ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Chaupai / चोपाई
बंधु बचन सुनि चला बिभीषन। आयउ जहँ त्रैलोक बिभूषन ॥ नाथ भूधराकार सरीरा। कुंभकरन आवत रनधीरा ॥
एतना कपिन्ह सुना जब काना। किलकिलाइ धाए बलवाना ॥ लिए उठाइ बिटप अरु भूधर। कटकटाइ डारहिं ता ऊपर ॥
कोटि कोटि गिरि सिखर प्रहारा। करहिं भालु कपि एक एक बारा ॥ मुर् यो न मन तनु टर् यो न टार् यो। जिमि गज अर्क फलनि को मार्यो ॥
तब मारुतसुत मुठिका हन्यो। पर् यो धरनि ब्याकुल सिर धुन्यो ॥ पुनि उठि तेहिं मारेउ हनुमंता। घुर्मित भूतल परेउ तुरंता ॥
पुनि नल नीलहि अवनि पछारेसि। जहँ तहँ पटकि पटकि भट डारेसि ॥ चली बलीमुख सेन पराई। अति भय त्रसित न कोउ समुहाई ॥
Doha/ दोहा
दो. अंगदादि कपि मुरुछित करि समेत सुग्रीव। काँख दाबि कपिराज कहुँ चला अमित बल सींव ॥ ६५ ॥
Chaupai / चोपाई
उमा करत रघुपति नरलीला। खेलत गरुड़ जिमि अहिगन मीला ॥ भृकुटि भंग जो कालहि खाई। ताहि कि सोहइ ऐसि लराई ॥
जग पावनि कीरति बिस्तरिहहिं। गाइ गाइ भवनिधि नर तरिहहिं ॥ मुरुछा गइ मारुतसुत जागा। सुग्रीवहि तब खोजन लागा ॥
सुग्रीवहु कै मुरुछा बीती। निबुक गयउ तेहि मृतक प्रतीती ॥ काटेसि दसन नासिका काना। गरजि अकास चलउ तेहिं जाना ॥
गहेउ चरन गहि भूमि पछारा। अति लाघवँ उठि पुनि तेहि मारा ॥ पुनि आयसु प्रभु पहिं बलवाना। जयति जयति जय कृपानिधाना ॥
नाक कान काटे जियँ जानी। फिरा क्रोध करि भइ मन ग्लानी ॥ सहज भीम पुनि बिनु श्रुति नासा। देखत कपि दल उपजी त्रासा ॥
Doha/ दोहा
दो. जय जय जय रघुबंस मनि धाए कपि दै हूह। एकहि बार तासु पर छाड़ेन्हि गिरि तरु जूह ॥ ६६ ॥
Chaupai / चोपाई
कुंभकरन रन रंग बिरुद्धा। सन्मुख चला काल जनु क्रुद्धा ॥ कोटि कोटि कपि धरि धरि खाई। जनु टीड़ी गिरि गुहाँ समाई ॥
कोटिन्ह गहि सरीर सन मर्दा। कोटिन्ह मीजि मिलव महि गर्दा ॥ मुख नासा श्रवनन्हि कीं बाटा। निसरि पराहिं भालु कपि ठाटा ॥
रन मद मत्त निसाचर दर्पा। बिस्व ग्रसिहि जनु एहि बिधि अर्पा ॥ मुरे सुभट सब फिरहिं न फेरे। सूझ न नयन सुनहिं नहिं टेरे ॥
कुंभकरन कपि फौज बिडारी। सुनि धाई रजनीचर धारी ॥ देखि राम बिकल कटकाई। रिपु अनीक नाना बिधि आई ॥
Doha/ दोहा
दो. सुनु सुग्रीव बिभीषन अनुज सँभारेहु सैन। मैं देखउँ खल बल दलहि बोले राजिवनैन ॥ ६७ ॥
Chaupai / चोपाई
कर सारंग साजि कटि भाथा। अरि दल दलन चले रघुनाथा ॥ प्रथम कीन्ह प्रभु धनुष टँकोरा। रिपु दल बधिर भयउ सुनि सोरा ॥
सत्यसंध छाँड़े सर लच्छा। कालसर्प जनु चले सपच्छा ॥ जहँ तहँ चले बिपुल नाराचा। लगे कटन भट बिकट पिसाचा ॥
कटहिं चरन उर सिर भुजदंडा। बहुतक बीर होहिं सत खंडा ॥ घुर्मि घुर्मि घायल महि परहीं। उठि संभारि सुभट पुनि लरहीं ॥
लागत बान जलद जिमि गाजहीं। बहुतक देखी कठिन सर भाजहिं ॥ रुंड प्रचंड मुंड बिनु धावहिं। धरु धरु मारू मारु धुनि गावहिं ॥
Doha/ दोहा
दो. छन महुँ प्रभु के सायकन्हि काटे बिकट पिसाच। पुनि रघुबीर निषंग महुँ प्रबिसे सब नाराच ॥ ६८ ॥
Chaupai / चोपाई
कुंभकरन मन दीख बिचारी। हति धन माझ निसाचर धारी ॥ भा अति क्रुद्ध महाबल बीरा। कियो मृगनायक नाद गँभीरा ॥
कोऽपि महीधर लेइ उपारी। डारइ जहँ मर्कट भट भारी ॥ आवत देखि सैल प्रभू भारे। सरन्हि काटि रज सम करि डारे ॥ ।
पुनि धनु तानि कोऽपि रघुनायक। छाँड़े अति कराल बहु सायक ॥ तनु महुँ प्रबिसि निसरि सर जाहीं। जिमि दामिनि घन माझ समाहीं ॥
सोनित स्त्रवत सोह तन कारे। जनु कज्जल गिरि गेरु पनारे ॥ बिकल बिलोकि भालु कपि धाए। बिहँसा जबहिं निकट कपि आए ॥
Doha/ दोहा
दो. महानाद करि गर्जा कोटि कोटि गहि कीस। महि पटकइ गजराज इव सपथ करइ दससीस ॥ ६९ ॥
Chaupai / चोपाई
भागे भालु बलीमुख जूथा। बृकु बिलोकि जिमि मेष बरूथा ॥ चले भागि कपि भालु भवानी। बिकल पुकारत आरत बानी ॥
यह निसिचर दुकाल सम अहई। कपिकुल देस परन अब चहई ॥ कृपा बारिधर राम खरारी। पाहि पाहि प्रनतारति हारी ॥
सकरुन बचन सुनत भगवाना। चले सुधारि सरासन बाना ॥ राम सेन निज पाछैं घाली। चले सकोप महा बलसाली ॥
खैंचि धनुष सर सत संधाने। छूटे तीर सरीर समाने ॥ लागत सर धावा रिस भरा। कुधर डगमगत डोलति धरा ॥
लीन्ह एक तेहिं सैल उपाटी। रघुकुल तिलक भुजा सोइ काटी ॥ धावा बाम बाहु गिरि धारी। प्रभु सोउ भुजा काटि महि पारी ॥
काटें भुजा सोह खल कैसा। पच्छहीन मंदर गिरि जैसा ॥ उग्र बिलोकनि प्रभुहि बिलोका। ग्रसन चहत मानहुँ त्रेलोका ॥
Doha/ दोहा
दो. करि चिक्कार घोर अति धावा बदनु पसारि। गगन सिद्ध सुर त्रासित हा हा हेति पुकारि ॥ ७० ॥
Chaupai / चोपाई
सभय देव करुनानिधि जान्यो। श्रवन प्रजंत सरासनु तान्यो ॥ बिसिख निकर निसिचर मुख भरेऊ। तदपि महाबल भूमि न परेऊ ॥
सरन्हि भरा मुख सन्मुख धावा। काल त्रोन सजीव जनु आवा ॥ तब प्रभु कोऽपि तीब्र सर लीन्हा। धर ते भिन्न तासु सिर कीन्हा ॥
सो सिर परेउ दसानन आगें। बिकल भयउ जिमि फनि मनि त्यागें ॥ धरनि धसइ धर धाव प्रचंडा। तब प्रभु काटि कीन्ह दुइ खंडा ॥
परे भूमि जिमि नभ तें भूधर। हेठ दाबि कपि भालु निसाचर ॥ तासु तेज प्रभु बदन समाना। सुर मुनि सबहिं अचंभव माना ॥
सुर दुंदुभीं बजावहिं हरषहिं। अस्तुति करहिं सुमन बहु बरषहिं ॥ करि बिनती सुर सकल सिधाए। तेही समय देवरिषि आए ॥
गगनोपरि हरि गुन गन गाए। रुचिर बीररस प्रभु मन भाए ॥ बेगि हतहु खल कहि मुनि गए। राम समर महि सोभत भए ॥
Chanda / छन्द
छं. संग्राम भूमि बिराज रघुपति अतुल बल कोसल धनी। श्रम बिंदु मुख राजीव लोचन अरुन तन सोनित कनी ॥ भुज जुगल फेरत सर सरासन भालु कपि चहु दिसि बने। कह दास तुलसी कहि न सक छबि सेष जेहि आनन घने ॥
Doha/ दोहा
दो. निसिचर अधम मलाकर ताहि दीन्ह निज धाम। गिरिजा ते नर मंदमति जे न भजहिं श्रीराम ॥ ७१ ॥
Chaupai / चोपाई
दिन कें अंत फिरीं दोउ अनी। समर भई सुभटन्ह श्रम घनी ॥ राम कृपाँ कपि दल बल बाढ़ा। जिमि तृन पाइ लाग अति डाढ़ा ॥
छीजहिं निसिचर दिनु अरु राती। निज मुख कहें सुकृत जेहि भाँती ॥ बहु बिलाप दसकंधर करई। बंधु सीस पुनि पुनि उर धरई ॥
रोवहिं नारि हृदय हति पानी। तासु तेज बल बिपुल बखानी ॥ मेघनाद तेहि अवसर आयउ। कहि बहु कथा पिता समुझायउ ॥
देखेहु कालि मोरि मनुसाई। अबहिं बहुत का करौं बड़ाई ॥ इष्टदेव सैं बल रथ पायउँ। सो बल तात न तोहि देखायउँ ॥
एहि बिधि जल्पत भयउ बिहाना। चहुँ दुआर लागे कपि नाना ॥ इत कपि भालु काल सम बीरा। उत रजनीचर अति रनधीरा ॥
लरहिं सुभट निज निज जय हेतू। बरनि न जाइ समर खगकेतू ॥
Sign In