ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Chaupai / चोपाई
कोसलेस सुत लछिमन रामा। कालहु जीति सकहिं संग्रामा ॥
Doha / दोहा
दो. कह बालि सुनु भीरु प्रिय समदरसी रघुनाथ। जौं कदाचि मोहि मारहिं तौ पुनि होउँ सनाथ ॥ ७ ॥
Chaupai / चोपाई
अस कहि चला महा अभिमानी। तृन समान सुग्रीवहि जानी ॥ भिरे उभौ बाली अति तर्जा । मुठिका मारि महाधुनि गर्जा ॥
तब सुग्रीव बिकल होइ भागा। मुष्टि प्रहार बज्र सम लागा ॥ मैं जो कहा रघुबीर कृपाला। बंधु न होइ मोर यह काला ॥
एकरूप तुम्ह भ्राता दोऊ। तेहि भ्रम तें नहिं मारेउँ सोऊ ॥ कर परसा सुग्रीव सरीरा। तनु भा कुलिस गई सब पीरा ॥
मेली कंठ सुमन कै माला। पठवा पुनि बल देइ बिसाला ॥ पुनि नाना बिधि भई लराई। बिटप ओट देखहिं रघुराई ॥
Doha / दोहा
दो. बहु छल बल सुग्रीव कर हियँ हारा भय मानि। मारा बालि राम तब हृदय माझ सर तानि ॥ ८ ॥
Chaupai / चोपाई
परा बिकल महि सर के लागें। पुनि उठि बैठ देखि प्रभु आगें ॥ स्याम गात सिर जटा बनाएँ। अरुन नयन सर चाप चढ़ाएँ ॥
पुनि पुनि चितइ चरन चित दीन्हा। सुफल जन्म माना प्रभु चीन्हा ॥ हृदयँ प्रीति मुख बचन कठोरा। बोला चितइ राम की ओरा ॥
धर्म हेतु अवतरेहु गोसाई। मारेहु मोहि ब्याध की नाई ॥ मैं बैरी सुग्रीव पिआरा। अवगुन कबन नाथ मोहि मारा ॥
अनुज बधू भगिनी सुत नारी। सुनु सठ कन्या सम ए चारी ॥ इन्हहि कुद्दष्टि बिलोकइ जोई। ताहि बधें कछु पाप न होई ॥
मुढ़ तोहि अतिसय अभिमाना। नारि सिखावन करसि न काना ॥ मम भुज बल आश्रित तेहि जानी। मारा चहसि अधम अभिमानी ॥
Doha / दोहा
दो. सुनहु राम स्वामी सन चल न चातुरी मोरि। प्रभु अजहूँ मैं पापी अंतकाल गति तोरि ॥ ९ ॥
Chaupai / चोपाई
सुनत राम अति कोमल बानी। बालि सीस परसेउ निज पानी ॥ अचल करौं तनु राखहु प्राना। बालि कहा सुनु कृपानिधाना ॥
जन्म जन्म मुनि जतनु कराहीं। अंत राम कहि आवत नाहीं ॥ जासु नाम बल संकर कासी। देत सबहि सम गति अविनासी ॥
मम लोचन गोचर सोइ आवा। बहुरि कि प्रभु अस बनिहि बनावा ॥
Chanda / छन्द
छं. सो नयन गोचर जासु गुन नित नेति कहि श्रुति गावहीं। जिति पवन मन गो निरस करि मुनि ध्यान कबहुँक पावहीं ॥
मोहि जानि अति अभिमान बस प्रभु कहेउ राखु सरीरही। अस कवन सठ हठि काटि सुरतरु बारि करिहि बबूरही ॥ १ ॥
अब नाथ करि करुना बिलोकहु देहु जो बर मागऊँ। जेहिं जोनि जन्मौं कर्म बस तहँ राम पद अनुरागऊँ ॥
यह तनय मम सम बिनय बल कल्यानप्रद प्रभु लीजिऐ। गहि बाहँ सुर नर नाह आपन दास अंगद कीजिऐ ॥ २ ॥
Doha / दोहा
दो. राम चरन दृढ़ प्रीति करि बालि कीन्ह तनु त्याग। सुमन माल जिमि कंठ ते गिरत न जानइ नाग ॥ १० ॥
Chaupai / चोपाई
राम बालि निज धाम पठावा। नगर लोग सब ब्याकुल धावा ॥ नाना बिधि बिलाप कर तारा। छूटे केस न देह सँभारा ॥
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