Ram Charita Manas

Lanka-Kanda

Laxman-Meghnad war, Laxman getting injured by Maya Shakti of Meghnada.

ॐ श्री परमात्मने नमः


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संस्कृत्म
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ॐ श्री गणेशाय नमः

Doha/ दोहा

कालरूप खल बन दहन गुनागार घनबोध। सिव बिरंचि जेहि सेवहिं तासों कवन बिरोध ॥ ४८(ख) ॥

Chapter : 13 Number : 51

Chaupai / चोपाई

परिहरि बयरु देहु बैदेही। भजहु कृपानिधि परम सनेही ॥ ताके बचन बान सम लागे। करिआ मुह करि जाहि अभागे ॥

Chapter : 13 Number : 51

बूढ़ भएसि न त मरतेउँ तोही। अब जनि नयन देखावसि मोही ॥ तेहि अपने मन अस अनुमाना। बध्यो चहत एहि कृपानिधाना ॥

Chapter : 13 Number : 51

सो उठि गयउ कहत दुर्बादा। तब सकोप बोलेउ घननादा ॥ कौतुक प्रात देखिअहु मोरा। करिहउँ बहुत कहौं का थोरा ॥

Chapter : 13 Number : 51

सुनि सुत बचन भरोसा आवा। प्रीति समेत अंक बैठावा ॥ करत बिचार भयउ भिनुसारा। लागे कपि पुनि चहूँ दुआरा ॥

Chapter : 13 Number : 51

कोऽपि कपिन्ह दुर्घट गढ़ु घेरा। नगर कोलाहलु भयउ घनेरा ॥ बिबिधायुध धर निसिचर धाए। गढ़ ते पर्बत सिखर ढहाए ॥

Chapter : 13 Number : 51

Chanda / छन्द

छं. ढाहे महीधर सिखर कोटिन्ह बिबिध बिधि गोला चले। घहरात जिमि पबिपात गर्जत जनु प्रलय के बादले ॥ मर्कट बिकट भट जुटत कटत न लटत तन जर्जर भए। गहि सैल तेहि गढ़ पर चलावहिं जहँ सो तहँ निसिचर हए ॥

Chapter : 13 Number : 52

Doha/ दोहा

दो. मेघनाद सुनि श्रवन अस गढ़ु पुनि छेंका आइ। उतर्यो बीर दुर्ग तें सन्मुख चल्यो बजाइ ॥ ४९ ॥

Chapter : 13 Number : 53

Chaupai / चोपाई

कहँ कोसलाधीस द्वौ भ्राता। धन्वी सकल लोक बिख्याता ॥ कहँ नल नील दुबिद सुग्रीवा। अंगद हनूमंत बल सींवा ॥

Chapter : 13 Number : 53

कहाँ बिभीषनु भ्राताद्रोही। आजु सबहि हठि मारउँ ओही ॥ अस कहि कठिन बान संधाने। अतिसय क्रोध श्रवन लगि ताने ॥

Chapter : 13 Number : 53

सर समुह सो छाड़ै लागा। जनु सपच्छ धावहिं बहु नागा ॥ जहँ तहँ परत देखिअहिं बानर। सन्मुख होइ न सके तेहि अवसर ॥

Chapter : 13 Number : 53

जहँ तहँ भागि चले कपि रीछा। बिसरी सबहि जुद्ध कै ईछा ॥ सो कपि भालु न रन महँ देखा। कीन्हेसि जेहि न प्रान अवसेषा ॥

Chapter : 13 Number : 53

Doha/ दोहा

दो. दस दस सर सब मारेसि परे भूमि कपि बीर। सिंहनाद करि गर्जा मेघनाद बल धीर ॥ ५० ॥

Chapter : 13 Number : 54

Chaupai / चोपाई

देखि पवनसुत कटक बिहाला। क्रोधवंत जनु धायउ काला ॥ महासैल एक तुरत उपारा। अति रिस मेघनाद पर डारा ॥

Chapter : 13 Number : 54

आवत देखि गयउ नभ सोई। रथ सारथी तुरग सब खोई ॥ बार बार पचार हनुमाना। निकट न आव मरमु सो जाना ॥

Chapter : 13 Number : 54

रघुपति निकट गयउ घननादा। नाना भाँति करेसि दुर्बादा ॥ अस्त्र सस्त्र आयुध सब डारे। कौतुकहीं प्रभु काटि निवारे ॥

Chapter : 13 Number : 54

देखि प्रताप मूढ़ खिसिआना। करै लाग माया बिधि नाना ॥ जिमि कोउ करै गरुड़ सैं खेला। डरपावै गहि स्वल्प सपेला ॥

Chapter : 13 Number : 54

Doha/ दोहा

दो. जासु प्रबल माया बल सिव बिरंचि बड़ छोट। ताहि दिखावइ निसिचर निज माया मति खोट ॥ ५१ ॥

Chapter : 13 Number : 55

Chaupai / चोपाई

नभ चढ़ि बरष बिपुल अंगारा। महि ते प्रगट होहिं जलधारा ॥ नाना भाँति पिसाच पिसाची। मारु काटु धुनि बोलहिं नाची ॥

Chapter : 13 Number : 55

बिष्टा पूय रुधिर कच हाड़ा। बरषइ कबहुँ उपल बहु छाड़ा ॥ बरषि धूरि कीन्हेसि अँधिआरा। सूझ न आपन हाथ पसारा ॥

Chapter : 13 Number : 55

कपि अकुलाने माया देखें। सब कर मरन बना एहि लेखें ॥ कौतुक देखि राम मुसुकाने। भए सभीत सकल कपि जाने ॥

Chapter : 13 Number : 55

एक बान काटी सब माया। जिमि दिनकर हर तिमिर निकाया ॥ कृपादृष्टि कपि भालु बिलोके। भए प्रबल रन रहहिं न रोके ॥

Chapter : 13 Number : 55

Doha/ दोहा

दो. आयसु मागि राम पहिं अंगदादि कपि साथ। लछिमन चले क्रुद्ध होइ बान सरासन हाथ ॥ ५२ ॥

Chapter : 13 Number : 56

Chaupai / चोपाई

छतज नयन उर बाहु बिसाला। हिमगिरि निभ तनु कछु एक लाला ॥ इहाँ दसानन सुभट पठाए। नाना अस्त्र सस्त्र गहि धाए ॥

Chapter : 13 Number : 56

भूधर नख बिटपायुध धारी। धाए कपि जय राम पुकारी ॥ भिरे सकल जोरिहि सन जोरी। इत उत जय इच्छा नहिं थोरी ॥

Chapter : 13 Number : 56

मुठिकन्ह लातन्ह दातन्ह काटहिं। कपि जयसील मारि पुनि डाटहिं ॥ मारु मारु धरु धरु धरु मारू। सीस तोरि गहि भुजा उपारू ॥

Chapter : 13 Number : 56

असि रव पूरि रही नव खंडा। धावहिं जहँ तहँ रुंड प्रचंडा ॥ देखहिं कौतुक नभ सुर बृंदा। कबहुँक बिसमय कबहुँ अनंदा ॥

Chapter : 13 Number : 56

Doha/ दोहा

दो. रुधिर गाड़ भरि भरि जम्यो ऊपर धूरि उड़ाइ। जनु अँगार रासिन्ह पर मृतक धूम रह्यो छाइ ॥ ५३ ॥

Chapter : 13 Number : 57

Chaupai / चोपाई

घायल बीर बिराजहिं कैसे। कुसुमित किंसुक के तरु जैसे ॥ लछिमन मेघनाद द्वौ जोधा। भिरहिं परसपर करि अति क्रोधा ॥

Chapter : 13 Number : 57

एकहि एक सकइ नहिं जीती। निसिचर छल बल करइ अनीती ॥ क्रोधवंत तब भयउ अनंता। भंजेउ रथ सारथी तुरंता ॥

Chapter : 13 Number : 57

नाना बिधि प्रहार कर सेषा। राच्छस भयउ प्रान अवसेषा ॥ रावन सुत निज मन अनुमाना। संकठ भयउ हरिहि मम प्राना ॥

Chapter : 13 Number : 57

बीरघातिनी छाड़िसि साँगी। तेज पुंज लछिमन उर लागी ॥ मुरुछा भई सक्ति के लागें। तब चलि गयउ निकट भय त्यागें ॥

Chapter : 13 Number : 57

Doha/ दोहा

दो. मेघनाद सम कोटि सत जोधा रहे उठाइ। जगदाधार सेष किमि उठै चले खिसिआइ ॥ ५४ ॥

Chapter : 13 Number : 58

Chaupai / चोपाई

सुनु गिरिजा क्रोधानल जासू। जारइ भुवन चारिदस आसू ॥ सक संग्राम जीति को ताही। सेवहिं सुर नर अग जग जाही ॥

Chapter : 13 Number : 58

यह कौतूहल जानइ सोई। जा पर कृपा राम कै होई ॥ संध्या भइ फिरि द्वौ बाहनी। लगे सँभारन निज निज अनी ॥

Chapter : 13 Number : 58

ब्यापक ब्रह्म अजित भुवनेस्वर। लछिमन कहाँ बूझ करुनाकर ॥ तब लगि लै आयउ हनुमाना। अनुज देखि प्रभु अति दुख माना ॥

Chapter : 13 Number : 58

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