Ram Charita Manas

Lanka-Kanda

Dialogue between Trijata and Sita about the happenings of war.

ॐ श्री परमात्मने नमः


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संस्कृत्म
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ॐ श्री गणेशाय नमः

Chaupai / चोपाई

तेही निसि सीता पहिं जाई। त्रिजटा कहि सब कथा सुनाई ॥ सिर भुज बाढ़ि सुनत रिपु केरी। सीता उर भइ त्रास घनेरी ॥

Chapter : 28 Number : 123

मुख मलीन उपजी मन चिंता। त्रिजटा सन बोली तब सीता ॥ होइहि कहा कहसि किन माता। केहि बिधि मरिहि बिस्व दुखदाता ॥

Chapter : 28 Number : 123

रघुपति सर सिर कटेहुँ न मरई। बिधि बिपरीत चरित सब करई ॥ मोर अभाग्य जिआवत ओही। जेहिं हौ हरि पद कमल बिछोही ॥

Chapter : 28 Number : 123

जेहिं कृत कपट कनक मृग झूठा। अजहुँ सो दैव मोहि पर रूठा ॥ जेहिं बिधि मोहि दुख दुसह सहाए। लछिमन कहुँ कटु बचन कहाए ॥

Chapter : 28 Number : 123

रघुपति बिरह सबिष सर भारी। तकि तकि मार बार बहु मारी ॥ ऐसेहुँ दुख जो राख मम प्राना। सोइ बिधि ताहि जिआव न आना ॥

Chapter : 28 Number : 123

बहु बिधि कर बिलाप जानकी। करि करि सुरति कृपानिधान की ॥ कह त्रिजटा सुनु राजकुमारी। उर सर लागत मरइ सुरारी ॥

Chapter : 28 Number : 123

प्रभु ताते उर हतइ न तेही। एहि के हृदयँ बसति बैदेही ॥

Chapter : 28 Number : 123

Chanda / छन्द

छं. एहि के हृदयँ बस जानकी जानकी उर मम बास है। मम उदर भुअन अनेक लागत बान सब कर नास है ॥ सुनि बचन हरष बिषाद मन अति देखि पुनि त्रिजटाँ कहा। अब मरिहि रिपु एहि बिधि सुनहि सुंदरि तजहि संसय महा ॥

Chapter : 28 Number : 124

Doha/ दोहा

दो. काटत सिर होइहि बिकल छुटि जाइहि तव ध्यान। तब रावनहि हृदय महुँ मरिहहिं रामु सुजान ॥ ९९ ॥

Chapter : 28 Number : 125

Chaupai / चोपाई

अस कहि बहुत भाँति समुझाई। पुनि त्रिजटा निज भवन सिधाई ॥ राम सुभाउ सुमिरि बैदेही। उपजी बिरह बिथा अति तेही ॥

Chapter : 28 Number : 125

निसिहि ससिहि निंदति बहु भाँती। जुग सम भई सिराति न राती ॥ करति बिलाप मनहिं मन भारी। राम बिरहँ जानकी दुखारी ॥

Chapter : 28 Number : 125

जब अति भयउ बिरह उर दाहू। फरकेउ बाम नयन अरु बाहू ॥ सगुन बिचारि धरी मन धीरा। अब मिलिहहिं कृपाल रघुबीरा ॥

Chapter : 28 Number : 125

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