ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Chaupai / चोपाई
आगें चले बहुरि रघुराया। रिष्यमूक परवत निअराया ॥ तहँ रह सचिव सहित सुग्रीवा। आवत देखि अतुल बल सींवा ॥
अति सभीत कह सुनु हनुमाना। पुरुष जुगल बल रूप निधाना ॥ धरि बटु रूप देखु तैं जाई। कहेसु जानि जियँ सयन बुझाई ॥
पठए बालि होहिं मन मैला। भागौं तुरत तजौं यह सैला ॥ बिप्र रूप धरि कपि तहँ गयऊ। माथ नाइ पूछत अस भयऊ ॥
को तुम्ह स्यामल गौर सरीरा। छत्री रूप फिरहु बन बीरा ॥ कठिन भूमि कोमल पद गामी। कवन हेतु बिचरहु बन स्वामी ॥
मृदुल मनोहर सुंदर गाता। सहत दुसह बन आतप बाता ॥ की तुम्ह तीनि देव महँ कोऊ। नर नारायन की तुम्ह दोऊ ॥
Doha / दोहा
दो. जग कारन तारन भव भंजन धरनी भार। की तुम्ह अकिल भुवन पति लीन्ह मनुज अवतार ॥ १ ॥
Chaupai / चोपाई
कोसलेस दसरथ के जाए । हम पितु बचन मानि बन आए ॥ नाम राम लछिमन दऊ भाई। संग नारि सुकुमारि सुहाई ॥
इहाँ हरि निसिचर बैदेही। बिप्र फिरहिं हम खोजत तेही ॥ आपन चरित कहा हम गाई। कहहु बिप्र निज कथा बुझाई ॥
प्रभु पहिचानि परेउ गहि चरना। सो सुख उमा नहिं बरना ॥ पुलकित तन मुख आव न बचना। देखत रुचिर बेष कै रचना ॥
पुनि धीरजु धरि अस्तुति कीन्ही। हरष हृदयँ निज नाथहि चीन्ही ॥ मोर न्याउ मैं पूछा साईं। तुम्ह पूछहु कस नर की नाईं ॥
तव माया बस फिरउँ भुलाना। ता ते मैं नहिं प्रभु पहिचाना ॥
Doha / दोहा
दो. एकु मैं मंद मोहबस कुटिल हृदय अग्यान। पुनि प्रभु मोहि बिसारेउ दीनबंधु भगवान ॥ २ ॥
Chaupai / चोपाई
जदपि नाथ बहु अवगुन मोरें। सेवक प्रभुहि परै जनि भोरें ॥ नाथ जीव तव मायाँ मोहा। सो निस्तरइ तुम्हारेहिं छोहा ॥
ता पर मैं रघुबीर दोहाई। जानउँ नहिं कछु भजन उपाई ॥ सेवक सुत पति मातु भरोसें। रहइ असोच बनइ प्रभु पोसें ॥
अस कहि परेउ चरन अकुलाई। निज तनु प्रगटि प्रीति उर छाई ॥ तब रघुपति उठाइ उर लावा। निज लोचन जल सींचि जुड़ावा ॥
सुनु कपि जियँ मानसि जनि ऊना। तैं मम प्रिय लछिमन ते दूना ॥ समदरसी मोहि कह सब कोऊ। सेवक प्रिय अनन्यगति सोऊ ॥
Doha / दोहा
दो. सो अनन्य जाकें असि मति न टरइ हनुमंत। मैं सेवक सचराचर रूप स्वामि भगवंत ॥ ३ ॥
Chaupai / चोपाई
देखि पवन सुत पति अनुकूला। हृदयँ हरष बीती सब सूला ॥ नाथ सैल पर कपिपति रहई। सो सुग्रीव दास तव अहई ॥
तेहि सन नाथ मयत्री कीजे। दीन जानि तेहि अभय करीजे ॥ सो सीता कर खोज कराइहि। जहँ तहँ मरकट कोटि पठाइहि ॥
एहि बिधि सकल कथा समुझाई। लिए दुऔ जन पीठि चढ़ाई ॥ जब सुग्रीवँ राम कहुँ देखा। अतिसय जन्म धन्य करि लेखा ॥
सादर मिलेउ नाइ पद माथा। भैंटेउ अनुज सहित रघुनाथा ॥ कपि कर मन बिचार एहि रीती। करिहहिं बिधि मो सन ए प्रीती ॥
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