॥



Chaupai / चोपाई


राम कीन्ह चाहहिं सोइ होई । करै अन्यथा अस नहिं कोई ॥ संभु बचन मुनि मन नहिं भाए । तब बिरंचि के लोक सिधाए ॥


एक बार करतल बर बीना । गावत हरि गुन गान प्रबीना ॥ छीरसिंधु गवने मुनिनाथा । जहँ बस श्रीनिवास श्रुतिमाथा ॥


हरषि मिले उठि रमानिकेता । बैठे आसन रिषिहि समेता ॥ बोले बिहसि चराचर राया । बहुते दिनन कीन्हि मुनि दाया ॥


काम चरित नारद सब भाषे । जद्यपि प्रथम बरजि सिवँ राखे ॥ अति प्रचंड रघुपति कै माया । जेहि न मोह अस को जग जाया ॥



Doha / दोहा


दो. रूख बदन करि बचन मृदु बोले श्रीभगवान । तुम्हरे सुमिरन तें मिटहिं मोह मार मद मान ॥ १२८ ॥



Chaupai / चोपाई


सुनु मुनि मोह होइ मन ताकें । ग्यान बिराग हृदय नहिं जाके ॥ ब्रह्मचरज ब्रत रत मतिधीरा । तुम्हहि कि करइ मनोभव पीरा ॥


नारद कहेउ सहित अभिमाना । कृपा तुम्हारि सकल भगवाना ॥ करुनानिधि मन दीख बिचारी । उर अंकुरेउ गरब तरु भारी ॥


बेगि सो मै डारिहउँ उखारी । पन हमार सेवक हितकारी ॥ मुनि कर हित मम कौतुक होई । अवसि उपाय करबि मै सोई ॥


तब नारद हरि पद सिर नाई । चले हृदयँ अहमिति अधिकाई ॥ श्रीपति निज माया तब प्रेरी । सुनहु कठिन करनी तेहि केरी ॥



Doha / दोहा


दो. बिरचेउ मग महुँ नगर तेहिं सत जोजन बिस्तार । श्रीनिवासपुर तें अधिक रचना बिबिध प्रकार ॥ १२९ ॥



Chaupai / चोपाई


बसहिं नगर सुंदर नर नारी । जनु बहु मनसिज रति तनुधारी ॥ तेहिं पुर बसइ सीलनिधि राजा । अगनित हय गय सेन समाजा ॥


सत सुरेस सम बिभव बिलासा । रूप तेज बल नीति निवासा ॥ बिस्वमोहनी तासु कुमारी । श्री बिमोह जिसु रूपु निहारी ॥


सोइ हरिमाया सब गुन खानी । सोभा तासु कि जाइ बखानी ॥ करइ स्वयंबर सो नृपबाला । आए तहँ अगनित महिपाला ॥


मुनि कौतुकी नगर तेहिं गयऊ । पुरबासिंह सब पूछत भयऊ ॥ सुनि सब चरित भूपगृहँ आए । करि पूजा नृप मुनि बैठाए ॥



Doha / दोहा


दो. आनि देखाई नारदहि भूपति राजकुमारि । कहहु नाथ गुन दोष सब एहि के हृदयँ बिचारि ॥ १३० ॥



Chaupai / चोपाई


देखि रूप मुनि बिरति बिसारी । बड़ी बार लगि रहे निहारी ॥ लच्छन तासु बिलोकि भुलाने । हृदयँ हरष नहिं प्रगट बखाने ॥


जो एहि बरइ अमर सोइ होई । समरभूमि तेहि जीत न कोई ॥ सेवहिं सकल चराचर ताही । बरइ सीलनिधि कन्या जाही ॥


लच्छन सब बिचारि उर राखे । कछुक बनाइ भूप सन भाषे ॥ सुता सुलच्छन कहि नृप पाहीं । नारद चले सोच मन माहीं ॥


करौं जाइ सोइ जतन बिचारी । जेहि प्रकार मोहि बरै कुमारी ॥ जप तप कछु न होइ तेहि काला । हे बिधि मिलइ कवन बिधि बाला ॥



Doha / दोहा


दो. एहि अवसर चाहिअ परम सोभा रूप बिसाल । जो बिलोकि रीझै कुअँरि तब मेलै जयमाल ॥ १३१ ॥



Chaupai / चोपाई


हरि सन मागौं सुंदरताई । होइहि जात गहरु अति भाई ॥ मोरें हित हरि सम नहिं कोऊ । एहि अवसर सहाय सोइ होऊ ॥


बहुबिधि बिनय कीन्हि तेहि काला । प्रगटेउ प्रभु कौतुकी कृपाला ॥ प्रभु बिलोकि मुनि नयन जुड़ाने । होइहि काजु हिएँ हरषाने ॥


अति आरति कहि कथा सुनाई । करहु कृपा करि होहु सहाई ॥ आपन रूप देहु प्रभु मोही । आन भाँति नहिं पावौं ओही ॥


जेहि बिधि नाथ होइ हित मोरा । करहु सो बेगि दास मैं तोरा ॥ निज माया बल देखि बिसाला । हियँ हँसि बोले दीनदयाला ॥



Doha / दोहा


दो. जेहि बिधि होइहि परम हित नारद सुनहु तुम्हार । सोइ हम करब न आन कछु बचन न मृषा हमार ॥ १३२ ॥



Chaupai / चोपाई


कुपथ माग रुज ब्याकुल रोगी । बैद न देइ सुनहु मुनि जोगी ॥ एहि बिधि हित तुम्हार मैं ठयऊ । कहि अस अंतरहित प्रभु भयऊ ॥


माया बिबस भए मुनि मूढ़ा । समुझी नहिं हरि गिरा निगूढ़ा ॥ गवने तुरत तहाँ रिषिराई । जहाँ स्वयंबर भूमि बनाई ॥


निज निज आसन बैठे राजा । बहु बनाव करि सहित समाजा ॥ मुनि मन हरष रूप अति मोरें । मोहि तजि आनहि बारिहि न भोरें ॥


मुनि हित कारन कृपानिधाना । दीन्ह कुरूप न जाइ बखाना ॥ सो चरित्र लखि काहुँ न पावा । नारद जानि सबहिं सिर नावा ॥



Doha / दोहा


दो. रहे तहाँ दुइ रुद्र गन ते जानहिं सब भेउ । बिप्रबेष देखत फिरहिं परम कौतुकी तेउ ॥ १३३ ॥



Chaupai / चोपाई


जेंहि समाज बैंठे मुनि जाई । हृदयँ रूप अहमिति अधिकाई ॥ तहँ बैठ महेस गन दोऊ । बिप्रबेष गति लखइ न कोऊ ॥


करहिं कूटि नारदहि सुनाई । नीकि दीन्हि हरि सुंदरताई ॥ रीझहि राजकुअँरि छबि देखी । इन्हहि बरिहि हरि जानि बिसेषी ॥


मुनिहि मोह मन हाथ पराएँ । हँसहिं संभु गन अति सचु पाएँ ॥ जदपि सुनहिं मुनि अटपटि बानी । समुझि न परइ बुद्धि भ्रम सानी ॥


काहुँ न लखा सो चरित बिसेषा । सो सरूप नृपकन्याँ देखा ॥ मर्कट बदन भयंकर देही । देखत हृदयँ क्रोध भा तेही ॥



Doha / दोहा


दो. सखीं संग लै कुअँरि तब चलि जनु राजमराल । देखत फिरइ महीप सब कर सरोज जयमाल ॥ १३४ ॥



Chaupai / चोपाई


जेहि दिसि बैठे नारद फूली । सो दिसि देहि न बिलोकी भूली ॥ पुनि पुनि मुनि उकसहिं अकुलाहीं । देखि दसा हर गन मुसकाहीं ॥


धरि नृपतनु तहँ गयउ कृपाला । कुअँरि हरषि मेलेउ जयमाला ॥ दुलहिनि लै गे लच्छिनिवासा । नृपसमाज सब भयउ निरासा ॥


मुनि अति बिकल मोंहँ मति नाठी । मनि गिरि गई छूटि जनु गाँठी ॥ तब हर गन बोले मुसुकाई । निज मुख मुकुर बिलोकहु जाई ॥


अस कहि दोउ भागे भयँ भारी । बदन दीख मुनि बारि निहारी ॥ बेषु बिलोकि क्रोध अति बाढ़ा । तिन्हहि सराप दीन्ह अति गाढ़ा ॥



Doha / दोहा


दो. होहु निसाचर जाइ तुम्ह कपटी पापी दोउ । हँसेहु हमहि सो लेहु फल बहुरि हँसेहु मुनि कोउ ॥ १३५ ॥



Chaupai / चोपाई


पुनि जल दीख रूप निज पावा । तदपि हृदयँ संतोष न आवा ॥ फरकत अधर कोप मन माहीं । सपदी चले कमलापति पाहीं ॥


देहउँ श्राप कि मरिहउँ जाई । जगत मोर उपहास कराई ॥ बीचहिं पंथ मिले दनुजारी । संग रमा सोइ राजकुमारी ॥


बोले मधुर बचन सुरसाईं । मुनि कहँ चले बिकल की नाईं ॥ सुनत बचन उपजा अति क्रोधा । माया बस न रहा मन बोधा ॥


पर संपदा सकहु नहिं देखी । तुम्हरें इरिषा कपट बिसेषी ॥ मथत सिंधु रुद्रहि बौरायहु । सुरन्ह प्रेरी बिष पान करायहु ॥



Doha / दोहा


दो. असुर सुरा बिष संकरहि आपु रमा मनि चारु । स्वारथ साधक कुटिल तुम्ह सदा कपट ब्यवहारु ॥ १३६ ॥



Chaupai / चोपाई


परम स्वतंत्र न सिर पर कोई । भावइ मनहि करहु तुम्ह सोई ॥ भलेहि मंद मंदेहि भल करहू । बिसमय हरष न हियँ कछु धरहू ॥


डहकि डहकि परिचेहु सब काहू । अति असंक मन सदा उछाहू ॥ करम सुभासुभ तुम्हहि न बाधा । अब लगि तुम्हहि न काहूँ साधा ॥


भले भवन अब बायन दीन्हा । पावहुगे फल आपन कीन्हा ॥ बंचेहु मोहि जवनि धरि देहा । सोइ तनु धरहु श्राप मम एहा ॥


कपि आकृति तुम्ह कीन्हि हमारी । करिहहिं कीस सहाय तुम्हारी ॥ मम अपकार कीन्ही तुम्ह भारी । नारी बिरहँ तुम्ह होब दुखारी ॥



Doha / दोहा


दो. श्राप सीस धरी हरषि हियँ प्रभु बहु बिनती कीन्हि । निज माया कै प्रबलता करषि कृपानिधि लीन्हि ॥ १३७ ॥



Chaupai / चोपाई


जब हरि माया दूरि निवारी । नहिं तहँ रमा न राजकुमारी ॥ तब मुनि अति सभीत हरि चरना । गहे पाहि प्रनतारति हरना ॥


मृषा होउ मम श्राप कृपाला । मम इच्छा कह दीनदयाला ॥ मैं दुर्बचन कहे बहुतेरे । कह मुनि पाप मिटिहिं किमि मेरे ॥


जपहु जाइ संकर सत नामा । होइहि हृदयँ तुरंत बिश्रामा ॥ कोउ नहिं सिव समान प्रिय मोरें । असि परतीति तजहु जनि भोरें ॥


जेहि पर कृपा न करहिं पुरारी । सो न पाव मुनि भगति हमारी ॥ अस उर धरि महि बिचरहु जाई । अब न तुम्हहि माया निअराई ॥



Doha / दोहा


दो. बहुबिधि मुनिहि प्रबोधि प्रभु तब भए अंतरधान ॥ सत्यलोक नारद चले करत राम गुन गान ॥ १३८ ॥



Chaupai / चोपाई


हर गन मुनिहि जात पथ देखी । बिगतमोह मन हरष बिसेषी ॥ अति सभीत नारद पहिं आए । गहि पद आरत बचन सुनाए ॥


हर गन हम न बिप्र मुनिराया । बड़ अपराध कीन्ह फल पाया ॥ श्राप अनुग्रह करहु कृपाला । बोले नारद दीनदयाला ॥


निसिचर जाइ होहु तुम्ह दोऊ । बैभव बिपुल तेज बल होऊ ॥ भुजबल बिस्व जितब तुम्ह जहिआ । धरिहहिं बिष्नु मनुज तनु तहिआ ।


समर मरन हरि हाथ तुम्हारा । होइहहु मुकुत न पुनि संसारा ॥ चले जुगल मुनि पद सिर नाई । भए निसाचर कालहि पाई ॥



Doha / दोहा


दो. एक कलप एहि हेतु प्रभु लीन्ह मनुज अवतार । सुर रंजन सज्जन सुखद हरि भंजन भुबि भार ॥ १३९ ॥



Chaupai / चोपाई


एहि बिधि जनम करम हरि केरे । सुंदर सुखद बिचित्र घनेरे ॥ कलप कलप प्रति प्रभु अवतरहीं । चारु चरित नानाबिधि करहीं ॥


तब तब कथा मुनीसन्ह गाई । परम पुनीत प्रबंध बनाई ॥ बिबिध प्रसंग अनूप बखाने । करहिं न सुनि आचरजु सयाने ॥


हरि अनंत हरिकथा अनंता । कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता ॥ रामचंद्र के चरित सुहाए । कलप कोटि लगि जाहिं न गाए ॥


यह प्रसंग मैं कहा भवानी । हरिमायाँ मोहहिं मुनि ग्यानी ॥ प्रभु कौतुकी प्रनत हितकारी ॥ सेवत सुलभ सकल दुख हारी ॥



Sortha/ सोरठा


सो. सुर नर मुनि कोउ नाहिं जेहि न मोह माया प्रबल ॥ अस बिचारि मन माहिं भजिअ महामाया पतिहि ॥ १४० ॥



Chaupai / चोपाई


अपर हेतु सुनु सैलकुमारी । कहउँ बिचित्र कथा बिस्तारी ॥ जेहि कारन अज अगुन अरूपा । ब्रह्म भयउ कोसलपुर भूपा ॥


जो प्रभु बिपिन फिरत तुम्ह देखा । बंधु समेत धरें मुनिबेषा ॥ जासु चरित अवलोकि भवानी । सती सरीर रहिहु बौरानी ॥


अजहुँ न छाया मिटति तुम्हारी । तासु चरित सुनु भ्रम रुज हारी ॥ लीला कीन्हि जो तेहिं अवतारा । सो सब कहिहउँ मति अनुसारा ॥


भरद्वाज सुनि संकर बानी । सकुचि सप्रेम उमा मुसकानी ॥ लगे बहुरि बरने बृषकेतू । सो अवतार भयउ जेहि हेतू ॥



Doha / दोहा


दो. सो मैं तुम्ह सन कहउँ सबु सुनु मुनीस मन लाई ॥ राम कथा कलि मल हरनि मंगल करनि सुहाइ ॥ १४१ ॥



Chaupai / चोपाई


स्वायंभू मनु अरु सतरूपा । जिन्ह तें भै नरसृष्टि अनूपा ॥ दंपति धरम आचरन नीका । अजहुँ गाव श्रुति जिन्ह कै लीका ॥


नृप उत्तानपाद सुत तासू । ध्रुव हरि भगत भयउ सुत जासू ॥ लघु सुत नाम प्रिय्रब्रत ताही । बेद पुरान प्रसंसहि जाही ॥


देवहूति पुनि तासु कुमारी । जो मुनि कर्दम कै प्रिय नारी ॥ आदिदेव प्रभु दीनदयाला । जठर धरेउ जेहिं कपिल कृपाला ॥


सांख्य सास्त्र जिन्ह प्रगट बखाना । तत्त्व बिचार निपुन भगवाना ॥ तेहिं मनु राज कीन्ह बहु काला । प्रभु आयसु सब बिधि प्रतिपाला ॥



Sortha/ सोरठा


सो. होइ न बिषय बिराग भवन बसत भा चौथपन । हृदयँ बहुत दुख लाग जनम गयउ हरिभगति बिनु ॥ १४२ ॥



Chaupai / चोपाई


बरबस राज सुतहि तब दीन्हा । नारि समेत गवन बन कीन्हा ॥ तीरथ बर नैमिष बिख्याता । अति पुनीत साधक सिधि दाता ॥


बसहिं तहाँ मुनि सिद्ध समाजा । तहँ हियँ हरषि चलेउ मनु राजा ॥ पंथ जात सोहहिं मतिधीरा । ग्यान भगति जनु धरें सरीरा ॥


पहुँचे जाइ धेनुमति तीरा । हरषि नहाने निरमल नीरा ॥ आए मिलन सिद्ध मुनि ग्यानी । धरम धुरंधर नृपरिषि जानी ॥


जहँ जँह तीरथ रहे सुहाए । मुनिन्ह सकल सादर करवाए ॥ कृस सरीर मुनिपट परिधाना । सत समाज नित सुनहिं पुराना ।



Doha / दोहा


दो. द्वादस अच्छर मंत्र पुनि जपहिं सहित अनुराग । बासुदेव पद पंकरुह दंपति मन अति लाग ॥ १४३ ॥



Chaupai / चोपाई


करहिं अहार साक फल कंदा । सुमिरहिं ब्रह्म सच्चिदानंदा ॥ पुनि हरि हेतु करन तप लागे । बारि अधार मूल फल त्यागे ॥


उर अभिलाष निंरंतर होई । देखा नयन परम प्रभु सोई ॥ अगुन अखंड अनंत अनादी । जेहि चिंतहिं परमारथबादी ॥


नेति नेति जेहि बेद निरूपा । निजानंद निरुपाधि अनूपा ॥ संभु बिरंचि बिष्नु भगवाना । उपजहिं जासु अंस तें नाना ॥


ऐसेउ प्रभु सेवक बस अहई । भगत हेतु लीलातनु गहई ॥ जौं यह बचन सत्य श्रुति भाषा । तौ हमार पूजहि अभिलाषा ॥



Doha / दोहा


दो. एहि बिधि बीतें बरष षट सहस बारि आहार । संबत सप्त सहस्र पुनि रहे समीर अधार ॥ १४४ ॥



Chaupai / चोपाई


बरष सहस दस त्यागेउ सोऊ । ठाढ़े रहे एक पद दोऊ ॥ बिधि हरि तप देखि अपारा । मनु समीप आए बहु बारा ॥


मागहु बर बहु भाँति लोभाए । परम धीर नहिं चलहिं चलाए ॥ अस्थिमात्र होइ रहे सरीरा । तदपि मनाग मनहिं नहिं पीरा ॥


प्रभु सर्बग्य दास निज जानी । गति अनन्य तापस नृप रानी ॥ मागु मागु बरु भै नभ बानी । परम गभीर कृपामृत सानी ॥


मृतक जिआवनि गिरा सुहाई । श्रबन रंध्र होइ उर जब आई ॥ ह्रष्टपुष्ट तन भए सुहाए । मानहुँ अबहिं भवन ते आए ॥



Doha / दोहा


दो. श्रवन सुधा सम बचन सुनि पुलक प्रफुल्लित गात । बोले मनु करि दंडवत प्रेम न हृदयँ समात ॥ १४५ ॥



Chaupai / चोपाई


सुनु सेवक सुरतरु सुरधेनु । बिधि हरि हर बंदित पद रेनू ॥ सेवत सुलभ सकल सुख दायक । प्रनतपाल सचराचर नायक ॥


जौं अनाथ हित हम पर नेहू । तौ प्रसन्न होइ यह बर देहू ॥ जो सरूप बस सिव मन माहीं । जेहि कारन मुनि जतन कराहीं ॥


जो भुसुंडि मन मानस हंसा । सगुन अगुन जेहि निगम प्रसंसा ॥ देखहिं हम सो रूप भरि लोचन । कृपा करहु प्रनतारति मोचन ॥


दंपति बचन परम प्रिय लागे । मुदुल बिनीत प्रेम रस पागे ॥ भगत बछल प्रभु कृपानिधाना । बिस्वबास प्रगटे भगवाना ॥



Doha / दोहा


दो. नील सरोरुह नील मनि नील नीरधर स्याम । लाजहिं तन सोभा निरखि कोटि कोटि सत काम ॥ १४६ ॥



Chaupai / चोपाई


सरद मयंक बदन छबि सींवा । चारु कपोल चिबुक दर ग्रीवा ॥ अधर अरुन रद सुंदर नासा । बिधु कर निकर बिनिंदक हासा ॥


नव अबुंज अंबक छबि नीकी । चितवनि ललित भावँती जी की ॥ भुकुटि मनोज चाप छबि हारी । तिलक ललाट पटल दुतिकारी ॥


कुंडल मकर मुकुट सिर भ्राजा । कुटिल केस जनु मधुप समाजा ॥ उर श्रीबत्स रुचिर बनमाला । पदिक हार भूषन मनिजाला ॥


केहरि कंधर चारु जनेउ । बाहु बिभूषन सुंदर तेऊ ॥ करि कर सरि सुभग भुजदंडा । कटि निषंग कर सर कोदंडा ॥



Doha / दोहा


दो. तडित बिनिंदक पीत पट उदर रेख बर तीनि ॥ नाभि मनोहर लेति जनु जमुन भवँर छबि छीनि ॥ १४७ ॥



Chaupai / चोपाई


पद राजीव बरनि नहि जाहीं । मुनि मन मधुप बसहिं जेन्ह माहीं ॥ बाम भाग सोभति अनुकूला । आदिसक्ति छबिनिधि जगमूला ॥


जासु अंस उपजहिं गुनखानी । अगनित लच्छि उमा ब्रह्मानी ॥ भृकुटि बिलास जासु जग होई । राम बाम दिसि सीता सोई ॥


छबिसमुद्र हरि रूप बिलोकी । एकटक रहे नयन पट रोकी ॥ चितवहिं सादर रूप अनूपा । तृप्ति न मानहिं मनु सतरूपा ॥


हरष बिबस तन दसा भुलानी । परे दंड इव गहि पद पानी ॥ सिर परसे प्रभु निज कर कंजा । तुरत उठाए करुनापुंजा ॥



Doha / दोहा


दो. बोले कृपानिधान पुनि अति प्रसन्न मोहि जानि । मागहु बर जोइ भाव मन महादानि अनुमानि ॥ १४८ ॥



Chaupai / चोपाई


सुनि प्रभु बचन जोरि जुग पानी । धरि धीरजु बोली मृदु बानी ॥ नाथ देखि पद कमल तुम्हारे । अब पूरे सब काम हमारे ॥


एक लालसा बड़ि उर माही । सुगम अगम कहि जात सो नाहीं ॥ तुम्हहि देत अति सुगम गोसाईं । अगम लाग मोहि निज कृपनाईं ॥


जथा दरिद्र बिबुधतरु पाई । बहु संपति मागत सकुचाई ॥ तासु प्रभा जान नहिं सोई । तथा हृदयँ मम संसय होई ॥


सो तुम्ह जानहु अंतरजामी । पुरवहु मोर मनोरथ स्वामी ॥ सकुच बिहाइ मागु नृप मोहि । मोरें नहिं अदेय कछु तोही ॥



Doha / दोहा


दो. दानि सिरोमनि कृपानिधि नाथ कहउँ सतिभाउ ॥ चाहउँ तुम्हहि समान सुत प्रभु सन कवन दुराउ ॥ १४९ ॥



Chaupai / चोपाई


देखि प्रीति सुनि बचन अमोले । एवमस्तु करुनानिधि बोले ॥ आपु सरिस खोजौं कहँ जाई । नृप तव तनय होब मैं आई ॥


सतरूपहि बिलोकि कर जोरें । देबि मागु बरु जो रुचि तोरे ॥ जो बरु नाथ चतुर नृप मागा । सोइ कृपाल मोहि अति प्रिय लागा ॥


प्रभु परंतु सुठि होति ढिठाई । जदपि भगत हित तुम्हहि सोहाई ॥ तुम्ह ब्रह्मादि जनक जग स्वामी । ब्रह्म सकल उर अंतरजामी ॥


अस समुझत मन संसय होई । कहा जो प्रभु प्रवान पुनि सोई ॥ जे निज भगत नाथ तव अहहीं । जो सुख पावहिं जो गति लहहीं ॥



Doha / दोहा


दो. सोइ सुख सोइ गति सोइ भगति सोइ निज चरन सनेहु ॥ सोइ बिबेक सोइ रहनि प्रभु हमहि कृपा करि देहु ॥ १५० ॥



Chaupai / चोपाई


सुनु मृदु गूढ़ रुचिर बर रचना । कृपासिंधु बोले मृदु बचना ॥ जो कछु रुचि तुम्हेर मन माहीं । मैं सो दीन्ह सब संसय नाहीं ॥


मातु बिबेक अलोकिक तोरें । कबहुँ न मिटिहि अनुग्रह मोरें । बंदि चरन मनु कहेउ बहोरी । अवर एक बिनति प्रभु मोरी ॥


सुत बिषइक तव पद रति होऊ । मोहि बड़ मूढ़ कहै किन कोऊ ॥ मनि बिनु फनि जिमि जल बिनु मीना । मम जीवन तिमि तुम्हहि अधीना ॥


अस बरु मागि चरन गहि रहेऊ । एवमस्तु करुनानिधि कहेऊ ॥ अब तुम्ह मम अनुसासन मानी । बसहु जाइ सुरपति रजधानी ॥



Sortha/ सोरठा


सो. तहँ करि भोग बिसाल तात गउँ कछु काल पुनि । होइहहु अवध भुआल तब मैं होब तुम्हार सुत ॥ १५१ ॥



Chaupai / चोपाई


इच्छामय नरबेष सँवारें । होइहउँ प्रगट निकेत तुम्हारे ॥ अंसन्ह सहित देह धरि ताता । करिहउँ चरित भगत सुखदाता ॥


जे सुनि सादर नर बड़भागी । भव तरिहहिं ममता मद त्यागी ॥ आदिसक्ति जेहिं जग उपजाया । सोउ अवतरिहि मोरि यह माया ॥


पुरउब मैं अभिलाष तुम्हारा । सत्य सत्य पन सत्य हमारा ॥ पुनि पुनि अस कहि कृपानिधाना । अंतरधान भए भगवाना ॥


दंपति उर धरि भगत कृपाला । तेहिं आश्रम निवसे कछु काला ॥ समय पाइ तनु तजि अनयासा । जाइ कीन्ह अमरावति बासा ॥



Doha / दोहा


दो. यह इतिहास पुनीत अति उमहि कही बृषकेतु । भरद्वाज सुनु अपर पुनि राम जनम कर हेतु ॥ १५२ ॥



Chaupai / चोपाई


सुनु मुनि कथा पुनीत पुरानी । जो गिरिजा प्रति संभु बखानी ॥ बिस्व बिदित एक कैकय देसू । सत्यकेतु तहँ बसइ नरेसू ॥


धरम धुरंधर नीति निधाना । तेज प्रताप सील बलवाना ॥ तेहि कें भए जुगल सुत बीरा । सब गुन धाम महा रनधीरा ॥


राज धनी जो जेठ सुत आही । नाम प्रतापभानु अस ताही ॥ अपर सुतहि अरिमर्दन नामा । भुजबल अतुल अचल संग्रामा ॥


भाइहि भाइहि परम समीती । सकल दोष छल बरजित प्रीती ॥ जेठे सुतहि राज नृप दीन्हा । हरि हित आपु गवन बन कीन्हा ॥



Doha / दोहा


दो. जब प्रतापरबि भयउ नृप फिरी दोहाई देस । प्रजा पाल अति बेदबिधि कतहुँ नहीं अघ लेस ॥ १५३ ॥



Chaupai / चोपाई


नृप हितकारक सचिव सयाना । नाम धरमरुचि सुक्र समाना ॥ सचिव सयान बंधु बलबीरा । आपु प्रतापपुंज रनधीरा ॥


सेन संग चतुरंग अपारा । अमित सुभट सब समर जुझारा ॥ सेन बिलोकि राउ हरषाना । अरु बाजे गहगहे निसाना ॥


बिजय हेतु कटकई बनाई । सुदिन साधि नृप चलेउ बजाई ॥ जँह तहँ परीं अनेक लराईं । जीते सकल भूप बरिआई ॥


सप्त दीप भुजबल बस कीन्हे । लै लै दंड छाड़ि नृप दीन्हें ॥ सकल अवनि मंडल तेहि काला । एक प्रतापभानु महिपाला ॥



Doha / दोहा


दो. स्वबस बिस्व करि बाहुबल निज पुर कीन्ह प्रबेसु । अरथ धरम कामादि सुख सेवइ समयँ नरेसु ॥ १५४ ॥



Chaupai / चोपाई


भूप प्रतापभानु बल पाई । कामधेनु भै भूमि सुहाई ॥ सब दुख बरजित प्रजा सुखारी । धरमसील सुंदर नर नारी ॥


सचिव धरमरुचि हरि पद प्रीती । नृप हित हेतु सिखव नित नीती ॥ गुर सुर संत पितर महिदेवा । करइ सदा नृप सब कै सेवा ॥


भूप धरम जे बेद बखाने । सकल करइ सादर सुख माने ॥ दिन प्रति देह बिबिध बिधि दाना । सुनहु सास्त्र बर बेद पुराना ॥


नाना बापीं कूप तड़ागा । सुमन बाटिका सुंदर बागा ॥ बिप्रभवन सुरभवन सुहाए । सब तीरथन्ह बिचित्र बनाए ॥



Doha / दोहा


दो. जँह लगि कहे पुरान श्रुति एक एक सब जाग । बार सहस्र सहस्र नृप किए सहित अनुराग ॥ १५५ ॥



Chaupai / चोपाई


हृदयँ न कछु फल अनुसंधाना । भूप बिबेकी परम सुजाना ॥ करइ जे धरम करम मन बानी । बासुदेव अर्पित नृप ग्यानी ॥


चढ़ि बर बाजि बार एक राजा । मृगया कर सब साजि समाजा ॥ बिंध्याचल गभीर बन गयऊ । मृग पुनीत बहु मारत भयऊ ॥


फिरत बिपिन नृप दीख बराहू । जनु बन दुरेउ ससिहि ग्रसि राहू ॥ बड़ बिधु नहि समात मुख माहीं । मनहुँ क्रोधबस उगिलत नाहीं ॥


कोल कराल दसन छबि गाई । तनु बिसाल पीवर अधिकाई ॥ घुरुघुरात हय आरौ पाएँ । चकित बिलोकत कान उठाएँ ॥



Doha / दोहा


दो. नील महीधर सिखर सम देखि बिसाल बराहु । चपरि चलेउ हय सुटुकि नृप हाँकि न होइ निबाहु ॥ १५६ ॥



Chaupai / चोपाई


आवत देखि अधिक रव बाजी । चलेउ बराह मरुत गति भाजी ॥ तुरत कीन्ह नृप सर संधाना । महि मिलि गयउ बिलोकत बाना ॥


तकि तकि तीर महीस चलावा । करि छल सुअर सरीर बचावा ॥ प्रगटत दुरत जाइ मृग भागा । रिस बस भूप चलेउ संग लागा ॥


गयउ दूरि घन गहन बराहू । जहँ नाहिन गज बाजि निबाहू ॥ अति अकेल बन बिपुल कलेसू । तदपि न मृग मग तजइ नरेसू ॥


कोल बिलोकि भूप बड़ धीरा । भागि पैठ गिरिगुहाँ गभीरा ॥ अगम देखि नृप अति पछिताई । फिरेउ महाबन परेउ भुलाई ॥



Doha / दोहा


दो. खेद खिन्न छुद्धित तृषित राजा बाजि समेत । खोजत ब्याकुल सरित सर जल बिनु भयउ अचेत ॥ १५७ ॥



Chaupai / चोपाई


फिरत बिपिन आश्रम एक देखा । तहँ बस नृपति कपट मुनिबेषा ॥ जासु देस नृप लीन्ह छड़ाई । समर सेन तजि गयउ पराई ॥


समय प्रतापभानु कर जानी । आपन अति असमय अनुमानी ॥ गयउ न गृह मन बहुत गलानी । मिला न राजहि नृप अभिमानी ॥


रिस उर मारि रंक जिमि राजा । बिपिन बसइ तापस कें साजा ॥ तासु समीप गवन नृप कीन्हा । यह प्रतापरबि तेहि तब चीन्हा ॥


राउ तृषित नहि सो पहिचाना । देखि सुबेष महामुनि जाना ॥ उतरि तुरग तें कीन्ह प्रनामा । परम चतुर न कहेउ निज नामा ॥



Doha / दोहा


दो० भूपति तृषित बिलोकि तेहिं सरबरु दीन्ह देखाइ । मज्जन पान समेत हय कीन्ह नृपति हरषाइ ॥ १५८ ॥



Chaupai / चोपाई


गै श्रम सकल सुखी नृप भयऊ । निज आश्रम तापस लै गयऊ ॥ आसन दीन्ह अस्त रबि जानी । पुनि तापस बोलेउ मृदु बानी ॥


को तुम्ह कस बन फिरहु अकेलें । सुंदर जुबा जीव परहेलें ॥ चक्रबर्ति के लच्छन तोरें । देखत दया लागि अति मोरें ॥


नाम प्रतापभानु अवनीसा । तासु सचिव मैं सुनहु मुनीसा ॥ फिरत अहेरें परेउँ भुलाई । बडे भाग देखउँ पद आई ॥


हम कहँ दुर्लभ दरस तुम्हारा । जानत हौं कछु भल होनिहारा ॥ कह मुनि तात भयउ अँधियारा । जोजन सत्तरि नगरु तुम्हारा ॥



Doha / दोहा


दो. निसा घोर गम्भीर बन पंथ न सुनहु सुजान । बसहु आजु अस जानि तुम्ह जाएहु होत बिहान ॥ १५९(क) ॥


तुलसी जसि भवतब्यता तैसी मिलइ सहाइ । आपुनु आवइ ताहि पहिं ताहि तहाँ लै जाइ ॥ १५९(ख) ॥



Chaupai / चोपाई


भलेहिं नाथ आयसु धरि सीसा । बाँधि तुरग तरु बैठ महीसा ॥ नृप बहु भाति प्रसंसेउ ताही । चरन बंदि निज भाग्य सराही ॥


पुनि बोले मृदु गिरा सुहाई । जानि पिता प्रभु करउँ ढिठाई ॥ मोहि मुनिस सुत सेवक जानी । नाथ नाम निज कहहु बखानी ॥


तेहि न जान नृप नृपहि सो जाना । भूप सुह्रद सो कपट सयाना ॥ बैरी पुनि छत्री पुनि राजा । छल बल कीन्ह चहइ निज काजा ॥


समुझि राजसुख दुखित अराती । अवाँ अनल इव सुलगइ छाती ॥ सरल बचन नृप के सुनि काना । बयर सँभारि हृदयँ हरषाना ॥



Doha / दोहा


दो. कपट बोरि बानी मृदुल बोलेउ जुगुति समेत । नाम हमार भिखारि अब निर्धन रहित निकेति ॥ १६० ॥



Chaupai / चोपाई


कह नृप जे बिग्यान निधाना । तुम्ह सारिखे गलित अभिमाना ॥ सदा रहहि अपनपौ दुराएँ । सब बिधि कुसल कुबेष बनाएँ ॥


तेहि तें कहहि संत श्रुति टेरें । परम अकिंचन प्रिय हरि केरें ॥ तुम्ह सम अधन भिखारि अगेहा । होत बिरंचि सिवहि संदेहा ॥


जोसि सोसि तव चरन नमामी । मो पर कृपा करिअ अब स्वामी ॥ सहज प्रीति भूपति कै देखी । आपु बिषय बिस्वास बिसेषी ॥


सब प्रकार राजहि अपनाई । बोलेउ अधिक सनेह जनाई ॥ सुनु सतिभाउ कहउँ महिपाला । इहाँ बसत बीते बहु काला ॥



Doha / दोहा


दो. अब लगि मोहि न मिलेउ कोउ मैं न जनावउँ काहु । लोकमान्यता अनल सम कर तप कानन दाहु ॥ १६१(क) ॥



Chaupai / चोपाई


सो. तुलसी देखि सुबेषु भूलहिं मूढ़ न चतुर नर । सुंदर केकिहि पेखु बचन सुधा सम असन अहि ॥ १६१(ख)


तातें गुपुत रहउँ जग माहीं । हरि तजि किमपि प्रयोजन नाहीं ॥ प्रभु जानत सब बिनहिं जनाएँ । कहहु कवनि सिधि लोक रिझाएँ ॥


तुम्ह सुचि सुमति परम प्रिय मोरें । प्रीति प्रतीति मोहि पर तोरें ॥ अब जौं तात दुरावउँ तोही । दारुन दोष घटइ अति मोही ॥


जिमि जिमि तापसु कथइ उदासा । तिमि तिमि नृपहि उपज बिस्वासा ॥ देखा स्वबस कर्म मन बानी । तब बोला तापस बगध्यानी ॥


नाम हमार एकतनु भाई । सुनि नृप बोले पुनि सिरु नाई ॥ कहहु नाम कर अरथ बखानी । मोहि सेवक अति आपन जानी ॥



Doha / दोहा


दो. आदिसृष्टि उपजी जबहिं तब उतपति भै मोरि । नाम एकतनु हेतु तेहि देह न धरी बहोरि ॥ १६२ ॥



Chaupai / चोपाई


जनि आचरुज करहु मन माहीं । सुत तप तें दुर्लभ कछु नाहीं ॥ तपबल तें जग सृजइ बिधाता । तपबल बिष्नु भए परित्राता ॥


तपबल संभु करहिं संघारा । तप तें अगम न कछु संसारा ॥ भयउ नृपहि सुनि अति अनुरागा । कथा पुरातन कहै सो लागा ॥


करम धरम इतिहास अनेका । करइ निरूपन बिरति बिबेका ॥ उदभव पालन प्रलय कहानी । कहेसि अमित आचरज बखानी ॥


सुनि महिप तापस बस भयऊ । आपन नाम कहत तब लयऊ ॥ कह तापस नृप जानउँ तोही । कीन्हेहु कपट लाग भल मोही ॥



Sortha/ सोरठा


सो. सुनु महीस असि नीति जहँ तहँ नाम न कहहिं नृप । मोहि तोहि पर अति प्रीति सोइ चतुरता बिचारि तव ॥ १६३ ॥



Chaupai / चोपाई


नाम तुम्हार प्रताप दिनेसा । सत्यकेतु तव पिता नरेसा ॥ गुर प्रसाद सब जानिअ राजा । कहिअ न आपन जानि अकाजा ॥


देखि तात तव सहज सुधाई । प्रीति प्रतीति नीति निपुनाई ॥ उपजि परि ममता मन मोरें । कहउँ कथा निज पूछे तोरें ॥


अब प्रसन्न मैं संसय नाहीं । मागु जो भूप भाव मन माहीं ॥ सुनि सुबचन भूपति हरषाना । गहि पद बिनय कीन्हि बिधि नाना ॥


कृपासिंधु मुनि दरसन तोरें । चारि पदारथ करतल मोरें ॥ प्रभुहि तथापि प्रसन्न बिलोकी । मागि अगम बर होउँ असोकी ॥



Doha / दोहा


दो. जरा मरन दुख रहित तनु समर जितै जनि कोउ । एकछत्र रिपुहीन महि राज कलप सत होउ ॥ १६४ ॥



Chaupai / चोपाई


कह तापस नृप ऐसेइ होऊ । कारन एक कठिन सुनु सोऊ ॥ कालउ तुअ पद नाइहि सीसा । एक बिप्रकुल छाड़ि महीसा ॥


तपबल बिप्र सदा बरिआरा । तिन्ह के कोप न कोउ रखवारा ॥ जौं बिप्रन्ह सब करहु नरेसा । तौ तुअ बस बिधि बिष्नु महेसा ॥


चल न ब्रह्मकुल सन बरिआई । सत्य कहउँ दोउ भुजा उठाई ॥ बिप्र श्राप बिनु सुनु महिपाला । तोर नास नहि कवनेहुँ काला ॥


हरषेउ राउ बचन सुनि तासू । नाथ न होइ मोर अब नासू ॥ तव प्रसाद प्रभु कृपानिधाना । मो कहुँ सर्ब काल कल्याना ॥



Doha / दोहा


दो. एवमस्तु कहि कपटमुनि बोला कुटिल बहोरि । मिलब हमार भुलाब निज कहहु त हमहि न खोरि ॥ १६५ ॥



Chaupai / चोपाई


तातें मै तोहि बरजउँ राजा । कहें कथा तव परम अकाजा ॥ छठें श्रवन यह परत कहानी । नास तुम्हार सत्य मम बानी ॥


यह प्रगटें अथवा द्विजश्रापा । नास तोर सुनु भानुप्रतापा ॥ आन उपायँ निधन तव नाहीं । जौं हरि हर कोपहिं मन माहीं ॥


सत्य नाथ पद गहि नृप भाषा । द्विज गुर कोप कहहु को राखा ॥ राखइ गुर जौं कोप बिधाता । गुर बिरोध नहिं कोउ जग त्राता ॥


जौं न चलब हम कहे तुम्हारें । होउ नास नहिं सोच हमारें ॥ एकहिं डर डरपत मन मोरा । प्रभु महिदेव श्राप अति घोरा ॥



Doha / दोहा


दो. होहिं बिप्र बस कवन बिधि कहहु कृपा करि सोउ । तुम्ह तजि दीनदयाल निज हितू न देखउँ कोउँ ॥ १६६ ॥



Chaupai / चोपाई


सुनु नृप बिबिध जतन जग माहीं । कष्टसाध्य पुनि होहिं कि नाहीं ॥ अहइ एक अति सुगम उपाई । तहाँ परंतु एक कठिनाई ॥


मम आधीन जुगुति नृप सोई । मोर जाब तव नगर न होई ॥ आजु लगें अरु जब तें भयऊँ । काहू के गृह ग्राम न गयऊँ ॥


जौं न जाउँ तव होइ अकाजू । बना आइ असमंजस आजू ॥ सुनि महीस बोलेउ मृदु बानी । नाथ निगम असि नीति बखानी ॥


बड़े सनेह लघुन्ह पर करहीं । गिरि निज सिरनि सदा तृन धरहीं ॥ जलधि अगाध मौलि बह फेनू । संतत धरनि धरत सिर रेनू ॥



Doha / दोहा


दो. अस कहि गहे नरेस पद स्वामी होहु कृपाल । मोहि लागि दुख सहिअ प्रभु सज्जन दीनदयाल ॥ १६७ ॥



Chaupai / चोपाई


जानि नृपहि आपन आधीना । बोला तापस कपट प्रबीना ॥ सत्य कहउँ भूपति सुनु तोही । जग नाहिन दुर्लभ कछु मोही ॥


अवसि काज मैं करिहउँ तोरा । मन तन बचन भगत तैं मोरा ॥ जोग जुगुति तप मंत्र प्रभाऊ । फलइ तबहिं जब करिअ दुराऊ ॥


जौं नरेस मैं करौं रसोई । तुम्ह परुसहु मोहि जान न कोई ॥ अन्न सो जोइ जोइ भोजन करई । सोइ सोइ तव आयसु अनुसरई ॥


पुनि तिन्ह के गृह जेवँइ जोऊ । तव बस होइ भूप सुनु सोऊ ॥ जाइ उपाय रचहु नृप एहू । संबत भरि संकलप करेहू ॥



Doha / दोहा


दो. नित नूतन द्विज सहस सत बरेहु सहित परिवार । मैं तुम्हरे संकलप लगि दिनहिं󫡲इब जेवनार ॥ १६८ ॥



Chaupai / चोपाई


एहि बिधि भूप कष्ट अति थोरें । होइहहिं सकल बिप्र बस तोरें ॥ करिहहिं बिप्र होम मख सेवा । तेहिं प्रसंग सहजेहिं बस देवा ॥


और एक तोहि कहऊँ लखाऊ । मैं एहि बेष न आउब काऊ ॥ तुम्हरे उपरोहित कहुँ राया । हरि आनब मैं करि निज माया ॥


तपबल तेहि करि आपु समाना । रखिहउँ इहाँ बरष परवाना ॥ मैं धरि तासु बेषु सुनु राजा । सब बिधि तोर सँवारब काजा ॥


गै निसि बहुत सयन अब कीजे । मोहि तोहि भूप भेंट दिन तीजे ॥ मैं तपबल तोहि तुरग समेता । पहुँचेहउँ सोवतहि निकेता ॥



Doha / दोहा


दो. मैं आउब सोइ बेषु धरि पहिचानेहु तब मोहि । जब एकांत बोलाइ सब कथा सुनावौं तोहि ॥ १६९ ॥



Chaupai / चोपाई


सयन कीन्ह नृप आयसु मानी । आसन जाइ बैठ छलग्यानी ॥ श्रमित भूप निद्रा अति आई । सो किमि सोव सोच अधिकाई ॥


कालकेतु निसिचर तहँ आवा । जेहिं सूकर होइ नृपहि भुलावा ॥ परम मित्र तापस नृप केरा । जानइ सो अति कपट घनेरा ॥


तेहि के सत सुत अरु दस भाई । खल अति अजय देव दुखदाई ॥ प्रथमहि भूप समर सब मारे । बिप्र संत सुर देखि दुखारे ॥


तेहिं खल पाछिल बयरु सँभरा । तापस नृप मिलि मंत्र बिचारा ॥ जेहि रिपु छय सोइ रचेन्हि उपाऊ । भावी बस न जान कछु राऊ ॥



Doha / दोहा


दो. रिपु तेजसी अकेल अपि लघु करि गनिअ न ताहु । अजहुँ देत दुख रबि ससिहि सिर अवसेषित राहु ॥ १७० ॥



Chaupai / चोपाई


तापस नृप निज सखहि निहारी । हरषि मिलेउ उठि भयउ सुखारी ॥ मित्रहि कहि सब कथा सुनाई । जातुधान बोला सुख पाई ॥


अब साधेउँ रिपु सुनहु नरेसा । जौं तुम्ह कीन्ह मोर उपदेसा ॥ परिहरि सोच रहहु तुम्ह सोई । बिनु औषध बिआधि बिधि खोई ॥


कुल समेत रिपु मूल बहाई । चौथे दिवस मिलब मैं आई ॥ तापस नृपहि बहुत परितोषी । चला महाकपटी अतिरोषी ॥


भानुप्रतापहि बाजि समेता । पहुँचाएसि छन माझ निकेता ॥ नृपहि नारि पहिं सयन कराई । हयगृहँ बाँधेसि बाजि बनाई ॥



Doha / दोहा


दो. राजा के उपरोहितहि हरि लै गयउ बहोरि । लै राखेसि गिरि खोह महुँ मायाँ करि मति भोरि ॥ १७१ ॥



Chaupai / चोपाई


आपु बिरचि उपरोहित रूपा । परेउ जाइ तेहि सेज अनूपा ॥ जागेउ नृप अनभएँ बिहाना । देखि भवन अति अचरजु माना ॥


मुनि महिमा मन महुँ अनुमानी । उठेउ गवँहि जेहि जान न रानी ॥ कानन गयउ बाजि चढ़ि तेहीं । पुर नर नारि न जानेउ केहीं ॥


गएँ जाम जुग भूपति आवा । घर घर उत्सव बाज बधावा ॥ उपरोहितहि देख जब राजा । चकित बिलोकि सुमिरि सोइ काजा ॥


जुग सम नृपहि गए दिन तीनी । कपटी मुनि पद रह मति लीनी ॥ समय जानि उपरोहित आवा । नृपहि मते सब कहि समुझावा ॥



Doha / दोहा


दो. नृप हरषेउ पहिचानि गुरु भ्रम बस रहा न चेत । बरे तुरत सत सहस बर बिप्र कुटुंब समेत ॥ १७२ ॥



Chaupai / चोपाई


उपरोहित जेवनार बनाई । छरस चारि बिधि जसि श्रुति गाई ॥ मायामय तेहिं कीन्ह रसोई । बिंजन बहु गनि सकइ न कोई ॥


बिबिध मृगन्ह कर आमिष राँधा । तेहि महुँ बिप्र माँसु खल साँधा ॥ भोजन कहुँ सब बिप्र बोलाए । पद पखारि सादर बैठाए ॥


परुसन जबहिं लाग महिपाला । भै अकासबानी तेहि काला ॥ बिप्रबृंद उठि उठि गृह जाहू । है बड़ि हानि अन्न जनि खाहू ॥


भयउ रसोईं भूसुर माँसू । सब द्विज उठे मानि बिस्वासू ॥ भूप बिकल मति मोहँ भुलानी । भावी बस आव मुख बानी ॥



Doha / दोहा


दो. बोले बिप्र सकोप तब नहिं कछु कीन्ह बिचार । जाइ निसाचर होहु नृप मूढ़ सहित परिवार ॥ १७३ ॥



Chaupai / चोपाई


छत्रबंधु तैं बिप्र बोलाई । घालै लिए सहित समुदाई ॥ ईस्वर राखा धरम हमारा । जैहसि तैं समेत परिवारा ॥


संबत मध्य नास तव होऊ । जलदाता न रहिहि कुल कोऊ ॥ नृप सुनि श्राप बिकल अति त्रासा । भै बहोरि बर गिरा अकासा ॥


बिप्रहु श्राप बिचारि न दीन्हा । नहिं अपराध भूप कछु कीन्हा ॥ चकित बिप्र सब सुनि नभबानी । भूप गयउ जहँ भोजन खानी ॥


तहँ न असन नहिं बिप्र सुआरा । फिरेउ राउ मन सोच अपारा ॥ सब प्रसंग महिसुरन्ह सुनाई । त्रसित परेउ अवनीं अकुलाई ॥



Doha / दोहा


दो. भूपति भावी मिटइ नहिं जदपि न दूषन तोर । किएँ अन्यथा होइ नहिं बिप्रश्राप अति घोर ॥ १७४ ॥



Chaupai / चोपाई


अस कहि सब महिदेव सिधाए । समाचार पुरलोगन्ह पाए ॥ सोचहिं दूषन दैवहि देहीं । बिचरत हंस काग किय जेहीं ॥


उपरोहितहि भवन पहुँचाई । असुर तापसहि खबरि जनाई ॥ तेहिं खल जहँ तहँ पत्र पठाए । सजि सजि सेन भूप सब धाए ॥


घेरेन्हि नगर निसान बजाई । बिबिध भाँति नित होई लराई ॥ जूझे सकल सुभट करि करनी । बंधु समेत परेउ नृप धरनी ॥


सत्यकेतु कुल कोउ नहिं बाँचा । बिप्रश्राप किमि होइ असाँचा ॥ रिपु जिति सब नृप नगर बसाई । निज पुर गवने जय जसु पाई ॥



Doha / दोहा


दो. भरद्वाज सुनु जाहि जब होइ बिधाता बाम । धूरि मेरुसम जनक जम ताहि ब्यालसम दाम ॥ । १७५ ॥



Chaupai / चोपाई


काल पाइ मुनि सुनु सोइ राजा । भयउ निसाचर सहित समाजा ॥ दस सिर ताहि बीस भुजदंडा । रावन नाम बीर बरिबंडा ॥


भूप अनुज अरिमर्दन नामा । भयउ सो कुंभकरन बलधामा ॥ सचिव जो रहा धरमरुचि जासू । भयउ बिमात्र बंधु लघु तासू ॥


नाम बिभीषन जेहि जग जाना । बिष्नुभगत बिग्यान निधाना ॥ रहे जे सुत सेवक नृप केरे । भए निसाचर घोर घनेरे ॥


कामरूप खल जिनस अनेका । कुटिल भयंकर बिगत बिबेका ॥ कृपा रहित हिंसक सब पापी । बरनि न जाहिं बिस्व परितापी ॥



Doha / दोहा


दो. उपजे जदपि पुलस्त्यकुल पावन अमल अनूप । तदपि महीसुर श्राप बस भए सकल अघरूप ॥ १७६ ॥



Chaupai / चोपाई


कीन्ह बिबिध तप तीनिहुँ भाई । परम उग्र नहिं बरनि सो जाई ॥ गयउ निकट तप देखि बिधाता । मागहु बर प्रसन्न मैं ताता ॥


करि बिनती पद गहि दससीसा । बोलेउ बचन सुनहु जगदीसा ॥ हम काहू के मरहिं न मारें । बानर मनुज जाति दुइ बारें ॥


एवमस्तु तुम्ह बड़ तप कीन्हा । मैं ब्रह्माँ मिलि तेहि बर दीन्हा ॥ पुनि प्रभु कुंभकरन पहिं गयऊ । तेहि बिलोकि मन बिसमय भयऊ ॥


जौं एहिं खल नित करब अहारू । होइहि सब उजारि संसारू ॥ सारद प्रेरि तासु मति फेरी । मागेसि नीद मास षट केरी ॥



Doha / दोहा


दो. गए बिभीषन पास पुनि कहेउ पुत्र बर मागु । तेहिं मागेउ भगवंत पद कमल अमल अनुरागु ॥ १७७ ॥



Chaupai / चोपाई


तिन्हि देइ बर ब्रह्म सिधाए । हरषित ते अपने गृह आए ॥ मय तनुजा मंदोदरि नामा । परम सुंदरी नारि ललामा ॥


सोइ मयँ दीन्हि रावनहि आनी । होइहि जातुधानपति जानी ॥ हरषित भयउ नारि भलि पाई । पुनि दोउ बंधु बिआहेसि जाई ॥


गिरि त्रिकूट एक सिंधु मझारी । बिधि निर्मित दुर्गम अति भारी ॥ सोइ मय दानवँ बहुरि सँवारा । कनक रचित मनिभवन अपारा ॥


भोगावति जसि अहिकुल बासा । अमरावति जसि सक्रनिवासा ॥ तिन्ह तें अधिक रम्य अति बंका । जग बिख्यात नाम तेहि लंका ॥



Doha / दोहा


दो. खाईं सिंधु गभीर अति चारिहुँ दिसि फिरि आव । कनक कोट मनि खचित दृढ़ बरनि न जाइ बनाव ॥ १७८(क) ॥


हरिप्रेरित जेहिं कलप जोइ जातुधानपति होइ । सूर प्रतापी अतुलबल दल समेत बस सोइ ॥ १७८(ख) ॥



Chaupai / चोपाई


रहे तहाँ निसिचर भट भारे । ते सब सुरन्ह समर संघारे ॥ अब तहँ रहहिं सक्र के प्रेरे । रच्छक कोटि जच्छपति केरे ॥


दसमुख कतहुँ खबरि असि पाई । सेन साजि गढ़ घेरेसि जाई ॥ देखि बिकट भट बड़ि कटकाई । जच्छ जीव लै गए पराई ॥


फिरि सब नगर दसानन देखा । गयउ सोच सुख भयउ बिसेषा ॥ सुंदर सहज अगम अनुमानी । कीन्हि तहाँ रावन रजधानी ॥


जेहि जस जोग बाँटि गृह दीन्हे । सुखी सकल रजनीचर कीन्हे ॥ एक बार कुबेर पर धावा । पुष्पक जान जीति लै आवा ॥



Doha / दोहा


दो. कौतुकहीं कैलास पुनि लीन्हेसि जाइ उठाइ । मनहुँ तौलि निज बाहुबल चला बहुत सुख पाइ ॥ १७९ ॥



Chaupai / चोपाई


सुख संपति सुत सेन सहाई । जय प्रताप बल बुद्धि बड़ाई ॥ नित नूतन सब बाढ़त जाई । जिमि प्रतिलाभ लोभ अधिकाई ॥


अतिबल कुंभकरन अस भ्राता । जेहि कहुँ नहिं प्रतिभट जग जाता ॥ करइ पान सोवइ षट मासा । जागत होइ तिहुँ पुर त्रासा ॥


जौं दिन प्रति अहार कर सोई । बिस्व बेगि सब चौपट होई ॥ समर धीर नहिं जाइ बखाना । तेहि सम अमित बीर बलवाना ॥


बारिदनाद जेठ सुत तासू । भट महुँ प्रथम लीक जग जासू ॥ जेहि न होइ रन सनमुख कोई । सुरपुर नितहिं परावन होई ॥



Doha / दोहा


दो. कुमुख अकंपन कुलिसरद धूमकेतु अतिकाय । एक एक जग जीति सक ऐसे सुभट निकाय ॥ १८० ॥



Chaupai / चोपाई


कामरूप जानहिं सब माया । सपनेहुँ जिन्ह कें धरम न दाया ॥ दसमुख बैठ सभाँ एक बारा । देखि अमित आपन परिवारा ॥


सुत समूह जन परिजन नाती । गे को पार निसाचर जाती ॥ सेन बिलोकि सहज अभिमानी । बोला बचन क्रोध मद सानी ॥


सुनहु सकल रजनीचर जूथा । हमरे बैरी बिबुध बरूथा ॥ ते सनमुख नहिं करही लराई । देखि सबल रिपु जाहिं पराई ॥


तेन्ह कर मरन एक बिधि होई । कहउँ बुझाइ सुनहु अब सोई ॥ द्विजभोजन मख होम सराधा ॥ सब कै जाइ करहु तुम्ह बाधा ॥



Doha / दोहा


दो. छुधा छीन बलहीन सुर सहजेहिं मिलिहहिं आइ । तब मारिहउँ कि छाड़िहउँ भली भाँति अपनाइ ॥ १८१ ॥



Chaupai / चोपाई


मेघनाद कहुँ पुनि हँकरावा । दीन्ही सिख बलु बयरु बढ़ावा ॥ जे सुर समर धीर बलवाना । जिन्ह कें लरिबे कर अभिमाना ॥


तिन्हहि जीति रन आनेसु बाँधी । उठि सुत पितु अनुसासन काँधी ॥ एहि बिधि सबही अग्या दीन्ही । आपुनु चलेउ गदा कर लीन्ही ॥


चलत दसानन डोलति अवनी । गर्जत गर्भ स्त्रवहिं सुर रवनी ॥ रावन आवत सुनेउ सकोहा । देवन्ह तके मेरु गिरि खोहा ॥


दिगपालन्ह के लोक सुहाए । सूने सकल दसानन पाए ॥ पुनि पुनि सिंघनाद करि भारी । देइ देवतन्ह गारि पचारी ॥


रन मद मत्त फिरइ जग धावा । प्रतिभट खौजत कतहुँ न पावा ॥ रबि ससि पवन बरुन धनधारी । अगिनि काल जम सब अधिकारी ॥


किंनर सिद्ध मनुज सुर नागा । हठि सबही के पंथहिं लागा ॥ ब्रह्मसृष्टि जहँ लगि तनुधारी । दसमुख बसबर्ती नर नारी ॥


आयसु करहिं सकल भयभीता । नवहिं आइ नित चरन बिनीता ॥



Doha / दोहा


दो. भुजबल बिस्व बस्य करि राखेसि कोउ न सुतंत्र । मंडलीक मनि रावन राज करइ निज मंत्र ॥ १८२(ख) ॥


देव जच्छ गंधर्व नर किंनर नाग कुमारि । जीति बरीं निज बाहुबल बहु सुंदर बर नारि ॥ १८२ख ॥



Chaupai / चोपाई


इंद्रजीत सन जो कछु कहेऊ । सो सब जनु पहिलेहिं करि रहेऊ ॥ प्रथमहिं जिन्ह कहुँ आयसु दीन्हा । तिन्ह कर चरित सुनहु जो कीन्हा ॥


देखत भीमरूप सब पापी । निसिचर निकर देव परितापी ॥ करहि उपद्रव असुर निकाया । नाना रूप धरहिं करि माया ॥


जेहि बिधि होइ धर्म निर्मूला । सो सब करहिं बेद प्रतिकूला ॥ जेहिं जेहिं देस धेनु द्विज पावहिं । नगर गाउँ पुर आगि लगावहिं ॥


सुभ आचरन कतहुँ नहिं होई । देव बिप्र गुरू मान न कोई ॥ नहिं हरिभगति जग्य तप ग्याना । सपनेहुँ सुनिअ न बेद पुराना ॥



Chanda / छन्द


छं. जप जोग बिरागा तप मख भागा श्रवन सुनइ दससीसा । आपुनु उठि धावइ रहै न पावइ धरि सब घालइ खीसा ॥ अस भ्रष्ट अचारा भा संसारा धर्म सुनिअ नहि काना । तेहि बहुबिधि त्रासइ देस निकासइ जो कह बेद पुराना ॥



Sortha/ सोरठा


सो. बरनि न जाइ अनीति घोर निसाचर जो करहिं । हिंसा पर अति प्रीति तिन्ह के पापहि कवनि मिति ॥ १८३ ॥



Chaupai / चोपाई


बाढ़े खल बहु चोर जुआरा । जे लंपट परधन परदारा ॥ मानहिं मातु पिता नहिं देवा । साधुन्ह सन करवावहिं सेवा ॥


जिन्ह के यह आचरन भवानी । ते जानेहु निसिचर सब प्रानी ॥ अतिसय देखि धर्म कै ग्लानी । परम सभीत धरा अकुलानी ॥


गिरि सरि सिंधु भार नहिं मोही । जस मोहि गरुअ एक परद्रोही ॥ सकल धर्म देखइ बिपरीता । कहि न सकइ रावन भय भीता ॥


धेनु रूप धरि हृदयँ बिचारी । गई तहाँ जहँ सुर मुनि झारी ॥ निज संताप सुनाएसि रोई । काहू तें कछु काज न होई ॥



Chanda / छन्द


छं. सुर मुनि गंधर्बा मिलि करि सर्बा गे बिरंचि के लोका । सँग गोतनुधारी भूमि बिचारी परम बिकल भय सोका ॥ ब्रह्माँ सब जाना मन अनुमाना मोर कछू न बसाई । जा करि तैं दासी सो अबिनासी हमरेउ तोर सहाई ॥



Sortha/ सोरठा


सो. धरनि धरहि मन धीर कह बिरंचि हरिपद सुमिरु । जानत जन की पीर प्रभु भंजिहि दारुन बिपति ॥ १८४ ॥



Chaupai / चोपाई


बैठे सुर सब करहिं बिचारा । कहँ पाइअ प्रभु करिअ पुकारा ॥ पुर बैकुंठ जान कह कोई । कोउ कह पयनिधि बस प्रभु सोई ॥


जाके हृदयँ भगति जसि प्रीति । प्रभु तहँ प्रगट सदा तेहिं रीती ॥ तेहि समाज गिरिजा मैं रहेऊँ । अवसर पाइ बचन एक कहेऊँ ॥


हरि ब्यापक सर्बत्र समाना । प्रेम तें प्रगट होहिं मैं जाना ॥ देस काल दिसि बिदिसिहु माहीं । कहहु सो कहाँ जहाँ प्रभु नाहीं ॥


अग जगमय सब रहित बिरागी । प्रेम तें प्रभु प्रगटइ जिमि आगी ॥ मोर बचन सब के मन माना । साधु साधु करि ब्रह्म बखाना ॥



Doha / दोहा


दो. सुनि बिरंचि मन हरष तन पुलकि नयन बह नीर । अस्तुति करत जोरि कर सावधान मतिधीर ॥ १८५ ॥



Chanda / छन्द


छं. जय जय सुरनायक जन सुखदायक प्रनतपाल भगवंता । गो द्विज हितकारी जय असुरारी सिधुंसुता प्रिय कंता ॥ पालन सुर धरनी अद्भुत करनी मरम न जानइ कोई । जो सहज कृपाला दीनदयाला करउ अनुग्रह सोई ॥


जय जय अबिनासी सब घट बासी ब्यापक परमानंदा । अबिगत गोतीतं चरित पुनीतं मायारहित मुकुंदा ॥ जेहि लागि बिरागी अति अनुरागी बिगतमोह मुनिबृंदा । निसि बासर ध्यावहिं गुन गन गावहिं जयति सच्चिदानंदा ॥


जेहिं सृष्टि उपाई त्रिबिध बनाई संग सहाय न दूजा । सो करउ अघारी चिंत हमारी जानिअ भगति न पूजा ॥ जो भव भय भंजन मुनि मन रंजन गंजन बिपति बरूथा । मन बच क्रम बानी छाड़ि सयानी सरन सकल सुर जूथा ॥


सारद श्रुति सेषा रिषय असेषा जा कहुँ कोउ नहि जाना । जेहि दीन पिआरे बेद पुकारे द्रवउ सो श्रीभगवाना ॥ भव बारिधि मंदर सब बिधि सुंदर गुनमंदिर सुखपुंजा । मुनि सिद्ध सकल सुर परम भयातुर नमत नाथ पद कंजा ॥



Doha / दोहा


दो. जानि सभय सुरभूमि सुनि बचन समेत सनेह । गगनगिरा गंभीर भइ हरनि सोक संदेह ॥ १८६ ॥



Chaupai / चोपाई


जनि डरपहु मुनि सिद्ध सुरेसा । तुम्हहि लागि धरिहउँ नर बेसा ॥ अंसन्ह सहित मनुज अवतारा । लेहउँ दिनकर बंस उदारा ॥


कस्यप अदिति महातप कीन्हा । तिन्ह कहुँ मैं पूरब बर दीन्हा ॥ ते दसरथ कौसल्या रूपा । कोसलपुरीं प्रगट नरभूपा ॥


तिन्ह के गृह अवतरिहउँ जाई । रघुकुल तिलक सो चारिउ भाई ॥ नारद बचन सत्य सब करिहउँ । परम सक्ति समेत अवतरिहउँ ॥


हरिहउँ सकल भूमि गरुआई । निर्भय होहु देव समुदाई ॥ गगन ब्रह्मबानी सुनी काना । तुरत फिरे सुर हृदय जुड़ाना ॥


तब ब्रह्मा धरनिहि समुझावा । अभय भई भरोस जियँ आवा ॥



Doha / दोहा


दो. निज लोकहि बिरंचि गे देवन्ह इहइ सिखाइ । बानर तनु धरि धरि महि हरि पद सेवहु जाइ ॥ १८७ ॥



Chaupai / चोपाई


गए देव सब निज निज धामा । भूमि सहित मन कहुँ बिश्रामा । जो कछु आयसु ब्रह्माँ दीन्हा । हरषे देव बिलंब न कीन्हा ॥


बनचर देह धरि छिति माहीं । अतुलित बल प्रताप तिन्ह पाहीं ॥ गिरि तरु नख आयुध सब बीरा । हरि मारग चितवहिं मतिधीरा ॥


गिरि कानन जहँ तहँ भरि पूरी । रहे निज निज अनीक रचि रूरी ॥ यह सब रुचिर चरित मैं भाषा । अब सो सुनहु जो बीचहिं राखा ॥


अवधपुरीं रघुकुलमनि राऊ । बेद बिदित तेहि दसरथ नाऊँ ॥ धरम धुरंधर गुननिधि ग्यानी । हृदयँ भगति मति सारँगपानी ॥



Doha / दोहा


दो. कौसल्यादि नारि प्रिय सब आचरन पुनीत । पति अनुकूल प्रेम दृढ़ हरि पद कमल बिनीत ॥ १८८ ॥



Chaupai / चोपाई


एक बार भूपति मन माहीं । भै गलानि मोरें सुत नाहीं ॥ गुर गृह गयउ तुरत महिपाला । चरन लागि करि बिनय बिसाला ॥


निज दुख सुख सब गुरहि सुनायउ । कहि बसिष्ठ बहुबिधि समुझायउ ॥ धरहु धीर होइहहिं सुत चारी । त्रिभुवन बिदित भगत भय हारी ॥


सृंगी रिषहि बसिष्ठ बोलावा । पुत्रकाम सुभ जग्य करावा ॥ भगति सहित मुनि आहुति दीन्हें । प्रगटे अगिनि चरू कर लीन्हें ॥


जो बसिष्ठ कछु हृदयँ बिचारा । सकल काजु भा सिद्ध तुम्हारा ॥ यह हबि बाँटि देहु नृप जाई । जथा जोग जेहि भाग बनाई ॥



Doha / दोहा


दो. तब अदृस्य भए पावक सकल सभहि समुझाइ ॥ परमानंद मगन नृप हरष न हृदयँ समाइ ॥ १८९ ॥



Chaupai / चोपाई


तबहिं रायँ प्रिय नारि बोलाईं । कौसल्यादि तहाँ चलि आई ॥ अर्ध भाग कौसल्याहि दीन्हा । उभय भाग आधे कर कीन्हा ॥


कैकेई कहँ नृप सो दयऊ । रह्यो सो उभय भाग पुनि भयऊ ॥ कौसल्या कैकेई हाथ धरि । दीन्ह सुमित्रहि मन प्रसन्न करि ॥


एहि बिधि गर्भसहित सब नारी । भईं हृदयँ हरषित सुख भारी ॥ जा दिन तें हरि गर्भहिं आए । सकल लोक सुख संपति छाए ॥


मंदिर महँ सब राजहिं रानी । सोभा सील तेज की खानीं ॥ सुख जुत कछुक काल चलि गयऊ । जेहिं प्रभु प्रगट सो अवसर भयऊ ॥



Doha / दोहा


दो. जोग लगन ग्रह बार तिथि सकल भए अनुकूल । चर अरु अचर हर्षजुत राम जनम सुखमूल ॥ १९० ॥



Chaupai / चोपाई


नौमी तिथि मधु मास पुनीता । सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता ॥ मध्यदिवस अति सीत न घामा । पावन काल लोक बिश्रामा ॥


सीतल मंद सुरभि बह बाऊ । हरषित सुर संतन मन चाऊ ॥ बन कुसुमित गिरिगन मनिआरा । स्त्रवहिं सकल सरिताऽमृतधारा ॥


सो अवसर बिरंचि जब जाना । चले सकल सुर साजि बिमाना ॥ गगन बिमल सकुल सुर जूथा । गावहिं गुन गंधर्ब बरूथा ॥


बरषहिं सुमन सुअंजलि साजी । गहगहि गगन दुंदुभी बाजी ॥ अस्तुति करहिं नाग मुनि देवा । बहुबिधि लावहिं निज निज सेवा ॥



Doha / दोहा


दो. सुर समूह बिनती करि पहुँचे निज निज धाम । जगनिवास प्रभु प्रगटे अखिल लोक बिश्राम ॥ १९१ ॥



Chanda / छन्द


छं. भए प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी । हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी ॥ लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुज चारी । भूषन बनमाला नयन बिसाला सोभासिंधु खरारी ॥


कह दुइ कर जोरी अस्तुति तोरी केहि बिधि करौं अनंता । माया गुन ग्यानातीत अमाना बेद पुरान भनंता ॥ करुना सुख सागर सब गुन आगर जेहि गावहिं श्रुति संता । सो मम हित लागी जन अनुरागी भयउ प्रगट श्रीकंता ॥


ब्रह्मांड निकाया निर्मित माया रोम रोम प्रति बेद कहै । मम उर सो बासी यह उपहासी सुनत धीर पति थिर न रहै ॥ उपजा जब ग्याना प्रभु मुसकाना चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै । कहि कथा सुहाई मातु बुझाई जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै ॥


माता पुनि बोली सो मति डौली तजहु तात यह रूपा । कीजै सिसुलीला अति प्रियसीला यह सुख परम अनूपा ॥ सुनि बचन सुजाना रोदन ठाना होइ बालक सुरभूपा । यह चरित जे गावहिं हरिपद पावहिं ते न परहिं भवकूपा ॥



Doha / दोहा


दो. बिप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार । निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गो पार ॥ १९२ ॥



Chaupai / चोपाई


सुनि सिसु रुदन परम प्रिय बानी । संभ्रम चलि आई सब रानी ॥ हरषित जहँ तहँ धाईं दासी । आनँद मगन सकल पुरबासी ॥


दसरथ पुत्रजन्म सुनि काना । मानहुँ ब्रह्मानंद समाना ॥ परम प्रेम मन पुलक सरीरा । चाहत उठत करत मति धीरा ॥


जाकर नाम सुनत सुभ होई । मोरें गृह आवा प्रभु सोई ॥ परमानंद पूरि मन राजा । कहा बोलाइ बजावहु बाजा ॥


गुर बसिष्ठ कहँ गयउ हँकारा । आए द्विजन सहित नृपद्वारा ॥ अनुपम बालक देखेन्हि जाई । रूप रासि गुन कहि न सिराई ॥



Doha / दोहा


दो. नंदीमुख सराध करि जातकरम सब कीन्ह । हाटक धेनु बसन मनि नृप बिप्रन्ह कहँ दीन्ह ॥ १९३ ॥



Chaupai / चोपाई


ध्वज पताक तोरन पुर छावा । कहि न जाइ जेहि भाँति बनावा ॥ सुमनबृष्टि अकास तें होई । ब्रह्मानंद मगन सब लोई ॥


बृंद बृंद मिलि चलीं लोगाई । सहज संगार किएँ उठि धाई ॥ कनक कलस मंगल धरि थारा । गावत पैठहिं भूप दुआरा ॥


करि आरति नेवछावरि करहीं । बार बार सिसु चरनन्हि परहीं ॥ मागध सूत बंदिगन गायक । पावन गुन गावहिं रघुनायक ॥


सर्बस दान दीन्ह सब काहू । जेहिं पावा राखा नहिं ताहू ॥ मृगमद चंदन कुंकुम कीचा । मची सकल बीथिन्ह बिच बीचा ॥



Doha / दोहा


दो. गृह गृह बाज बधाव सुभ प्रगटे सुषमा कंद । हरषवंत सब जहँ तहँ नगर नारि नर बृंद ॥ १९४ ॥



Chaupai / चोपाई


कैकयसुता सुमित्रा दोऊ । सुंदर सुत जनमत भैं ओऊ ॥ वह सुख संपति समय समाजा । कहि न सकइ सारद अहिराजा ॥


अवधपुरी सोहइ एहि भाँती । प्रभुहि मिलन आई जनु राती ॥ देखि भानू जनु मन सकुचानी । तदपि बनी संध्या अनुमानी ॥


अगर धूप बहु जनु अँधिआरी । उड़इ अभीर मनहुँ अरुनारी ॥ मंदिर मनि समूह जनु तारा । नृप गृह कलस सो इंदु उदारा ॥


भवन बेदधुनि अति मृदु बानी । जनु खग मूखर समयँ जनु सानी ॥ कौतुक देखि पतंग भुलाना । एक मास तेइँ जात न जाना ॥



Doha / दोहा


दो. मास दिवस कर दिवस भा मरम न जानइ कोइ । रथ समेत रबि थाकेउ निसा कवन बिधि होइ ॥ १९५ ॥



Chaupai / चोपाई


यह रहस्य काहू नहिं जाना । दिन मनि चले करत गुनगाना ॥ देखि महोत्सव सुर मुनि नागा । चले भवन बरनत निज भागा ॥


औरउ एक कहउँ निज चोरी । सुनु गिरिजा अति दृढ़ मति तोरी ॥ काक भुसुंडि संग हम दोऊ । मनुजरूप जानइ नहिं कोऊ ॥


परमानंद प्रेमसुख फूले । बीथिन्ह फिरहिं मगन मन भूले ॥ यह सुभ चरित जान पै सोई । कृपा राम कै जापर होई ॥


तेहि अवसर जो जेहि बिधि आवा । दीन्ह भूप जो जेहि मन भावा ॥ गज रथ तुरग हेम गो हीरा । दीन्हे नृप नानाबिधि चीरा ॥



Doha / दोहा


दो. मन संतोषे सबन्हि के जहँ तहँ देहि असीस । सकल तनय चिर जीवहुँ तुलसिदास के ईस ॥ १९६ ॥



Chaupai / चोपाई


कछुक दिवस बीते एहि भाँती । जात न जानिअ दिन अरु राती ॥ नामकरन कर अवसरु जानी । भूप बोलि पठए मुनि ग्यानी ॥


करि पूजा भूपति अस भाषा । धरिअ नाम जो मुनि गुनि राखा ॥ इन्ह के नाम अनेक अनूपा । मैं नृप कहब स्वमति अनुरूपा ॥


जो आनंद सिंधु सुखरासी । सीकर तें त्रैलोक सुपासी ॥ सो सुख धाम राम अस नामा । अखिल लोक दायक बिश्रामा ॥


बिस्व भरन पोषन कर जोई । ताकर नाम भरत अस होई ॥ जाके सुमिरन तें रिपु नासा । नाम सत्रुहन बेद प्रकासा ॥



Doha / दोहा


दो. लच्छन धाम राम प्रिय सकल जगत आधार । गुरु बसिष्ट तेहि राखा लछिमन नाम उदार ॥ १९७ ॥



Chaupai / चोपाई


धरे नाम गुर हृदयँ बिचारी । बेद तत्त्व नृप तव सुत चारी ॥ मुनि धन जन सरबस सिव प्राना । बाल केलि तेहिं सुख माना ॥


बारेहि ते निज हित पति जानी । लछिमन राम चरन रति मानी ॥ भरत सत्रुहन दूनउ भाई । प्रभु सेवक जसि प्रीति बड़ाई ॥


स्याम गौर सुंदर दोउ जोरी । निरखहिं छबि जननीं तृन तोरी ॥ चारिउ सील रूप गुन धामा । तदपि अधिक सुखसागर रामा ॥


हृदयँ अनुग्रह इंदु प्रकासा । सूचत किरन मनोहर हासा ॥ कबहुँ उछंग कबहुँ बर पलना । मातु दुलारइ कहि प्रिय ललना ॥



Doha / दोहा


दो. ब्यापक ब्रह्म निरंजन निर्गुन बिगत बिनोद । सो अज प्रेम भगति बस कौसल्या के गोद ॥ १९८ ॥



Chaupai / चोपाई


काम कोटि छबि स्याम सरीरा । नील कंज बारिद गंभीरा ॥ अरुन चरन पकंज नख जोती । कमल दलन्हि बैठे जनु मोती ॥


रेख कुलिस धवज अंकुर सोहे । नूपुर धुनि सुनि मुनि मन मोहे ॥ कटि किंकिनी उदर त्रय रेखा । नाभि गभीर जान जेहि देखा ॥


भुज बिसाल भूषन जुत भूरी । हियँ हरि नख अति सोभा रूरी ॥ उर मनिहार पदिक की सोभा । बिप्र चरन देखत मन लोभा ॥


कंबु कंठ अति चिबुक सुहाई । आनन अमित मदन छबि छाई ॥ दुइ दुइ दसन अधर अरुनारे । नासा तिलक को बरनै पारे ॥


सुंदर श्रवन सुचारु कपोला । अति प्रिय मधुर तोतरे बोला ॥ चिक्कन कच कुंचित गभुआरे । बहु प्रकार रचि मातु सँवारे ॥


पीत झगुलिआ तनु पहिराई । जानु पानि बिचरनि मोहि भाई ॥ रूप सकहिं नहिं कहि श्रुति सेषा । सो जानइ सपनेहुँ जेहि देखा ॥



Doha / दोहा


दो. सुख संदोह मोहपर ग्यान गिरा गोतीत । दंपति परम प्रेम बस कर सिसुचरित पुनीत ॥ १९९ ॥



Chaupai / चोपाई


एहि बिधि राम जगत पितु माता । कोसलपुर बासिंह सुखदाता ॥ जिन्ह रघुनाथ चरन रति मानी । तिन्ह की यह गति प्रगट भवानी ॥


रघुपति बिमुख जतन कर कोरी । कवन सकइ भव बंधन छोरी ॥ जीव चराचर बस कै राखे । सो माया प्रभु सों भय भाखे ॥


भृकुटि बिलास नचावइ ताही । अस प्रभु छाड़ि भजिअ कहु काही ॥ मन क्रम बचन छाड़ि चतुराई । भजत कृपा करिहहिं रघुराई ॥


एहि बिधि सिसुबिनोद प्रभु कीन्हा । सकल नगरबासिंह सुख दीन्हा ॥ लै उछंग कबहुँक हलरावै । कबहुँ पालनें घालि झुलावै ॥



Doha / दोहा


दो. प्रेम मगन कौसल्या निसि दिन जात न जान । सुत सनेह बस माता बालचरित कर गान ॥ २०० ॥



Chaupai / चोपाई


एक बार जननीं अन्हवाए । करि सिंगार पलनाँ पौढ़ाए ॥ निज कुल इष्टदेव भगवाना । पूजा हेतु कीन्ह अस्नाना ॥


करि पूजा नैबेद्य चढ़ावा । आपु गई जहँ पाक बनावा ॥ बहुरि मातु तहवाँ चलि आई । भोजन करत देख सुत जाई ॥


गै जननी सिसु पहिं भयभीता । देखा बाल तहाँ पुनि सूता ॥ बहुरि आइ देखा सुत सोई । हृदयँ कंप मन धीर न होई ॥


इहाँ उहाँ दुइ बालक देखा । मतिभ्रम मोर कि आन बिसेषा ॥ देखि राम जननी अकुलानी । प्रभु हँसि दीन्ह मधुर मुसुकानी ॥



Doha / दोहा


दो. देखरावा मातहि निज अदभुत रुप अखंड । रोम रोम प्रति लागे कोटि कोटि ब्रह्मंड ॥ २०१ ॥



Chaupai / चोपाई


अगनित रबि ससि सिव चतुरानन । बहु गिरि सरित सिंधु महि कानन ॥ काल कर्म गुन ग्यान सुभाऊ । सोउ देखा जो सुना न काऊ ॥


देखी माया सब बिधि गाढ़ी । अति सभीत जोरें कर ठाढ़ी ॥ देखा जीव नचावइ जाही । देखी भगति जो छोरइ ताही ॥


तन पुलकित मुख बचन न आवा । नयन मूदि चरननि सिरु नावा ॥ बिसमयवंत देखि महतारी । भए बहुरि सिसुरूप खरारी ॥


अस्तुति करि न जाइ भय माना । जगत पिता मैं सुत करि जाना ॥ हरि जननि बहुबिधि समुझाई । यह जनि कतहुँ कहसि सुनु माई ॥



Doha / दोहा


दो. बार बार कौसल्या बिनय करइ कर जोरि ॥ अब जनि कबहूँ ब्यापै प्रभु मोहि माया तोरि ॥ २०२ ॥



Chaupai / चोपाई


बालचरित हरि बहुबिधि कीन्हा । अति अनंद दासन्ह कहँ दीन्हा ॥ कछुक काल बीतें सब भाई । बड़े भए परिजन सुखदाई ॥


चूड़ाकरन कीन्ह गुरु जाई । बिप्रन्ह पुनि दछिना बहु पाई ॥ परम मनोहर चरित अपारा । करत फिरत चारिउ सुकुमारा ॥


मन क्रम बचन अगोचर जोई । दसरथ अजिर बिचर प्रभु सोई ॥ भोजन करत बोल जब राजा । नहिं आवत तजि बाल समाजा ॥


कौसल्या जब बोलन जाई । ठुमकु ठुमकु प्रभु चलहिं पराई ॥ निगम नेति सिव अंत न पावा । ताहि धरै जननी हठि धावा ॥


धूरस धूरि भरें तनु आए । भूपति बिहसि गोद बैठाए ॥



Doha / दोहा


दो. भोजन करत चपल चित इत उत अवसरु पाइ । भाजि चले किलकत मुख दधि ओदन लपटाइ ॥ २०३ ॥



Chaupai / चोपाई


बालचरित अति सरल सुहाए । सारद सेष संभु श्रुति गाए ॥ जिन कर मन इन्ह सन नहिं राता । ते जन बंचित किए बिधाता ॥


भए कुमार जबहिं सब भ्राता । दीन्ह जनेऊ गुरु पितु माता ॥ गुरगृहँ गए पढ़न रघुराई । अलप काल बिद्या सब आई ॥


जाकी सहज स्वास श्रुति चारी । सो हरि पढ़ यह कौतुक भारी ॥ बिद्या बिनय निपुन गुन सीला । खेलहिं खेल सकल नृपलीला ॥


करतल बान धनुष अति सोहा । देखत रूप चराचर मोहा ॥ जिन्ह बीथिन्ह बिहरहिं सब भाई । थकित होहिं सब लोग लुगाई ॥



Doha / दोहा


दो. कोसलपुर बासी नर नारि बृद्ध अरु बाल । प्रानहु ते प्रिय लागत सब कहुँ राम कृपाल ॥ २०४ ॥



Chaupai / चोपाई


बंधु सखा संग लेहिं बोलाई । बन मृगया नित खेलहिं जाई ॥ पावन मृग मारहिं जियँ जानी । दिन प्रति नृपहि देखावहिं आनी ॥


जे मृग राम बान के मारे । ते तनु तजि सुरलोक सिधारे ॥ अनुज सखा सँग भोजन करहीं । मातु पिता अग्या अनुसरहीं ॥


जेहि बिधि सुखी होहिं पुर लोगा । करहिं कृपानिधि सोइ संजोगा ॥ बेद पुरान सुनहिं मन लाई । आपु कहहिं अनुजन्ह समुझाई ॥


प्रातकाल उठि कै रघुनाथा । मातु पिता गुरु नावहिं माथा ॥ आयसु मागि करहिं पुर काजा । देखि चरित हरषइ मन राजा ॥



Doha / दोहा


दो. ब्यापक अकल अनीह अज निर्गुन नाम न रूप । भगत हेतु नाना बिधि करत चरित्र अनूप ॥ २०५ ॥



Chaupai / चोपाई


यह सब चरित कहा मैं गाई । आगिलि कथा सुनहु मन लाई ॥ बिस्वामित्र महामुनि ग्यानी । बसहि बिपिन सुभ आश्रम जानी ॥


जहँ जप जग्य मुनि करही । अति मारीच सुबाहुहि डरहीं ॥ देखत जग्य निसाचर धावहि । करहि उपद्रव मुनि दुख पावहिं ॥


गाधितनय मन चिंता ब्यापी । हरि बिनु मरहि न निसिचर पापी ॥ तब मुनिवर मन कीन्ह बिचारा । प्रभु अवतरेउ हरन महि भारा ॥


एहुँ मिस देखौं पद जाई । करि बिनती आनौ दोउ भाई ॥ ग्यान बिराग सकल गुन अयना । सो प्रभु मै देखब भरि नयना ॥



Doha / दोहा


दो. बहुबिधि करत मनोरथ जात लागि नहिं बार । करि मज्जन सरऊ जल गए भूप दरबार ॥ २०६ ॥



Chaupai / चोपाई


मुनि आगमन सुना जब राजा । मिलन गयऊ लै बिप्र समाजा ॥ करि दंडवत मुनिहि सनमानी । निज आसन बैठारेन्हि आनी ॥


चरन पखारि कीन्हि अति पूजा । मो सम आजु धन्य नहिं दूजा ॥ बिबिध भाँति भोजन करवावा । मुनिवर हृदयँ हरष अति पावा ॥


पुनि चरननि मेले सुत चारी । राम देखि मुनि देह बिसारी ॥ भए मगन देखत मुख सोभा । जनु चकोर पूरन ससि लोभा ॥


तब मन हरषि बचन कह राऊ । मुनि अस कृपा न कीन्हिहु काऊ ॥ केहि कारन आगमन तुम्हारा । कहहु सो करत न लावउँ बारा ॥


असुर समूह सतावहिं मोही । मै जाचन आयउँ नृप तोही ॥ अनुज समेत देहु रघुनाथा । निसिचर बध मैं होब सनाथा ॥



Doha / दोहा


दो. देहु भूप मन हरषित तजहु मोह अग्यान । धर्म सुजस प्रभु तुम्ह कौं इन्ह कहँ अति कल्यान ॥ २०७ ॥



Chaupai / चोपाई


सुनि राजा अति अप्रिय बानी । हृदय कंप मुख दुति कुमुलानी ॥ चौथेंपन पायउँ सुत चारी । बिप्र बचन नहिं कहेहु बिचारी ॥


मागहु भूमि धेनु धन कोसा । सर्बस देउँ आजु सहरोसा ॥ देह प्रान तें प्रिय कछु नाही । सोउ मुनि देउँ निमिष एक माही ॥


सब सुत प्रिय मोहि प्रान कि नाईं । राम देत नहिं बनइ गोसाई ॥ कहँ निसिचर अति घोर कठोरा । कहँ सुंदर सुत परम किसोरा ॥


सुनि नृप गिरा प्रेम रस सानी । हृदयँ हरष माना मुनि ग्यानी ॥ तब बसिष्ट बहु निधि समुझावा । नृप संदेह नास कहँ पावा ॥


अति आदर दोउ तनय बोलाए । हृदयँ लाइ बहु भाँति सिखाए ॥ मेरे प्रान नाथ सुत दोऊ । तुम्ह मुनि पिता आन नहिं कोऊ ॥



Doha / दोहा


दो. सौंपे भूप रिषिहि सुत बहु बिधि देइ असीस । जननी भवन गए प्रभु चले नाइ पद सीस ॥ २०८(क) ॥



Sortha/ सोरठा


सो. पुरुषसिंह दोउ बीर हरषि चले मुनि भय हरन ॥ कृपासिंधु मतिधीर अखिल बिस्व कारन करन ॥ २०८(ख)



Chaupai / चोपाई


अरुन नयन उर बाहु बिसाला । नील जलज तनु स्याम तमाला ॥ कटि पट पीत कसें बर भाथा । रुचिर चाप सायक दुहुँ हाथा ॥


स्याम गौर सुंदर दोउ भाई । बिस्बामित्र महानिधि पाई ॥ प्रभु ब्रह्मन्यदेव मै जाना । मोहि निति पिता तजेहु भगवाना ॥


चले जात मुनि दीन्हि दिखाई । सुनि ताड़का क्रोध करि धाई ॥ एकहिं बान प्रान हरि लीन्हा । दीन जानि तेहि निज पद दीन्हा ॥


तब रिषि निज नाथहि जियँ चीन्ही । बिद्यानिधि कहुँ बिद्या दीन्ही ॥ जाते लाग न छुधा पिपासा । अतुलित बल तनु तेज प्रकासा ॥



Doha / दोहा


दो. आयुष सब समर्पि कै प्रभु निज आश्रम आनि । कंद मूल फल भोजन दीन्ह भगति हित जानि ॥ २०९ ॥



Chaupai / चोपाई


प्रात कहा मुनि सन रघुराई । निर्भय जग्य करहु तुम्ह जाई ॥ होम करन लागे मुनि झारी । आपु रहे मख कीं रखवारी ॥


सुनि मारीच निसाचर क्रोही । लै सहाय धावा मुनिद्रोही ॥ बिनु फर बान राम तेहि मारा । सत जोजन गा सागर पारा ॥


पावक सर सुबाहु पुनि मारा । अनुज निसाचर कटकु सँघारा ॥ मारि असुर द्विज निर्मयकारी । अस्तुति करहिं देव मुनि झारी ॥


तहँ पुनि कछुक दिवस रघुराया । रहे कीन्हि बिप्रन्ह पर दाया ॥ भगति हेतु बहु कथा पुराना । कहे बिप्र जद्यपि प्रभु जाना ॥


तब मुनि सादर कहा बुझाई । चरित एक प्रभु देखिअ जाई ॥ धनुषजग्य मुनि रघुकुल नाथा । हरषि चले मुनिबर के साथा ॥


आश्रम एक दीख मग माहीं । खग मृग जीव जंतु तहँ नाहीं ॥ पूछा मुनिहि सिला प्रभु देखी । सकल कथा मुनि कहा बिसेषी ॥



Doha / दोहा


दो. गौतम नारि श्राप बस उपल देह धरि धीर । चरन कमल रज चाहति कृपा करहु रघुबीर ॥ २१० ॥



Chanda / छन्द


छं. परसत पद पावन सोक नसावन प्रगट भई तपपुंज सही । देखत रघुनायक जन सुख दायक सनमुख होइ कर जोरि रही ॥ अति प्रेम अधीरा पुलक सरीरा मुख नहिं आवइ बचन कही । अतिसय बड़भागी चरनन्हि लागी जुगल नयन जलधार बही ॥


धीरजु मन कीन्हा प्रभु कहुँ चीन्हा रघुपति कृपाँ भगति पाई । अति निर्मल बानीं अस्तुति ठानी ग्यानगम्य जय रघुराई ॥ मै नारि अपावन प्रभु जग पावन रावन रिपु जन सुखदाई । राजीव बिलोचन भव भय मोचन पाहि पाहि सरनहिं आई ॥


मुनि श्राप जो दीन्हा अति भल कीन्हा परम अनुग्रह मैं माना । देखेउँ भरि लोचन हरि भवमोचन इहइ लाभ संकर जाना ॥ बिनती प्रभु मोरी मैं मति भोरी नाथ न मागउँ बर आना । पद कमल परागा रस अनुरागा मम मन मधुप करै पाना ॥


जेहिं पद सुरसरिता परम पुनीता प्रगट भई सिव सीस धरी । सोइ पद पंकज जेहि पूजत अज मम सिर धरेउ कृपाल हरी ॥ एहि भाँति सिधारी गौतम नारी बार बार हरि चरन परी । जो अति मन भावा सो बरु पावा गै पतिलोक अनंद भरी ॥



Doha / दोहा


दो. अस प्रभु दीनबंधु हरि कारन रहित दयाल । तुलसिदास सठ तेहि भजु छाड़ि कपट जंजाल ॥ २११ ॥



Chaupai / चोपाई


चले राम लछिमन मुनि संगा । गए जहाँ जग पावनि गंगा ॥ गाधिसूनु सब कथा सुनाई । जेहि प्रकार सुरसरि महि आई ॥


तब प्रभु रिषिन्ह समेत नहाए । बिबिध दान महिदेवन्हि पाए ॥ हरषि चले मुनि बृंद सहाया । बेगि बिदेह नगर निअराया ॥


पुर रम्यता राम जब देखी । हरषे अनुज समेत बिसेषी ॥ बापीं कूप सरित सर नाना । सलिल सुधासम मनि सोपाना ॥


गुंजत मंजु मत्त रस भृंगा । कूजत कल बहुबरन बिहंगा ॥ बरन बरन बिकसे बन जाता । त्रिबिध समीर सदा सुखदाता ॥



Doha / दोहा


दो. सुमन बाटिका बाग बन बिपुल बिहंग निवास । फूलत फलत सुपल्लवत सोहत पुर चहुँ पास ॥ २१२ ॥



Chaupai / चोपाई


बनइ न बरनत नगर निकाई । जहाँ जाइ मन तहँइँ लोभाई ॥ चारु बजारु बिचित्र अँबारी । मनिमय बिधि जनु स्वकर सँवारी ॥


धनिक बनिक बर धनद समाना । बैठ सकल बस्तु लै नाना ॥ चौहट सुंदर गलीं सुहाई । संतत रहहिं सुगंध सिंचाई ॥


मंगलमय मंदिर सब केरें । चित्रित जनु रतिनाथ चितेरें ॥ पुर नर नारि सुभग सुचि संता । धरमसील ग्यानी गुनवंता ॥


अति अनूप जहँ जनक निवासू । बिथकहिं बिबुध बिलोकि बिलासू ॥ होत चकित चित कोट बिलोकी । सकल भुवन सोभा जनु रोकी ॥



Doha / दोहा


दो. धवल धाम मनि पुरट पट सुघटित नाना भाँति । सिय निवास सुंदर सदन सोभा किमि कहि जाति ॥ २१३ ॥



Chaupai / चोपाई


सुभग द्वार सब कुलिस कपाटा । भूप भीर नट मागध भाटा ॥ बनी बिसाल बाजि गज साला । हय गय रथ संकुल सब काला ॥


सूर सचिव सेनप बहुतेरे । नृपगृह सरिस सदन सब केरे ॥ पुर बाहेर सर सारित समीपा । उतरे जहँ तहँ बिपुल महीपा ॥


देखि अनूप एक अँवराई । सब सुपास सब भाँति सुहाई ॥ कौसिक कहेउ मोर मनु माना । इहाँ रहिअ रघुबीर सुजाना ॥


भलेहिं नाथ कहि कृपानिकेता । उतरे तहँ मुनिबृंद समेता ॥ बिस्वामित्र महामुनि आए । समाचार मिथिलापति पाए ॥



Doha / दोहा


दो. संग सचिव सुचि भूरि भट भूसुर बर गुर ग्याति । चले मिलन मुनिनायकहि मुदित राउ एहि भाँति ॥ २१४ ॥



Chaupai / चोपाई


कीन्ह प्रनामु चरन धरि माथा । दीन्हि असीस मुदित मुनिनाथा ॥ बिप्रबृंद सब सादर बंदे । जानि भाग्य बड़ राउ अनंदे ॥


कुसल प्रस्न कहि बारहिं बारा । बिस्वामित्र नृपहि बैठारा ॥ तेहि अवसर आए दोउ भाई । गए रहे देखन फुलवाई ॥


स्याम गौर मृदु बयस किसोरा । लोचन सुखद बिस्व चित चोरा ॥ उठे सकल जब रघुपति आए । बिस्वामित्र निकट बैठाए ॥


भए सब सुखी देखि दोउ भ्राता । बारि बिलोचन पुलकित गाता ॥ मूरति मधुर मनोहर देखी । भयउ बिदेहु बिदेहु बिसेषी ॥



Doha / दोहा


दो. प्रेम मगन मनु जानि नृपु करि बिबेकु धरि धीर । बोलेउ मुनि पद नाइ सिरु गदगद गिरा गभीर ॥ २१५ ॥



Chaupai / चोपाई


कहहु नाथ सुंदर दोउ बालक । मुनिकुल तिलक कि नृपकुल पालक ॥ ब्रह्म जो निगम नेति कहि गावा । उभय बेष धरि की सोइ आवा ॥


सहज बिरागरुप मनु मोरा । थकित होत जिमि चंद चकोरा ॥ ताते प्रभु पूछउँ सतिभाऊ । कहहु नाथ जनि करहु दुराऊ ॥


इन्हहि बिलोकत अति अनुरागा । बरबस ब्रह्मसुखहि मन त्यागा ॥ कह मुनि बिहसि कहेहु नृप नीका । बचन तुम्हार न होइ अलीका ॥


ए प्रिय सबहि जहाँ लगि प्रानी । मन मुसुकाहिं रामु सुनि बानी ॥ रघुकुल मनि दसरथ के जाए । मम हित लागि नरेस पठाए ॥



Doha / दोहा


दो. रामु लखनु दोउ बंधुबर रूप सील बल धाम । मख राखेउ सबु साखि जगु जिते असुर संग्राम ॥ २१६ ॥



Chaupai / चोपाई


मुनि तव चरन देखि कह राऊ । कहि न सकउँ निज पुन्य प्राभाऊ ॥ सुंदर स्याम गौर दोउ भ्राता । आनँदहू के आनँद दाता ॥


इन्ह कै प्रीति परसपर पावनि । कहि न जाइ मन भाव सुहावनि ॥ सुनहु नाथ कह मुदित बिदेहू । ब्रह्म जीव इव सहज सनेहू ॥


पुनि पुनि प्रभुहि चितव नरनाहू । पुलक गात उर अधिक उछाहू ॥ म्रुनिहि प्रसंसि नाइ पद सीसू । चलेउ लवाइ नगर अवनीसू ॥


सुंदर सदनु सुखद सब काला । तहाँ बासु लै दीन्ह भुआला ॥ करि पूजा सब बिधि सेवकाई । गयउ राउ गृह बिदा कराई ॥



Doha / दोहा


दो. रिषय संग रघुबंस मनि करि भोजनु बिश्रामु । बैठे प्रभु भ्राता सहित दिवसु रहा भरि जामु ॥ २१७ ॥



Chaupai / चोपाई


लखन हृदयँ लालसा बिसेषी । जाइ जनकपुर आइअ देखी ॥ प्रभु भय बहुरि मुनिहि सकुचाहीं । प्रगट न कहहिं मनहिं मुसुकाहीं ॥


राम अनुज मन की गति जानी । भगत बछलता हिंयँ हुलसानी ॥ परम बिनीत सकुचि मुसुकाई । बोले गुर अनुसासन पाई ॥


नाथ लखनु पुरु देखन चहहीं । प्रभु सकोच डर प्रगट न कहहीं ॥ जौं राउर आयसु मैं पावौं । नगर देखाइ तुरत लै आवौ ॥


सुनि मुनीसु कह बचन सप्रीती । कस न राम तुम्ह राखहु नीती ॥ धरम सेतु पालक तुम्ह ताता । प्रेम बिबस सेवक सुखदाता ॥



Doha / दोहा


दो. जाइ देखी आवहु नगरु सुख निधान दोउ भाइ । करहु सुफल सब के नयन सुंदर बदन देखाइ ॥ २१८ ॥



Chaupai / चोपाई


मुनि पद कमल बंदि दोउ भ्राता । चले लोक लोचन सुख दाता ॥ बालक बृंदि देखि अति सोभा । लगे संग लोचन मनु लोभा ॥


पीत बसन परिकर कटि भाथा । चारु चाप सर सोहत हाथा ॥ तन अनुहरत सुचंदन खोरी । स्यामल गौर मनोहर जोरी ॥


केहरि कंधर बाहु बिसाला । उर अति रुचिर नागमनि माला ॥ सुभग सोन सरसीरुह लोचन । बदन मयंक तापत्रय मोचन ॥


कानन्हि कनक फूल छबि देहीं । चितवत चितहि चोरि जनु लेहीं ॥ चितवनि चारु भृकुटि बर बाँकी । तिलक रेखा सोभा जनु चाँकी ॥



Doha / दोहा


दो. रुचिर चौतनीं सुभग सिर मेचक कुंचित केस । नख सिख सुंदर बंधु दोउ सोभा सकल सुदेस ॥ २१९ ॥



Chaupai / चोपाई


देखन नगरु भूपसुत आए । समाचार पुरबासिंह पाए ॥ धाए धाम काम सब त्यागी । मनहु रंक निधि लूटन लागी ॥


निरखि सहज सुंदर दोउ भाई । होहिं सुखी लोचन फल पाई ॥ जुबतीं भवन झरोखन्हि लागीं । निरखहिं राम रूप अनुरागीं ॥


कहहिं परसपर बचन सप्रीती । सखि इन्ह कोटि काम छबि जीती ॥ सुर नर असुर नाग मुनि माहीं । सोभा असि कहुँ सुनिअति नाहीं ॥


बिष्नु चारि भुज बिघि मुख चारी । बिकट बेष मुख पंच पुरारी ॥ अपर देउ अस कोउ न आही । यह छबि सखि पटतरिअ जाही ॥



Doha / दोहा


दो. बय किसोर सुषमा सदन स्याम गौर सुख धाम । अंग अंग पर वारिअहिं कोटि कोटि सत काम ॥ २२० ॥



Chaupai / चोपाई


कहहु सखी अस को तनुधारी । जो न मोह यह रूप निहारी ॥ कोउ सप्रेम बोली मृदु बानी । जो मैं सुना सो सुनहु सयानी ॥


ए दोऊ दसरथ के ढोटा । बाल मरालन्हि के कल जोटा ॥ मुनि कौसिक मख के रखवारे । जिन्ह रन अजिर निसाचर मारे ॥


स्याम गात कल कंज बिलोचन । जो मारीच सुभुज मदु मोचन ॥ कौसल्या सुत सो सुख खानी । नामु रामु धनु सायक पानी ॥


गौर किसोर बेषु बर काछें । कर सर चाप राम के पाछें ॥ लछिमनु नामु राम लघु भ्राता । सुनु सखि तासु सुमित्रा माता ॥



Doha / दोहा


दो. बिप्रकाजु करि बंधु दोउ मग मुनिबधू उधारि । आए देखन चापमख सुनि हरषीं सब नारि ॥ २२१ ॥



Chaupai / चोपाई


देखि राम छबि कोउ एक कहई । जोगु जानकिहि यह बरु अहई ॥ जौ सखि इन्हहि देख नरनाहू । पन परिहरि हठि करइ बिबाहू ॥


कोउ कह ए भूपति पहिचाने । मुनि समेत सादर सनमाने ॥ सखि परंतु पनु राउ न तजई । बिधि बस हठि अबिबेकहि भजई ॥


कोउ कह जौं भल अहइ बिधाता । सब कहँ सुनिअ उचित फलदाता ॥ तौ जानकिहि मिलिहि बरु एहू । नाहिन आलि इहाँ संदेहू ॥


जौ बिधि बस अस बनै सँजोगू । तौ कृतकृत्य होइ सब लोगू ॥ सखि हमरें आरति अति तातें । कबहुँक ए आवहिं एहि नातें ॥



Doha / दोहा


दो. नाहिं त हम कहुँ सुनहु सखि इन्ह कर दरसनु दूरि । यह संघटु तब होइ जब पुन्य पुराकृत भूरि ॥ २२२ ॥



Chaupai / चोपाई


बोली अपर कहेहु सखि नीका । एहिं बिआह अति हित सबहीं का ॥ कोउ कह संकर चाप कठोरा । ए स्यामल मृदुगात किसोरा ॥


सबु असमंजस अहइ सयानी । यह सुनि अपर कहइ मृदु बानी ॥ सखि इन्ह कहँ कोउ कोउ अस कहहीं । बड़ प्रभाउ देखत लघु अहहीं ॥


परसि जासु पद पंकज धूरी । तरी अहल्या कृत अघ भूरी ॥ सो कि रहिहि बिनु सिवधनु तोरें । यह प्रतीति परिहरिअ न भोरें ॥


जेहिं बिरंचि रचि सीय सँवारी । तेहिं स्यामल बरु रचेउ बिचारी ॥ तासु बचन सुनि सब हरषानीं । ऐसेइ होउ कहहिं मुदु बानी ॥



Doha / दोहा


दो. हियँ हरषहिं बरषहिं सुमन सुमुखि सुलोचनि बृंद । जाहिं जहाँ जहँ बंधु दोउ तहँ तहँ परमानंद ॥ २२३ ॥



Chaupai / चोपाई


पुर पूरब दिसि गे दोउ भाई । जहँ धनुमख हित भूमि बनाई ॥ अति बिस्तार चारु गच ढारी । बिमल बेदिका रुचिर सँवारी ॥


चहुँ दिसि कंचन मंच बिसाला । रचे जहाँ बेठहिं महिपाला ॥ तेहि पाछें समीप चहुँ पासा । अपर मंच मंडली बिलासा ॥


कछुक ऊँचि सब भाँति सुहाई । बैठहिं नगर लोग जहँ जाई ॥ तिन्ह के निकट बिसाल सुहाए । धवल धाम बहुबरन बनाए ॥


जहँ बैंठैं देखहिं सब नारी । जथा जोगु निज कुल अनुहारी ॥ पुर बालक कहि कहि मृदु बचना । सादर प्रभुहि देखावहिं रचना ॥



Doha / दोहा


दो. सब सिसु एहि मिस प्रेमबस परसि मनोहर गात । तन पुलकहिं अति हरषु हियँ देखि देखि दोउ भ्रात ॥ २२४ ॥



Chaupai / चोपाई


सिसु सब राम प्रेमबस जाने । प्रीति समेत निकेत बखाने ॥ निज निज रुचि सब लेंहिं बोलाई । सहित सनेह जाहिं दोउ भाई ॥


राम देखावहिं अनुजहि रचना । कहि मृदु मधुर मनोहर बचना ॥ लव निमेष महँ भुवन निकाया । रचइ जासु अनुसासन माया ॥


भगति हेतु सोइ दीनदयाला । चितवत चकित धनुष मखसाला ॥ कौतुक देखि चले गुरु पाहीं । जानि बिलंबु त्रास मन माहीं ॥


जासु त्रास डर कहुँ डर होई । भजन प्रभाउ देखावत सोई ॥ कहि बातें मृदु मधुर सुहाईं । किए बिदा बालक बरिआई ॥



Doha / दोहा


दो. सभय सप्रेम बिनीत अति सकुच सहित दोउ भाइ । गुर पद पंकज नाइ सिर बैठे आयसु पाइ ॥ २२५ ॥



Chaupai / चोपाई


निसि प्रबेस मुनि आयसु दीन्हा । सबहीं संध्याबंदनु कीन्हा ॥ कहत कथा इतिहास पुरानी । रुचिर रजनि जुग जाम सिरानी ॥


मुनिबर सयन कीन्हि तब जाई । लगे चरन चापन दोउ भाई ॥ जिन्ह के चरन सरोरुह लागी । करत बिबिध जप जोग बिरागी ॥


तेइ दोउ बंधु प्रेम जनु जीते । गुर पद कमल पलोटत प्रीते ॥ बारबार मुनि अग्या दीन्ही । रघुबर जाइ सयन तब कीन्ही ॥


चापत चरन लखनु उर लाएँ । सभय सप्रेम परम सचु पाएँ ॥ पुनि पुनि प्रभु कह सोवहु ताता । पौढ़े धरि उर पद जलजाता ॥



Doha / दोहा


दो. उठे लखन निसि बिगत सुनि अरुनसिखा धुनि कान ॥ गुर तें पहिलेहिं जगतपति जागे रामु सुजान ॥ २२६ ॥



Chaupai / चोपाई


सकल सौच करि जाइ नहाए । नित्य निबाहि मुनिहि सिर नाए ॥ समय जानि गुर आयसु पाई । लेन प्रसून चले दोउ भाई ॥


भूप बागु बर देखेउ जाई । जहँ बसंत रितु रही लोभाई ॥ लागे बिटप मनोहर नाना । बरन बरन बर बेलि बिताना ॥


नव पल्लव फल सुमान सुहाए । निज संपति सुर रूख लजाए ॥ चातक कोकिल कीर चकोरा । कूजत बिहग नटत कल मोरा ॥


मध्य बाग सरु सोह सुहावा । मनि सोपान बिचित्र बनावा ॥ बिमल सलिलु सरसिज बहुरंगा । जलखग कूजत गुंजत भृंगा ॥



Doha / दोहा


दो. बागु तड़ागु बिलोकि प्रभु हरषे बंधु समेत । परम रम्य आरामु यहु जो रामहि सुख देत ॥ २२७ ॥



Chaupai / चोपाई


चहुँ दिसि चितइ पूँछि मालिगन । लगे लेन दल फूल मुदित मन ॥ तेहि अवसर सीता तहँ आई । गिरिजा पूजन जननि पठाई ॥


संग सखीं सब सुभग सयानी । गावहिं गीत मनोहर बानी ॥ सर समीप गिरिजा गृह सोहा । बरनि न जाइ देखि मनु मोहा ॥


मज्जनु करि सर सखिन्ह समेता । गई मुदित मन गौरि निकेता ॥ पूजा कीन्हि अधिक अनुरागा । निज अनुरूप सुभग बरु मागा ॥


एक सखी सिय संगु बिहाई । गई रही देखन फुलवाई ॥ तेहि दोउ बंधु बिलोके जाई । प्रेम बिबस सीता पहिं आई ॥



Doha / दोहा


दो. तासु दसा देखि सखिन्ह पुलक गात जलु नैन । कहु कारनु निज हरष कर पूछहि सब मृदु बैन ॥ २२८ ॥



Chaupai / चोपाई


देखन बागु कुअँर दुइ आए । बय किसोर सब भाँति सुहाए ॥ स्याम गौर किमि कहौं बखानी । गिरा अनयन नयन बिनु बानी ॥


सुनि हरषीँ सब सखीं सयानी । सिय हियँ अति उतकंठा जानी ॥ एक कहइ नृपसुत तेइ आली । सुने जे मुनि सँग आए काली ॥


जिन्ह निज रूप मोहनी डारी । कीन्ह स्वबस नगर नर नारी ॥ बरनत छबि जहँ तहँ सब लोगू । अवसि देखिअहिं देखन जोगू ॥


तासु वचन अति सियहि सुहाने । दरस लागि लोचन अकुलाने ॥ चली अग्र करि प्रिय सखि सोई । प्रीति पुरातन लखइ न कोई ॥



Doha / दोहा


दो. सुमिरि सीय नारद बचन उपजी प्रीति पुनीत ॥ चकित बिलोकति सकल दिसि जनु सिसु मृगी सभीत ॥ २२९ ॥



Chaupai / चोपाई


कंकन किंकिनि नूपुर धुनि सुनि । कहत लखन सन रामु हृदयँ गुनि ॥ मानहुँ मदन दुंदुभी दीन्ही ॥ मनसा बिस्व बिजय कहँ कीन्ही ॥


अस कहि फिरि चितए तेहि ओरा । सिय मुख ससि भए नयन चकोरा ॥ भए बिलोचन चारु अचंचल । मनहुँ सकुचि निमि तजे दिगंचल ॥


देखि सीय सोभा सुखु पावा । हृदयँ सराहत बचनु न आवा ॥ जनु बिरंचि सब निज निपुनाई । बिरचि बिस्व कहँ प्रगटि देखाई ॥


सुंदरता कहुँ सुंदर करई । छबिगृहँ दीपसिखा जनु बरई ॥ सब उपमा कबि रहे जुठारी । केहिं पटतरौं बिदेहकुमारी ॥



Doha / दोहा


दो. सिय सोभा हियँ बरनि प्रभु आपनि दसा बिचारि । बोले सुचि मन अनुज सन बचन समय अनुहारि ॥ २३० ॥



Chaupai / चोपाई


तात जनकतनया यह सोई । धनुषजग्य जेहि कारन होई ॥ पूजन गौरि सखीं लै आई । करत प्रकासु फिरइ फुलवाई ॥


जासु बिलोकि अलोकिक सोभा । सहज पुनीत मोर मनु छोभा ॥ सो सबु कारन जान बिधाता । फरकहिं सुभद अंग सुनु भ्राता ॥


रघुबंसिंह कर सहज सुभाऊ । मनु कुपंथ पगु धरइ न काऊ ॥ मोहि अतिसय प्रतीति मन केरी । जेहिं सपनेहुँ परनारि न हेरी ॥


जिन्ह कै लहहिं न रिपु रन पीठी । नहिं पावहिं परतिय मनु डीठी ॥ मंगन लहहि न जिन्ह कै नाहीं । ते नरबर थोरे जग माहीं ॥



Doha / दोहा


दो. करत बतकहि अनुज सन मन सिय रूप लोभान । मुख सरोज मकरंद छबि करइ मधुप इव पान ॥ २३१ ॥



Chaupai / चोपाई


चितवहि चकित चहूँ दिसि सीता । कहँ गए नृपकिसोर मनु चिंता ॥ जहँ बिलोक मृग सावक नैनी । जनु तहँ बरिस कमल सित श्रेनी ॥


लता ओट तब सखिन्ह लखाए । स्यामल गौर किसोर सुहाए ॥ देखि रूप लोचन ललचाने । हरषे जनु निज निधि पहिचाने ॥


थके नयन रघुपति छबि देखें । पलकन्हिहूँ परिहरीं निमेषें ॥ अधिक सनेहँ देह भै भोरी । सरद ससिहि जनु चितव चकोरी ॥


लोचन मग रामहि उर आनी । दीन्हे पलक कपाट सयानी ॥ जब सिय सखिन्ह प्रेमबस जानी । कहि न सकहिं कछु मन सकुचानी ॥



Doha / दोहा


दो. लताभवन तें प्रगट भे तेहि अवसर दोउ भाइ । निकसे जनु जुग बिमल बिधु जलद पटल बिलगाइ ॥ २३२ ॥



Chaupai / चोपाई


सोभा सीवँ सुभग दोउ बीरा । नील पीत जलजाभ सरीरा ॥ मोरपंख सिर सोहत नीके । गुच्छ बीच बिच कुसुम कली के ॥


भाल तिलक श्रमबिंदु सुहाए । श्रवन सुभग भूषन छबि छाए ॥ बिकट भृकुटि कच घूघरवारे । नव सरोज लोचन रतनारे ॥


चारु चिबुक नासिका कपोला । हास बिलास लेत मनु मोला ॥ मुखछबि कहि न जाइ मोहि पाहीं । जो बिलोकि बहु काम लजाहीं ॥


उर मनि माल कंबु कल गीवा । काम कलभ कर भुज बलसींवा ॥ सुमन समेत बाम कर दोना । सावँर कुअँर सखी सुठि लोना ॥



Doha / दोहा


दो. केहरि कटि पट पीत धर सुषमा सील निधान । देखि भानुकुलभूषनहि बिसरा सखिन्ह अपान ॥ २३३ ॥



Chaupai / चोपाई


धरि धीरजु एक आलि सयानी । सीता सन बोली गहि पानी ॥ बहुरि गौरि कर ध्यान करेहू । भूपकिसोर देखि किन लेहू ॥


सकुचि सीयँ तब नयन उघारे । सनमुख दोउ रघुसिंघ निहारे ॥ नख सिख देखि राम कै सोभा । सुमिरि पिता पनु मनु अति छोभा ॥


परबस सखिन्ह लखी जब सीता । भयउ गहरु सब कहहि सभीता ॥ पुनि आउब एहि बेरिआँ काली । अस कहि मन बिहसी एक आली ॥


गूढ़ गिरा सुनि सिय सकुचानी । भयउ बिलंबु मातु भय मानी ॥ धरि बड़ि धीर रामु उर आने । फिरि अपनपउ पितुबस जाने ॥



Doha / दोहा


दो. देखन मिस मृग बिहग तरु फिरइ बहोरि बहोरि । निरखि निरखि रघुबीर छबि बाढ़इ प्रीति न थोरि ॥ २३४ ॥



Chaupai / चोपाई


जानि कठिन सिवचाप बिसूरति । चली राखि उर स्यामल मूरति ॥ प्रभु जब जात जानकी जानी । सुख सनेह सोभा गुन खानी ॥


परम प्रेममय मृदु मसि कीन्ही । चारु चित भीतीं लिख लीन्ही ॥ गई भवानी भवन बहोरी । बंदि चरन बोली कर जोरी ॥


जय जय गिरिबरराज किसोरी । जय महेस मुख चंद चकोरी ॥ जय गज बदन षड़ानन माता । जगत जननि दामिनि दुति गाता ॥


नहिं तव आदि मध्य अवसाना । अमित प्रभाउ बेदु नहिं जाना ॥ भव भव बिभव पराभव कारिनि । बिस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिनि ॥



Doha / दोहा


दो. पतिदेवता सुतीय महुँ मातु प्रथम तव रेख । महिमा अमित न सकहिं कहि सहस सारदा सेष ॥ २३५ ॥



Chaupai / चोपाई


सेवत तोहि सुलभ फल चारी । बरदायनी पुरारि पिआरी ॥ देबि पूजि पद कमल तुम्हारे । सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे ॥


मोर मनोरथु जानहु नीकें । बसहु सदा उर पुर सबही कें ॥ कीन्हेउँ प्रगट न कारन तेहीं । अस कहि चरन गहे बैदेहीं ॥


बिनय प्रेम बस भई भवानी । खसी माल मूरति मुसुकानी ॥ सादर सियँ प्रसादु सिर धरेऊ । बोली गौरि हरषु हियँ भरेऊ ॥


सुनु सिय सत्य असीस हमारी । पूजिहि मन कामना तुम्हारी ॥ नारद बचन सदा सुचि साचा । सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा ॥



Chanda / छन्द


छं. मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर साँवरो । करुना निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो ॥ एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय सहित हियँ हरषीं अली । तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि मुदित मन मंदिर चली ॥



Sortha/ सोरठा


सो. जानि गौरि अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि । मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे ॥ २३६ ॥



Chaupai / चोपाई


हृदयँ सराहत सीय लोनाई । गुर समीप गवने दोउ भाई ॥ राम कहा सबु कौसिक पाहीं । सरल सुभाउ छुअत छल नाहीं ॥


सुमन पाइ मुनि पूजा कीन्ही । पुनि असीस दुहु भाइन्ह दीन्ही ॥ सुफल मनोरथ होहुँ तुम्हारे । रामु लखनु सुनि भए सुखारे ॥


करि भोजनु मुनिबर बिग्यानी । लगे कहन कछु कथा पुरानी ॥ बिगत दिवसु गुरु आयसु पाई । संध्या करन चले दोउ भाई ॥


प्राची दिसि ससि उयउ सुहावा । सिय मुख सरिस देखि सुखु पावा ॥ बहुरि बिचारु कीन्ह मन माहीं । सीय बदन सम हिमकर नाहीं ॥



Doha / दोहा


दो. जनमु सिंधु पुनि बंधु बिषु दिन मलीन सकलंक । सिय मुख समता पाव किमि चंदु बापुरो रंक ॥ २३७ ॥



Chaupai / चोपाई


घटइ बढ़इ बिरहनि दुखदाई । ग्रसइ राहु निज संधिहिं पाई ॥ कोक सिकप्रद पंकज द्रोही । अवगुन बहुत चंद्रमा तोही ॥


बैदेही मुख पटतर दीन्हे । होइ दोष बड़ अनुचित कीन्हे ॥ सिय मुख छबि बिधु ब्याज बखानी । गुरु पहिं चले निसा बड़ि जानी ॥


करि मुनि चरन सरोज प्रनामा । आयसु पाइ कीन्ह बिश्रामा ॥ बिगत निसा रघुनायक जागे । बंधु बिलोकि कहन अस लागे ॥


उदउ अरुन अवलोकहु ताता । पंकज कोक लोक सुखदाता ॥ बोले लखनु जोरि जुग पानी । प्रभु प्रभाउ सूचक मृदु बानी ॥



Doha / दोहा


दो. अरुनोदयँ सकुचे कुमुद उडगन जोति मलीन । जिमि तुम्हार आगमन सुनि भए नृपति बलहीन ॥ २३८ ॥



Chaupai / चोपाई


नृप सब नखत करहिं उजिआरी । टारि न सकहिं चाप तम भारी ॥ कमल कोक मधुकर खग नाना । हरषे सकल निसा अवसाना ॥


ऐसेहिं प्रभु सब भगत तुम्हारे । होइहहिं टूटें धनुष सुखारे ॥ उयउ भानु बिनु श्रम तम नासा । दुरे नखत जग तेजु प्रकासा ॥


रबि निज उदय ब्याज रघुराया । प्रभु प्रतापु सब नृपन्ह दिखाया ॥ तव भुज बल महिमा उदघाटी । प्रगटी धनु बिघटन परिपाटी ॥


बंधु बचन सुनि प्रभु मुसुकाने । होइ सुचि सहज पुनीत नहाने ॥ नित्यक्रिया करि गुरु पहिं आए । चरन सरोज सुभग सिर नाए ॥


सतानंदु तब जनक बोलाए । कौसिक मुनि पहिं तुरत पठाए ॥ जनक बिनय तिन्ह आइ सुनाई । हरषे बोलि लिए दोउ भाई ॥



Doha / दोहा


दो. सतानंद पद बंदि प्रभु बैठे गुर पहिं जाइ । चलहु तात मुनि कहेउ तब पठवा जनक बोलाइ ॥ २३९ ॥



Chaupai / चोपाई


सीय स्वयंबरु देखिअ जाई । ईसु काहि धौं देइ बड़ाई ॥ लखन कहा जस भाजनु सोई । नाथ कृपा तव जापर होई ॥


हरषे मुनि सब सुनि बर बानी । दीन्हि असीस सबहिं सुखु मानी ॥ पुनि मुनिबृंद समेत कृपाला । देखन चले धनुषमख साला ॥


रंगभूमि आए दोउ भाई । असि सुधि सब पुरबासिंह पाई ॥ चले सकल गृह काज बिसारी । बाल जुबान जरठ नर नारी ॥


देखी जनक भीर भै भारी । सुचि सेवक सब लिए हँकारी ॥ तुरत सकल लोगन्ह पहिं जाहू । आसन उचित देहू सब काहू ॥



Doha / दोहा


दो. कहि मृदु बचन बिनीत तिन्ह बैठारे नर नारि । उत्तम मध्यम नीच लघु निज निज थल अनुहारि ॥ २४० ॥



Chaupai / चोपाई


राजकुअँर तेहि अवसर आए । मनहुँ मनोहरता तन छाए ॥ गुन सागर नागर बर बीरा । सुंदर स्यामल गौर सरीरा ॥


राज समाज बिराजत रूरे । उडगन महुँ जनु जुग बिधु पूरे ॥ जिन्ह कें रही भावना जैसी । प्रभु मूरति तिन्ह देखी तैसी ॥


देखहिं रूप महा रनधीरा । मनहुँ बीर रसु धरें सरीरा ॥ डरे कुटिल नृप प्रभुहि निहारी । मनहुँ भयानक मूरति भारी ॥


रहे असुर छल छोनिप बेषा । तिन्ह प्रभु प्रगट कालसम देखा ॥ पुरबासिंह देखे दोउ भाई । नरभूषन लोचन सुखदाई ॥



Doha / दोहा


दो. नारि बिलोकहिं हरषि हियँ निज निज रुचि अनुरूप । जनु सोहत सिंगार धरि मूरति परम अनूप ॥ २४१ ॥



Chaupai / चोपाई


बिदुषन्ह प्रभु बिराटमय दीसा । बहु मुख कर पग लोचन सीसा ॥ जनक जाति अवलोकहिं कैसैं । सजन सगे प्रिय लागहिं जैसें ॥


सहित बिदेह बिलोकहिं रानी । सिसु सम प्रीति न जाति बखानी ॥ जोगिन्ह परम तत्त्वमय भासा । सांत सुद्ध सम सहज प्रकासा ॥


हरिभगतन्ह देखे दोउ भ्राता । इष्टदेव इव सब सुख दाता ॥ रामहि चितव भायँ जेहि सीया । सो सनेहु सुखु नहिं कथनीया ॥


उर अनुभवति न कहि सक सोऊ । कवन प्रकार कहै कबि कोऊ ॥ एहि बिधि रहा जाहि जस भाऊ । तेहिं तस देखेउ कोसलराऊ ॥



Doha / दोहा


दो. राजत राज समाज महुँ कोसलराज किसोर । सुंदर स्यामल गौर तन बिस्व बिलोचन चोर ॥ २४२ ॥



Chaupai / चोपाई


सहज मनोहर मूरति दोऊ । कोटि काम उपमा लघु सोऊ ॥ सरद चंद निंदक मुख नीके । नीरज नयन भावते जी के ॥


चितवत चारु मार मनु हरनी । भावति हृदय जाति नहीं बरनी ॥ कल कपोल श्रुति कुंडल लोला । चिबुक अधर सुंदर मृदु बोला ॥


कुमुदबंधु कर निंदक हाँसा । भृकुटी बिकट मनोहर नासा ॥ भाल बिसाल तिलक झलकाहीं । कच बिलोकि अलि अवलि लजाहीं ॥


पीत चौतनीं सिरन्हि सुहाई । कुसुम कलीं बिच बीच बनाईं ॥ रेखें रुचिर कंबु कल गीवाँ । जनु त्रिभुवन सुषमा की सीवाँ ॥



Doha / दोहा


दो. कुंजर मनि कंठा कलित उरन्हि तुलसिका माल । बृषभ कंध केहरि ठवनि बल निधि बाहु बिसाल ॥ २४३ ॥



Chaupai / चोपाई


कटि तूनीर पीत पट बाँधे । कर सर धनुष बाम बर काँधे ॥ पीत जग्य उपबीत सुहाए । नख सिख मंजु महाछबि छाए ॥


देखि लोग सब भए सुखारे । एकटक लोचन चलत न तारे ॥ हरषे जनकु देखि दोउ भाई । मुनि पद कमल गहे तब जाई ॥


करि बिनती निज कथा सुनाई । रंग अवनि सब मुनिहि देखाई ॥ जहँ जहँ जाहि कुअँर बर दोऊ । तहँ तहँ चकित चितव सबु कोऊ ॥


निज निज रुख रामहि सबु देखा । कोउ न जान कछु मरमु बिसेषा ॥ भलि रचना मुनि नृप सन कहेऊ । राजाँ मुदित महासुख लहेऊ ॥



Doha / दोहा


दो. सब मंचन्ह ते मंचु एक सुंदर बिसद बिसाल । मुनि समेत दोउ बंधु तहँ बैठारे महिपाल ॥ २४४ ॥



Chaupai / चोपाई


प्रभुहि देखि सब नृप हिँयँ हारे । जनु राकेस उदय भएँ तारे ॥ असि प्रतीति सब के मन माहीं । राम चाप तोरब सक नाहीं ॥


बिनु भंजेहुँ भव धनुषु बिसाला । मेलिहि सीय राम उर माला ॥ अस बिचारि गवनहु घर भाई । जसु प्रतापु बलु तेजु गवाँई ॥


बिहसे अपर भूप सुनि बानी । जे अबिबेक अंध अभिमानी ॥ तोरेहुँ धनुषु ब्याहु अवगाहा । बिनु तोरें को कुअँरि बिआहा ॥


एक बार कालउ किन होऊ । सिय हित समर जितब हम सोऊ ॥ यह सुनि अवर महिप मुसकाने । धरमसील हरिभगत सयाने ॥



Sortha/ सोरठा


सो. सीय बिआहबि राम गरब दूरि करि नृपन्ह के ॥ जीति को सक संग्राम दसरथ के रन बाँकुरे ॥ २४५ ॥



Chaupai / चोपाई


ब्यर्थ मरहु जनि गाल बजाई । मन मोदकन्हि कि भूख बुताई ॥ सिख हमारि सुनि परम पुनीता । जगदंबा जानहु जियँ सीता ॥


जगत पिता रघुपतिहि बिचारी । भरि लोचन छबि लेहु निहारी ॥ सुंदर सुखद सकल गुन रासी । ए दोउ बंधु संभु उर बासी ॥


सुधा समुद्र समीप बिहाई । मृगजलु निरखि मरहु कत धाई ॥ करहु जाइ जा कहुँ जोई भावा । हम तौ आजु जनम फलु पावा ॥


अस कहि भले भूप अनुरागे । रूप अनूप बिलोकन लागे ॥ देखहिं सुर नभ चढ़े बिमाना । बरषहिं सुमन करहिं कल गाना ॥



Doha / दोहा


दो. जानि सुअवसरु सीय तब पठई जनक बोलाई । चतुर सखीं सुंदर सकल सादर चलीं लवाईं ॥ २४६ ॥



Chaupai / चोपाई


सिय सोभा नहिं जाइ बखानी । जगदंबिका रूप गुन खानी ॥ उपमा सकल मोहि लघु लागीं । प्राकृत नारि अंग अनुरागीं ॥


सिय बरनिअ तेइ उपमा देई । कुकबि कहाइ अजसु को लेई ॥ जौ पटतरिअ तीय सम सीया । जग असि जुबति कहाँ कमनीया ॥


गिरा मुखर तन अरध भवानी । रति अति दुखित अतनु पति जानी ॥ बिष बारुनी बंधु प्रिय जेही । कहिअ रमासम किमि बैदेही ॥


जौ छबि सुधा पयोनिधि होई । परम रूपमय कच्छप सोई ॥ सोभा रजु मंदरु सिंगारू । मथै पानि पंकज निज मारू ॥



Doha / दोहा


दो. एहि बिधि उपजै लच्छि जब सुंदरता सुख मूल । तदपि सकोच समेत कबि कहहिं सीय समतूल ॥ २४७ ॥



Chaupai / चोपाई


चलिं संग लै सखीं सयानी । गावत गीत मनोहर बानी ॥ सोह नवल तनु सुंदर सारी । जगत जननि अतुलित छबि भारी ॥


भूषन सकल सुदेस सुहाए । अंग अंग रचि सखिन्ह बनाए ॥ रंगभूमि जब सिय पगु धारी । देखि रूप मोहे नर नारी ॥


हरषि सुरन्ह दुंदुभीं बजाई । बरषि प्रसून अपछरा गाई ॥ पानि सरोज सोह जयमाला । अवचट चितए सकल भुआला ॥


सीय चकित चित रामहि चाहा । भए मोहबस सब नरनाहा ॥ मुनि समीप देखे दोउ भाई । लगे ललकि लोचन निधि पाई ॥



Doha / दोहा


दो. गुरजन लाज समाजु बड़ देखि सीय सकुचानि ॥ लागि बिलोकन सखिन्ह तन रघुबीरहि उर आनि ॥ २४८ ॥



Chaupai / चोपाई


राम रूपु अरु सिय छबि देखें । नर नारिन्ह परिहरीं निमेषें ॥ सोचहिं सकल कहत सकुचाहीं । बिधि सन बिनय करहिं मन माहीं ॥


हरु बिधि बेगि जनक जड़ताई । मति हमारि असि देहि सुहाई ॥ बिनु बिचार पनु तजि नरनाहु । सीय राम कर करै बिबाहू ॥


जगु भल कहहि भाव सब काहू । हठ कीन्हे अंतहुँ उर दाहू ॥ एहिं लालसाँ मगन सब लोगू । बरु साँवरो जानकी जोगू ॥


तब बंदीजन जनक बौलाए । बिरिदावली कहत चलि आए ॥ कह नृप जाइ कहहु पन मोरा । चले भाट हियँ हरषु न थोरा ॥



Doha / दोहा


दो. बोले बंदी बचन बर सुनहु सकल महिपाल । पन बिदेह कर कहहिं हम भुजा उठाइ बिसाल ॥ २४९ ॥



Chaupai / चोपाई


नृप भुजबल बिधु सिवधनु राहू । गरुअ कठोर बिदित सब काहू ॥ रावनु बानु महाभट भारे । देखि सरासन गवँहिं सिधारे ॥


सोइ पुरारि कोदंडु कठोरा । राज समाज आजु जोइ तोरा ॥ त्रिभुवन जय समेत बैदेही ॥ बिनहिं बिचार बरइ हठि तेही ॥


सुनि पन सकल भूप अभिलाषे । भटमानी अतिसय मन माखे ॥ परिकर बाँधि उठे अकुलाई । चले इष्टदेवन्ह सिर नाई ॥


तमकि ताकि तकि सिवधनु धरहीं । उठइ न कोटि भाँति बलु करहीं ॥ जिन्ह के कछु बिचारु मन माहीं । चाप समीप महीप न जाहीं ॥



Doha / दोहा


दो. तमकि धरहिं धनु मूढ़ नृप उठइ न चलहिं लजाइ । मनहुँ पाइ भट बाहुबलु अधिकु अधिकु गरुआइ ॥ २५० ॥



Chaupai / चोपाई


भूप सहस दस एकहि बारा । लगे उठावन टरइ न टारा ॥ डगइ न संभु सरासन कैसें । कामी बचन सती मनु जैसें ॥


सब नृप भए जोगु उपहासी । जैसें बिनु बिराग संन्यासी ॥ कीरति बिजय बीरता भारी । चले चाप कर बरबस हारी ॥


श्रीहत भए हारि हियँ राजा । बैठे निज निज जाइ समाजा ॥ नृपन्ह बिलोकि जनकु अकुलाने । बोले बचन रोष जनु साने ॥


दीप दीप के भूपति नाना । आए सुनि हम जो पनु ठाना ॥ देव दनुज धरि मनुज सरीरा । बिपुल बीर आए रनधीरा ॥



Doha / दोहा


दो. कुअँरि मनोहर बिजय बड़ि कीरति अति कमनीय । पावनिहार बिरंचि जनु रचेउ न धनु दमनीय ॥ २५१ ॥



Chaupai / चोपाई


कहहु काहि यहु लाभु न भावा । काहुँ न संकर चाप चढ़ावा ॥ रहउ चढ़ाउब तोरब भाई । तिलु भरि भूमि न सके छड़ाई ॥


अब जनि कोउ माखै भट मानी । बीर बिहीन मही मैं जानी ॥ तजहु आस निज निज गृह जाहू । लिखा न बिधि बैदेहि बिबाहू ॥


सुकृत जाइ जौं पनु परिहरऊँ । कुअँरि कुआरि रहउ का करऊँ ॥ जो जनतेउँ बिनु भट भुबि भाई । तौ पनु करि होतेउँ न हँसाई ॥


जनक बचन सुनि सब नर नारी । देखि जानकिहि भए दुखारी ॥ माखे लखनु कुटिल भइँ भौंहें । रदपट फरकत नयन रिसौंहें ॥



Doha / दोहा


दो. कहि न सकत रघुबीर डर लगे बचन जनु बान । नाइ राम पद कमल सिरु बोले गिरा प्रमान ॥ २५२ ॥



Chaupai / चोपाई


रघुबंसिंह महुँ जहँ कोउ होई । तेहिं समाज अस कहइ न कोई ॥ कही जनक जसि अनुचित बानी । बिद्यमान रघुकुल मनि जानी ॥


सुनहु भानुकुल पंकज भानू । कहउँ सुभाउ न कछु अभिमानू ॥ जौ तुम्हारि अनुसासन पावौं । कंदुक इव ब्रह्मांड उठावौं ॥


काचे घट जिमि डारौं फोरी । सकउँ मेरु मूलक जिमि तोरी ॥ तव प्रताप महिमा भगवाना । को बापुरो पिनाक पुराना ॥


नाथ जानि अस आयसु होऊ । कौतुकु करौं बिलोकिअ सोऊ ॥ कमल नाल जिमि चाफ चढ़ावौं । जोजन सत प्रमान लै धावौं ॥



Doha / दोहा


दो. तोरौं छत्रक दंड जिमि तव प्रताप बल नाथ । जौं न करौं प्रभु पद सपथ कर न धरौं धनु भाथ ॥ २५३ ॥



Chaupai / चोपाई


लखन सकोप बचन जे बोले । डगमगानि महि दिग्गज डोले ॥ सकल लोक सब भूप डेराने । सिय हियँ हरषु जनकु सकुचाने ॥


गुर रघुपति सब मुनि मन माहीं । मुदित भए पुनि पुनि पुलकाहीं ॥ सयनहिं रघुपति लखनु नेवारे । प्रेम समेत निकट बैठारे ॥


बिस्वामित्र समय सुभ जानी । बोले अति सनेहमय बानी ॥ उठहु राम भंजहु भवचापा । मेटहु तात जनक परितापा ॥


सुनि गुरु बचन चरन सिरु नावा । हरषु बिषादु न कछु उर आवा ॥ ठाढ़े भए उठि सहज सुभाएँ । ठवनि जुबा मृगराजु लजाएँ ॥



Doha / दोहा


दो. उदित उदयगिरि मंच पर रघुबर बालपतंग । बिकसे संत सरोज सब हरषे लोचन भृंग ॥ २५४ ॥



Chaupai / चोपाई


नृपन्ह केरि आसा निसि नासी । बचन नखत अवली न प्रकासी ॥ मानी महिप कुमुद सकुचाने । कपटी भूप उलूक लुकाने ॥


भए बिसोक कोक मुनि देवा । बरिसहिं सुमन जनावहिं सेवा ॥ गुर पद बंदि सहित अनुरागा । राम मुनिन्ह सन आयसु मागा ॥


सहजहिं चले सकल जग स्वामी । मत्त मंजु बर कुंजर गामी ॥ चलत राम सब पुर नर नारी । पुलक पूरि तन भए सुखारी ॥


बंदि पितर सुर सुकृत सँभारे । जौं कछु पुन्य प्रभाउ हमारे ॥ तौ सिवधनु मृनाल की नाईं । तोरहुँ राम गनेस गोसाईं ॥



Doha / दोहा


दो. रामहि प्रेम समेत लखि सखिन्ह समीप बोलाइ । सीता मातु सनेह बस बचन कहइ बिलखाइ ॥ २५५ ॥



Chaupai / चोपाई


सखि सब कौतुक देखनिहारे । जेठ कहावत हितू हमारे ॥ कोउ न बुझाइ कहइ गुर पाहीं । ए बालक असि हठ भलि नाहीं ॥


रावन बान छुआ नहिं चापा । हारे सकल भूप करि दापा ॥ सो धनु राजकुअँर कर देहीं । बाल मराल कि मंदर लेहीं ॥


भूप सयानप सकल सिरानी । सखि बिधि गति कछु जाति न जानी ॥ बोली चतुर सखी मृदु बानी । तेजवंत लघु गनिअ न रानी ॥


कहँ कुंभज कहँ सिंधु अपारा । सोषेउ सुजसु सकल संसारा ॥ रबि मंडल देखत लघु लागा । उदयँ तासु तिभुवन तम भागा ॥



Doha / दोहा


दो. मंत्र परम लघु जासु बस बिधि हरि हर सुर सर्ब । महामत्त गजराज कहुँ बस कर अंकुस खर्ब ॥ २५६ ॥



Chaupai / चोपाई


काम कुसुम धनु सायक लीन्हे । सकल भुवन अपने बस कीन्हे ॥ देबि तजिअ संसउ अस जानी । भंजब धनुष रामु सुनु रानी ॥


सखी बचन सुनि भै परतीती । मिटा बिषादु बढ़ी अति प्रीती ॥ तब रामहि बिलोकि बैदेही । सभय हृदयँ बिनवति जेहि तेही ॥


मनहीं मन मनाव अकुलानी । होहु प्रसन्न महेस भवानी ॥ करहु सफल आपनि सेवकाई । करि हितु हरहु चाप गरुआई ॥


गननायक बरदायक देवा । आजु लगें कीन्हिउँ तुअ सेवा ॥ बार बार बिनती सुनि मोरी । करहु चाप गुरुता अति थोरी ॥



Doha / दोहा


दो. देखि देखि रघुबीर तन सुर मनाव धरि धीर ॥ भरे बिलोचन प्रेम जल पुलकावली सरीर ॥ २५७ ॥



Chaupai / चोपाई


नीकें निरखि नयन भरि सोभा । पितु पनु सुमिरि बहुरि मनु छोभा ॥ अहह तात दारुनि हठ ठानी । समुझत नहिं कछु लाभु न हानी ॥


सचिव सभय सिख देइ न कोई । बुध समाज बड़ अनुचित होई ॥ कहँ धनु कुलिसहु चाहि कठोरा । कहँ स्यामल मृदुगात किसोरा ॥


बिधि केहि भाँति धरौं उर धीरा । सिरस सुमन कन बेधिअ हीरा ॥ सकल सभा कै मति भै भोरी । अब मोहि संभुचाप गति तोरी ॥


निज जड़ता लोगन्ह पर डारी । होहि हरुअ रघुपतिहि निहारी ॥ अति परिताप सीय मन माही । लव निमेष जुग सब सय जाहीं ॥



Doha / दोहा


दो. प्रभुहि चितइ पुनि चितव महि राजत लोचन लोल । खेलत मनसिज मीन जुग जनु बिधु मंडल डोल ॥ २५८ ॥



Chaupai / चोपाई


गिरा अलिनि मुख पंकज रोकी । प्रगट न लाज निसा अवलोकी ॥ लोचन जलु रह लोचन कोना । जैसे परम कृपन कर सोना ॥


सकुची ब्याकुलता बड़ि जानी । धरि धीरजु प्रतीति उर आनी ॥ तन मन बचन मोर पनु साचा । रघुपति पद सरोज चितु राचा ॥


तौ भगवानु सकल उर बासी । करिहिं मोहि रघुबर कै दासी ॥ जेहि कें जेहि पर सत्य सनेहू । सो तेहि मिलइ न कछु संहेहू ॥


प्रभु तन चितइ प्रेम तन ठाना । कृपानिधान राम सबु जाना ॥ सियहि बिलोकि तकेउ धनु कैसे । चितव गरुरु लघु ब्यालहि जैसे ॥



Doha / दोहा


दो. लखन लखेउ रघुबंसमनि ताकेउ हर कोदंडु । पुलकि गात बोले बचन चरन चापि ब्रह्मांडु ॥ २५९ ॥



Chaupai / चोपाई


दिसकुंजरहु कमठ अहि कोला । धरहु धरनि धरि धीर न डोला ॥ रामु चहहिं संकर धनु तोरा । होहु सजग सुनि आयसु मोरा ॥


चाप सपीप रामु जब आए । नर नारिन्ह सुर सुकृत मनाए ॥ सब कर संसउ अरु अग्यानू । मंद महीपन्ह कर अभिमानू ॥


भृगुपति केरि गरब गरुआई । सुर मुनिबरन्ह केरि कदराई ॥ सिय कर सोचु जनक पछितावा । रानिन्ह कर दारुन दुख दावा ॥


संभुचाप बड बोहितु पाई । चढे जाइ सब संगु बनाई ॥ राम बाहुबल सिंधु अपारू । चहत पारु नहि कोउ कड़हारू ॥



Doha / दोहा


दो. राम बिलोके लोग सब चित्र लिखे से देखि । चितई सीय कृपायतन जानी बिकल बिसेषि ॥ २६० ॥



Chaupai / चोपाई


देखी बिपुल बिकल बैदेही । निमिष बिहात कलप सम तेही ॥ तृषित बारि बिनु जो तनु त्यागा । मुएँ करइ का सुधा तड़ागा ॥


का बरषा सब कृषी सुखानें । समय चुकें पुनि का पछितानें ॥ अस जियँ जानि जानकी देखी । प्रभु पुलके लखि प्रीति बिसेषी ॥


गुरहि प्रनामु मनहि मन कीन्हा । अति लाघवँ उठाइ धनु लीन्हा ॥ दमकेउ दामिनि जिमि जब लयऊ । पुनि नभ धनु मंडल सम भयऊ ॥


लेत चढ़ावत खैंचत गाढ़ें । काहुँ न लखा देख सबु ठाढ़ें ॥ तेहि छन राम मध्य धनु तोरा । भरे भुवन धुनि घोर कठोरा ॥



Chanda / छन्द


छं. भरे भुवन घोर कठोर रव रबि बाजि तजि मारगु चले । चिक्करहिं दिग्गज डोल महि अहि कोल कूरुम कलमले ॥ सुर असुर मुनि कर कान दीन्हें सकल बिकल बिचारहीं । कोदंड खंडेउ राम तुलसी जयति बचन उचारही ॥



Sortha/ सोरठा


सो. संकर चापु जहाजु सागरु रघुबर बाहुबलु । बूड़ सो सकल समाजु चढ़ा जो प्रथमहिं मोह बस ॥ २६१ ॥



Chaupai / चोपाई


प्रभु दोउ चापखंड महि डारे । देखि लोग सब भए सुखारे ॥ कोसिकरुप पयोनिधि पावन । प्रेम बारि अवगाहु सुहावन ॥


रामरूप राकेसु निहारी । बढ़त बीचि पुलकावलि भारी ॥ बाजे नभ गहगहे निसाना । देवबधू नाचहिं करि गाना ॥


ब्रह्मादिक सुर सिद्ध मुनीसा । प्रभुहि प्रसंसहि देहिं असीसा ॥ बरिसहिं सुमन रंग बहु माला । गावहिं किंनर गीत रसाला ॥


रही भुवन भरि जय जय बानी । धनुषभंग धुनि जात न जानी ॥ मुदित कहहिं जहँ तहँ नर नारी । भंजेउ राम संभुधनु भारी ॥



Doha / दोहा


दो. बंदी मागध सूतगन बिरुद बदहिं मतिधीर । करहिं निछावरि लोग सब हय गय धन मनि चीर ॥ २६२ ॥



Chaupai / चोपाई


झाँझि मृदंग संख सहनाई । भेरि ढोल दुंदुभी सुहाई ॥ बाजहिं बहु बाजने सुहाए । जहँ तहँ जुबतिन्ह मंगल गाए ॥


सखिन्ह सहित हरषी अति रानी । सूखत धान परा जनु पानी ॥ जनक लहेउ सुखु सोचु बिहाई । पैरत थकें थाह जनु पाई ॥


श्रीहत भए भूप धनु टूटे । जैसें दिवस दीप छबि छूटे ॥ सीय सुखहि बरनिअ केहि भाँती । जनु चातकी पाइ जलु स्वाती ॥


रामहि लखनु बिलोकत कैसें । ससिहि चकोर किसोरकु जैसें ॥ सतानंद तब आयसु दीन्हा । सीताँ गमनु राम पहिं कीन्हा ॥



Doha / दोहा


दो. संग सखीं सुदंर चतुर गावहिं मंगलचार । गवनी बाल मराल गति सुषमा अंग अपार ॥ २६३ ॥



Chaupai / चोपाई


सखिन्ह मध्य सिय सोहति कैसे । छबिगन मध्य महाछबि जैसें ॥ कर सरोज जयमाल सुहाई । बिस्व बिजय सोभा जेहिं छाई ॥


तन सकोचु मन परम उछाहू । गूढ़ प्रेमु लखि परइ न काहू ॥ जाइ समीप राम छबि देखी । रहि जनु कुँअरि चित्र अवरेखी ॥


चतुर सखीं लखि कहा बुझाई । पहिरावहु जयमाल सुहाई ॥ सुनत जुगल कर माल उठाई । प्रेम बिबस पहिराइ न जाई ॥


सोहत जनु जुग जलज सनाला । ससिहि सभीत देत जयमाला ॥ गावहिं छबि अवलोकि सहेली । सियँ जयमाल राम उर मेली ॥



Sortha/ सोरठा


सो. रघुबर उर जयमाल देखि देव बरिसहिं सुमन । सकुचे सकल भुआल जनु बिलोकि रबि कुमुदगन ॥ २६४ ॥



Chaupai / चोपाई


पुर अरु ब्योम बाजने बाजे । खल भए मलिन साधु सब राजे ॥ सुर किंनर नर नाग मुनीसा । जय जय जय कहि देहिं असीसा ॥


नाचहिं गावहिं बिबुध बधूटीं । बार बार कुसुमांजलि छूटीं ॥ जहँ तहँ बिप्र बेदधुनि करहीं । बंदी बिरदावलि उच्चरहीं ॥


महि पाताल नाक जसु ब्यापा । राम बरी सिय भंजेउ चापा ॥ करहिं आरती पुर नर नारी । देहिं निछावरि बित्त बिसारी ॥


सोहति सीय राम कै जौरी । छबि सिंगारु मनहुँ एक ठोरी ॥ सखीं कहहिं प्रभुपद गहु सीता । करति न चरन परस अति भीता ॥



Doha / दोहा


दो. गौतम तिय गति सुरति करि नहिं परसति पग पानि । मन बिहसे रघुबंसमनि प्रीति अलौकिक जानि ॥ २६५ ॥



Chaupai / चोपाई


तब सिय देखि भूप अभिलाषे । कूर कपूत मूढ़ मन माखे ॥ उठि उठि पहिरि सनाह अभागे । जहँ तहँ गाल बजावन लागे ॥


लेहु छड़ाइ सीय कह कोऊ । धरि बाँधहु नृप बालक दोऊ ॥ तोरें धनुषु चाड़ नहिं सरई । जीवत हमहि कुअँरि को बरई ॥


जौं बिदेहु कछु करै सहाई । जीतहु समर सहित दोउ भाई ॥ साधु भूप बोले सुनि बानी । राजसमाजहि लाज लजानी ॥


बलु प्रतापु बीरता बड़ाई । नाक पिनाकहि संग सिधाई ॥ सोइ सूरता कि अब कहुँ पाई । असि बुधि तौ बिधि मुहँ मसि लाई ॥



Doha / दोहा


दो. देखहु रामहि नयन भरि तजि इरिषा मदु कोहु । लखन रोषु पावकु प्रबल जानि सलभ जनि होहु ॥ २६६ ॥



Chaupai / चोपाई


बैनतेय बलि जिमि चह कागू । जिमि ससु चहै नाग अरि भागू ॥ जिमि चह कुसल अकारन कोही । सब संपदा चहै सिवद्रोही ॥


लोभी लोलुप कल कीरति चहई । अकलंकता कि कामी लहई ॥ हरि पद बिमुख परम गति चाहा । तस तुम्हार लालचु नरनाहा ॥


कोलाहलु सुनि सीय सकानी । सखीं लवाइ गईं जहँ रानी ॥ रामु सुभायँ चले गुरु पाहीं । सिय सनेहु बरनत मन माहीं ॥


रानिन्ह सहित सोचबस सीया । अब धौं बिधिहि काह करनीया ॥ भूप बचन सुनि इत उत तकहीं । लखनु राम डर बोलि न सकहीं ॥



Doha / दोहा


दो. अरुन नयन भृकुटी कुटिल चितवत नृपन्ह सकोप । मनहुँ मत्त गजगन निरखि सिंघकिसोरहि चोप ॥ २६७ ॥



Chaupai / चोपाई


खरभरु देखि बिकल पुर नारीं । सब मिलि देहिं महीपन्ह गारीं ॥ तेहिं अवसर सुनि सिव धनु भंगा । आयसु भृगुकुल कमल पतंगा ॥


देखि महीप सकल सकुचाने । बाज झपट जनु लवा लुकाने ॥ गौरि सरीर भूति भल भ्राजा । भाल बिसाल त्रिपुंड बिराजा ॥


सीस जटा ससिबदनु सुहावा । रिसबस कछुक अरुन होइ आवा ॥ भृकुटी कुटिल नयन रिस राते । सहजहुँ चितवत मनहुँ रिसाते ॥


बृषभ कंध उर बाहु बिसाला । चारु जनेउ माल मृगछाला ॥ कटि मुनि बसन तून दुइ बाँधें । धनु सर कर कुठारु कल काँधें ॥



Doha / दोहा


दो. सांत बेषु करनी कठिन बरनि न जाइ सरुप । धरि मुनितनु जनु बीर रसु आयउ जहँ सब भूप ॥ २६८ ॥



Chaupai / चोपाई


देखत भृगुपति बेषु कराला । उठे सकल भय बिकल भुआला ॥ पितु समेत कहि कहि निज नामा । लगे करन सब दंड प्रनामा ॥


जेहि सुभायँ चितवहिं हितु जानी । सो जानइ जनु आइ खुटानी ॥ जनक बहोरि आइ सिरु नावा । सीय बोलाइ प्रनामु करावा ॥


आसिष दीन्हि सखीं हरषानीं । निज समाज लै गई सयानीं ॥ बिस्वामित्रु मिले पुनि आई । पद सरोज मेले दोउ भाई ॥


रामु लखनु दसरथ के ढोटा । दीन्हि असीस देखि भल जोटा ॥ रामहि चितइ रहे थकि लोचन । रूप अपार मार मद मोचन ॥



Doha / दोहा


दो. बहुरि बिलोकि बिदेह सन कहहु काह अति भीर ॥ पूछत जानि अजान जिमि ब्यापेउ कोपु सरीर ॥ २६९ ॥



Chaupai / चोपाई


समाचार कहि जनक सुनाए । जेहि कारन महीप सब आए ॥ सुनत बचन फिरि अनत निहारे । देखे चापखंड महि डारे ॥


अति रिस बोले बचन कठोरा । कहु जड़ जनक धनुष कै तोरा ॥ बेगि देखाउ मूढ़ न त आजू । उलटउँ महि जहँ लहि तव राजू ॥


अति डरु उतरु देत नृपु नाहीं । कुटिल भूप हरषे मन माहीं ॥ सुर मुनि नाग नगर नर नारी ॥ सोचहिं सकल त्रास उर भारी ॥


मन पछिताति सीय महतारी । बिधि अब सँवरी बात बिगारी ॥ भृगुपति कर सुभाउ सुनि सीता । अरध निमेष कलप सम बीता ॥



Doha / दोहा


दो. सभय बिलोके लोग सब जानि जानकी भीरु । हृदयँ न हरषु बिषादु कछु बोले श्रीरघुबीरु ॥ २७० ॥



Chaupai / चोपाई


नाथ संभुधनु भंजनिहारा । होइहि केउ एक दास तुम्हारा ॥ आयसु काह कहिअ किन मोही । सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही ॥


सेवकु सो जो करै सेवकाई । अरि करनी करि करिअ लराई ॥ सुनहु राम जेहिं सिवधनु तोरा । सहसबाहु सम सो रिपु मोरा ॥


सो बिलगाउ बिहाइ समाजा । न त मारे जैहहिं सब राजा ॥ सुनि मुनि बचन लखन मुसुकाने । बोले परसुधरहि अपमाने ॥


बहु धनुहीं तोरीं लरिकाईं । कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं ॥ एहि धनु पर ममता केहि हेतू । सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू ॥



Doha / दोहा


दो. रे नृप बालक कालबस बोलत तोहि न सँमार ॥ धनुही सम तिपुरारि धनु बिदित सकल संसार ॥ २७१ ॥



Chaupai / चोपाई


लखन कहा हँसि हमरें जाना । सुनहु देव सब धनुष समाना ॥ का छति लाभु जून धनु तौरें । देखा राम नयन के भोरें ॥


छुअत टूट रघुपतिहु न दोसू । मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू । बोले चितइ परसु की ओरा । रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा ॥


बालकु बोलि बधउँ नहिं तोही । केवल मुनि जड़ जानहि मोही ॥ बाल ब्रह्मचारी अति कोही । बिस्व बिदित छत्रियकुल द्रोही ॥


भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही । बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही ॥ सहसबाहु भुज छेदनिहारा । परसु बिलोकु महीपकुमारा ॥



Doha / दोहा


दो. मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर । गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर ॥ २७२ ॥



Chaupai / चोपाई


बिहसि लखनु बोले मृदु बानी । अहो मुनीसु महा भटमानी ॥ पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारू । चहत उड़ावन फूँकि पहारू ॥


इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं । जे तरजनी देखि मरि जाहीं ॥ देखि कुठारु सरासन बाना । मैं कछु कहा सहित अभिमाना ॥


भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी । जो कछु कहहु सहउँ रिस रोकी ॥ सुर महिसुर हरिजन अरु गाई । हमरें कुल इन्ह पर न सुराई ॥


बधें पापु अपकीरति हारें । मारतहूँ पा परिअ तुम्हारें ॥ कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा । ब्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा ॥



Doha / दोहा


दो. जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर । सुनि सरोष भृगुबंसमनि बोले गिरा गभीर ॥ २७३ ॥



Chaupai / चोपाई


कौसिक सुनहु मंद यहु बालकु । कुटिल कालबस निज कुल घालकु ॥ भानु बंस राकेस कलंकू । निपट निरंकुस अबुध असंकू ॥


काल कवलु होइहि छन माहीं । कहउँ पुकारि खोरि मोहि नाहीं ॥ तुम्ह हटकउ जौं चहहु उबारा । कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा ॥


लखन कहेउ मुनि सुजस तुम्हारा । तुम्हहि अछत को बरनै पारा ॥ अपने मुँह तुम्ह आपनि करनी । बार अनेक भाँति बहु बरनी ॥


नहिं संतोषु त पुनि कछु कहहू । जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू ॥ बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा । गारी देत न पावहु सोभा ॥



Doha / दोहा


दो. सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु । बिद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु ॥ २७४ ॥



Chaupai / चोपाई


तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा । बार बार मोहि लागि बोलावा ॥ सुनत लखन के बचन कठोरा । परसु सुधारि धरेउ कर घोरा ॥


अब जनि देइ दोसु मोहि लोगू । कटुबादी बालकु बधजोगू ॥ बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा । अब यहु मरनिहार भा साँचा ॥


कौसिक कहा छमिअ अपराधू । बाल दोष गुन गनहिं न साधू ॥ खर कुठार मैं अकरुन कोही । आगें अपराधी गुरुद्रोही ॥


उतर देत छोड़उँ बिनु मारें । केवल कौसिक सील तुम्हारें ॥ न त एहि काटि कुठार कठोरें । गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोरें ॥



Doha / दोहा


दो. गाधिसूनु कह हृदयँ हँसि मुनिहि हरिअरइ सूझ । अयमय खाँड न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ ॥ २७५ ॥



Chaupai / चोपाई


कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा । को नहि जान बिदित संसारा ॥ माता पितहि उरिन भए नीकें । गुर रिनु रहा सोचु बड़ जीकें ॥


सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा । दिन चलि गए ब्याज बड़ बाढ़ा ॥ अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली । तुरत देउँ मैं थैली खोली ॥


सुनि कटु बचन कुठार सुधारा । हाय हाय सब सभा पुकारा ॥ भृगुबर परसु देखावहु मोही । बिप्र बिचारि बचउँ नृपद्रोही ॥


मिले न कबहुँ सुभट रन गाढ़े । द्विज देवता घरहि के बाढ़े ॥ अनुचित कहि सब लोग पुकारे । रघुपति सयनहिं लखनु नेवारे ॥



Doha / दोहा


दो. लखन उतर आहुति सरिस भृगुबर कोपु कृसानु । बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु ॥ २७६ ॥



Chaupai / चोपाई


नाथ करहु बालक पर छोहू । सूध दूधमुख करिअ न कोहू ॥ जौं पै प्रभु प्रभाउ कछु जाना । तौ कि बराबरि करत अयाना ॥


जौं लरिका कछु अचगरि करहीं । गुर पितु मातु मोद मन भरहीं ॥ करिअ कृपा सिसु सेवक जानी । तुम्ह सम सील धीर मुनि ग्यानी ॥


राम बचन सुनि कछुक जुड़ाने । कहि कछु लखनु बहुरि मुसकाने ॥ हँसत देखि नख सिख रिस ब्यापी । राम तोर भ्राता बड़ पापी ॥


गौर सरीर स्याम मन माहीं । कालकूटमुख पयमुख नाहीं ॥ सहज टेढ़ अनुहरइ न तोही । नीचु मीचु सम देख न मौहीं ॥



Doha / दोहा


दो. लखन कहेउ हँसि सुनहु मुनि क्रोधु पाप कर मूल । जेहि बस जन अनुचित करहिं चरहिं बिस्व प्रतिकूल ॥ २७७ ॥



Chaupai / चोपाई


मैं तुम्हार अनुचर मुनिराया । परिहरि कोपु करिअ अब दाया ॥ टूट चाप नहिं जुरहि रिसाने । बैठिअ होइहिं पाय पिराने ॥


जौ अति प्रिय तौ करिअ उपाई । जोरिअ कोउ बड़ गुनी बोलाई ॥ बोलत लखनहिं जनकु डेराहीं । मष्ट करहु अनुचित भल नाहीं ॥


थर थर कापहिं पुर नर नारी । छोट कुमार खोट बड़ भारी ॥ भृगुपति सुनि सुनि निरभय बानी । रिस तन जरइ होइ बल हानी ॥


बोले रामहि देइ निहोरा । बचउँ बिचारि बंधु लघु तोरा ॥ मनु मलीन तनु सुंदर कैसें । बिष रस भरा कनक घटु जैसैं ॥



Doha / दोहा


दो. सुनि लछिमन बिहसे बहुरि नयन तरेरे राम । गुर समीप गवने सकुचि परिहरि बानी बाम ॥ २७८ ॥



Chaupai / चोपाई


अति बिनीत मृदु सीतल बानी । बोले रामु जोरि जुग पानी ॥ सुनहु नाथ तुम्ह सहज सुजाना । बालक बचनु करिअ नहिं काना ॥


बररै बालक एकु सुभाऊ । इन्हहि न संत बिदूषहिं काऊ ॥ तेहिं नाहीं कछु काज बिगारा । अपराधी में नाथ तुम्हारा ॥


कृपा कोपु बधु बँधब गोसाईं । मो पर करिअ दास की नाई ॥ कहिअ बेगि जेहि बिधि रिस जाई । मुनिनायक सोइ करौं उपाई ॥


कह मुनि राम जाइ रिस कैसें । अजहुँ अनुज तव चितव अनैसें ॥ एहि के कंठ कुठारु न दीन्हा । तौ मैं काह कोपु करि कीन्हा ॥



Doha / दोहा


दो. गर्भ स्त्रवहिं अवनिप रवनि सुनि कुठार गति घोर । परसु अछत देखउँ जिअत बैरी भूपकिसोर ॥ २७९ ॥



Chaupai / चोपाई


बहइ न हाथु दहइ रिस छाती । भा कुठारु कुंठित नृपघाती ॥ भयउ बाम बिधि फिरेउ सुभाऊ । मोरे हृदयँ कृपा कसि काऊ ॥


आजु दया दुखु दुसह सहावा । सुनि सौमित्र बिहसि सिरु नावा ॥ बाउ कृपा मूरति अनुकूला । बोलत बचन झरत जनु फूला ॥


जौं पै कृपाँ जरिहिं मुनि गाता । क्रोध भएँ तनु राख बिधाता ॥ देखु जनक हठि बालक एहू । कीन्ह चहत जड़ जमपुर गेहू ॥


बेगि करहु किन आँखिन्ह ओटा । देखत छोट खोट नृप ढोटा ॥ बिहसे लखनु कहा मन माहीं । मूदें आँखि कतहुँ कोउ नाहीं ॥



Doha / दोहा


दो. परसुरामु तब राम प्रति बोले उर अति क्रोधु । संभु सरासनु तोरि सठ करसि हमार प्रबोधु ॥ २८० ॥



Chaupai / चोपाई


बंधु कहइ कटु संमत तोरें । तू छल बिनय करसि कर जोरें ॥ करु परितोषु मोर संग्रामा । नाहिं त छाड़ कहाउब रामा ॥


छलु तजि करहि समरु सिवद्रोही । बंधु सहित न त मारउँ तोही ॥ भृगुपति बकहिं कुठार उठाएँ । मन मुसकाहिं रामु सिर नाएँ ॥


गुनह लखन कर हम पर रोषू । कतहुँ सुधाइहु ते बड़ दोषू ॥ टेढ़ जानि सब बंदइ काहू । बक्र चंद्रमहि ग्रसइ न राहू ॥


राम कहेउ रिस तजिअ मुनीसा । कर कुठारु आगें यह सीसा ॥ जेंहिं रिस जाइ करिअ सोइ स्वामी । मोहि जानि आपन अनुगामी ॥



Doha / दोहा


दो. प्रभुहि सेवकहि समरु कस तजहु बिप्रबर रोसु । बेषु बिलोकें कहेसि कछु बालकहू नहिं दोसु ॥ २८१ ॥



Chaupai / चोपाई


देखि कुठार बान धनु धारी । भै लरिकहि रिस बीरु बिचारी ॥ नामु जान पै तुम्हहि न चीन्हा । बंस सुभायँ उतरु तेंहिं दीन्हा ॥


जौं तुम्ह औतेहु मुनि की नाईं । पद रज सिर सिसु धरत गोसाईं ॥ छमहु चूक अनजानत केरी । चहिअ बिप्र उर कृपा घनेरी ॥


हमहि तुम्हहि सरिबरि कसि नाथा ॥ कहहु न कहाँ चरन कहँ माथा ॥ राम मात्र लघु नाम हमारा । परसु सहित बड़ नाम तोहारा ॥


देव एकु गुनु धनुष हमारें । नव गुन परम पुनीत तुम्हारें ॥ सब प्रकार हम तुम्ह सन हारे । छमहु बिप्र अपराध हमारे ॥



Doha / दोहा


दो. बार बार मुनि बिप्रबर कहा राम सन राम । बोले भृगुपति सरुष हसि तहूँ बंधु सम बाम ॥ २८२ ॥



Chaupai / चोपाई


निपटहिं द्विज करि जानहि मोही । मैं जस बिप्र सुनावउँ तोही ॥ चाप स्त्रुवा सर आहुति जानू । कोप मोर अति घोर कृसानु ॥


समिधि सेन चतुरंग सुहाई । महा महीप भए पसु आई ॥ मै एहि परसु काटि बलि दीन्हे । समर जग्य जप कोटिन्ह कीन्हे ॥


मोर प्रभाउ बिदित नहिं तोरें । बोलसि निदरि बिप्र के भोरें ॥ भंजेउ चापु दापु बड़ बाढ़ा । अहमिति मनहुँ जीति जगु ठाढ़ा ॥


राम कहा मुनि कहहु बिचारी । रिस अति बड़ि लघु चूक हमारी ॥ छुअतहिं टूट पिनाक पुराना । मैं कहि हेतु करौं अभिमाना ॥



Doha / दोहा


दो. जौं हम निदरहिं बिप्र बदि सत्य सुनहु भृगुनाथ । तौ अस को जग सुभटु जेहि भय बस नावहिं माथ ॥ २८३ ॥



Chaupai / चोपाई


देव दनुज भूपति भट नाना । समबल अधिक होउ बलवाना ॥ जौं रन हमहि पचारै कोऊ । लरहिं सुखेन कालु किन होऊ ॥


छत्रिय तनु धरि समर सकाना । कुल कलंकु तेहिं पावँर आना ॥ कहउँ सुभाउ न कुलहि प्रसंसी । कालहु डरहिं न रन रघुबंसी ॥


बिप्रबंस कै असि प्रभुताई । अभय होइ जो तुम्हहि डेराई ॥ सुनु मृदु गूढ़ बचन रघुपति के । उघरे पटल परसुधर मति के ॥


राम रमापति कर धनु लेहू । खैंचहु मिटै मोर संदेहू ॥ देत चापु आपुहिं चलि गयऊ । परसुराम मन बिसमय भयऊ ॥



Doha / दोहा


दो. जाना राम प्रभाउ तब पुलक प्रफुल्लित गात । जोरि पानि बोले बचन ह्दयँ न प्रेमु अमात ॥ २८४ ॥



Chaupai / चोपाई


जय रघुबंस बनज बन भानू । गहन दनुज कुल दहन कृसानु ॥ जय सुर बिप्र धेनु हितकारी । जय मद मोह कोह भ्रम हारी ॥


बिनय सील करुना गुन सागर । जयति बचन रचना अति नागर ॥ सेवक सुखद सुभग सब अंगा । जय सरीर छबि कोटि अनंगा ॥


करौं काह मुख एक प्रसंसा । जय महेस मन मानस हंसा ॥ अनुचित बहुत कहेउँ अग्याता । छमहु छमामंदिर दोउ भ्राता ॥


कहि जय जय जय रघुकुलकेतू । भृगुपति गए बनहि तप हेतू ॥ अपभयँ कुटिल महीप डेराने । जहँ तहँ कायर गवँहिं पराने ॥



Doha / दोहा


दो. देवन्ह दीन्हीं दुंदुभीं प्रभु पर बरषहिं फूल । हरषे पुर नर नारि सब मिटी मोहमय सूल ॥ २८५ ॥



Chaupai / चोपाई


अति गहगहे बाजने बाजे । सबहिं मनोहर मंगल साजे ॥ जूथ जूथ मिलि सुमुख सुनयनीं । करहिं गान कल कोकिलबयनी ॥


सुखु बिदेह कर बरनि न जाई । जन्मदरिद्र मनहुँ निधि पाई ॥ गत त्रास भइ सीय सुखारी । जनु बिधु उदयँ चकोरकुमारी ॥


जनक कीन्ह कौसिकहि प्रनामा । प्रभु प्रसाद धनु भंजेउ रामा ॥ मोहि कृतकृत्य कीन्ह दुहुँ भाईं । अब जो उचित सो कहिअ गोसाई ॥


कह मुनि सुनु नरनाथ प्रबीना । रहा बिबाहु चाप आधीना ॥ टूटतहीं धनु भयउ बिबाहू । सुर नर नाग बिदित सब काहु ॥



Doha / दोहा


दो. तदपि जाइ तुम्ह करहु अब जथा बंस ब्यवहारु । बूझि बिप्र कुलबृद्ध गुर बेद बिदित आचारु ॥ २८६ ॥



Chaupai / चोपाई


दूत अवधपुर पठवहु जाई । आनहिं नृप दसरथहि बोलाई ॥ मुदित राउ कहि भलेहिं कृपाला । पठए दूत बोलि तेहि काला ॥


बहुरि महाजन सकल बोलाए । आइ सबन्हि सादर सिर नाए ॥ हाट बाट मंदिर सुरबासा । नगरु सँवारहु चारिहुँ पासा ॥


हरषि चले निज निज गृह आए । पुनि परिचारक बोलि पठाए ॥ रचहु बिचित्र बितान बनाई । सिर धरि बचन चले सचु पाई ॥


पठए बोलि गुनी तिन्ह नाना । जे बितान बिधि कुसल सुजाना ॥ बिधिहि बंदि तिन्ह कीन्ह अरंभा । बिरचे कनक कदलि के खंभा ॥



Doha / दोहा


दो. हरित मनिन्ह के पत्र फल पदुमराग के फूल । रचना देखि बिचित्र अति मनु बिरंचि कर भूल ॥ २८७ ॥



Chaupai / चोपाई


बेनि हरित मनिमय सब कीन्हे । सरल सपरब परहिं नहिं चीन्हे ॥ कनक कलित अहिबेल बनाई । लखि नहि परइ सपरन सुहाई ॥


तेहि के रचि पचि बंध बनाए । बिच बिच मुकता दाम सुहाए ॥ मानिक मरकत कुलिस पिरोजा । चीरि कोरि पचि रचे सरोजा ॥


किए भृंग बहुरंग बिहंगा । गुंजहिं कूजहिं पवन प्रसंगा ॥ सुर प्रतिमा खंभन गढ़ी काढ़ी । मंगल द्रब्य लिएँ सब ठाढ़ी ॥


चौंकें भाँति अनेक पुराईं । सिंधुर मनिमय सहज सुहाई ॥



Doha / दोहा


दो. सौरभ पल्लव सुभग सुठि किए नीलमनि कोरि ॥ हेम बौर मरकत घवरि लसत पाटमय डोरि ॥ २८८ ॥



Chaupai / चोपाई


रचे रुचिर बर बंदनिबारे । मनहुँ मनोभवँ फंद सँवारे ॥ मंगल कलस अनेक बनाए । ध्वज पताक पट चमर सुहाए ॥


दीप मनोहर मनिमय नाना । जाइ न बरनि बिचित्र बिताना ॥ जेहिं मंडप दुलहिनि बैदेही । सो बरनै असि मति कबि केही ॥


दूलहु रामु रूप गुन सागर । सो बितानु तिहुँ लोक उजागर ॥ जनक भवन कै सौभा जैसी । गृह गृह प्रति पुर देखिअ तैसी ॥


जेहिं तेरहुति तेहि समय निहारी । तेहि लघु लगहिं भुवन दस चारी ॥ जो संपदा नीच गृह सोहा । सो बिलोकि सुरनायक मोहा ॥



Doha / दोहा


दो. बसइ नगर जेहि लच्छ करि कपट नारि बर बेषु ॥ तेहि पुर कै सोभा कहत सकुचहिं सारद सेषु ॥ २८९ ॥



Chaupai / चोपाई


पहुँचे दूत राम पुर पावन । हरषे नगर बिलोकि सुहावन ॥ भूप द्वार तिन्ह खबरि जनाई । दसरथ नृप सुनि लिए बोलाई ॥


करि प्रनामु तिन्ह पाती दीन्ही । मुदित महीप आपु उठि लीन्ही ॥ बारि बिलोचन बाचत पाँती । पुलक गात आई भरि छाती ॥


रामु लखनु उर कर बर चीठी । रहि गए कहत न खाटी मीठी ॥ पुनि धरि धीर पत्रिका बाँची । हरषी सभा बात सुनि साँची ॥


खेलत रहे तहाँ सुधि पाई । आए भरतु सहित हित भाई ॥ पूछत अति सनेहँ सकुचाई । तात कहाँ तें पाती आई ॥



Doha / दोहा


दो. कुसल प्रानप्रिय बंधु दोउ अहहिं कहहु केहिं देस । सुनि सनेह साने बचन बाची बहुरि नरेस ॥ २९० ॥



Chaupai / चोपाई


सुनि पाती पुलके दोउ भ्राता । अधिक सनेहु समात न गाता ॥ प्रीति पुनीत भरत कै देखी । सकल सभाँ सुखु लहेउ बिसेषी ॥


तब नृप दूत निकट बैठारे । मधुर मनोहर बचन उचारे ॥ भैया कहहु कुसल दोउ बारे । तुम्ह नीकें निज नयन निहारे ॥


स्यामल गौर धरें धनु भाथा । बय किसोर कौसिक मुनि साथा ॥ पहिचानहु तुम्ह कहहु सुभाऊ । प्रेम बिबस पुनि पुनि कह राऊ ॥


जा दिन तें मुनि गए लवाई । तब तें आजु साँचि सुधि पाई ॥ कहहु बिदेह कवन बिधि जाने । सुनि प्रिय बचन दूत मुसकाने ॥



Doha / दोहा


दो. सुनहु महीपति मुकुट मनि तुम्ह सम धन्य न कोउ । रामु लखनु जिन्ह के तनय बिस्व बिभूषन दोउ ॥ २९१ ॥



Chaupai / चोपाई


पूछन जोगु न तनय तुम्हारे । पुरुषसिंघ तिहु पुर उजिआरे ॥ जिन्ह के जस प्रताप कें आगे । ससि मलीन रबि सीतल लागे ॥


तिन्ह कहँ कहिअ नाथ किमि चीन्हे । देखिअ रबि कि दीप कर लीन्हे ॥ सीय स्वयंबर भूप अनेका । समिटे सुभट एक तें एका ॥


संभु सरासनु काहुँ न टारा । हारे सकल बीर बरिआरा ॥ तीनि लोक महँ जे भटमानी । सभ कै सकति संभु धनु भानी ॥


सकइ उठाइ सरासुर मेरू । सोउ हियँ हारि गयउ करि फेरू ॥ जेहि कौतुक सिवसैलु उठावा । सोउ तेहि सभाँ पराभउ पावा ॥



Doha / दोहा


दो. तहाँ राम रघुबंस मनि सुनिअ महा महिपाल । भंजेउ चाप प्रयास बिनु जिमि गज पंकज नाल ॥ २९२ ॥



Chaupai / चोपाई


सुनि सरोष भृगुनायकु आए । बहुत भाँति तिन्ह आँखि देखाए ॥ देखि राम बलु निज धनु दीन्हा । करि बहु बिनय गवनु बन कीन्हा ॥


राजन रामु अतुलबल जैसें । तेज निधान लखनु पुनि तैसें ॥ कंपहि भूप बिलोकत जाकें । जिमि गज हरि किसोर के ताकें ॥


देव देखि तव बालक दोऊ । अब न आँखि तर आवत कोऊ ॥ दूत बचन रचना प्रिय लागी । प्रेम प्रताप बीर रस पागी ॥


सभा समेत राउ अनुरागे । दूतन्ह देन निछावरि लागे ॥ कहि अनीति ते मूदहिं काना । धरमु बिचारि सबहिं सुख माना ॥



Doha / दोहा


दो. तब उठि भूप बसिष्ठ कहुँ दीन्हि पत्रिका जाइ । कथा सुनाई गुरहि सब सादर दूत बोलाइ ॥ २९३ ॥



Chaupai / चोपाई


सुनि बोले गुर अति सुखु पाई । पुन्य पुरुष कहुँ महि सुख छाई ॥ जिमि सरिता सागर महुँ जाहीं । जद्यपि ताहि कामना नाहीं ॥


तिमि सुख संपति बिनहिं बोलाएँ । धरमसील पहिं जाहिं सुभाएँ ॥ तुम्ह गुर बिप्र धेनु सुर सेबी । तसि पुनीत कौसल्या देबी ॥


सुकृती तुम्ह समान जग माहीं । भयउ न है कोउ होनेउ नाहीं ॥ तुम्ह ते अधिक पुन्य बड़ काकें । राजन राम सरिस सुत जाकें ॥


बीर बिनीत धरम ब्रत धारी । गुन सागर बर बालक चारी ॥ तुम्ह कहुँ सर्ब काल कल्याना । सजहु बरात बजाइ निसाना ॥



Doha / दोहा


दो. चलहु बेगि सुनि गुर बचन भलेहिं नाथ सिरु नाइ । भूपति गवने भवन तब दूतन्ह बासु देवाइ ॥ २९४ ॥



Chaupai / चोपाई


राजा सबु रनिवास बोलाई । जनक पत्रिका बाचि सुनाई ॥ सुनि संदेसु सकल हरषानीं । अपर कथा सब भूप बखानीं ॥


प्रेम प्रफुल्लित राजहिं रानी । मनहुँ सिखिनि सुनि बारिद बनी ॥ मुदित असीस देहिं गुरु नारीं । अति आनंद मगन महतारीं ॥


लेहिं परस्पर अति प्रिय पाती । हृदयँ लगाइ जुड़ावहिं छाती ॥ राम लखन कै कीरति करनी । बारहिं बार भूपबर बरनी ॥


मुनि प्रसादु कहि द्वार सिधाए । रानिन्ह तब महिदेव बोलाए ॥ दिए दान आनंद समेता । चले बिप्रबर आसिष देता ॥



Sortha/ सोरठा


सो. जाचक लिए हँकारि दीन्हि निछावरि कोटि बिधि । चिरु जीवहुँ सुत चारि चक्रबर्ति दसरत्थ के ॥ २९५ ॥



Chaupai / चोपाई


कहत चले पहिरें पट नाना । हरषि हने गहगहे निसाना ॥ समाचार सब लोगन्ह पाए । लागे घर घर होने बधाए ॥


भुवन चारि दस भरा उछाहू । जनकसुता रघुबीर बिआहू ॥ सुनि सुभ कथा लोग अनुरागे । मग गृह गलीं सँवारन लागे ॥


जद्यपि अवध सदैव सुहावनि । राम पुरी मंगलमय पावनि ॥ तदपि प्रीति कै प्रीति सुहाई । मंगल रचना रची बनाई ॥


ध्वज पताक पट चामर चारु । छावा परम बिचित्र बजारू ॥ कनक कलस तोरन मनि जाला । हरद दूब दधि अच्छत माला ॥



Doha / दोहा


दो. मंगलमय निज निज भवन लोगन्ह रचे बनाइ । बीथीं सीचीं चतुरसम चौकें चारु पुराइ ॥ २९६ ॥



Chaupai / चोपाई


जहँ तहँ जूथ जूथ मिलि भामिनि । सजि नव सप्त सकल दुति दामिनि ॥ बिधुबदनीं मृग सावक लोचनि । निज सरुप रति मानु बिमोचनि ॥


गावहिं मंगल मंजुल बानीं । सुनिकल रव कलकंठि लजानीं ॥ भूप भवन किमि जाइ बखाना । बिस्व बिमोहन रचेउ बिताना ॥


मंगल द्रब्य मनोहर नाना । राजत बाजत बिपुल निसाना ॥ कतहुँ बिरिद बंदी उच्चरहीं । कतहुँ बेद धुनि भूसुर करहीं ॥


गावहिं सुंदरि मंगल गीता । लै लै नामु रामु अरु सीता ॥ बहुत उछाहु भवनु अति थोरा । मानहुँ उमगि चला चहु ओरा ॥



Doha / दोहा


दो. सोभा दसरथ भवन कइ को कबि बरनै पार । जहाँ सकल सुर सीस मनि राम लीन्ह अवतार ॥ २९७ ॥



Chaupai / चोपाई


भूप भरत पुनि लिए बोलाई । हय गय स्यंदन साजहु जाई ॥ चलहु बेगि रघुबीर बराता । सुनत पुलक पूरे दोउ भ्राता ॥


भरत सकल साहनी बोलाए । आयसु दीन्ह मुदित उठि धाए ॥ रचि रुचि जीन तुरग तिन्ह साजे । बरन बरन बर बाजि बिराजे ॥


सुभग सकल सुठि चंचल करनी । अय इव जरत धरत पग धरनी ॥ नाना जाति न जाहिं बखाने । निदरि पवनु जनु चहत उड़ाने ॥


तिन्ह सब छयल भए असवारा । भरत सरिस बय राजकुमारा ॥ सब सुंदर सब भूषनधारी । कर सर चाप तून कटि भारी ॥



Doha / दोहा


दो. छरे छबीले छयल सब सूर सुजान नबीन । जुग पदचर असवार प्रति जे असिकला प्रबीन ॥ २९८ ॥



Chaupai / चोपाई


बाँधे बिरद बीर रन गाढ़े । निकसि भए पुर बाहेर ठाढ़े ॥ फेरहिं चतुर तुरग गति नाना । हरषहिं सुनि सुनि पवन निसाना ॥


रथ सारथिन्ह बिचित्र बनाए । ध्वज पताक मनि भूषन लाए ॥ चवँर चारु किंकिन धुनि करही । भानु जान सोभा अपहरहीं ॥


सावँकरन अगनित हय होते । ते तिन्ह रथन्ह सारथिन्ह जोते ॥ सुंदर सकल अलंकृत सोहे । जिन्हहि बिलोकत मुनि मन मोहे ॥


जे जल चलहिं थलहि की नाई । टाप न बूड़ बेग अधिकाई ॥ अस्त्र सस्त्र सबु साजु बनाई । रथी सारथिन्ह लिए बोलाई ॥



Doha / दोहा


दो. चढ़ि चढ़ि रथ बाहेर नगर लागी जुरन बरात । होत सगुन सुन्दर सबहि जो जेहि कारज जात ॥ २९९ ॥



Chaupai / चोपाई


कलित करिबरन्हि परीं अँबारीं । कहि न जाहिं जेहि भाँति सँवारीं ॥ चले मत्तगज घंट बिराजी । मनहुँ सुभग सावन घन राजी ॥


बाहन अपर अनेक बिधाना । सिबिका सुभग सुखासन जाना ॥ तिन्ह चढ़ि चले बिप्रबर बृन्दा । जनु तनु धरें सकल श्रुति छंदा ॥


मागध सूत बंदि गुनगायक । चले जान चढ़ि जो जेहि लायक ॥ बेसर ऊँट बृषभ बहु जाती । चले बस्तु भरि अगनित भाँती ॥


कोटिन्ह काँवरि चले कहारा । बिबिध बस्तु को बरनै पारा ॥ चले सकल सेवक समुदाई । निज निज साजु समाजु बनाई ॥



Doha / दोहा


दो. सब कें उर निर्भर हरषु पूरित पुलक सरीर । कबहिं देखिबे नयन भरि रामु लखनू दोउ बीर ॥ ३०० ॥



Chaupai / चोपाई


गरजहिं गज घंटा धुनि घोरा । रथ रव बाजि हिंस चहु ओरा ॥ निदरि घनहि घुर्म्मरहिं निसाना । निज पराइ कछु सुनिअ न काना ॥


महा भीर भूपति के द्वारें । रज होइ जाइ पषान पबारें ॥ चढ़ी अटारिन्ह देखहिं नारीं । लिँएँ आरती मंगल थारी ॥


गावहिं गीत मनोहर नाना । अति आनंदु न जाइ बखाना ॥ तब सुमंत्र दुइ स्पंदन साजी । जोते रबि हय निंदक बाजी ॥


दोउ रथ रुचिर भूप पहिं आने । नहिं सारद पहिं जाहिं बखाने ॥ राज समाजु एक रथ साजा । दूसर तेज पुंज अति भ्राजा ॥



Doha / दोहा


दो. तेहिं रथ रुचिर बसिष्ठ कहुँ हरषि चढ़ाइ नरेसु । आपु चढ़ेउ स्पंदन सुमिरि हर गुर गौरि गनेसु ॥ ३०१ ॥



Chaupai / चोपाई


सहित बसिष्ठ सोह नृप कैसें । सुर गुर संग पुरंदर जैसें ॥ करि कुल रीति बेद बिधि राऊ । देखि सबहि सब भाँति बनाऊ ॥


सुमिरि रामु गुर आयसु पाई । चले महीपति संख बजाई ॥ हरषे बिबुध बिलोकि बराता । बरषहिं सुमन सुमंगल दाता ॥


भयउ कोलाहल हय गय गाजे । ब्योम बरात बाजने बाजे ॥ सुर नर नारि सुमंगल गाई । सरस राग बाजहिं सहनाई ॥


घंट घंटि धुनि बरनि न जाहीं । सरव करहिं पाइक फहराहीं ॥ करहिं बिदूषक कौतुक नाना । हास कुसल कल गान सुजाना ।



Doha / दोहा


दो. तुरग नचावहिं कुँअर बर अकनि मृदंग निसान ॥ नागर नट चितवहिं चकित डगहिं न ताल बँधान ॥ ३०२ ॥



Chaupai / चोपाई


बनइ न बरनत बनी बराता । होहिं सगुन सुंदर सुभदाता ॥ चारा चाषु बाम दिसि लेई । मनहुँ सकल मंगल कहि देई ॥


दाहिन काग सुखेत सुहावा । नकुल दरसु सब काहूँ पावा ॥ सानुकूल बह त्रिबिध बयारी । सघट सवाल आव बर नारी ॥


लोवा फिरि फिरि दरसु देखावा । सुरभी सनमुख सिसुहि पिआवा ॥ मृगमाला फिरि दाहिनि आई । मंगल गन जनु दीन्हि देखाई ॥


छेमकरी कह छेम बिसेषी । स्यामा बाम सुतरु पर देखी ॥ सनमुख आयउ दधि अरु मीना । कर पुस्तक दुइ बिप्र प्रबीना ॥



Doha / दोहा


दो. मंगलमय कल्यानमय अभिमत फल दातार । जनु सब साचे होन हित भए सगुन एक बार ॥ ३०३ ॥



Chaupai / चोपाई


मंगल सगुन सुगम सब ताकें । सगुन ब्रह्म सुंदर सुत जाकें ॥ राम सरिस बरु दुलहिनि सीता । समधी दसरथु जनकु पुनीता ॥


सुनि अस ब्याहु सगुन सब नाचे । अब कीन्हे बिरंचि हम साँचे ॥ एहि बिधि कीन्ह बरात पयाना । हय गय गाजहिं हने निसाना ॥


आवत जानि भानुकुल केतू । सरितन्हि जनक बँधाए सेतू ॥ बीच बीच बर बास बनाए । सुरपुर सरिस संपदा छाए ॥


असन सयन बर बसन सुहाए । पावहिं सब निज निज मन भाए ॥ नित नूतन सुख लखि अनुकूले । सकल बरातिन्ह मंदिर भूले ॥



Doha / दोहा


दो. आवत जानि बरात बर सुनि गहगहे निसान । सजि गज रथ पदचर तुरग लेन चले अगवान ॥ ३०४ ॥



Chaupai / चोपाई


कनक कलस भरि कोपर थारा । भाजन ललित अनेक प्रकारा ॥ भरे सुधासम सब पकवाने । नाना भाँति न जाहिं बखाने ॥


फल अनेक बर बस्तु सुहाईं । हरषि भेंट हित भूप पठाईं ॥ भूषन बसन महामनि नाना । खग मृग हय गय बहुबिधि जाना ॥


मंगल सगुन सुगंध सुहाए । बहुत भाँति महिपाल पठाए ॥ दधि चिउरा उपहार अपारा । भरि भरि काँवरि चले कहारा ॥


अगवानन्ह जब दीखि बराता । उर आनंदु पुलक भर गाता ॥ देखि बनाव सहित अगवाना । मुदित बरातिन्ह हने निसाना ॥



Doha / दोहा


दो. हरषि परसपर मिलन हित कछुक चले बगमेल । जनु आनंद समुद्र दुइ मिलत बिहाइ सुबेल ॥ ३०५ ॥



Chaupai / चोपाई


बरषि सुमन सुर सुंदरि गावहिं । मुदित देव दुंदुभीं बजावहिं ॥ बस्तु सकल राखीं नृप आगें । बिनय कीन्ह तिन्ह अति अनुरागें ॥


प्रेम समेत रायँ सबु लीन्हा । भै बकसीस जाचकन्हि दीन्हा ॥ करि पूजा मान्यता बड़ाई । जनवासे कहुँ चले लवाई ॥


बसन बिचित्र पाँवड़े परहीं । देखि धनहु धन मदु परिहरहीं ॥ अति सुंदर दीन्हेउ जनवासा । जहँ सब कहुँ सब भाँति सुपासा ॥


जानी सियँ बरात पुर आई । कछु निज महिमा प्रगटि जनाई ॥ हृदयँ सुमिरि सब सिद्धि बोलाई । भूप पहुनई करन पठाई ॥



Doha / दोहा


दो. सिधि सब सिय आयसु अकनि गईं जहाँ जनवास । लिएँ संपदा सकल सुख सुरपुर भोग बिलास ॥ ३०६ ॥



Chaupai / चोपाई


निज निज बास बिलोकि बराती । सुर सुख सकल सुलभ सब भाँती ॥ बिभव भेद कछु कोउ न जाना । सकल जनक कर करहिं बखाना ॥


सिय महिमा रघुनायक जानी । हरषे हृदयँ हेतु पहिचानी ॥ पितु आगमनु सुनत दोउ भाई । हृदयँ न अति आनंदु अमाई ॥


सकुचन्ह कहि न सकत गुरु पाहीं । पितु दरसन लालचु मन माहीं ॥ बिस्वामित्र बिनय बड़ि देखी । उपजा उर संतोषु बिसेषी ॥


हरषि बंधु दोउ हृदयँ लगाए । पुलक अंग अंबक जल छाए ॥ चले जहाँ दसरथु जनवासे । मनहुँ सरोबर तकेउ पिआसे ॥



Doha / दोहा


दो. भूप बिलोके जबहिं मुनि आवत सुतन्ह समेत । उठे हरषि सुखसिंधु महुँ चले थाह सी लेत ॥ ३०७ ॥



Chaupai / चोपाई


मुनिहि दंडवत कीन्ह महीसा । बार बार पद रज धरि सीसा ॥ कौसिक राउ लिये उर लाई । कहि असीस पूछी कुसलाई ॥


पुनि दंडवत करत दोउ भाई । देखि नृपति उर सुखु न समाई ॥ सुत हियँ लाइ दुसह दुख मेटे । मृतक सरीर प्रान जनु भेंटे ॥


पुनि बसिष्ठ पद सिर तिन्ह नाए । प्रेम मुदित मुनिबर उर लाए ॥ बिप्र बृंद बंदे दुहुँ भाईं । मन भावती असीसें पाईं ॥


भरत सहानुज कीन्ह प्रनामा । लिए उठाइ लाइ उर रामा ॥ हरषे लखन देखि दोउ भ्राता । मिले प्रेम परिपूरित गाता ॥



Doha / दोहा


दो. पुरजन परिजन जातिजन जाचक मंत्री मीत । मिले जथाबिधि सबहि प्रभु परम कृपाल बिनीत ॥ ३०८ ॥



Chaupai / चोपाई


रामहि देखि बरात जुड़ानी । प्रीति कि रीति न जाति बखानी ॥ नृप समीप सोहहिं सुत चारी । जनु धन धरमादिक तनुधारी ॥


सुतन्ह समेत दसरथहि देखी । मुदित नगर नर नारि बिसेषी ॥ सुमन बरिसि सुर हनहिं निसाना । नाकनटीं नाचहिं करि गाना ॥


सतानंद अरु बिप्र सचिव गन । मागध सूत बिदुष बंदीजन ॥ सहित बरात राउ सनमाना । आयसु मागि फिरे अगवाना ॥


प्रथम बरात लगन तें आई । तातें पुर प्रमोदु अधिकाई ॥ ब्रह्मानंदु लोग सब लहहीं । बढ़हुँ दिवस निसि बिधि सन कहहीं ॥



Doha / दोहा


दो. रामु सीय सोभा अवधि सुकृत अवधि दोउ राज । जहँ जहँ पुरजन कहहिं अस मिलि नर नारि समाज ॥ । ३०९ ॥



Chaupai / चोपाई


जनक सुकृत मूरति बैदेही । दसरथ सुकृत रामु धरें देही ॥ इन्ह सम काँहु न सिव अवराधे । काहिँ न इन्ह समान फल लाधे ॥


इन्ह सम कोउ न भयउ जग माहीं । है नहिं कतहूँ होनेउ नाहीं ॥ हम सब सकल सुकृत कै रासी । भए जग जनमि जनकपुर बासी ॥


जिन्ह जानकी राम छबि देखी । को सुकृती हम सरिस बिसेषी ॥ पुनि देखब रघुबीर बिआहू । लेब भली बिधि लोचन लाहू ॥


कहहिं परसपर कोकिलबयनीं । एहि बिआहँ बड़ लाभु सुनयनीं ॥ बड़ें भाग बिधि बात बनाई । नयन अतिथि होइहहिं दोउ भाई ॥



Doha / दोहा


दो. बारहिं बार सनेह बस जनक बोलाउब सीय । लेन आइहहिं बंधु दोउ कोटि काम कमनीय ॥ ३१० ॥



Chaupai / चोपाई


बिबिध भाँति होइहि पहुनाई । प्रिय न काहि अस सासुर माई ॥ तब तब राम लखनहि निहारी । होइहहिं सब पुर लोग सुखारी ॥


सखि जस राम लखनकर जोटा । तैसेइ भूप संग दुइ ढोटा ॥ स्याम गौर सब अंग सुहाए । ते सब कहहिं देखि जे आए ॥


कहा एक मैं आजु निहारे । जनु बिरंचि निज हाथ सँवारे ॥ भरतु रामही की अनुहारी । सहसा लखि न सकहिं नर नारी ॥


लखनु सत्रुसूदनु एकरूपा । नख सिख ते सब अंग अनूपा ॥ मन भावहिं मुख बरनि न जाहीं । उपमा कहुँ त्रिभुवन कोउ नाहीं ॥



Chanda / छन्द


छं. उपमा न कोउ कह दास तुलसी कतहुँ कबि कोबिद कहैं । बल बिनय बिद्या सील सोभा सिंधु इन्ह से एइ अहैं ॥ पुर नारि सकल पसारि अंचल बिधिहि बचन सुनावहीं ॥ ब्याहिअहुँ चारिउ भाइ एहिं पुर हम सुमंगल गावहीं ॥



Sortha/ सोरठा


सो. कहहिं परस्पर नारि बारि बिलोचन पुलक तन । सखि सबु करब पुरारि पुन्य पयोनिधि भूप दोउ ॥ ३११ ॥



Chaupai / चोपाई


एहि बिधि सकल मनोरथ करहीं । आनँद उमगि उमगि उर भरहीं ॥ जे नृप सीय स्वयंबर आए । देखि बंधु सब तिन्ह सुख पाए ॥


कहत राम जसु बिसद बिसाला । निज निज भवन गए महिपाला ॥ गए बीति कुछ दिन एहि भाँती । प्रमुदित पुरजन सकल बराती ॥


मंगल मूल लगन दिनु आवा । हिम रितु अगहनु मासु सुहावा ॥ ग्रह तिथि नखतु जोगु बर बारू । लगन सोधि बिधि कीन्ह बिचारू ॥


पठै दीन्हि नारद सन सोई । गनी जनक के गनकन्ह जोई ॥ सुनी सकल लोगन्ह यह बाता । कहहिं जोतिषी आहिं बिधाता ॥



Doha / दोहा


दो. धेनुधूरि बेला बिमल सकल सुमंगल मूल । बिप्रन्ह कहेउ बिदेह सन जानि सगुन अनुकुल ॥ ३१२ ॥



Chaupai / चोपाई


उपरोहितहि कहेउ नरनाहा । अब बिलंब कर कारनु काहा ॥ सतानंद तब सचिव बोलाए । मंगल सकल साजि सब ल्याए ॥


संख निसान पनव बहु बाजे । मंगल कलस सगुन सुभ साजे ॥ सुभग सुआसिनि गावहिं गीता । करहिं बेद धुनि बिप्र पुनीता ॥


लेन चले सादर एहि भाँती । गए जहाँ जनवास बराती ॥ कोसलपति कर देखि समाजू । अति लघु लाग तिन्हहि सुरराजू ॥


भयउ समउ अब धारिअ पाऊ । यह सुनि परा निसानहिं घाऊ ॥ गुरहि पूछि करि कुल बिधि राजा । चले संग मुनि साधु समाजा ॥



Doha / दोहा


दो. भाग्य बिभव अवधेस कर देखि देव ब्रह्मादि । लगे सराहन सहस मुख जानि जनम निज बादि ॥ ३१३ ॥



Chaupai / चोपाई


सुरन्ह सुमंगल अवसरु जाना । बरषहिं सुमन बजाइ निसाना ॥ सिव ब्रह्मादिक बिबुध बरूथा । चढ़े बिमानन्हि नाना जूथा ॥


प्रेम पुलक तन हृदयँ उछाहू । चले बिलोकन राम बिआहू ॥ देखि जनकपुरु सुर अनुरागे । निज निज लोक सबहिं लघु लागे ॥


चितवहिं चकित बिचित्र बिताना । रचना सकल अलौकिक नाना ॥ नगर नारि नर रूप निधाना । सुघर सुधरम सुसील सुजाना ॥


तिन्हहि देखि सब सुर सुरनारीं । भए नखत जनु बिधु उजिआरीं ॥ बिधिहि भयह आचरजु बिसेषी । निज करनी कछु कतहुँ न देखी ॥



Doha / दोहा


दो. सिवँ समुझाए देव सब जनि आचरज भुलाहु । हृदयँ बिचारहु धीर धरि सिय रघुबीर बिआहु ॥ ३१४ ॥



Chaupai / चोपाई


जिन्ह कर नामु लेत जग माहीं । सकल अमंगल मूल नसाहीं ॥ करतल होहिं पदारथ चारी । तेइ सिय रामु कहेउ कामारी ॥


एहि बिधि संभु सुरन्ह समुझावा । पुनि आगें बर बसह चलावा ॥ देवन्ह देखे दसरथु जाता । महामोद मन पुलकित गाता ॥


साधु समाज संग महिदेवा । जनु तनु धरें करहिं सुख सेवा ॥ सोहत साथ सुभग सुत चारी । जनु अपबरग सकल तनुधारी ॥


मरकत कनक बरन बर जोरी । देखि सुरन्ह भै प्रीति न थोरी ॥ पुनि रामहि बिलोकि हियँ हरषे । नृपहि सराहि सुमन तिन्ह बरषे ॥



Doha / दोहा


दो. राम रूपु नख सिख सुभग बारहिं बार निहारि । पुलक गात लोचन सजल उमा समेत पुरारि ॥ ३१५ ॥



Chaupai / चोपाई


केकि कंठ दुति स्यामल अंगा । तड़ित बिनिंदक बसन सुरंगा ॥ ब्याह बिभूषन बिबिध बनाए । मंगल सब सब भाँति सुहाए ॥


सरद बिमल बिधु बदनु सुहावन । नयन नवल राजीव लजावन ॥ सकल अलौकिक सुंदरताई । कहि न जाइ मनहीं मन भाई ॥


बंधु मनोहर सोहहिं संगा । जात नचावत चपल तुरंगा ॥ राजकुअँर बर बाजि देखावहिं । बंस प्रसंसक बिरिद सुनावहिं ॥


जेहि तुरंग पर रामु बिराजे । गति बिलोकि खगनायकु लाजे ॥ कहि न जाइ सब भाँति सुहावा । बाजि बेषु जनु काम बनावा ॥



Chanda / छन्द


छं. जनु बाजि बेषु बनाइ मनसिजु राम हित अति सोहई । आपनें बय बल रूप गुन गति सकल भुवन बिमोहई ॥ जगमगत जीनु जराव जोति सुमोति मनि मानिक लगे । किंकिनि ललाम लगामु ललित बिलोकि सुर नर मुनि ठगे ॥



Doha / दोहा


दो. प्रभु मनसहिं लयलीन मनु चलत बाजि छबि पाव । भूषित उड़गन तड़ित घनु जनु बर बरहि नचाव ॥ ३१६ ॥



Chaupai / चोपाई


जेहिं बर बाजि रामु असवारा । तेहि सारदउ न बरनै पारा ॥ संकरु राम रूप अनुरागे । नयन पंचदस अति प्रिय लागे ॥


हरि हित सहित रामु जब जोहे । रमा समेत रमापति मोहे ॥ निरखि राम छबि बिधि हरषाने । आठइ नयन जानि पछिताने ॥


सुर सेनप उर बहुत उछाहू । बिधि ते डेवढ़ लोचन लाहू ॥ रामहि चितव सुरेस सुजाना । गौतम श्रापु परम हित माना ॥


देव सकल सुरपतिहि सिहाहीं । आजु पुरंदर सम कोउ नाहीं ॥ मुदित देवगन रामहि देखी । नृपसमाज दुहुँ हरषु बिसेषी ॥



Chanda / छन्द


छं. अति हरषु राजसमाज दुहु दिसि दुंदुभीं बाजहिं घनी । बरषहिं सुमन सुर हरषि कहि जय जयति जय रघुकुलमनी ॥ एहि भाँति जानि बरात आवत बाजने बहु बाजहीं । रानि सुआसिनि बोलि परिछनि हेतु मंगल साजहीं ॥



Doha / दोहा


दो. सजि आरती अनेक बिधि मंगल सकल सँवारि । चलीं मुदित परिछनि करन गजगामिनि बर नारि ॥ ३१७ ॥



Chaupai / चोपाई


बिधुबदनीं सब सब मृगलोचनि । सब निज तन छबि रति मदु मोचनि ॥ पहिरें बरन बरन बर चीरा । सकल बिभूषन सजें सरीरा ॥


सकल सुमंगल अंग बनाएँ । करहिं गान कलकंठि लजाएँ ॥ कंकन किंकिनि नूपुर बाजहिं । चालि बिलोकि काम गज लाजहिं ॥


बाजहिं बाजने बिबिध प्रकारा । नभ अरु नगर सुमंगलचारा ॥ सची सारदा रमा भवानी । जे सुरतिय सुचि सहज सयानी ॥


कपट नारि बर बेष बनाई । मिलीं सकल रनिवासहिं जाई ॥ करहिं गान कल मंगल बानीं । हरष बिबस सब काहुँ न जानी ॥



Chanda / छन्द


छं. को जान केहि आनंद बस सब ब्रह्मु बर परिछन चली । कल गान मधुर निसान बरषहिं सुमन सुर सोभा भली ॥



Doha / दोहा


दो. जो सुख भा सिय मातु मन देखि राम बर बेषु । सो न सकहिं कहि कलप सत सहस सारदा सेषु ॥ ३१८ ॥



Chaupai / चोपाई


नयन नीरु हटि मंगल जानी । परिछनि करहिं मुदित मन रानी ॥ बेद बिहित अरु कुल आचारू । कीन्ह भली बिधि सब ब्यवहारू ॥


पंच सबद धुनि मंगल गाना । पट पाँवड़े परहिं बिधि नाना ॥ करि आरती अरघु तिन्ह दीन्हा । राम गमनु मंडप तब कीन्हा ॥


दसरथु सहित समाज बिराजे । बिभव बिलोकि लोकपति लाजे ॥ समयँ समयँ सुर बरषहिं फूला । सांति पढ़हिं महिसुर अनुकूला ॥


नभ अरु नगर कोलाहल होई । आपनि पर कछु सुनइ न कोई ॥ एहि बिधि रामु मंडपहिं आए । अरघु देइ आसन बैठाए ॥



Chanda / छन्द


छं. बैठारि आसन आरती करि निरखि बरु सुखु पावहीं ॥ मनि बसन भूषन भूरि वारहिं नारि मंगल गावहीं ॥ ब्रह्मादि सुरबर बिप्र बेष बनाइ कौतुक देखहीं । अवलोकि रघुकुल कमल रबि छबि सुफल जीवन लेखहीं ॥



Doha / दोहा


दो. नाऊ बारी भाट नट राम निछावरि पाइ । मुदित असीसहिं नाइ सिर हरषु न हृदयँ समाइ ॥ ३१९ ॥



Chaupai / चोपाई


मिले जनकु दसरथु अति प्रीतीं । करि बैदिक लौकिक सब रीतीं ॥ मिलत महा दोउ राज बिराजे । उपमा खोजि खोजि कबि लाजे ॥


लही न कतहुँ हारि हियँ मानी । इन्ह सम एइ उपमा उर आनी ॥ सामध देखि देव अनुरागे । सुमन बरषि जसु गावन लागे ॥


जगु बिरंचि उपजावा जब तें । देखे सुने ब्याह बहु तब तें ॥ सकल भाँति सम साजु समाजू । सम समधी देखे हम आजू ॥


देव गिरा सुनि सुंदर साँची । प्रीति अलौकिक दुहु दिसि माची ॥ देत पाँवड़े अरघु सुहाए । सादर जनकु मंडपहिं ल्याए ॥



Chanda / छन्द


छं. मंडपु बिलोकि बिचीत्र रचनाँ रुचिरताँ मुनि मन हरे ॥ निज पानि जनक सुजान सब कहुँ आनि सिंघासन धरे ॥ कुल इष्ट सरिस बसिष्ट पूजे बिनय करि आसिष लही । कौसिकहि पूजत परम प्रीति कि रीति तौ न परै कही ॥



Doha / दोहा


दो. बामदेव आदिक रिषय पूजे मुदित महीस । दिए दिब्य आसन सबहि सब सन लही असीस ॥ ३२० ॥



Chaupai / चोपाई


बहुरि कीन्ह कोसलपति पूजा । जानि ईस सम भाउ न दूजा ॥ कीन्ह जोरि कर बिनय बड़ाई । कहि निज भाग्य बिभव बहुताई ॥


पूजे भूपति सकल बराती । समधि सम सादर सब भाँती ॥ आसन उचित दिए सब काहू । कहौं काह मूख एक उछाहू ॥


सकल बरात जनक सनमानी । दान मान बिनती बर बानी ॥ बिधि हरि हरु दिसिपति दिनराऊ । जे जानहिं रघुबीर प्रभाऊ ॥


कपट बिप्र बर बेष बनाएँ । कौतुक देखहिं अति सचु पाएँ ॥ पूजे जनक देव सम जानें । दिए सुआसन बिनु पहिचानें ॥



Chanda / छन्द


छं. पहिचान को केहि जान सबहिं अपान सुधि भोरी भई । आनंद कंदु बिलोकि दूलहु उभय दिसि आनँद मई ॥ सुर लखे राम सुजान पूजे मानसिक आसन दए । अवलोकि सीलु सुभाउ प्रभु को बिबुध मन प्रमुदित भए ॥



Doha / दोहा


दो. रामचंद्र मुख चंद्र छबि लोचन चारु चकोर । करत पान सादर सकल प्रेमु प्रमोदु न थोर ॥ ३२१ ॥



Chaupai / चोपाई


समउ बिलोकि बसिष्ठ बोलाए । सादर सतानंदु सुनि आए ॥ बेगि कुअँरि अब आनहु जाई । चले मुदित मुनि आयसु पाई ॥


रानी सुनि उपरोहित बानी । प्रमुदित सखिन्ह समेत सयानी ॥ बिप्र बधू कुलबृद्ध बोलाईं । करि कुल रीति सुमंगल गाईं ॥


नारि बेष जे सुर बर बामा । सकल सुभायँ सुंदरी स्यामा ॥ तिन्हहि देखि सुखु पावहिं नारीं । बिनु पहिचानि प्रानहु ते प्यारीं ॥


बार बार सनमानहिं रानी । उमा रमा सारद सम जानी ॥ सीय सँवारि समाजु बनाई । मुदित मंडपहिं चलीं लवाई ॥



Chanda / छन्द


छं. चलि ल्याइ सीतहि सखीं सादर सजि सुमंगल भामिनीं । नवसप्त साजें सुंदरी सब मत्त कुंजर गामिनीं ॥ कल गान सुनि मुनि ध्यान त्यागहिं काम कोकिल लाजहीं । मंजीर नूपुर कलित कंकन ताल गती बर बाजहीं ॥



Doha / दोहा


दो. सोहति बनिता बृंद महुँ सहज सुहावनि सीय । छबि ललना गन मध्य जनु सुषमा तिय कमनीय ॥ ३२२ ॥



Chaupai / चोपाई


सिय सुंदरता बरनि न जाई । लघु मति बहुत मनोहरताई ॥ आवत दीखि बरातिन्ह सीता ॥ रूप रासि सब भाँति पुनीता ॥


सबहि मनहिं मन किए प्रनामा । देखि राम भए पूरनकामा ॥ हरषे दसरथ सुतन्ह समेता । कहि न जाइ उर आनँदु जेता ॥


सुर प्रनामु करि बरसहिं फूला । मुनि असीस धुनि मंगल मूला ॥ गान निसान कोलाहलु भारी । प्रेम प्रमोद मगन नर नारी ॥


एहि बिधि सीय मंडपहिं आई । प्रमुदित सांति पढ़हिं मुनिराई ॥ तेहि अवसर कर बिधि ब्यवहारू । दुहुँ कुलगुर सब कीन्ह अचारू ॥



Chanda / छन्द


छं. आचारु करि गुर गौरि गनपति मुदित बिप्र पुजावहीं । सुर प्रगटि पूजा लेहिं देहिं असीस अति सुखु पावहीं ॥ मधुपर्क मंगल द्रब्य जो जेहि समय मुनि मन महुँ चहैं । भरे कनक कोपर कलस सो सब लिएहिं परिचारक रहैं ॥ १ ॥


कुल रीति प्रीति समेत रबि कहि देत सबु सादर कियो । एहि भाँति देव पुजाइ सीतहि सुभग सिंघासनु दियो ॥ सिय राम अवलोकनि परसपर प्रेम काहु न लखि परै ॥ मन बुद्धि बर बानी अगोचर प्रगट कबि कैसें करै ॥ २ ॥



Doha / दोहा


दो. होम समय तनु धरि अनलु अति सुख आहुति लेहिं । बिप्र बेष धरि बेद सब कहि बिबाह बिधि देहिं ॥ ३२३ ॥



Chaupai / चोपाई


जनक पाटमहिषी जग जानी । सीय मातु किमि जाइ बखानी ॥ सुजसु सुकृत सुख सुदंरताई । सब समेटि बिधि रची बनाई ॥


समउ जानि मुनिबरन्ह बोलाई । सुनत सुआसिनि सादर ल्याई ॥ जनक बाम दिसि सोह सुनयना । हिमगिरि संग बनि जनु मयना ॥


कनक कलस मनि कोपर रूरे । सुचि सुंगध मंगल जल पूरे ॥ निज कर मुदित रायँ अरु रानी । धरे राम के आगें आनी ॥


पढ़हिं बेद मुनि मंगल बानी । गगन सुमन झरि अवसरु जानी ॥ बरु बिलोकि दंपति अनुरागे । पाय पुनीत पखारन लागे ॥



Chanda / छन्द


छं. लागे पखारन पाय पंकज प्रेम तन पुलकावली । नभ नगर गान निसान जय धुनि उमगि जनु चहुँ दिसि चली ॥ जे पद सरोज मनोज अरि उर सर सदैव बिराजहीं । जे सकृत सुमिरत बिमलता मन सकल कलि मल भाजहीं ॥ १ ॥


जे परसि मुनिबनिता लही गति रही जो पातकमई । मकरंदु जिन्ह को संभु सिर सुचिता अवधि सुर बरनई ॥ करि मधुप मन मुनि जोगिजन जे सेइ अभिमत गति लहैं । ते पद पखारत भाग्यभाजनु जनकु जय जय सब कहै ॥ २ ॥


बर कुअँरि करतल जोरि साखोचारु दोउ कुलगुर करैं । भयो पानिगहनु बिलोकि बिधि सुर मनुज मुनि आँनद भरैं ॥ सुखमूल दूलहु देखि दंपति पुलक तन हुलस्यो हियो । करि लोक बेद बिधानु कन्यादानु नृपभूषन कियो ॥ ३ ॥


हिमवंत जिमि गिरिजा महेसहि हरिहि श्री सागर दई । तिमि जनक रामहि सिय समरपी बिस्व कल कीरति नई ॥ क्यों करै बिनय बिदेहु कियो बिदेहु मूरति सावँरी । करि होम बिधिवत गाँठि जोरी होन लागी भावँरी ॥ ४ ॥



Doha / दोहा


दो. जय धुनि बंदी बेद धुनि मंगल गान निसान । सुनि हरषहिं बरषहिं बिबुध सुरतरु सुमन सुजान ॥ ३२४ ॥



Chaupai / चोपाई


कुअँरु कुअँरि कल भावँरि देहीं ॥ नयन लाभु सब सादर लेहीं ॥ जाइ न बरनि मनोहर जोरी । जो उपमा कछु कहौं सो थोरी ॥


राम सीय सुंदर प्रतिछाहीं । जगमगात मनि खंभन माहीं । मनहुँ मदन रति धरि बहु रूपा । देखत राम बिआहु अनूपा ॥


दरस लालसा सकुच न थोरी । प्रगटत दुरत बहोरि बहोरी ॥ भए मगन सब देखनिहारे । जनक समान अपान बिसारे ॥


प्रमुदित मुनिन्ह भावँरी फेरी । नेगसहित सब रीति निबेरीं ॥ राम सीय सिर सेंदुर देहीं । सोभा कहि न जाति बिधि केहीं ॥


अरुन पराग जलजु भरि नीकें । ससिहि भूष अहि लोभ अमी कें ॥ बहुरि बसिष्ठ दीन्ह अनुसासन । बरु दुलहिनि बैठे एक आसन ॥



Chanda / छन्द


छं. बैठे बरासन रामु जानकि मुदित मन दसरथु भए । तनु पुलक पुनि पुनि देखि अपनें सुकृत सुरतरु फल नए ॥ भरि भुवन रहा उछाहु राम बिबाहु भा सबहीं कहा । केहि भाँति बरनि सिरात रसना एक यहु मंगलु महा ॥ १ ॥


तब जनक पाइ बसिष्ठ आयसु ब्याह साज सँवारि कै । माँडवी श्रुतिकीरति उरमिला कुअँरि लईं हँकारि के ॥ कुसकेतु कन्या प्रथम जो गुन सील सुख सोभामई । सब रीति प्रीति समेत करि सो ब्याहि नृप भरतहि दई ॥ २ ॥


जानकी लघु भगिनी सकल सुंदरि सिरोमनि जानि कै । सो तनय दीन्ही ब्याहि लखनहि सकल बिधि सनमानि कै ॥ जेहि नामु श्रुतकीरति सुलोचनि सुमुखि सब गुन आगरी । सो दई रिपुसूदनहि भूपति रूप सील उजागरी ॥ ३ ॥


अनुरुप बर दुलहिनि परस्पर लखि सकुच हियँ हरषहीं । सब मुदित सुंदरता सराहहिं सुमन सुर गन बरषहीं ॥ सुंदरी सुंदर बरन्ह सह सब एक मंडप राजहीं । जनु जीव उर चारिउ अवस्था बिमुन सहित बिराजहीं ॥ ४ ॥



Doha / दोहा


दो. मुदित अवधपति सकल सुत बधुन्ह समेत निहारि । जनु पार महिपाल मनि क्रियन्ह सहित फल चारि ॥ ३२५ ॥



Chaupai / चोपाई


जसि रघुबीर ब्याह बिधि बरनी । सकल कुअँर ब्याहे तेहिं करनी ॥ कहि न जाइ कछु दाइज भूरी । रहा कनक मनि मंडपु पूरी ॥


कंबल बसन बिचित्र पटोरे । भाँति भाँति बहु मोल न थोरे ॥ गज रथ तुरग दास अरु दासी । धेनु अलंकृत कामदुहा सी ॥


बस्तु अनेक करिअ किमि लेखा । कहि न जाइ जानहिं जिन्ह देखा ॥ लोकपाल अवलोकि सिहाने । लीन्ह अवधपति सबु सुखु माने ॥


दीन्ह जाचकन्हि जो जेहि भावा । उबरा सो जनवासेहिं आवा ॥ तब कर जोरि जनकु मृदु बानी । बोले सब बरात सनमानी ॥



Chanda / छन्द


छं. सनमानि सकल बरात आदर दान बिनय बड़ाइ कै । प्रमुदित महा मुनि बृंद बंदे पूजि प्रेम लड़ाइ कै ॥ सिरु नाइ देव मनाइ सब सन कहत कर संपुट किएँ । सुर साधु चाहत भाउ सिंधु कि तोष जल अंजलि दिएँ ॥ १ ॥


कर जोरि जनकु बहोरि बंधु समेत कोसलराय सों । बोले मनोहर बयन सानि सनेह सील सुभाय सों ॥ संबंध राजन रावरें हम बड़े अब सब बिधि भए । एहि राज साज समेत सेवक जानिबे बिनु गथ लए ॥ २ ॥


ए दारिका परिचारिका करि पालिबीं करुना नई । अपराधु छमिबो बोलि पठए बहुत हौं ढीट्यो कई ॥ पुनि भानुकुलभूषन सकल सनमान निधि समधी किए । कहि जाति नहिं बिनती परस्पर प्रेम परिपूरन हिए ॥ ३ ॥


बृंदारका गन सुमन बरिसहिं राउ जनवासेहि चले । दुंदुभी जय धुनि बेद धुनि नभ नगर कौतूहल भले ॥ तब सखीं मंगल गान करत मुनीस आयसु पाइ कै । दूलह दुलहिनिन्ह सहित सुंदरि चलीं कोहबर ल्याइ कै ॥ ४ ॥



Doha / दोहा


दो. पुनि पुनि रामहि चितव सिय सकुचति मनु सकुचै न । हरत मनोहर मीन छबि प्रेम पिआसे नैन ॥ ३२६ ॥



Chaupai / चोपाई


स्याम सरीरु सुभायँ सुहावन । सोभा कोटि मनोज लजावन ॥ जावक जुत पद कमल सुहाए । मुनि मन मधुप रहत जिन्ह छाए ॥


पीत पुनीत मनोहर धोती । हरति बाल रबि दामिनि जोती ॥ कल किंकिनि कटि सूत्र मनोहर । बाहु बिसाल बिभूषन सुंदर ॥


पीत जनेउ महाछबि देई । कर मुद्रिका चोरि चितु लेई ॥ सोहत ब्याह साज सब साजे । उर आयत उरभूषन राजे ॥


पिअर उपरना काखासोती । दुहुँ आँचरन्हि लगे मनि मोती ॥ नयन कमल कल कुंडल काना । बदनु सकल सौंदर्ज निधाना ॥


सुंदर भृकुटि मनोहर नासा । भाल तिलकु रुचिरता निवासा ॥ सोहत मौरु मनोहर माथे । मंगलमय मुकुता मनि गाथे ॥



Chanda / छन्द


छं. गाथे महामनि मौर मंजुल अंग सब चित चोरहीं । पुर नारि सुर सुंदरीं बरहि बिलोकि सब तिन तोरहीं ॥ मनि बसन भूषन वारि आरति करहिं मंगल गावहिं । सुर सुमन बरिसहिं सूत मागध बंदि सुजसु सुनावहीं ॥ १ ॥


कोहबरहिं आने कुँअर कुँअरि सुआसिनिन्ह सुख पाइ कै । अति प्रीति लौकिक रीति लागीं करन मंगल गाइ कै ॥ लहकौरि गौरि सिखाव रामहि सीय सन सारद कहैं । रनिवासु हास बिलास रस बस जन्म को फलु सब लहैं ॥ २ ॥


निज पानि मनि महुँ देखिअति मूरति सुरूपनिधान की । चालति न भुजबल्ली बिलोकनि बिरह भय बस जानकी ॥ कौतुक बिनोद प्रमोदु प्रेमु न जाइ कहि जानहिं अलीं । बर कुअँरि सुंदर सकल सखीं लवाइ जनवासेहि चलीं ॥ ३ ॥


तेहि समय सुनिअ असीस जहँ तहँ नगर नभ आनँदु महा । चिरु जिअहुँ जोरीं चारु चारयो मुदित मन सबहीं कहा ॥ जोगीन्द्र सिद्ध मुनीस देव बिलोकि प्रभु दुंदुभि हनी । चले हरषि बरषि प्रसून निज निज लोक जय जय जय भनी ॥ ४ ॥



Doha / दोहा


दो. सहित बधूटिन्ह कुअँर सब तब आए पितु पास । सोभा मंगल मोद भरि उमगेउ जनु जनवास ॥ ३२७ ॥



Chaupai / चोपाई


पुनि जेवनार भई बहु भाँती । पठए जनक बोलाइ बराती ॥ परत पाँवड़े बसन अनूपा । सुतन्ह समेत गवन कियो भूपा ॥


सादर सबके पाय पखारे । जथाजोगु पीढ़न्ह बैठारे ॥ धोए जनक अवधपति चरना । सीलु सनेहु जाइ नहिं बरना ॥


बहुरि राम पद पंकज धोए । जे हर हृदय कमल महुँ गोए ॥ तीनिउ भाई राम सम जानी । धोए चरन जनक निज पानी ॥


आसन उचित सबहि नृप दीन्हे । बोलि सूपकारी सब लीन्हे ॥ सादर लगे परन पनवारे । कनक कील मनि पान सँवारे ॥



Doha / दोहा


दो. सूपोदन सुरभी सरपि सुंदर स्वादु पुनीत । छन महुँ सब कें परुसि गे चतुर सुआर बिनीत ॥ ३२८ ॥



Chaupai / चोपाई


पंच कवल करि जेवन लागे । गारि गान सुनि अति अनुरागे ॥ भाँति अनेक परे पकवाने । सुधा सरिस नहिं जाहिं बखाने ॥


परुसन लगे सुआर सुजाना । बिंजन बिबिध नाम को जाना ॥ चारि भाँति भोजन बिधि गाई । एक एक बिधि बरनि न जाई ॥


छरस रुचिर बिंजन बहु जाती । एक एक रस अगनित भाँती ॥ जेवँत देहिं मधुर धुनि गारी । लै लै नाम पुरुष अरु नारी ॥


समय सुहावनि गारि बिराजा । हँसत राउ सुनि सहित समाजा ॥ एहि बिधि सबहीं भौजनु कीन्हा । आदर सहित आचमनु दीन्हा ॥



Doha / दोहा


दो. देइ पान पूजे जनक दसरथु सहित समाज । जनवासेहि गवने मुदित सकल भूप सिरताज ॥ ३२९ ॥



Chaupai / चोपाई


नित नूतन मंगल पुर माहीं । निमिष सरिस दिन जामिनि जाहीं ॥ बड़े भोर भूपतिमनि जागे । जाचक गुन गन गावन लागे ॥


देखि कुअँर बर बधुन्ह समेता । किमि कहि जात मोदु मन जेता ॥ प्रातक्रिया करि गे गुरु पाहीं । महाप्रमोदु प्रेमु मन माहीं ॥


करि प्रनाम पूजा कर जोरी । बोले गिरा अमिअँ जनु बोरी ॥ तुम्हरी कृपाँ सुनहु मुनिराजा । भयउँ आजु मैं पूरनकाजा ॥


अब सब बिप्र बोलाइ गोसाईं । देहु धेनु सब भाँति बनाई ॥ सुनि गुर करि महिपाल बड़ाई । पुनि पठए मुनि बृंद बोलाई ॥



Doha / दोहा


दो. बामदेउ अरु देवरिषि बालमीकि जाबालि । आए मुनिबर निकर तब कौसिकादि तपसालि ॥ ३३० ॥



Chaupai / चोपाई


दंड प्रनाम सबहि नृप कीन्हे । पूजि सप्रेम बरासन दीन्हे ॥ चारि लच्छ बर धेनु मगाई । कामसुरभि सम सील सुहाई ॥


सब बिधि सकल अलंकृत कीन्हीं । मुदित महिप महिदेवन्ह दीन्हीं ॥ करत बिनय बहु बिधि नरनाहू । लहेउँ आजु जग जीवन लाहू ॥


पाइ असीस महीसु अनंदा । लिए बोलि पुनि जाचक बृंदा ॥ कनक बसन मनि हय गय स्यंदन । दिए बूझि रुचि रबिकुलनंदन ॥


चले पढ़त गावत गुन गाथा । जय जय जय दिनकर कुल नाथा ॥ एहि बिधि राम बिआह उछाहू । सकइ न बरनि सहस मुख जाहू ॥



Doha / दोहा


दो. बार बार कौसिक चरन सीसु नाइ कह राउ । यह सबु सुखु मुनिराज तव कृपा कटाच्छ पसाउ ॥ ३३१ ॥



Chaupai / चोपाई


जनक सनेहु सीलु करतूती । नृपु सब भाँति सराह बिभूती ॥ दिन उठि बिदा अवधपति मागा । राखहिं जनकु सहित अनुरागा ॥


नित नूतन आदरु अधिकाई । दिन प्रति सहस भाँति पहुनाई ॥ नित नव नगर अनंद उछाहू । दसरथ गवनु सोहाइ न काहू ॥


बहुत दिवस बीते एहि भाँती । जनु सनेह रजु बँधे बराती ॥ कौसिक सतानंद तब जाई । कहा बिदेह नृपहि समुझाई ॥


अब दसरथ कहँ आयसु देहू । जद्यपि छाड़ि न सकहु सनेहू ॥ भलेहिं नाथ कहि सचिव बोलाए । कहि जय जीव सीस तिन्ह नाए ॥



Doha / दोहा


दो. अवधनाथु चाहत चलन भीतर करहु जनाउ । भए प्रेमबस सचिव सुनि बिप्र सभासद राउ ॥ ३३२ ॥



Chaupai / चोपाई


पुरबासी सुनि चलिहि बराता । बूझत बिकल परस्पर बाता ॥ सत्य गवनु सुनि सब बिलखाने । मनहुँ साँझ सरसिज सकुचाने ॥


जहँ जहँ आवत बसे बराती । तहँ तहँ सिद्ध चला बहु भाँती ॥ बिबिध भाँति मेवा पकवाना । भोजन साजु न जाइ बखाना ॥


भरि भरि बसहँ अपार कहारा । पठई जनक अनेक सुसारा ॥ तुरग लाख रथ सहस पचीसा । सकल सँवारे नख अरु सीसा ॥


मत्त सहस दस सिंधुर साजे । जिन्हहि देखि दिसिकुंजर लाजे ॥ कनक बसन मनि भरि भरि जाना । महिषीं धेनु बस्तु बिधि नाना ॥



Doha / दोहा


दो. दाइज अमित न सकिअ कहि दीन्ह बिदेहँ बहोरि । जो अवलोकत लोकपति लोक संपदा थोरि ॥ ३३३ ॥



Chaupai / चोपाई


सबु समाजु एहि भाँति बनाई । जनक अवधपुर दीन्ह पठाई ॥ चलिहि बरात सुनत सब रानीं । बिकल मीनगन जनु लघु पानीं ॥


पुनि पुनि सीय गोद करि लेहीं । देइ असीस सिखावनु देहीं ॥ होएहु संतत पियहि पिआरी । चिरु अहिबात असीस हमारी ॥


सासु ससुर गुर सेवा करेहू । पति रुख लखि आयसु अनुसरेहू ॥ अति सनेह बस सखीं सयानी । नारि धरम सिखवहिं मृदु बानी ॥


सादर सकल कुअँरि समुझाई । रानिन्ह बार बार उर लाई ॥ बहुरि बहुरि भेटहिं महतारीं । कहहिं बिरंचि रचीं कत नारीं ॥



Doha / दोहा


दो. तेहि अवसर भाइन्ह सहित रामु भानु कुल केतु । चले जनक मंदिर मुदित बिदा करावन हेतु ॥ ३३४ ॥



Chaupai / चोपाई


चारिअ भाइ सुभायँ सुहाए । नगर नारि नर देखन धाए ॥ कोउ कह चलन चहत हहिं आजू । कीन्ह बिदेह बिदा कर साजू ॥


लेहु नयन भरि रूप निहारी । प्रिय पाहुने भूप सुत चारी ॥ को जानै केहि सुकृत सयानी । नयन अतिथि कीन्हे बिधि आनी ॥


मरनसीलु जिमि पाव पिऊषा । सुरतरु लहै जनम कर भूखा ॥ पाव नारकी हरिपदु जैसें । इन्ह कर दरसनु हम कहँ तैसे ॥


निरखि राम सोभा उर धरहू । निज मन फनि मूरति मनि करहू ॥ एहि बिधि सबहि नयन फलु देता । गए कुअँर सब राज निकेता ॥



Doha / दोहा


दो. रूप सिंधु सब बंधु लखि हरषि उठा रनिवासु । करहि निछावरि आरती महा मुदित मन सासु ॥ ३३५ ॥



Chaupai / चोपाई


देखि राम छबि अति अनुरागीं । प्रेमबिबस पुनि पुनि पद लागीं ॥ रही न लाज प्रीति उर छाई । सहज सनेहु बरनि किमि जाई ॥


भाइन्ह सहित उबटि अन्हवाए । छरस असन अति हेतु जेवाँए ॥ बोले रामु सुअवसरु जानी । सील सनेह सकुचमय बानी ॥


राउ अवधपुर चहत सिधाए । बिदा होन हम इहाँ पठाए ॥ मातु मुदित मन आयसु देहू । बालक जानि करब नित नेहू ॥


सुनत बचन बिलखेउ रनिवासू । बोलि न सकहिं प्रेमबस सासू ॥ हृदयँ लगाइ कुअँरि सब लीन्ही । पतिन्ह सौंपि बिनती अति कीन्ही ॥



Chanda / छन्द


छं. करि बिनय सिय रामहि समरपी जोरि कर पुनि पुनि कहै । बलि जाँउ तात सुजान तुम्ह कहुँ बिदित गति सब की अहै ॥ परिवार पुरजन मोहि राजहि प्रानप्रिय सिय जानिबी । तुलसीस सीलु सनेहु लखि निज किंकरी करि मानिबी ॥



Sortha/ सोरठा


सो. तुम्ह परिपूरन काम जान सिरोमनि भावप्रिय । जन गुन गाहक राम दोष दलन करुनायतन ॥ ३३६ ॥



Chaupai / चोपाई


अस कहि रही चरन गहि रानी । प्रेम पंक जनु गिरा समानी ॥ सुनि सनेहसानी बर बानी । बहुबिधि राम सासु सनमानी ॥


राम बिदा मागत कर जोरी । कीन्ह प्रनामु बहोरि बहोरी ॥ पाइ असीस बहुरि सिरु नाई । भाइन्ह सहित चले रघुराई ॥


मंजु मधुर मूरति उर आनी । भई सनेह सिथिल सब रानी ॥ पुनि धीरजु धरि कुअँरि हँकारी । बार बार भेटहिं महतारीं ॥


पहुँचावहिं फिरि मिलहिं बहोरी । बढ़ी परस्पर प्रीति न थोरी ॥ पुनि पुनि मिलत सखिन्ह बिलगाई । बाल बच्छ जिमि धेनु लवाई ॥



Doha / दोहा


दो. प्रेमबिबस नर नारि सब सखिन्ह सहित रनिवासु । मानहुँ कीन्ह बिदेहपुर करुनाँ बिरहँ निवासु ॥ ३३७ ॥



Chaupai / चोपाई


सुक सारिका जानकी ज्याए । कनक पिंजरन्हि राखि पढ़ाए ॥ ब्याकुल कहहिं कहाँ बैदेही । सुनि धीरजु परिहरइ न केही ॥


भए बिकल खग मृग एहि भाँति । मनुज दसा कैसें कहि जाती ॥ बंधु समेत जनकु तब आए । प्रेम उमगि लोचन जल छाए ॥


सीय बिलोकि धीरता भागी । रहे कहावत परम बिरागी ॥ लीन्हि राँय उर लाइ जानकी । मिटी महामरजाद ग्यान की ॥


समुझावत सब सचिव सयाने । कीन्ह बिचारु न अवसर जाने ॥ बारहिं बार सुता उर लाई । सजि सुंदर पालकीं मगाई ॥



Doha / दोहा


दो. प्रेमबिबस परिवारु सबु जानि सुलगन नरेस । कुँअरि चढ़ाई पालकिन्ह सुमिरे सिद्धि गनेस ॥ ३३८ ॥



Chaupai / चोपाई


बहुबिधि भूप सुता समुझाई । नारिधरमु कुलरीति सिखाई ॥ दासीं दास दिए बहुतेरे । सुचि सेवक जे प्रिय सिय केरे ॥


सीय चलत ब्याकुल पुरबासी । होहिं सगुन सुभ मंगल रासी ॥ भूसुर सचिव समेत समाजा । संग चले पहुँचावन राजा ॥


समय बिलोकि बाजने बाजे । रथ गज बाजि बरातिन्ह साजे ॥ दसरथ बिप्र बोलि सब लीन्हे । दान मान परिपूरन कीन्हे ॥


चरन सरोज धूरि धरि सीसा । मुदित महीपति पाइ असीसा ॥ सुमिरि गजाननु कीन्ह पयाना । मंगलमूल सगुन भए नाना ॥



Doha / दोहा


दो. सुर प्रसून बरषहि हरषि करहिं अपछरा गान । चले अवधपति अवधपुर मुदित बजाइ निसान ॥ ३३९ ॥



Chaupai / चोपाई


नृप करि बिनय महाजन फेरे । सादर सकल मागने टेरे ॥ भूषन बसन बाजि गज दीन्हे । प्रेम पोषि ठाढ़े सब कीन्हे ॥


बार बार बिरिदावलि भाषी । फिरे सकल रामहि उर राखी ॥ बहुरि बहुरि कोसलपति कहहीं । जनकु प्रेमबस फिरै न चहहीं ॥


पुनि कह भूपति बचन सुहाए । फिरिअ महीस दूरि बड़ि आए ॥ राउ बहोरि उतरि भए ठाढ़े । प्रेम प्रबाह बिलोचन बाढ़े ॥


तब बिदेह बोले कर जोरी । बचन सनेह सुधाँ जनु बोरी ॥ करौ कवन बिधि बिनय बनाई । महाराज मोहि दीन्हि बड़ाई ॥



Doha / दोहा


दो. कोसलपति समधी सजन सनमाने सब भाँति । मिलनि परसपर बिनय अति प्रीति न हृदयँ समाति ॥ ३४० ॥



Chaupai / चोपाई


मुनि मंडलिहि जनक सिरु नावा । आसिरबादु सबहि सन पावा ॥ सादर पुनि भेंटे जामाता । रूप सील गुन निधि सब भ्राता ॥


जोरि पंकरुह पानि सुहाए । बोले बचन प्रेम जनु जाए ॥ राम करौ केहि भाँति प्रसंसा । मुनि महेस मन मानस हंसा ॥


करहिं जोग जोगी जेहि लागी । कोहु मोहु ममता मदु त्यागी ॥ ब्यापकु ब्रह्मु अलखु अबिनासी । चिदानंदु निरगुन गुनरासी ॥


मन समेत जेहि जान न बानी । तरकि न सकहिं सकल अनुमानी ॥ महिमा निगमु नेति कहि कहई । जो तिहुँ काल एकरस रहई ॥



Doha / दोहा


दो. नयन बिषय मो कहुँ भयउ सो समस्त सुख मूल । सबइ लाभु जग जीव कहँ भएँ ईसु अनुकुल ॥ ३४१ ॥



Chaupai / चोपाई


सबहि भाँति मोहि दीन्हि बड़ाई । निज जन जानि लीन्ह अपनाई ॥ होहिं सहस दस सारद सेषा । करहिं कलप कोटिक भरि लेखा ॥


मोर भाग्य राउर गुन गाथा । कहि न सिराहिं सुनहु रघुनाथा ॥ मै कछु कहउँ एक बल मोरें । तुम्ह रीझहु सनेह सुठि थोरें ॥


बार बार मागउँ कर जोरें । मनु परिहरै चरन जनि भोरें ॥ सुनि बर बचन प्रेम जनु पोषे । पूरनकाम रामु परितोषे ॥


करि बर बिनय ससुर सनमाने । पितु कौसिक बसिष्ठ सम जाने ॥ बिनती बहुरि भरत सन कीन्ही । मिलि सप्रेमु पुनि आसिष दीन्ही ॥



Doha / दोहा


दो. मिले लखन रिपुसूदनहि दीन्हि असीस महीस । भए परस्पर प्रेमबस फिरि फिरि नावहिं सीस ॥ ३४२ ॥



Chaupai / चोपाई


बार बार करि बिनय बड़ाई । रघुपति चले संग सब भाई ॥ जनक गहे कौसिक पद जाई । चरन रेनु सिर नयनन्ह लाई ॥


सुनु मुनीस बर दरसन तोरें । अगमु न कछु प्रतीति मन मोरें ॥ जो सुखु सुजसु लोकपति चहहीं । करत मनोरथ सकुचत अहहीं ॥


सो सुखु सुजसु सुलभ मोहि स्वामी । सब सिधि तव दरसन अनुगामी ॥ कीन्हि बिनय पुनि पुनि सिरु नाई । फिरे महीसु आसिषा पाई ॥


चली बरात निसान बजाई । मुदित छोट बड़ सब समुदाई ॥ रामहि निरखि ग्राम नर नारी । पाइ नयन फलु होहिं सुखारी ॥



Doha / दोहा


दो. बीच बीच बर बास करि मग लोगन्ह सुख देत । अवध समीप पुनीत दिन पहुँची आइ जनेत ॥ ३४३ ॥



Chaupai / चोपाई


हने निसान पनव बर बाजे । भेरि संख धुनि हय गय गाजे ॥ झाँझि बिरव डिंडमीं सुहाई । सरस राग बाजहिं सहनाई ॥


पुर जन आवत अकनि बराता । मुदित सकल पुलकावलि गाता ॥ निज निज सुंदर सदन सँवारे । हाट बाट चौहट पुर द्वारे ॥


गलीं सकल अरगजाँ सिंचाई । जहँ तहँ चौकें चारु पुराई ॥ बना बजारु न जाइ बखाना । तोरन केतु पताक बिताना ॥


सफल पूगफल कदलि रसाला । रोपे बकुल कदंब तमाला ॥ लगे सुभग तरु परसत धरनी । मनिमय आलबाल कल करनी ॥



Doha / दोहा


दो. बिबिध भाँति मंगल कलस गृह गृह रचे सँवारि । सुर ब्रह्मादि सिहाहिं सब रघुबर पुरी निहारि ॥ ३४४ ॥



Chaupai / चोपाई


भूप भवन तेहि अवसर सोहा । रचना देखि मदन मनु मोहा ॥ मंगल सगुन मनोहरताई । रिधि सिधि सुख संपदा सुहाई ॥


जनु उछाह सब सहज सुहाए । तनु धरि धरि दसरथ दसरथ गृहँ छाए ॥ देखन हेतु राम बैदेही । कहहु लालसा होहि न केही ॥


जुथ जूथ मिलि चलीं सुआसिनि । निज छबि निदरहिं मदन बिलासनि ॥ सकल सुमंगल सजें आरती । गावहिं जनु बहु बेष भारती ॥


भूपति भवन कोलाहलु होई । जाइ न बरनि समउ सुखु सोई ॥ कौसल्यादि राम महतारीं । प्रेम बिबस तन दसा बिसारीं ॥



Doha / दोहा


दो. दिए दान बिप्रन्ह बिपुल पूजि गनेस पुरारी । प्रमुदित परम दरिद्र जनु पाइ पदारथ चारि ॥ ३४५ ॥



Chaupai / चोपाई


मोद प्रमोद बिबस सब माता । चलहिं न चरन सिथिल भए गाता ॥ राम दरस हित अति अनुरागीं । परिछनि साजु सजन सब लागीं ॥


बिबिध बिधान बाजने बाजे । मंगल मुदित सुमित्राँ साजे ॥ हरद दूब दधि पल्लव फूला । पान पूगफल मंगल मूला ॥


अच्छत अंकुर लोचन लाजा । मंजुल मंजरि तुलसि बिराजा ॥ छुहे पुरट घट सहज सुहाए । मदन सकुन जनु नीड़ बनाए ॥


सगुन सुंगध न जाहिं बखानी । मंगल सकल सजहिं सब रानी ॥ रचीं आरतीं बहुत बिधाना । मुदित करहिं कल मंगल गाना ॥



Doha / दोहा


दो. कनक थार भरि मंगलन्हि कमल करन्हि लिएँ मात । चलीं मुदित परिछनि करन पुलक पल्लवित गात ॥ ३४६ ॥



Chaupai / चोपाई


धूप धूम नभु मेचक भयऊ । सावन घन घमंडु जनु ठयऊ ॥ सुरतरु सुमन माल सुर बरषहिं । मनहुँ बलाक अवलि मनु करषहिं ॥


मंजुल मनिमय बंदनिवारे । मनहुँ पाकरिपु चाप सँवारे ॥ प्रगटहिं दुरहिं अटन्ह पर भामिनि । चारु चपल जनु दमकहिं दामिनि ॥


दुंदुभि धुनि घन गरजनि घोरा । जाचक चातक दादुर मोरा ॥ सुर सुगन्ध सुचि बरषहिं बारी । सुखी सकल ससि पुर नर नारी ॥


समउ जानी गुर आयसु दीन्हा । पुर प्रबेसु रघुकुलमनि कीन्हा ॥ सुमिरि संभु गिरजा गनराजा । मुदित महीपति सहित समाजा ॥



Doha / दोहा


दो. होहिं सगुन बरषहिं सुमन सुर दुंदुभीं बजाइ । बिबुध बधू नाचहिं मुदित मंजुल मंगल गाइ ॥ ३४७ ॥



Chaupai / चोपाई


मागध सूत बंदि नट नागर । गावहिं जसु तिहु लोक उजागर ॥ जय धुनि बिमल बेद बर बानी । दस दिसि सुनिअ सुमंगल सानी ॥


बिपुल बाजने बाजन लागे । नभ सुर नगर लोग अनुरागे ॥ बने बराती बरनि न जाहीं । महा मुदित मन सुख न समाहीं ॥


पुरबासिंह तब राय जोहारे । देखत रामहि भए सुखारे ॥ करहिं निछावरि मनिगन चीरा । बारि बिलोचन पुलक सरीरा ॥


आरति करहिं मुदित पुर नारी । हरषहिं निरखि कुँअर बर चारी ॥ सिबिका सुभग ओहार उघारी । देखि दुलहिनिन्ह होहिं सुखारी ॥



Doha / दोहा


दो. एहि बिधि सबही देत सुखु आए राजदुआर । मुदित मातु परुछनि करहिं बधुन्ह समेत कुमार ॥ ३४८ ॥



Chaupai / चोपाई


करहिं आरती बारहिं बारा । प्रेमु प्रमोदु कहै को पारा ॥ भूषन मनि पट नाना जाती ॥ करही निछावरि अगनित भाँती ॥


बधुन्ह समेत देखि सुत चारी । परमानंद मगन महतारी ॥ पुनि पुनि सीय राम छबि देखी ॥ मुदित सफल जग जीवन लेखी ॥


सखीं सीय मुख पुनि पुनि चाही । गान करहिं निज सुकृत सराही ॥ बरषहिं सुमन छनहिं छन देवा । नाचहिं गावहिं लावहिं सेवा ॥


देखि मनोहर चारिउ जोरीं । सारद उपमा सकल ढँढोरीं ॥ देत न बनहिं निपट लघु लागी । एकटक रहीं रूप अनुरागीं ॥



Doha / दोहा


दो. निगम नीति कुल रीति करि अरघ पाँवड़े देत । बधुन्ह सहित सुत परिछि सब चलीं लवाइ निकेत ॥ ३४९ ॥



Chaupai / चोपाई


चारि सिंघासन सहज सुहाए । जनु मनोज निज हाथ बनाए ॥ तिन्ह पर कुअँरि कुअँर बैठारे । सादर पाय पुनित पखारे ॥


धूप दीप नैबेद बेद बिधि । पूजे बर दुलहिनि मंगलनिधि ॥ बारहिं बार आरती करहीं । ब्यजन चारु चामर सिर ढरहीं ॥


बस्तु अनेक निछावर होहीं । भरीं प्रमोद मातु सब सोहीं ॥ पावा परम तत्त्व जनु जोगीं । अमृत लहेउ जनु संतत रोगीं ॥


जनम रंक जनु पारस पावा । अंधहि लोचन लाभु सुहावा ॥ मूक बदन जनु सारद छाई । मानहुँ समर सूर जय पाई ॥



Doha / दोहा


दो. एहि सुख ते सत कोटि गुन पावहिं मातु अनंदु ॥ भाइन्ह सहित बिआहि घर आए रघुकुलचंदु ॥ ३५०(क) ॥



Chaupai / चोपाई


लोक रीत जननी करहिं बर दुलहिनि सकुचाहिं । मोदु बिनोदु बिलोकि बड़ रामु मनहिं मुसकाहिं ॥ ३५०(ख) ॥


देव पितर पूजे बिधि नीकी । पूजीं सकल बासना जी की ॥ सबहिं बंदि मागहिं बरदाना । भाइन्ह सहित राम कल्याना ॥


अंतरहित सुर आसिष देहीं । मुदित मातु अंचल भरि लेंहीं ॥ भूपति बोलि बराती लीन्हे । जान बसन मनि भूषन दीन्हे ॥


आयसु पाइ राखि उर रामहि । मुदित गए सब निज निज धामहि ॥ पुर नर नारि सकल पहिराए । घर घर बाजन लगे बधाए ॥


जाचक जन जाचहि जोइ जोई । प्रमुदित राउ देहिं सोइ सोई ॥ सेवक सकल बजनिआ नाना । पूरन किए दान सनमाना ॥



Doha / दोहा


दो. देंहिं असीस जोहारि सब गावहिं गुन गन गाथ । तब गुर भूसुर सहित गृहँ गवनु कीन्ह नरनाथ ॥ ३५१ ॥



Chaupai / चोपाई


जो बसिष्ठ अनुसासन दीन्ही । लोक बेद बिधि सादर कीन्ही ॥ भूसुर भीर देखि सब रानी । सादर उठीं भाग्य बड़ जानी ॥


पाय पखारि सकल अन्हवाए । पूजि भली बिधि भूप जेवाँए ॥ आदर दान प्रेम परिपोषे । देत असीस चले मन तोषे ॥


बहु बिधि कीन्हि गाधिसुत पूजा । नाथ मोहि सम धन्य न दूजा ॥ कीन्हि प्रसंसा भूपति भूरी । रानिन्ह सहित लीन्हि पग धूरी ॥


भीतर भवन दीन्ह बर बासु । मन जोगवत रह नृप रनिवासू ॥ पूजे गुर पद कमल बहोरी । कीन्हि बिनय उर प्रीति न थोरी ॥



Doha / दोहा


दो. बधुन्ह समेत कुमार सब रानिन्ह सहित महीसु । पुनि पुनि बंदत गुर चरन देत असीस मुनीसु ॥ ३५२ ॥



Chaupai / चोपाई


बिनय कीन्हि उर अति अनुरागें । सुत संपदा राखि सब आगें ॥ नेगु मागि मुनिनायक लीन्हा । आसिरबादु बहुत बिधि दीन्हा ॥


उर धरि रामहि सीय समेता । हरषि कीन्ह गुर गवनु निकेता ॥ बिप्रबधू सब भूप बोलाई । चैल चारु भूषन पहिराई ॥


बहुरि बोलाइ सुआसिनि लीन्हीं । रुचि बिचारि पहिरावनि दीन्हीं ॥ नेगी नेग जोग सब लेहीं । रुचि अनुरुप भूपमनि देहीं ॥


प्रिय पाहुने पूज्य जे जाने । भूपति भली भाँति सनमाने ॥ देव देखि रघुबीर बिबाहू । बरषि प्रसून प्रसंसि उछाहू ॥



Doha / दोहा


दो. चले निसान बजाइ सुर निज निज पुर सुख पाइ । कहत परसपर राम जसु प्रेम न हृदयँ समाइ ॥ ३५३ ॥



Chaupai / चोपाई


सब बिधि सबहि समदि नरनाहू । रहा हृदयँ भरि पूरि उछाहू ॥ जहँ रनिवासु तहाँ पगु धारे । सहित बहूटिन्ह कुअँर निहारे ॥


लिए गोद करि मोद समेता । को कहि सकइ भयउ सुखु जेता ॥ बधू सप्रेम गोद बैठारीं । बार बार हियँ हरषि दुलारीं ॥


देखि समाजु मुदित रनिवासू । सब कें उर अनंद कियो बासू ॥ कहेउ भूप जिमि भयउ बिबाहू । सुनि हरषु होत सब काहू ॥


जनक राज गुन सीलु बड़ाई । प्रीति रीति संपदा सुहाई ॥ बहुबिधि भूप भाट जिमि बरनी । रानीं सब प्रमुदित सुनि करनी ॥



Doha / दोहा


दो. सुतन्ह समेत नहाइ नृप बोलि बिप्र गुर ग्याति । भोजन कीन्ह अनेक बिधि घरी पंच गइ राति ॥ ३५४ ॥



Chaupai / चोपाई


मंगलगान करहिं बर भामिनि । भै सुखमूल मनोहर जामिनि ॥ अँचइ पान सब काहूँ पाए । स्त्रग सुगंध भूषित छबि छाए ॥


रामहि देखि रजायसु पाई । निज निज भवन चले सिर नाई ॥ प्रेम प्रमोद बिनोदु बढ़ाई । समउ समाजु मनोहरताई ॥


कहि न सकहि सत सारद सेसू । बेद बिरंचि महेस गनेसू ॥ सो मै कहौं कवन बिधि बरनी । भूमिनागु सिर धरइ कि धरनी ॥


नृप सब भाँति सबहि सनमानी । कहि मृदु बचन बोलाई रानी ॥ बधू लरिकनीं पर घर आईं । राखेहु नयन पलक की नाई ॥



Doha / दोहा


दो. लरिका श्रमित उनीद बस सयन करावहु जाइ । अस कहि गे बिश्रामगृहँ राम चरन चितु लाइ ॥ ३५५ ॥



Chaupai / चोपाई


भूप बचन सुनि सहज सुहाए । जरित कनक मनि पलँग डसाए ॥ सुभग सुरभि पय फेन समाना । कोमल कलित सुपेतीं नाना ॥


उपबरहन बर बरनि न जाहीं । स्त्रग सुगंध मनिमंदिर माहीं ॥ रतनदीप सुठि चारु चँदोवा । कहत न बनइ जान जेहिं जोवा ॥


सेज रुचिर रचि रामु उठाए । प्रेम समेत पलँग पौढ़ाए ॥ अग्या पुनि पुनि भाइन्ह दीन्ही । निज निज सेज सयन तिन्ह कीन्ही ॥


देखि स्याम मृदु मंजुल गाता । कहहिं सप्रेम बचन सब माता ॥ मारग जात भयावनि भारी । केहि बिधि तात ताड़का मारी ॥



Doha / दोहा


दो. घोर निसाचर बिकट भट समर गनहिं नहिं काहु ॥ मारे सहित सहाय किमि खल मारीच सुबाहु ॥ ३५६ ॥



Chaupai / चोपाई


मुनि प्रसाद बलि तात तुम्हारी । ईस अनेक करवरें टारी ॥ मख रखवारी करि दुहुँ भाई । गुरु प्रसाद सब बिद्या पाई ॥


मुनितय तरी लगत पग धूरी । कीरति रही भुवन भरि पूरी ॥ कमठ पीठि पबि कूट कठोरा । नृप समाज महुँ सिव धनु तोरा ॥


बिस्व बिजय जसु जानकि पाई । आए भवन ब्याहि सब भाई ॥ सकल अमानुष करम तुम्हारे । केवल कौसिक कृपाँ सुधारे ॥


आजु सुफल जग जनमु हमारा । देखि तात बिधुबदन तुम्हारा ॥ जे दिन गए तुम्हहि बिनु देखें । ते बिरंचि जनि पारहिं लेखें ॥



Doha / दोहा


दो. राम प्रतोषीं मातु सब कहि बिनीत बर बैन । सुमिरि संभु गुर बिप्र पद किए नीदबस नैन ॥ ३५७ ॥



Chaupai / चोपाई


नीदउँ बदन सोह सुठि लोना । मनहुँ साँझ सरसीरुह सोना ॥ घर घर करहिं जागरन नारीं । देहिं परसपर मंगल गारीं ॥


पुरी बिराजति राजति रजनी । रानीं कहहिं बिलोकहु सजनी ॥ सुंदर बधुन्ह सासु लै सोई । फनिकन्ह जनु सिरमनि उर गोई ॥


प्रात पुनीत काल प्रभु जागे । अरुनचूड़ बर बोलन लागे ॥ बंदि मागधन्हि गुनगन गाए । पुरजन द्वार जोहारन आए ॥


बंदि बिप्र सुर गुर पितु माता । पाइ असीस मुदित सब भ्राता ॥ जननिन्ह सादर बदन निहारे । भूपति संग द्वार पगु धारे ॥



Doha / दोहा


दो. कीन्ह सौच सब सहज सुचि सरित पुनीत नहाइ । प्रातक्रिया करि तात पहिं आए चारिउ भाइ ॥ ३५८ ॥



Chaupai / चोपाई


भूप बिलोकि लिए उर लाई । बैठै हरषि रजायसु पाई ॥ देखि रामु सब सभा जुड़ानी । लोचन लाभ अवधि अनुमानी ॥


पुनि बसिष्टु मुनि कौसिक आए । सुभग आसनन्हि मुनि बैठाए ॥ सुतन्ह समेत पूजि पद लागे । निरखि रामु दोउ गुर अनुरागे ॥


कहहिं बसिष्टु धरम इतिहासा । सुनहिं महीसु सहित रनिवासा ॥ मुनि मन अगम गाधिसुत करनी । मुदित बसिष्ट बिपुल बिधि बरनी ॥


बोले बामदेउ सब साँची । कीरति कलित लोक तिहुँ माची ॥ सुनि आनंदु भयउ सब काहू । राम लखन उर अधिक उछाहू ॥



Doha / दोहा


दो. मंगल मोद उछाह नित जाहिं दिवस एहि भाँति । उमगी अवध अनंद भरि अधिक अधिक अधिकाति ॥ ३५९ ॥



Chaupai / चोपाई


सुदिन सोधि कल कंकन छौरे । मंगल मोद बिनोद न थोरे ॥ नित नव सुखु सुर देखि सिहाहीं । अवध जन्म जाचहिं बिधि पाहीं ॥


बिस्वामित्रु चलन नित चहहीं । राम सप्रेम बिनय बस रहहीं ॥ दिन दिन सयगुन भूपति भाऊ । देखि सराह महामुनिराऊ ॥


मागत बिदा राउ अनुरागे । सुतन्ह समेत ठाढ़ भे आगे ॥ नाथ सकल संपदा तुम्हारी । मैं सेवकु समेत सुत नारी ॥


करब सदा लरिकनः पर छोहू । दरसन देत रहब मुनि मोहू ॥ अस कहि राउ सहित सुत रानी । परेउ चरन मुख आव न बानी ॥


दीन्ह असीस बिप्र बहु भाँती । चले न प्रीति रीति कहि जाती ॥ रामु सप्रेम संग सब भाई । आयसु पाइ फिरे पहुँचाई ॥



Doha / दोहा


दो. राम रूपु भूपति भगति ब्याहु उछाहु अनंदु । जात सराहत मनहिं मन मुदित गाधिकुलचंदु ॥ ३६० ॥



Chaupai / चोपाई


बामदेव रघुकुल गुर ग्यानी । बहुरि गाधिसुत कथा बखानी ॥ सुनि मुनि सुजसु मनहिं मन राऊ । बरनत आपन पुन्य प्रभाऊ ॥


बहुरे लोग रजायसु भयऊ । सुतन्ह समेत नृपति गृहँ गयऊ ॥ जहँ तहँ राम ब्याहु सबु गावा । सुजसु पुनीत लोक तिहुँ छावा ॥


आए ब्याहि रामु घर जब तें । बसइ अनंद अवध सब तब तें ॥ प्रभु बिबाहँ जस भयउ उछाहू । सकहिं न बरनि गिरा अहिनाहू ॥


कबिकुल जीवनु पावन जानी ॥ राम सीय जसु मंगल खानी ॥ तेहि ते मैं कछु कहा बखानी । करन पुनीत हेतु निज बानी ॥



Chanda / छन्द


छं. निज गिरा पावनि करन कारन राम जसु तुलसी कह्यो । रघुबीर चरित अपार बारिधि पारु कबि कौनें लह्यो ॥ उपबीत ब्याह उछाह मंगल सुनि जे सादर गावहीं । बैदेहि राम प्रसाद ते जन सर्बदा सुखु पावहीं ॥



Sortha/ सोरठा


सो. सिय रघुबीर बिबाहु जे सप्रेम गावहिं सुनहिं । तिन्ह कहुँ सदा उछाहु मंगलायतन राम जसु ॥ ३६१ ॥



Ram Charita Manas Ends / राम चरित मानस सम्पूर्णम्


इति श्रीमद्रामचरितमानसे सकलकलिकलुषबिध्वंसने प्रथमः सोपानः समाप्तः ।



Ram Charita Manas Ends / राम चरित मानस


प्रथमः सोपानः समाप्तः । (बालकाण्ड समाप्त)


(बालकाण्ड समाप्त)



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