ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Doha / दोहा
दो. हरषि चले सुग्रीव तब अंगदादि कपि साथ। रामानुज आगें करि आए जहँ रघुनाथ ॥ २० ॥
Chaupai / चोपाई
नाइ चरन सिरु कह कर जोरी। नाथ मोहि कछु नाहिन खोरी ॥ अतिसय प्रबल देव तब माया। छूटइ राम करहु जौं दाया ॥
बिषय बस्य सुर नर मुनि स्वामी। मैं पावँर पसु कपि अति कामी ॥ नारि नयन सर जाहि न लागा। घोर क्रोध तम निसि जो जागा ॥
लोभ पाँस जेहिं गर न बँधाया। सो नर तुम्ह समान रघुराया ॥ यह गुन साधन तें नहिं होई। तुम्हरी कृपाँ पाव कोइ कोई ॥
तब रघुपति बोले मुसकाई। तुम्ह प्रिय मोहि भरत जिमि भाई ॥ अब सोइ जतनु करहु मन लाई। जेहि बिधि सीता कै सुधि पाई ॥
Doha / दोहा
दो. एहि बिधि होत बतकही आए बानर जूथ। नाना बरन सकल दिसि देखिअ कीस बरुथ ॥ २१ ॥
Chaupai / चोपाई
बानर कटक उमा में देखा। सो मूरुख जो करन चह लेखा ॥ आइ राम पद नावहिं माथा। निरखि बदनु सब होहिं सनाथा ॥
अस कपि एक न सेना माहीं। राम कुसल जेहि पूछी नाहीं ॥ यह कछु नहिं प्रभु कइ अधिकाई। बिस्वरूप ब्यापक रघुराई ॥
ठाढ़े जहँ तहँ आयसु पाई। कह सुग्रीव सबहि समुझाई ॥ राम काजु अरु मोर निहोरा। बानर जूथ जाहु चहुँ ओरा ॥
जनकसुता कहुँ खोजहु जाई। मास दिवस महँ आएहु भाई ॥ अवधि मेटि जो बिनु सुधि पाएँ। आवइ बनिहि सो मोहि मराएँ ॥
Doha / दोहा
दो. बचन सुनत सब बानर जहँ तहँ चले तुरंत । तब सुग्रीवँ बोलाए अंगद नल हनुमंत ॥ २२ ॥
Chaupai / चोपाई
सुनहु नील अंगद हनुमाना। जामवंत मतिधीर सुजाना ॥ सकल सुभट मिलि दच्छिन जाहू। सीता सुधि पूँछेउ सब काहू ॥
मन क्रम बचन सो जतन बिचारेहु। रामचंद्र कर काजु सँवारेहु ॥ भानु पीठि सेइअ उर आगी। स्वामिहि सर्ब भाव छल त्यागी ॥
तजि माया सेइअ परलोका। मिटहिं सकल भव संभव सोका ॥ देह धरे कर यह फलु भाई। भजिअ राम सब काम बिहाई ॥
सोइ गुनग्य सोई बड़भागी । जो रघुबीर चरन अनुरागी ॥ आयसु मागि चरन सिरु नाई। चले हरषि सुमिरत रघुराई ॥
पाछें पवन तनय सिरु नावा। जानि काज प्रभु निकट बोलावा ॥ परसा सीस सरोरुह पानी। करमुद्रिका दीन्हि जन जानी ॥
बहु प्रकार सीतहि समुझाएहु। कहि बल बिरह बेगि तुम्ह आएहु ॥ हनुमत जन्म सुफल करि माना। चलेउ हृदयँ धरि कृपानिधाना ॥
जद्यपि प्रभु जानत सब बाता। राजनीति राखत सुरत्राता ॥
Doha / दोहा
दो. चले सकल बन खोजत सरिता सर गिरि खोह। राम काज लयलीन मन बिसरा तन कर छोह ॥ २३ ॥
Chaupai / चोपाई
कतहुँ होइ निसिचर सैं भेटा। प्रान लेहिं एक एक चपेटा ॥ बहु प्रकार गिरि कानन हेरहिं। कोउ मुनि मिलत ताहि सब घेरहिं ॥
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