ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Doha/ दोहा
दो. ताहि कि संपति सगुन सुभ सपनेहुँ मन बिश्राम। भूत द्रोह रत मोहबस राम बिमुख रति काम ॥ ७८ ॥
Chaupai / चोपाई
चलेउ निसाचर कटकु अपारा। चतुरंगिनी अनी बहु धारा ॥ बिबिध भाँति बाहन रथ जाना। बिपुल बरन पताक ध्वज नाना ॥
चले मत्त गज जूथ घनेरे। प्राबिट जलद मरुत जनु प्रेरे ॥ बरन बरद बिरदैत निकाया। समर सूर जानहिं बहु माया ॥
अति बिचित्र बाहिनी बिराजी। बीर बसंत सेन जनु साजी ॥ चलत कटक दिगसिधुंर डगहीं। छुभित पयोधि कुधर डगमगहीं ॥
उठी रेनु रबि गयउ छपाई। मरुत थकित बसुधा अकुलाई ॥ पनव निसान घोर रव बाजहिं। प्रलय समय के घन जनु गाजहिं ॥
भेरि नफीरि बाज सहनाई। मारू राग सुभट सुखदाई ॥ केहरि नाद बीर सब करहीं। निज निज बल पौरुष उच्चरहीं ॥
कहइ दसानन सुनहु सुभट्टा। मर्दहु भालु कपिन्ह के ठट्टा ॥ हौं मारिहउँ भूप द्वौ भाई। अस कहि सन्मुख फौज रेंगाई ॥
यह सुधि सकल कपिन्ह जब पाई। धाए करि रघुबीर दोहाई ॥
Chanda / छन्द
छं. धाए बिसाल कराल मर्कट भालु काल समान ते। मानहुँ सपच्छ उड़ाहिं भूधर बृंद नाना बान ते ॥ नख दसन सैल महाद्रुमायुध सबल संक न मानहीं। जय राम रावन मत्त गज मृगराज सुजसु बखानहीं ॥
Doha/ दोहा
दो. दुहु दिसि जय जयकार करि निज निज जोरी जानि। भिरे बीर इत रामहि उत रावनहि बखानि ॥ ७९ ॥
Chaupai / चोपाई
रावनु रथी बिरथ रघुबीरा। देखि बिभीषन भयउ अधीरा ॥ अधिक प्रीति मन भा संदेहा। बंदि चरन कह सहित सनेहा ॥
नाथ न रथ नहिं तन पद त्राना। केहि बिधि जितब बीर बलवाना ॥ सुनहु सखा कह कृपानिधाना। जेहिं जय होइ सो स्यंदन आना ॥
सौरज धीरज तेहि रथ चाका। सत्य सील दृढ़ ध्वजा पताका ॥ बल बिबेक दम परहित घोरे। छमा कृपा समता रजु जोरे ॥
ईस भजनु सारथी सुजाना। बिरति चर्म संतोष कृपाना ॥ दान परसु बुधि सक्ति प्रचंड़ा। बर बिग्यान कठिन कोदंडा ॥
अमल अचल मन त्रोन समाना। सम जम नियम सिलीमुख नाना ॥ कवच अभेद बिप्र गुर पूजा। एहि सम बिजय उपाय न दूजा ॥
सखा धर्ममय अस रथ जाकें। जीतन कहँ न कतहुँ रिपु ताकें ॥
Doha/ दोहा
दो. महा अजय संसार रिपु जीति सकइ सो बीर। जाकें अस रथ होइ दृढ़ सुनहु सखा मतिधीर ॥ ८०(क) ॥
सुनि प्रभु बचन बिभीषन हरषि गहे पद कंज। एहि मिस मोहि उपदेसेहु राम कृपा सुख पुंज ॥ ८०(ख) ॥
उत पचार दसकंधर इत अंगद हनुमान। लरत निसाचर भालु कपि करि निज निज प्रभु आन ॥ ८०(ग) ॥
Chaupai / चोपाई
सुर ब्रह्मादि सिद्ध मुनि नाना। देखत रन नभ चढ़े बिमाना ॥ हमहू उमा रहे तेहि संगा। देखत राम चरित रन रंगा ॥
सुभट समर रस दुहु दिसि माते। कपि जयसील राम बल ताते ॥ एक एक सन भिरहिं पचारहिं। एकन्ह एक मर्दि महि पारहिं ॥
मारहिं काटहिं धरहिं पछारहिं। सीस तोरि सीसन्ह सन मारहिं ॥ उदर बिदारहिं भुजा उपारहिं। गहि पद अवनि पटकि भट डारहिं ॥
निसिचर भट महि गाड़हि भालू। ऊपर ढारि देहिं बहु बालू ॥ बीर बलिमुख जुद्ध बिरुद्धे। देखिअत बिपुल काल जनु क्रुद्धे ॥
Chanda / छन्द
छं. क्रुद्धे कृतांत समान कपि तन स्त्रवत सोनित राजहीं। मर्दहिं निसाचर कटक भट बलवंत घन जिमि गाजहीं ॥ मारहिं चपेटन्हि डाटि दातन्ह काटि लातन्ह मीजहीं। चिक्करहिं मर्कट भालु छल बल करहिं जेहिं खल छीजहीं ॥ धरि गाल फारहिं उर बिदारहिं गल अँतावरि मेलहीं। प्रहलादपति जनु बिबिध तनु धरि समर अंगन खेलहीं ॥ धरु मारु काटु पछारु घोर गिरा गगन महि भरि रही। जय राम जो तृन ते कुलिस कर कुलिस ते कर तृन सही ॥
Doha/ दोहा
दो. निज दल बिचलत देखेसि बीस भुजाँ दस चाप। रथ चढ़ि चलेउ दसानन फिरहु फिरहु करि दाप ॥ ८१ ॥
Chaupai / चोपाई
धायउ परम क्रुद्ध दसकंधर। सन्मुख चले हूह दै बंदर ॥ गहि कर पादप उपल पहारा। डारेन्हि ता पर एकहिं बारा ॥
लागहिं सैल बज्र तन तासू। खंड खंड होइ फूटहिं आसू ॥ चला न अचल रहा रथ रोपी। रन दुर्मद रावन अति कोपी ॥
इत उत झपटि दपटि कपि जोधा। मर्दै लाग भयउ अति क्रोधा ॥ चले पराइ भालु कपि नाना। त्राहि त्राहि अंगद हनुमाना ॥
पाहि पाहि रघुबीर गोसाई। यह खल खाइ काल की नाई ॥ तेहि देखे कपि सकल पराने। दसहुँ चाप सायक संधाने ॥
Chanda / छन्द
छं. संधानि धनु सर निकर छाड़ेसि उरग जिमि उड़ि लागहीं। रहे पूरि सर धरनी गगन दिसि बिदसि कहँ कपि भागहीं ॥ भयो अति कोलाहल बिकल कपि दल भालु बोलहिं आतुरे। रघुबीर करुना सिंधु आरत बंधु जन रच्छक हरे ॥
Sign In