ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Doha/ दोहा
दो. मेघनाद मायामय रथ चढ़ि गयउ अकास ॥ गर्जेउ अट्टहास करि भइ कपि कटकहि त्रास ॥ ७२ ॥
Chaupai / चोपाई
सक्ति सूल तरवारि कृपाना। अस्त्र सस्त्र कुलिसायुध नाना ॥ डारह परसु परिघ पाषाना। लागेउ बृष्टि करै बहु बाना ॥
दस दिसि रहे बान नभ छाई। मानहुँ मघा मेघ झरि लाई ॥ धरु धरु मारु सुनिअ धुनि काना। जो मारइ तेहि कोउ न जाना ॥
गहि गिरि तरु अकास कपि धावहिं। देखहि तेहि न दुखित फिरि आवहिं ॥ अवघट घाट बाट गिरि कंदर। माया बल कीन्हेसि सर पंजर ॥
जाहिं कहाँ ब्याकुल भए बंदर। सुरपति बंदि परे जनु मंदर ॥ मारुतसुत अंगद नल नीला। कीन्हेसि बिकल सकल बलसीला ॥
पुनि लछिमन सुग्रीव बिभीषन। सरन्हि मारि कीन्हेसि जर्जर तन ॥ पुनि रघुपति सैं जूझे लागा। सर छाँड़इ होइ लागहिं नागा ॥
ब्याल पास बस भए खरारी। स्वबस अनंत एक अबिकारी ॥ नट इव कपट चरित कर नाना। सदा स्वतंत्र एक भगवाना ॥
रन सोभा लगि प्रभुहिं बँधायो। नागपास देवन्ह भय पायो ॥
Doha/ दोहा
दो. गिरिजा जासु नाम जपि मुनि काटहिं भव पास। सो कि बंध तर आवइ ब्यापक बिस्व निवास ॥ ७३ ॥
Chaupai / चोपाई
चरित राम के सगुन भवानी। तर्कि न जाहिं बुद्धि बल बानी ॥ अस बिचारि जे तग्य बिरागी। रामहि भजहिं तर्क सब त्यागी ॥
ब्याकुल कटकु कीन्ह घननादा। पुनि भा प्रगट कहइ दुर्बादा ॥ जामवंत कह खल रहु ठाढ़ा। सुनि करि ताहि क्रोध अति बाढ़ा ॥
बूढ़ जानि सठ छाँड़ेउँ तोही। लागेसि अधम पचारै मोही ॥ अस कहि तरल त्रिसूल चलायो। जामवंत कर गहि सोइ धायो ॥
मारिसि मेघनाद कै छाती। परा भूमि घुर्मित सुरघाती ॥ पुनि रिसान गहि चरन फिरायौ। महि पछारि निज बल देखरायो ॥
बर प्रसाद सो मरइ न मारा। तब गहि पद लंका पर डारा ॥ इहाँ देवरिषि गरुड़ पठायो। राम समीप सपदि सो आयो ॥
Doha/ दोहा
दो. खगपति सब धरि खाए माया नाग बरूथ। माया बिगत भए सब हरषे बानर जूथ। ७४(क) ॥
गहि गिरि पादप उपल नख धाए कीस रिसाइ। चले तमीचर बिकलतर गढ़ पर चढ़े पराइ ॥ ७४(ख) ॥
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