ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Chaupai / चोपाई
देखा श्रमित बिभीषनु भारी। धायउ हनूमान गिरि धारी ॥ रथ तुरंग सारथी निपाता। हृदय माझ तेहि मारेसि लाता ॥
ठाढ़ रहा अति कंपित गाता। गयउ बिभीषनु जहँ जनत्राता ॥ पुनि रावन कपि हतेउ पचारी। चलेउ गगन कपि पूँछ पसारी ॥
गहिसि पूँछ कपि सहित उड़ाना। पुनि फिरि भिरेउ प्रबल हनुमाना ॥ लरत अकास जुगल सम जोधा। एकहि एकु हनत करि क्रोधा ॥
सोहहिं नभ छल बल बहु करहीं। कज्जल गिरि सुमेरु जनु लरहीं ॥ बुधि बल निसिचर परइ न पार् यो। तब मारुत सुत प्रभु संभार् यो ॥
Chanda / छन्द
छं. संभारि श्रीरघुबीर धीर पचारि कपि रावनु हन्यो। महि परत पुनि उठि लरत देवन्ह जुगल कहुँ जय जय भन्यो ॥ हनुमंत संकट देखि मर्कट भालु क्रोधातुर चले। रन मत्त रावन सकल सुभट प्रचंड भुज बल दलमले ॥
Doha/ दोहा
दो. तब रघुबीर पचारे धाए कीस प्रचंड। कपि बल प्रबल देखि तेहिं कीन्ह प्रगट पाषंड ॥ ९५ ॥
Chaupai / चोपाई
अंतरधान भयउ छन एका। पुनि प्रगटे खल रूप अनेका ॥ रघुपति कटक भालु कपि जेते। जहँ तहँ प्रगट दसानन तेते ॥
देखे कपिन्ह अमित दससीसा। जहँ तहँ भजे भालु अरु कीसा ॥ भागे बानर धरहिं न धीरा। त्राहि त्राहि लछिमन रघुबीरा ॥
दहँ दिसि धावहिं कोटिन्ह रावन। गर्जहिं घोर कठोर भयावन ॥ डरे सकल सुर चले पराई। जय कै आस तजहु अब भाई ॥
सब सुर जिते एक दसकंधर। अब बहु भए तकहु गिरि कंदर ॥ रहे बिरंचि संभु मुनि ग्यानी। जिन्ह जिन्ह प्रभु महिमा कछु जानी ॥
Chanda / छन्द
छं. जाना प्रताप ते रहे निर्भय कपिन्ह रिपु माने फुरे। चले बिचलि मर्कट भालु सकल कृपाल पाहि भयातुरे ॥ हनुमंत अंगद नील नल अतिबल लरत रन बाँकुरे। मर्दहिं दसानन कोटि कोटिन्ह कपट भू भट अंकुरे ॥
Doha/ दोहा
दो. सुर बानर देखे बिकल हँस्यो कोसलाधीस। सजि सारंग एक सर हते सकल दससीस ॥ ९६ ॥
Chaupai / चोपाई
प्रभु छन महुँ माया सब काटी। जिमि रबि उएँ जाहिं तम फाटी ॥ रावनु एकु देखि सुर हरषे। फिरे सुमन बहु प्रभु पर बरषे ॥
भुज उठाइ रघुपति कपि फेरे। फिरे एक एकन्ह तब टेरे ॥ प्रभु बलु पाइ भालु कपि धाए। तरल तमकि संजुग महि आए ॥
अस्तुति करत देवतन्हि देखें। भयउँ एक मैं इन्ह के लेखें ॥ सठहु सदा तुम्ह मोर मरायल। अस कहि कोऽपि गगन पर धायल ॥
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