ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Chaupai / चोपाई
इहाँ राम अंगदहि बोलावा। आइ चरन पंकज सिरु नावा ॥ अति आदर सपीप बैठारी। बोले बिहँसि कृपाल खरारी ॥
बालितनय कौतुक अति मोही। तात सत्य कहु पूछउँ तोही ॥ ।रावनु जातुधान कुल टीका। भुज बल अतुल जासु जग लीका ॥
तासु मुकुट तुम्ह चारि चलाए। कहहु तात कवनी बिधि पाए ॥ सुनु सर्बग्य प्रनत सुखकारी। मुकुट न होहिं भूप गुन चारी ॥
साम दान अरु दंड बिभेदा। नृप उर बसहिं नाथ कह बेदा ॥ नीति धर्म के चरन सुहाए। अस जियँ जानि नाथ पहिं आए ॥
Doha/ दोहा
दो. धर्महीन प्रभु पद बिमुख काल बिबस दससीस। तेहि परिहरि गुन आए सुनहु कोसलाधीस ॥ ३८(((क) ॥
परम चतुरता श्रवन सुनि बिहँसे रामु उदार। समाचार पुनि सब कहे गढ़ के बालिकुमार ॥ ३८(ख) ॥
Chaupai / चोपाई
रिपु के समाचार जब पाए। राम सचिव सब निकट बोलाए ॥ लंका बाँके चारि दुआरा। केहि बिधि लागिअ करहु बिचारा ॥
तब कपीस रिच्छेस बिभीषन। सुमिरि हृदयँ दिनकर कुल भूषन ॥ करि बिचार तिन्ह मंत्र दृढ़ावा। चारि अनी कपि कटकु बनावा ॥
जथाजोग सेनापति कीन्हे। जूथप सकल बोलि तब लीन्हे ॥ प्रभु प्रताप कहि सब समुझाए। सुनि कपि सिंघनाद करि धाए ॥
हरषित राम चरन सिर नावहिं। गहि गिरि सिखर बीर सब धावहिं ॥ गर्जहिं तर्जहिं भालु कपीसा। जय रघुबीर कोसलाधीसा ॥
जानत परम दुर्ग अति लंका। प्रभु प्रताप कपि चले असंका ॥ घटाटोप करि चहुँ दिसि घेरी। मुखहिं निसान बजावहीं भेरी ॥
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