ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Doha / दोहा
दो. मैं देखउँ तुम्ह नाहि गीघहि दष्टि अपार ॥ बूढ भयउँ न त करतेउँ कछुक सहाय तुम्हार ॥ २८ ॥
Chaupai / चोपाई
जो नाघइ सत जोजन सागर । करइ सो राम काज मति आगर ॥ मोहि बिलोकि धरहु मन धीरा । राम कृपाँ कस भयउ सरीरा ॥
पापिउ जा कर नाम सुमिरहीं। अति अपार भवसागर तरहीं ॥ तासु दूत तुम्ह तजि कदराई। राम हृदयँ धरि करहु उपाई ॥
अस कहि गरुड़ गीध जब गयऊ। तिन्ह कें मन अति बिसमय भयऊ ॥ निज निज बल सब काहूँ भाषा। पार जाइ कर संसय राखा ॥
जरठ भयउँ अब कहइ रिछेसा। नहिं तन रहा प्रथम बल लेसा ॥ जबहिं त्रिबिक्रम भए खरारी। तब मैं तरुन रहेउँ बल भारी ॥
Doha / दोहा
दो. बलि बाँधत प्रभु बाढेउ सो तनु बरनि न जाई। उभय धरी महँ दीन्ही सात प्रदच्छिन धाइ ॥ २९ ॥
Chaupai / चोपाई
अंगद कहइ जाउँ मैं पारा। जियँ संसय कछु फिरती बारा ॥ जामवंत कह तुम्ह सब लायक। पठइअ किमि सब ही कर नायक ॥
कहइ रीछपति सुनु हनुमाना। का चुप साधि रहेहु बलवाना ॥ पवन तनय बल पवन समाना। बुधि बिबेक बिग्यान निधाना ॥
कवन सो काज कठिन जग माहीं। जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं ॥ राम काज लगि तब अवतारा। सुनतहिं भयउ पर्वताकारा ॥
कनक बरन तन तेज बिराजा। मानहु अपर गिरिन्ह कर राजा ॥ सिंहनाद करि बारहिं बारा। लीलहीं नाषउँ जलनिधि खारा ॥
सहित सहाय रावनहि मारी। आनउँ इहाँ त्रिकूट उपारी ॥ जामवंत मैं पूँछउँ तोही। उचित सिखावनु दीजहु मोही ॥
एतना करहु तात तुम्ह जाई। सीतहि देखि कहहु सुधि आई ॥ तब निज भुज बल राजिव नैना। कौतुक लागि संग कपि सेना ॥
Chanda / छन्द
छं. -कपि सेन संग सँघारि निसिचर रामु सीतहि आनिहैं। त्रैलोक पावन सुजसु सुर मुनि नारदादि बखानिहैं ॥
जो सुनत गावत कहत समुझत परम पद नर पावई। रघुबीर पद पाथोज मधुकर दास तुलसी गावई ॥
Doha / दोहा
दो. भव भेषज रघुनाथ जसु सुनहि जे नर अरु नारि। तिन्ह कर सकल मनोरथ सिद्ध करिहि त्रिसिरारि ॥ ३०(क) ॥
Sortha / सोरठा
सो. नीलोत्पल तन स्याम काम कोटि सोभा अधिक। सुनिअ तासु गुन ग्राम जासु नाम अघ खग बधिक ॥ ३०(ख) ॥
Kishkinda Kanda Ends / किष्किन्धा काण्ड समपूर्णम
इति श्रीमद्रामचरितमानसे सकलकलिकलुषविध्वंसने चतुर्थ सोपानः समाप्तः।
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