ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Doha/ दोहा
दो. जयति राम जय लछिमन जय कपीस सुग्रीव। गर्जहिं सिघनाद कपि भालु महा बल सीवं ।।
Chaupai / चोपाई
लंकाँ भयउ कोलाहल भारी। सुना दसानन अति अहँकारी ॥ देखहु बनरन्ह केरि ढिठाई। बिहँसि निसाचर सेन बोलाई ॥
आए कीस काल के प्रेरे। छुधावंत सब निसिचर मेरे ॥ अस कहि अट्टहास सठ कीन्हा। गृह बैठे अहार बिधि दीन्हा ॥
सुभट सकल चारिहुँ दिसि जाहू। धरि धरि भालु कीस सब खाहू ॥ उमा रावनहि अस अभिमाना। जिमि टिट्टिभ खग सूत उताना ॥
चले निसाचर आयसु मागी। गहि कर भिंडिपाल बर साँगी ॥ तोमर मुग्दर परसु प्रचंडा। सुल कृपान परिघ गिरिखंडा ॥
जिमि अरुनोपल निकर निहारी। धावहिं सठ खग मांस अहारी ॥ चोंच भंग दुख तिन्हहि न सूझा। तिमि धाए मनुजाद अबूझा ॥
Doha/ दोहा
दो. नानायुध सर चाप धर जातुधान बल बीर। कोट कँगूरन्हि चढ़ि गए कोटि कोटि रनधीर ॥ ४० ॥
Chaupai / चोपाई
कोट कँगूरन्हि सोहहिं कैसे। मेरु के सृंगनि जनु घन बैसे ॥ बाजहिं ढोल निसान जुझाऊ। सुनि धुनि होइ भटन्हि मन चाऊ ॥
बाजहिं भेरि नफीरि अपारा। सुनि कादर उर जाहिं दरारा ॥ देखिन्ह जाइ कपिन्ह के ठट्टा। अति बिसाल तनु भालु सुभट्टा ॥
धावहिं गनहिं न अवघट घाटा। पर्बत फोरि करहिं गहि बाटा ॥ कटकटाहिं कोटिन्ह भट गर्जहिं। दसन ओठ काटहिं अति तर्जहिं ॥
उत रावन इत राम दोहाई। जयति जयति जय परी लराई ॥ निसिचर सिखर समूह ढहावहिं। कूदि धरहिं कपि फेरि चलावहिं ॥
Chanda / छन्द
छं. धरि कुधर खंड प्रचंड कर्कट भालु गढ़ पर डारहीं। झपटहिं चरन गहि पटकि महि भजि चलत बहुरि पचारहीं ॥ अति तरल तरुन प्रताप तरपहिं तमकि गढ़ चढ़ि चढ़ि गए। कपि भालु चढ़ि मंदिरन्ह जहँ तहँ राम जसु गावत भए ॥
Doha/ दोहा
दो. एकु एकु निसिचर गहि पुनि कपि चले पराइ। ऊपर आपु हेठ भट गिरहिं धरनि पर आइ ॥ ४१ ॥
Chaupai / चोपाई
राम प्रताप प्रबल कपिजूथा। मर्दहिं निसिचर सुभट बरूथा ॥ चढ़े दुर्ग पुनि जहँ तहँ बानर। जय रघुबीर प्रताप दिवाकर ॥
चले निसाचर निकर पराई। प्रबल पवन जिमि घन समुदाई ॥ हाहाकार भयउ पुर भारी। रोवहिं बालक आतुर नारी ॥
सब मिलि देहिं रावनहि गारी। राज करत एहिं मृत्यु हँकारी ॥ निज दल बिचल सुनी तेहिं काना। फेरि सुभट लंकेस रिसाना ॥
जो रन बिमुख सुना मैं काना। सो मैं हतब कराल कृपाना ॥ सर्बसु खाइ भोग करि नाना। समर भूमि भए बल्लभ प्राना ॥
उग्र बचन सुनि सकल डेराने। चले क्रोध करि सुभट लजाने ॥ सन्मुख मरन बीर कै सोभा। तब तिन्ह तजा प्रान कर लोभा ॥
Doha/ दोहा
दो. बहु आयुध धर सुभट सब भिरहिं पचारि पचारि। ब्याकुल किए भालु कपि परिघ त्रिसूलन्हि मारी ॥ ४२ ॥
Chaupai / चोपाई
भय आतुर कपि भागन लागे। जद्यपि उमा जीतिहहिं आगे ॥ कोउ कह कहँ अंगद हनुमंता। कहँ नल नील दुबिद बलवंता ॥
निज दल बिकल सुना हनुमाना। पच्छिम द्वार रहा बलवाना ॥ मेघनाद तहँ करइ लराई। टूट न द्वार परम कठिनाई ॥
पवनतनय मन भा अति क्रोधा। गर्जेउ प्रबल काल सम जोधा ॥ कूदि लंक गढ़ ऊपर आवा। गहि गिरि मेघनाद कहुँ धावा ॥
भंजेउ रथ सारथी निपाता। ताहि हृदय महुँ मारेसि लाता ॥ दुसरें सूत बिकल तेहि जाना। स्यंदन घालि तुरत गृह आना ॥
Doha/ दोहा
दो. अंगद सुना पवनसुत गढ़ पर गयउ अकेल। रन बाँकुरा बालिसुत तरकि चढ़ेउ कपि खेल ॥ ४३ ॥
Chaupai / चोपाई
जुद्ध बिरुद्ध क्रुद्ध द्वौ बंदर। राम प्रताप सुमिरि उर अंतर ॥ रावन भवन चढ़े द्वौ धाई। करहि कोसलाधीस दोहाई ॥
कलस सहित गहि भवनु ढहावा। देखि निसाचरपति भय पावा ॥ नारि बृंद कर पीटहिं छाती। अब दुइ कपि आए उतपाती ॥
कपिलीला करि तिन्हहि डेरावहिं। रामचंद्र कर सुजसु सुनावहिं ॥ पुनि कर गहि कंचन के खंभा। कहेन्हि करिअ उतपात अरंभा ॥
गर्जि परे रिपु कटक मझारी। लागे मर्दै भुज बल भारी ॥ काहुहि लात चपेटन्हि केहू। भजहु न रामहि सो फल लेहू ॥
Doha/ दोहा
दो. एक एक सों मर्दहिं तोरि चलावहिं मुंड। रावन आगें परहिं ते जनु फूटहिं दधि कुंड ॥ ४४ ॥
Chaupai / चोपाई
महा महा मुखिआ जे पावहिं। ते पद गहि प्रभु पास चलावहिं ॥ कहइ बिभीषनु तिन्ह के नामा। देहिं राम तिन्हहू निज धामा ॥
खल मनुजाद द्विजामिष भोगी। पावहिं गति जो जाचत जोगी ॥ उमा राम मृदुचित करुनाकर। बयर भाव सुमिरत मोहि निसिचर ॥
देहिं परम गति सो जियँ जानी। अस कृपाल को कहहु भवानी ॥ अस प्रभु सुनि न भजहिं भ्रम त्यागी। नर मतिमंद ते परम अभागी ॥
अंगद अरु हनुमंत प्रबेसा। कीन्ह दुर्ग अस कह अवधेसा ॥ लंकाँ द्वौ कपि सोहहिं कैसें। मथहि सिंधु दुइ मंदर जैसें ॥
Doha/ दोहा
दो. भुज बल रिपु दल दलमलि देखि दिवस कर अंत। कूदे जुगल बिगत श्रम आए जहँ भगवंत ॥ ४५ ॥
Chaupai / चोपाई
प्रभु पद कमल सीस तिन्ह नाए। देखि सुभट रघुपति मन भाए ॥ राम कृपा करि जुगल निहारे। भए बिगतश्रम परम सुखारे ॥
गए जानि अंगद हनुमाना। फिरे भालु मर्कट भट नाना ॥ जातुधान प्रदोष बल पाई। धाए करि दससीस दोहाई ॥
निसिचर अनी देखि कपि फिरे। जहँ तहँ कटकटाइ भट भिरे ॥ द्वौ दल प्रबल पचारि पचारी। लरत सुभट नहिं मानहिं हारी ॥
महाबीर निसिचर सब कारे। नाना बरन बलीमुख भारे ॥ सबल जुगल दल समबल जोधा। कौतुक करत लरत करि क्रोधा ॥
प्राबिट सरद पयोद घनेरे। लरत मनहुँ मारुत के प्रेरे ॥ अनिप अकंपन अरु अतिकाया। बिचलत सेन कीन्हि इन्ह माया ॥
भयउ निमिष महँ अति अँधियारा। बृष्टि होइ रुधिरोपल छारा ॥
Doha/ दोहा
दो. देखि निबिड़ तम दसहुँ दिसि कपिदल भयउ खभार। एकहि एक न देखई जहँ तहँ करहिं पुकार ॥ ४६ ॥
Chaupai / चोपाई
सकल मरमु रघुनायक जाना। लिए बोलि अंगद हनुमाना ॥ समाचार सब कहि समुझाए। सुनत कोऽपि कपिकुंजर धाए ॥
पुनि कृपाल हँसि चाप चढ़ावा। पावक सायक सपदि चलावा ॥ भयउ प्रकास कतहुँ तम नाहीं। ग्यान उदयँ जिमि संसय जाहीं ॥
भालु बलीमुख पाइ प्रकासा। धाए हरष बिगत श्रम त्रासा ॥ हनूमान अंगद रन गाजे। हाँक सुनत रजनीचर भाजे ॥
भागत पट पटकहिं धरि धरनी। करहिं भालु कपि अद्भुत करनी ॥ गहि पद डारहिं सागर माहीं। मकर उरग झष धरि धरि खाहीं ॥
Sign In