Ram Charita Manas

Lanka-Kanda

Building of Ram-Setu bridge by Nala and Neela, establishment of Shri Rameshwar Jyotirlinga by Shri Rama.

ॐ श्री परमात्मने नमः


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संस्कृत्म
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ॐ श्री गणेशाय नमः

Sortha/ सोरठा

सो. सिंधु बचन सुनि राम सचिव बोलि प्रभु अस कहेउ। अब बिलंबु केहि काम करहु सेतु उतरै कटकु ॥

Chapter : 2 Number : 2

सुनहु भानुकुल केतु जामवंत कर जोरि कह। नाथ नाम तव सेतु नर चढ़ि भव सागर तरिहिं ॥

Chapter : 2 Number : 2

Chaupai / चोपाई

यह लघु जलधि तरत कति बारा। अस सुनि पुनि कह पवनकुमारा ॥ प्रभु प्रताप बड़वानल भारी। सोषेउ प्रथम पयोनिधि बारी ॥

Chapter : 2 Number : 2

तब रिपु नारी रुदन जल धारा। भरेउ बहोरि भयउ तेहिं खारा ॥ सुनि अति उकुति पवनसुत केरी। हरषे कपि रघुपति तन हेरी ॥

Chapter : 2 Number : 2

जामवंत बोले दोउ भाई। नल नीलहि सब कथा सुनाई ॥ राम प्रताप सुमिरि मन माहीं। करहु सेतु प्रयास कछु नाहीं ॥

Chapter : 2 Number : 2

बोलि लिए कपि निकर बहोरी। सकल सुनहु बिनती कछु मोरी ॥ राम चरन पंकज उर धरहू। कौतुक एक भालु कपि करहू ॥

Chapter : 2 Number : 2

धावहु मर्कट बिकट बरूथा। आनहु बिटप गिरिन्ह के जूथा ॥ सुनि कपि भालु चले करि हूहा। जय रघुबीर प्रताप समूहा ॥

Chapter : 2 Number : 2

Doha/ दोहा

दो. अति उतंग गिरि पादप लीलहिं लेहिं उठाइ। आनि देहिं नल नीलहि रचहिं ते सेतु बनाइ ॥ १ ॥

Chapter : 2 Number : 3

Chaupai / चोपाई

सैल बिसाल आनि कपि देहीं। कंदुक इव नल नील ते लेहीं ॥ देखि सेतु अति सुंदर रचना। बिहसि कृपानिधि बोले बचना ॥

Chapter : 2 Number : 3

परम रम्य उत्तम यह धरनी। महिमा अमित जाइ नहिं बरनी ॥ करिहउँ इहाँ संभु थापना। मोरे हृदयँ परम कलपना ॥

Chapter : 2 Number : 3

सुनि कपीस बहु दूत पठाए। मुनिबर सकल बोलि लै आए ॥ लिंग थापि बिधिवत करि पूजा। सिव समान प्रिय मोहि न दूजा ॥

Chapter : 2 Number : 3

सिव द्रोही मम भगत कहावा। सो नर सपनेहुँ मोहि न पावा ॥ संकर बिमुख भगति चह मोरी। सो नारकी मूढ़ मति थोरी ॥

Chapter : 2 Number : 3

Doha/ दोहा

दो. संकर प्रिय मम द्रोही सिव द्रोही मम दास। ते नर करहि कलप भरि धोर नरक महुँ बास ॥ २ ॥

Chapter : 2 Number : 4

Chaupai / चोपाई

जे रामेस्वर दरसनु करिहहिं। ते तनु तजि मम लोक सिधरिहहिं ॥ जो गंगाजलु आनि चढ़ाइहि। सो साजुज्य मुक्ति नर पाइहि ॥

Chapter : 2 Number : 4

होइ अकाम जो छल तजि सेइहि। भगति मोरि तेहि संकर देइहि ॥ मम कृत सेतु जो दरसनु करिही। सो बिनु श्रम भवसागर तरिही ॥

Chapter : 2 Number : 4

राम बचन सब के जिय भाए। मुनिबर निज निज आश्रम आए ॥ गिरिजा रघुपति कै यह रीती। संतत करहिं प्रनत पर प्रीती ॥

Chapter : 2 Number : 4

बाँधा सेतु नील नल नागर। राम कृपाँ जसु भयउ उजागर ॥ बूड़हिं आनहि बोरहिं जेई। भए उपल बोहित सम तेई ॥

Chapter : 2 Number : 4

महिमा यह न जलधि कइ बरनी। पाहन गुन न कपिन्ह कइ करनी ॥

Chapter : 2 Number : 4

Doha/ दोहा

दो. श्री रघुबीर प्रताप ते सिंधु तरे पाषान। ते मतिमंद जे राम तजि भजहिं जाइ प्रभु आन ॥ ३ ॥

Chapter : 2 Number : 5

Chaupai / चोपाई

बाँधि सेतु अति सुदृढ़ बनावा। देखि कृपानिधि के मन भावा ॥ चली सेन कछु बरनि न जाई। गर्जहिं मर्कट भट समुदाई ॥

Chapter : 2 Number : 5

सेतुबंध ढिग चढ़ि रघुराई। चितव कृपाल सिंधु बहुताई ॥ देखन कहुँ प्रभु करुना कंदा। प्रगट भए सब जलचर बृंदा ॥

Chapter : 2 Number : 5

मकर नक्र नाना झष ब्याला। सत जोजन तन परम बिसाला ॥ अइसेउ एक तिन्हहि जे खाहीं। एकन्ह कें डर तेपि डेराहीं ॥

Chapter : 2 Number : 5

प्रभुहि बिलोकहिं टरहिं न टारे। मन हरषित सब भए सुखारे ॥ तिन्ह की ओट न देखिअ बारी। मगन भए हरि रूप निहारी ॥

Chapter : 2 Number : 5

चला कटकु प्रभु आयसु पाई। को कहि सक कपि दल बिपुलाई ॥

Chapter : 2 Number : 5

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