Ram Charita Manas

Kishkinda Kanda

Description of how a autumn Season looks like

ॐ श्री परमात्मने नमः


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संस्कृत्म
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ॐ श्री गणेशाय नमः

Chaupai / चोपाई

बरषा बिगत सरद रितु आई। लछिमन देखहु परम सुहाई ॥ फूलें कास सकल महि छाई। जनु बरषाँ कृत प्रगट बुढ़ाई ॥

Chapter : 8 Number : 18

उदित अगस्ति पंथ जल सोषा। जिमि लोभहि सोषइ संतोषा ॥ सरिता सर निर्मल जल सोहा। संत हृदय जस गत मद मोहा ॥

Chapter : 8 Number : 18

रस रस सूख सरित सर पानी। ममता त्याग करहिं जिमि ग्यानी ॥ जानि सरद रितु खंजन आए। पाइ समय जिमि सुकृत सुहाए ॥

Chapter : 8 Number : 18

पंक न रेनु सोह असि धरनी। नीति निपुन नृप कै जसि करनी ॥ जल संकोच बिकल भइँ मीना। अबुध कुटुंबी जिमि धनहीना ॥

Chapter : 8 Number : 18

बिनु धन निर्मल सोह अकासा। हरिजन इव परिहरि सब आसा ॥ कहुँ कहुँ बृष्टि सारदी थोरी। कोउ एक पाव भगति जिमि मोरी ॥

Chapter : 8 Number : 18

Doha / दोहा

दो. चले हरषि तजि नगर नृप तापस बनिक भिखारि। जिमि हरिभगत पाइ श्रम तजहि आश्रमी चारि ॥ १६ ॥

Chapter : 8 Number : 19

Chaupai / चोपाई

सुखी मीन जे नीर अगाधा। जिमि हरि सरन न एकउ बाधा ॥ फूलें कमल सोह सर कैसा। निर्गुन ब्रह्म सगुन भएँ जैसा ॥

Chapter : 8 Number : 19

गुंजत मधुकर मुखर अनूपा। सुंदर खग रव नाना रूपा ॥ चक्रबाक मन दुख निसि पैखी। जिमि दुर्जन पर संपति देखी ॥

Chapter : 8 Number : 19

चातक रटत तृषा अति ओही। जिमि सुख लहइ न संकरद्रोही ॥ सरदातप निसि ससि अपहरई। संत दरस जिमि पातक टरई ॥

Chapter : 8 Number : 19

देखि इंदु चकोर समुदाई। चितवतहिं जिमि हरिजन हरि पाई ॥ मसक दंस बीते हिम त्रासा। जिमि द्विज द्रोह किएँ कुल नासा ॥

Chapter : 8 Number : 19

Doha / दोहा

दो. भूमि जीव संकुल रहे गए सरद रितु पाइ। सदगुर मिले जाहिं जिमि संसय भ्रम समुदाइ ॥ १७ ॥

Chapter : 8 Number : 20

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